"भाजपा हिंदुओं के बीच राममंदिर के अपने एजेंडे के कारण लोकप्रिय हो रही थी और लालू ने आडवाणी की रथयात्रा का विरोध किया. लालू ने मंच पर आकर लोगों को संबोधित करते हुए आडवाणी से अपनी रथयात्रा रद्द करने को कहा. उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति बचेगा ही नहीं, तो कौन इन मंदिरों में जाकर घंटी बजाएगा? एक आम आदमी के जीवन का मूल्य भारत के किसी भी पीएम जितना कीमती है.” उन्होंने कहा, “मैं किसी को भी अपने राज्य में आने और सांप्रदायिक दंगा फैलाने की अनुमति नहीं दूंगा. मैं अपने लोगों की सुरक्षा से समझौता नहीं करूंगा.”
ये पंक्तियां ‘बिहार का गांधी-नीतीश कुमार’ किताब की हैं, जिसे बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी और उनकी सांसद बेटी शांभवी ने मिलकर लिखा है. वैसे तो यह किताब उन्होंने अपने मुख्यमंत्री और नेता नीतीश कुमार की तारीफ में लिखी है. मगर दिलचस्प है कि 17 अध्यायों वाली इस किताब में उन्होंने एक अध्याय नीतीश कुमार के कभी मित्र रहे और अब विरोधी लालू यादव के बारे में लिखा है. अध्याय का नाम है – ‘लालू यादव का आगमन’.
इस अध्याय में वे पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल के बारे में कई जानकारियां देते हैं. आडवाणी रथयात्रा प्रकरण के बारे में उन्होंने आगे लिखा है - “लालू ने राम मंदिर मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण के कारण मंडल आयोग और मुसलमानों के समर्थन के साथ पिछड़ा वर्ग का समर्थन प्राप्त किया. ये दो फैसले लालू के पक्ष में सबसे बड़े मील के पत्थर साबित हुए.”
जब लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बनने वाले थे, तब का जिक्र करते हुए चौधरी ने नीतीश कुमार के उस बयान का जिक्र किया है, जिसमें उनका कहना था - “लालू हमारी क्रांति का चेहरा हैं. मैं इनके दिमाग के रूप में काम करने वाले समूह का हिस्सा हूं. नीतीश कुमार ऐसा तब कहते हैं, जब उनसे लोग पूछते हैं कि वे सीएम के तौर पर अपना नाम क्यों आगे नहीं करते.”
आगे लालू के बारे में टिप्पणी करते हुए अशोक चौधरी लिखते हैं - “वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. यदि आप उच्च जाति के हैं, तो आप उन्हें क्रोध से देखेंगे, यदि आप किसी निम्न जाति के हैं, तो आप उन्हें रक्षक के रूप में देखेंगे. वे एक बुद्धिमान व्यक्ति थे और उनके शब्द और नारे कठोर थे.”
लालू प्रसाद यादव कैसे पिछड़ों के नेता बने इस बारे में जिक्र करते हुए किताब में लिखा गया है - “लालू के आगमन को पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए वरदान माना गया, जो अभी भी उच्च जाति के लोगों के बीच सामाजिक स्वीकृति पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. बिहार में तब भी जाति की राजनीति का बोलबाला था और लालू यादव ने अपने मुखर तेवर से पिछड़े वर्ग को अपने नारे से आवाज दी थी. यह साफ था कि अब निचली जातियां सवर्णों को अपना मालिक नहीं मानेंगी, बल्कि उनके लिए लड़ेंगी. समान अधिकार और परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने लालू यादव को नेता चुना था.”
मंडल आयोग लागू कराने में पूर्व मुख्यमंत्री की अहम भूमिका का जिक्र करते हुए अशोक चौधरी लिखते हैं - “कोटा की राजनीति 1977 में बिहार में कर्पूरी ठाकुर द्वारा शुरू की गई थी और लालू यादव द्वारा इसे दूसरे स्तर पर ले जाया गया था. लोग उन्हें ‘अपना आदमी’ मानने लगे और राजनीति में अपना आदमी कहलाना किसी भी राजनेता के लिए सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि इसका मतलब है कि वह जनता से कुछ भी और सबकुछ मांग सकता है और जनता उसका साथ देगी. लालू लगातार विभिन्न मुद्दों को लेकर प्रशासन पर दबाव बना रहे थे. राज्य में तैनात लगभग सभी आईपीएस उच्च जाति से थे. प्रशासन और लालू के बीच दरार साफ नजर आ रही थी. लालू ने प्रशासन को साफ हिदायत दी कि निचली जाति के लोगों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए.”
दिलचस्प है कि उन्होंने इस अध्याय में लालू के जंगलराज या परिवारवाद का एक बार भी जिक्र नहीं किया, जिसका जिक्र नीतीश कुमार आजकल अपने लगभग हर भाषण में करते हैं. हां, उन्होंने यह जरूर लिखा कि उनका राज यादवों के लिए रामराज्य था. उन्होंने हर लाभ प्राथमिकता के आधार पर मिलता था. और लालू के समय में पहली बार मुसलमानों ने खुद को सुरक्षित महसूस किया. उन्होंने उच्च वर्ग को ललकार कर पिछड़े वर्ग को सशक्त बनाया.
अगले अध्याय ‘संघर्ष जारी रहा’ में उन्होंने जरूर उन्होंने लालू की लोकप्रियता में गिरावट, बिहार के किसी तीसरी दुनिया के देश जैसा होने, विकास न होने, स्वास्थ्य-शिक्षा की स्थिति में गिरावट और बेरोजगारी का जिक्र किया है. मगर फिर भी उन्होंने चारा घोटाला, भ्रष्टाचार, जंगलराज और परिवारवाद जैसे लालू पर लगने वाले आरोपों से परहेज किया. इस अध्याय में अशोक चौधरी ने 2000 से 2005 तक के नीतीश के संघर्ष के बारे में लिखा है.
इसके बाद वाले अध्याय में जब नीतीश सीएम बनते हैं तो अशोक चौधरी ने नीतीश के अपराध नियंत्रण के उदाहरणों के बारे में विस्तार से लिखा है. उन्होंने इस अध्याय में खास तौर पर तीन बाहुबली राजनेताओं के बारे में कई बातें दर्ज की हैं. ये तीन नेता हैं - राजद के शहाबुद्दीन (2021 में कोरोना से मौत हो चुकी है) और जदयू के सुनील पांडेय तथा अनंत सिंह. दिलचस्प है कि इन दिनों इनमें से दो अलग-अलग वजहों से चर्चा में हैं. जहां अनंत सिंह अभी एक मामले में बरी होकर जेल से रिहा हुए हैं, उनकी नजदीकियां जदयू से है. वहीं सुनील पांडेय ने अपने बेटे के साथ भाजपा की सदस्यता ली है. उनके बेटे की भोजपुर की पीरो विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में लड़ने की चर्चा है.
सुनील पांडेय के चौधरी ने लिखा है - “भोजपुर जिले के पीरो से जेडीयू के विधायक सुनील पांडेय जिन पर 100 से भी अधिक मुकदमे दर्ज थे, उनमें से 25 हत्या के थे, पटना के एक होटल में एक रात अपनी पत्नी और बेटे के साथ पहुंचे और सुबह होते-होते वे मीडिया के सभी चैनलों पर दिखाए जा रहे थे. घटना यह हुई कि सुनील पांडेय ने होटल का बिल चुकाने से मना कर दिया था और बिल मांगने के लिए होटल के स्टाफ को धमकी देने लगे. सुनील के रवैये पर होटल प्रबंधन आगबबूला हो गया और इस कारण ही उसने सभी मीडिया चैनलों को होटल बुला लिया औऱ मीडिया चैनलों के सामने ही सुनील ने तमाशा शुरू कर दिया. कैमरे पर ही उसने यह भी कह दिया कि अगर रिकॉर्डिंग बंद नहीं की तो वह कैमरामैन की हत्या करवा देगा. ऐसा था सुनील पांडेय का रवैया! और सारे न्यूज चैनल सुनील पांडेय का नाम नीतीश कुमार के मंत्री के रूप में चलाने लगे. वह छवि, जिसे लेकर नीतीश इतने सतर्क थे, वह हर एक मीडिया चैनल पर दागदार होने लगी.”
उन्होंने लिखा है कि नीतीश ने खुद डीएसपी को केस दर्ज करने का आदेश दिया. सुनील पांडेय बगावत करने पर आमादा थे, मगर उन्हें गिरफ्तार करवाकर जेल भेजा गया औऱ पार्टी से निलंबित कर दिया गया.
इसके बाद अनंत सिंह ने अपने आवास पर एक मुस्लिम लड़की के बारे में सवाल पूछने गए मीडिया कर्मियों पर हमला कर दिया. उस लड़की ने अनंत सिंह पर रेप का आरोप लगाकर नीतीश कुमार को पत्र लिखा था. कुछ ही दिनों बाद उसकी लाश मिली थी. अशोक चौधरी लिखते हैं - “मीडियाकर्मियों की इतनी पिटाई की गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. अगले दिन, जब कुछ और मीडियाकर्मी विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे तो उनके साथ भी वही सलूक हुआ. जनभावना अब नीतीश कुमार के खिलाफ जाने लगी थी और यह उनके बरदाश्त से बाहर था. उन्होंने पुलिस को शिकायत दर्ज करने और अनंत सिंह को बिना देरी किए गिरफ्तार करने का आदेश दिया.”
अशोक चौधरी और उनकी बेटी शांभवी चौधरी की इस किताब में ऐसे ही कुछ और दिलचस्प किस्से हैं. इस किताब को प्रभात प्रकाशन ने छापा है. कीमत 350 रुपये है. यह किताब अंग्रेजी में भी आई है. 18 अगस्त को बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने इसका लोकार्पण किया. इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, सांसद अभिनेता अरुण गोविल और पार्श्वगायक उदित नारायण मौजूद थे.