"जब मैं इस फॉर्मेट से दूर जा रहा हूं, तो यह आसान नहीं है - लेकिन यह सही लगता है. मैंने इसमें अपना सबकुछ दिया है और इसने मुझे मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा दिया है."
शब्द आसान थे, लेकिन आखिरी भी. 12 मई को अपलोडेड हजारों-लाखों पोस्ट की तरह यह भी महज एक सोशल मीडिया पोस्ट थी - लेकिन इसमें एक खास वजन था. इसमें क्रिकेट में एक युग के अंत की घोषणा थी.
विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया है. और इसके साथ ही भारतीय टेस्ट टीम ने न सिर्फ एक बल्लेबाज या एक लीडर खो दिया, बल्कि शायद खेल के सबसे बड़े प्रारूप के अपने सबसे बड़े एंबेसेडर को भी खो दिया है.
जब कोहली ने 2011 में वेस्टइंडीज में डेब्यू किया, तो उन्हें सफेद गेंद की उस पीढ़ी का प्रोडक्ट माना गया, जो आक्रामक थी, एथलेटिक थी और जिसमें रनों की जबरदस्त भूख थी. लेकिन कोहली के भीतर कहीं गहरे मौजूद एक ओल्ड स्कूल क्रिकेटर भी था. आधुनिक शरीर में एक प्यूरिस्ट यानी शुद्धतावादी. कोहली का यह व्यक्तित्व टेस्ट क्रिकेट में निखर कर सामने आया.
उन्होंने उस साल ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद टीम में अपनी जगह पक्की कर ली. उन्होंने बल्ले के साथ गर्जना की, लेकिन उनकी आंखें और भी बहुत कुछ कहती थीं. उनके पास एक मजबूत संकल्प था; एक आग थी, जो पीछे हटने से इनकार करती थी, भले ही सामने दिग्गज ही क्यों न खड़े हों. टेस्ट क्रिकेट में कोहली की सफलता कोई संयोग नहीं थी. उन्होंने इसे ईंट-दर-ईंट बनाया - तकनीक, स्वभाव और जुझारूपन के साथ.
अगले एक दशक तक भारत जहां भी गया, कोहली ने टेस्ट क्रिकेट का गौरव अपने साथ रखा. उन्होंने सिर्फ टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला; उन्होंने इसे जिया. इसका सम्मान किया. इसके अनुशासन की पूजा की.
कोहली ने अपने विदाई नोट में लिखा, "14 साल हो गए जब मैंने पहली बार टेस्ट क्रिकेट में बैगी ब्लू कैप पहनी थी. ईमानदारी से कहूं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह प्रारूप मुझे किस सफर पर ले जाएगा. इसने मुझे परखा, मुझे आकार दिया और मुझे ऐसे सबक सिखाए जिन्हें मैं जीवन भर अपने साथ रखूंगा."
कोहली ने अपने टेस्ट करिअर में 123 टेस्ट खेले. उन्होंने 30 शतकों के साथ 46.85 के औसत से 9230 रन बनाए, जिनमें 31 अर्धशतक भी शामिल रहे. एक टेस्ट बल्लेबाज के रूप में विराट कोहली का यह रिकॉर्ड है. लेकिन टेस्ट क्रिकेट प्रेमियों के बीच उनकी लोकप्रियता केवल उनकी शानदार बल्लेबाजी के कारण नहीं थी- यह उनकी कप्तानी थी जिसने उन्हें टी20 के युग में टेस्ट क्रिकेट का सच्चा दूत बनाया.
भारत का टेस्ट क्रिकेट में स्वर्ण युग
जब 2014 में एमएस धोनी ने उन्हें कमान सौंपी, तो कोहली को सिर्फ एक टीम नहीं मिली. उन्हें अपेक्षाएं मिलीं. टेस्ट क्रिकेट में भारत उस समय पिछड़ रहा था. विदेशों में तो हार मिल ही रही थी, घरेलू जमीन पर भी अनिश्चितता की स्थिति थी. कोहली ने उस अनिश्चितता को संभाला और उसे पूरी तरह बदल डाला.
कप्तान बनते ही उन्होंने फ्रंट से आकर जिम्मेदारी संभाली, और एडिलेड में शानदार शतक बनाया. एक सिर्फ एक अच्छी शुरुआत भर नहीं थी, एक साफ संदेश भी था. कोहली की अगुआई वाली भारतीय टीम जीत के पीछे भागेगी, न कि ड्रॉ के पीछे. निडर, लेकिन लापरवाह नहीं. ऐसी टीम जो हारना पसंद करेगी, लेकिन पीछे नहीं हटेगी.
कोहली ने दिसंबर 2014 से जनवरी 2022 तक, इन 8 सालों में कुल 68 टेस्ट मैचों में भारतीय टीम की अगुआई की. उनकी कप्तानी में टीम ने 40 मैच जीते. टेस्ट इतिहास में सिर्फ तीन कप्तानों का रिकॉर्ड ही उनसे बेहतर है. कोहली की अगुआई में भारत रैंकिंग में सातवें स्थान से नंबर एक पर पहुंचा और टिका रहा. घर में वे अपराजेय थे, और विदेशों में वे सिर्फ टूरिस्ट नहीं रहे, बल्कि जीत के दावेदार बन गए.
श्रीलंका, वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया में शानदार जीतें मिलीं. इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी कड़ी टक्करें हुईं. लेकिन इन सबके बावजूद कोहली की टीम ने जीत दर्ज की. और यही बात उन्होंने सबसे बेहतर तरीके से समझी - टेस्ट जीतने के लिए आपको 20 विकेट लेने ही होंगे, हमेशा.
2015 में श्रीलंका में कोहली ने कहा, "हमें एक बल्लेबाज कम खिलाने में कोई दिक्कत नहीं है. बस हमें 20 विकेट लेने हैं." ये शब्द केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस का हिस्सा नहीं थे. यह एक खाका था. इसके बाद भारत ने ऐसी बॉलिंग अटैक तैयार किया, जो कहीं भी जीत सकता था. इसके नतीजे भी सामने आए.
कोहली की अगुआई में भारत ने 28 बार टेस्ट मैच में 20 विकेट लिए हैं. इनमें से 13 बार विदेशी धरती पर. उनके कार्यकाल में छह गेंदबाजों ने 100 विकेट का आंकड़ा पार किया. यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है- यह एक 'कल्चरल शिफ्ट' यानी सांस्कृतिक बदलाव है. लेकिन कोहली का प्रभाव कभी भी सिर्फ आंकड़ों तक ही सीमित नहीं रहा.
उन्होंने इंडियन क्रिकेट की बॉडी लैंग्वेज बदल दी. उन्होंने फिटनेस को सबसे आगे रखा. बीप टेस्ट, जिम सेशन, फील्डिंग ड्रिल - इन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता था. उन्होंने खुद को ऐसे मानकों पर रखा जिसकी बराबरी शायद ही कोई कर सकता हो. और टीम ने उनका अनुसरण किया. फिटनेस की वह क्रांति, जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है, भारत के उदय और उत्थान के पीछे इंजन बन गई.
लेकिन फिटनेस से परे, कोहली का टेस्ट क्रिकेट के साथ एक भावनात्मक लगाव था. उनके लिए टेस्ट कैप पहनना कोई रूटीन नहीं था- यह पवित्र था. उन्होंने पुरानी नीली बैगी कैप को गर्व के साथ वापस लाया, इसे ताज की तरह माना. आईपीएल की चमक और टी20 की स्टारडम के युग में, उन्होंने युवाओं को फिर से टेस्ट क्रिकेट से प्यार करना सिखाया.
कई सीरीज में ऐसे रन बने जो 'विराट एरा' को परिभाषित करते हैं - 2014-15 में ऑस्ट्रेलिया में 692 रन. 2018 में इंग्लैंड में वापसी (2014 में 134 रन से लेकर 2018 में पांच टेस्ट में 593 रन). सेंचुरियन, मेलबर्न, एजबेस्टन में शतक. उन्हें आराम की जरूरत नहीं थी. वे अराजकता में फले-फूले.
और फिर उनकी कप्तानी के फैसले- बड़े-बड़े डिक्लेरेशन, आक्रामक फील्ड प्लेसमेंट, फॉलो-ऑन न कराने का जिद. कोहली जीत के लिए खेले. ड्रॉ उन्हें उत्साहित नहीं करते थे. इससे भारत को देखना रोमांचक हो गया.
उनके आलोचक अक्सर आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीतने की बात करते हैं. लेकिन कोहली का टेस्ट क्रिकेट के लिए विजन एक ट्रॉफी से कहीं बड़ा था. यह टेस्ट क्रिकेट की पहचान को बहाल करने के बारे में था, विश्वास जगाने के बारे में. भारत को ऐसी टीम बनाने के बारे में जिससे दूसरे डरें- न केवल एशिया में, बल्कि मेलबर्न, जोहान्सबर्ग, और लंदन में भी.
यह काम कर गया. उनका रिकॉर्ड बोलता है. लेकिन सबसे बड़ी जीत? उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को 'एस्पिरेशनल' यानी आकांक्षी बनाया. उन्होंने भारत को एक खतरनाक फास्ट बॉलिंग वाला क्रिकेट देश बनाया. उन्होंने किशोरों को पांच दिन की लड़ाइयों का सपना देखने को प्रेरित किया. उन्होंने प्रशंसकों को उस प्रारूप की परवाह करने के लिए मजबूर किया जिसे कई लोग भूलने लगे थे.
एक शांत विदाई
और अब, 36 साल की उम्र में विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया. उनके लिए कोई विदाई टेस्ट नहीं, कोई लैप ऑफ ऑनर नहीं. बस एक शांत घोषणा और देश भर के क्रिकेट प्रेमी स्तब्ध रह गए. यह एक तरह से उचित है. कोहली ने हमेशा क्रिकेट को बोलने दिया. और इसने बोला - जोर से, जोश से, बेबाक.
आंकड़े बताएंगे 30 टेस्ट शतक. लेकिन वे पर्थ इनिंग के बारे में नहीं बता पाएंगे, जहां उन्होंने ग्लैडिएटर की तरह बल्लेबाजी की. या लॉर्ड्स, जहां उन्होंने शेर की तरह कप्तानी की. वे यह नहीं बताएंगे कि ड्रेसिंग रूम में वे अकेले कैसे खड़े रहे, जिम्मेदारी लेते हुए, दोष अपने कंधों पर लेते हुए. वे यह नहीं बताएंगे कि उन्होंने दूसरों को बेहतर बनने के लिए कैसे प्रेरित किया- खिलाड़ी के रूप में, पेशेवर के रूप में.
ये आंकड़े यह नहीं बताएंगे कि प्रशंसक उनके पैर छूने के लिए बाड़ क्यों लांघते थे. या युवा गेंदबाज उन्हें 'विराट भाई' क्यों कहते हैं, सच्ची श्रद्धा के साथ. भारत में टेस्ट क्रिकेट उन्हें जितना समझता है, उससे ज्यादा याद करेगा.
यह फॉर्मेट अब शांत लगेगा. लड़ाइयां कम तीव्र होंगी. लेकिन उनकी छाप हर जगह है- तेज गेंदबाजों के रवैये में, फील्डरों की चुस्ती में, इस विश्वास में कि भारत कहीं भी जीत सकता है.
कोहली का युग खत्म हो गया. लेकिन इसकी गूंज तब तक सुनाई देगी जब तक टेस्ट क्रिकेट जीवित है. एक पूरी पीढ़ी के लिए उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को फिर से खूबसूरत बनाया.
यही उनकी सबसे बड़ी जीत थी.
- सौरभ कुमार.