कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनाव होने हैं और इंडिया टुडे के 'मूड ऑफ दि नेशन' सर्वे के मुताबिक नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ले सकते हैं. ऐसा करने के साथ ही वे नेहरू के बाद लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने वाले नेता बन जाएंगे.
इस उपलब्धि के अलावा भी समय-समय पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ नरेंद्र मोदी की तुलना होती रहती है. ऐसे में क्या आप जानते हैं वो किस्सा जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के साल भर बाद ही जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस के सामने अपना इस्तीफ़ा रख दिया था?
वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर ने 2011 में इंडिया टुडे मैगजीन में नेहरू पर लिखे एक लेख में इस घटना का जिक्र किया था. अकबर लिखते हैं, "29 अप्रैल, 1958 को अभूतपूर्व संकट के माहौल में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक हुई. नेहरू (प्रधानमंत्री पद से) इस्तीफ़ा देने के लिए अपनी पार्टी की इजाज़त चाहते थे. उन्होंने पहले ही राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को इसकी वजह बता दी थी और वो थी थकान. नेहरू ने अपने साथी सांसदों से कहा कि पब्लिक सर्विस के चालीस साल आनंददायक रहे लेकिन अब वे 'इस दैनिक बोझ' से राहत पाकर 'शांतचित्त से कुछ सोचना' चाहते हैं और 'भारत के एक आम नागरिक के रूप में, न कि प्रधानमंत्री के रूप में' लौटना चाहते हैं." यह लिखने के साथ ही एमजे अकबर ने अपने लेख में स्पष्ट किया कि जिस व्यक्ति को सीपीआई सांसद हिरेन मुख़र्जी ने एक महान और महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बताया था, वो महान आदमी भी अंततः एक मानव था. और इतना मानवीय कि उसे अपना मन बदलने के लिए राजी किया जा सके.
एमजे अकबर ने अपने लेख में बताया, "जैसा कि एक कांग्रेस सांसद ने तीखी टिप्पणी की थी, जवाहरलाल यह सोचने के लिए समय चाहते थे कि दुनिया को हाइड्रोजन बम से कैसे बचाया जाए, लेकिन उन्हें कांग्रेस पर हाइड्रोजन बम गिराने में कोई परेशानी नहीं थी. जब कांग्रेस ने उनके इस्तीफे के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो वाशिंगटन से ड्वाइट आइजनहावर और मॉस्को से निकिता क्रुश्चेव, दोनों की ओर से बधाई और राहत के पत्र आए. कहीं न कहीं गुट निरपेक्षता काम कर रही थी!"
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अलावा इस बात का जिक्र विदेशी इतिहासकार टेलर सी शेरमन भी करती हैं. लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर टेलर ने अपनी किताब 'नेहरूज इंडिया: अ हिस्ट्री इन सेवन मिथ्स' में नेहरू के बारे में विस्तृत रूप से लिखा है. पिछले साल 2023 की फरवरी में टेलर एक डिस्कशन के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय आई थीं. उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की थी कि नेहरू ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देने के लिए इजाजत मांगी थी लेकिन पार्टी ने एक सिरे उनकी मांग को नकार दिया था.
इसके अलावा भारत के प्रधानमंत्रियों पर किताब लिखने वाले लेखक और पत्रकार रशीद किदवई ने भी फ्रंटलाइन के लिए लिखे एक आर्टिकल में इस बात का जिक्र किया था कि 1957 में प्रधानमंत्री बनने के ठीक एक साल बाद ही नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से कहा था कि वे किताबों और दोस्तों के बीच एक शांत जीवन जीना चाहते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा पर जाने के लिए राजनीति के दबाव से मुक्ति की बात उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से की थी. नेहरू ने जब यह बात पार्टी के सामने रखी तो पार्टी ने उन पर भरपूर दबाव बनाते हुए इस विचार के बारे में भूल जाने को कहा.
इन सब के बीच कांग्रेस नेता शशि थरूर की एक वीडियो की क्लिप भी वायरल हो रही है जिसमें वे नेहरू से जुड़ी इस घटना के बारे में बता रहे हैं. वैसे तो यह वीडियो 5 साल पुराना है मगर थरूर ने बात पते की कही है. इस घटना के बारे में बताते हुए थरूर कहते हैं कि दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू को लगा कि अब बहुत हुआ और उन्होंने फरवरी 1958 में इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बारे में ज्यादा बात नहीं की गई है मगर उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपना इस्तीफ़ा भारत के राष्ट्रपति को भेज दिया था. नेहरू का कहना था कि उन्होंने दस सालों तक देश की सेवा की और अब किसी और को मौका मिलना चाहिए.
शशि थरूर के मुताबिक, नेहरू ने हिमालय में हाइकिंग करने के लिए 6 महीने की बुकिंग भी करवा ली थी. इस खबर के सार्वजनिक होने के बाद लोग सड़कों पर आ गए थे. कांग्रेस पार्टी की वर्किंग कमिटी ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया था कि नेहरू इस्तीफ़ा नहीं देंगे. दुनियाभर के नेताओं द्वारा जब चिट्ठियां और टेलीग्राम नेहरू के नाम पर पहुंचने लगे तो अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने इस्तीफ़ा वापस ले लिया था.
लेकिन 2011 के अपने लेख में एमजे अकबर ने ये भी लिखा कि शायद उस वक्त उन्हें इस्तीफ़ा दे ही देना चाहिए था. अपने लेख में वे लिखते हैं, "शायद नेहरू को 1958 में ही इस्तीफा दे देना चाहिए था; उनका अध्याय भारत के इतिहास में चमक उठता. उनकी हिमालयन ब्लंडर (भारत-चीन संबंध) ने भारतीय आत्मविश्वास को चकनाचूर कर दिया; वे खुद कभी भी इस गलती से उबर नहीं सके, यहां तक कि शारीरिक रूप से भी. (अचानक ही) वे बूढ़े हो गए. मैंने नेहरू की जीवनी में लिखा है कि सीजर्स (जूलियस सीजर) को अचानक मर जाना चाहिए. एक धीमी मौत उन्हें सम्मोहित कर लेती है. वे अपरिहार्य से नहीं लड़ सकते, लेकिन आसानी से आत्मसमर्पण भी नहीं करते. अक्टूबर 1962 के 15 महीनों के भीतर, नेहरू को भुवनेश्वर एआईसीसी में एक बड़ा स्ट्रोक हुआ और पांच महीने बाद, उनका निधन हो गया."
इसी लेख में नेहरू से जुड़े एक और मजेदार किस्से का जिक्र है जिसे जवाहरलाल नेहरू के प्राइवेट सेक्रेटरी एम ओ मथाई के हवाले से लिखा गया है. मथाई बताते हैं कि नेहरू के पसंदीदा दर्जी मुहम्मद उमर थे, जिनकी दुकानें विभाजन के दंगों में नष्ट हो गईं. प्रधानमंत्री ने उनके व्यवसाय को बहाल करने में मदद की और उमर ने आभारी होकर अपनी दुकान पर बोर्ड लगाया - 'टेलर टू दि प्राइम मिनिस्टर'. उमर का बेटा, जो कराची चला गया था, उसने भी अपनी दुकान में बिल्कुल वैसा ही बोर्ड लगाया. मथाई ने जब उमर से पूछा कि क्या इस बोर्ड से पाकिस्तान में कुछ मदद मिली तो उमर ने जवाब दिया, "साहब, पंडितजी कहीं भी बेस्टसेलर हैं."