
'वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है' - अल्ताफ राजा की ये कालजयी पंक्तियां हर उस बार याद आती हैं, जब-जब नए साल का आगमन होता है. नए साल के साथ कोई अपनी पुरानी आदतों को बदलता है तो कोई नई आदतें पालने का शौक करता है.
मगर एक चीज जो हर घर में नए साल पर बदलती है, वो है कैलेंडर. पुराने कैलेंडर को हटाने से पहले जब व्यक्ति उससे आखिरी बार रूबरू होता है तो भाव कुछ ऐसा ही उभरता है कि जब तुम से इत्तफाकन मेरी नज़र मिली थी, कुछ याद आ रहा है शायद वह जनवरी थी.
एक और जनवरी आ गई है, और एक और बार घरों में कैलेंडर बदलने का सिलसिला चालू हो गया है. कैलेंडर बदलने के इस मौसम में क्या आपको मालूम है कि 1957 में भारत सरकार ने देश के लिए एक नया कैलेंडर अपनाया जो यहां की तारीखों और त्योहारों का ख़ास ध्यान रखता है? इस कैलेंडर को कहते हैं 'इंडियन नेशनल कैलेंडर' या शक कैलेंडर.
आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक भारतीय कैलेंडर बनाए जाने की बात की. उनका मानना था कि जो ग्रेगोरियन कैलेंडर विश्व के ज्यादातर हिस्सों में इस्तेमाल हो रहा था वो भारतीय त्योहारों और तिथियों के अनुकूल नहीं था. इसे लेकर 1952 में कैलेंडर रिफॉर्म कमिटी गठित की गई जिसका अध्यक्ष जाने-माने एस्ट्रोफिजिसिस्ट मेघनाद साहा को बनाया गया. तकरीबन 30 तरह के क्षेत्रीय कैलेंडर को स्टडी करने के बाद, 1955 में इस कमिटी ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी जिसमें उन्होंने भारतीय परंपरा के हिसाब से ज्यादा करीब एक इंडियन नेशनल कैलेंडर की रूपरेखा बताई.

इस कैलेंडर का उद्देश्य भारतीय त्योहारों की डेट को फिक्स करना और ग्रामीण इलाकों में तिथियों से जुड़े दस्तावेजों को दुरुस्त करना था. मेघनाद साहा ने जहां ग्रेगोरियन कैलेंडर को सुविधाजनक नहीं पाया तो वहीं क्षेत्रीय कैलेंडर उन्हें साइंटिफिक तौर पर दुरुस्त नहीं दिखे. ग्रेगोरियन कैलेंडर के बारे में उन्होंने कहा कि इसमें जो 365 दिन हैं, इन्हें न तो ठीक से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है और न ही तीन भागों में. क्षेत्रीय कैलेंडर से उन्हें ये शिकायत थी कि वो एक साल यानी उतना वक्त जितना पृथ्वी को सूर्य का चक्कर काटने में लगता है, उसकी गणना गलत कर रहे थे.
मेघनाद साहा की टीम ने अपनी रिपोर्ट में शक संवत को अपडेट करने की बात कही जिसे भारतीय खगोलविद 500 ईस्वी से इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि इसे अपडेट कर 21 मार्च 1956 से अपनाया जाए जो शक संवत के हिसाब से 1878 का पहला दिन होता. इसके अपडेशन के लिहाज से शक संवत 1877 के आखिरी महीने यानी फाल्गुन में 30 की जगह अतिरिक्त 6-7 दिन जोड़े गए.
इंडियन नेशनल कैलेंडर को अपडेट करने और नए सिरे से गणना करने के लिए विदेशी वैज्ञानिकों ने भी खूब मदद की. ब्रिटेन के हेरोल्ड स्पेंसर जोंस और डॉनल्ड सैडलर ने जहां सूर्य और चन्द्रमा से जुड़े सटीक डेटा भेजे तो वहीं ऑस्ट्रियन-अमेरिकन एस्ट्रोनॉमर ओटो नोइगोबाउवर ने कैलेंडर और तिथियों के इतिहास से जुड़े संदेह दूर किए.
भारतीय सरकार ने इस कैलेंडर को 22 मार्च 1957 से अपनाया था मगर दुखद है कि मेघनाद साहा इस दिन को देखने के लिए जीवित नहीं थे. 1956 में ही एक दिन राष्ट्रपति भवन जाने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी. सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, 1955 में भेजी अपनी रिपोर्ट में मेघनाद साहा की टीम ने दुनियाभर के लिए एक कैलेंडर अपडेशन की बात भी कही थी जिसमें साल के दिनों को बड़े आराम से दो और तीन हिस्सों में बांटा जा सकता था. मेघनाद साहा ने इस आइडिया का यूनाइटेड नेशंस की मीटिंग में भी जिक्र किया था मगर बात नहीं बन सकी थी.
भारत सरकार के गजट से लेकर ऑल इंडिया रेडियो तक इसी कैलेंडर का इस्तेमाल करता है. चैत्र से फाल्गुन तक चलने वाला ये 12 महीने का कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से 22 मार्च से शुरू होता है. हालांकि सरकारी दस्तावेजों के बाहर विरले ही इस कैलेंडर का इस्तेमाल आपको कहीं देखने को मिलेगा. गजट और बाकी सरकारी जगहों पर भी इंडियन नेशनल कैलेंडर के अलावा आपको ग्रेगोरियन कैलेंडर देखने को मिल जाएगा. अगर इसे खरीदने का कभी दिल करे तो भारत सरकार की प्रेस में छपने वाला ये कैलेंडर बमुश्किल आपको 5 से 10 रुपए में मिल जाएगा.