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टाइपोडे-23 : टाइपोग्राफी और कैलिग्राफी का ऐसा उत्सव जिसके बारे में सबको जानना चाहिए

टाइपोडे भारत में टाइपोग्राफर्स का शिखर सम्मेलन है और यह हाल ही में बनारस विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आयोजित हुआ था.

बीएचयू में आयोजित टाइपोडे-23
बीएचयू में आयोजित टाइपोडे-23
अपडेटेड 3 नवंबर , 2023

- हर्षित श्याम 

अगर आप हिंदी में पठन-पाठन और कंप्यूटर के जरिये लेखन का काम करते होंगे तो कृति देव, कोकिला, मंगल, यूनिकोड जैसे फ़ॉन्ट्स और प्रणाली से थोड़ा-बहुत परिचित जरूर होंगे. अंग्रेजी में काम करते होंगे तो टाइम्स न्यू रोमन और एरियल, सेरिफ़ और सेन्स सेरिफ़ फ़ॉन्ट्स के फ़र्क के बारे में थोड़ा बहुत आइडिया होगा. 

क्या अपने कीबोर्ड के बटन दबाते वक़्त आपके मन में यह कौतुहल जगा है कि हमारे विचारों को दर्ज करने वाले इन फ़ॉन्ट्स का निर्माण कैसे हुआ होगा? दरअसल इन फ़ॉन्ट्स के निर्माण के पीछे एक कला है, एक विज्ञान है – टाइपोग्राफी यानी मुद्रण कला. पंद्रहवीं सदी में गुटेनबर्ग प्रेस के निर्माण से लेकर मोबाइल कंप्यूटिंग के वर्तमान समय तक मुद्रण कला की तकनीक में आमूल-चूल परिवर्तन आया है, मुद्रण कला विज्ञान और तकनीक के सहयोग से खूब परिष्कृत हुई है. लेकिन यह आज भी अपने मूल से पहले की भांति ही जुड़ी हुई है. 

टाइपोग्राफी के साथ एक शब्द जिसका जिक्र बार-बार आता है, वो है कैलीग्राफी यानी सुलेखन. टाइपोग्राफी- कैलीग्राफी का चोली-दामन का साथ है. बीते दिनों बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में देश-दुनिया के टाइपोग्राफर्स और कैलीग्राफर्स जुटे, मौका था ‘टाइपोडे-23’ का. टाइपोडे भारत में टाइपोग्राफर्स का शिखर सम्मेलन है और यह पहली बार उत्तर भारत में हो रहा था.

मोबाइल और इंटरनेट के बढ़ते प्रसार के साथ इन मंचों पर भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कॉन्टेंट की मात्रा भी बढ़ रही है. लेकिन आज भी अंग्रेजी भाषा की तुलना में अन्य भारतीय भाषाओं के लिए उपलब्ध फ़ॉन्ट्स की संख्या तुलनात्मक रूप से बेहद कम है. दरअसल इसके पीछे इन भाषाओं और इनकी लिपियों से जुड़े कुछ बुनियादी और तकनीकी कारण हैं – जैसे अक्षरों की कुल संख्या, उन्हें लिखने के तरीके, विशेष वर्ण, प्रतीक एवं उच्चारण चिह्न इत्यादि. 

लेकिन बीते दशक में टाइपोग्राफर्स और कैलीग्राफर्स की एक ऐसी खेप आई है जो फ़ॉन्ट् निर्माण की दिशा में काफी काम कर रही है. ऐसा ही एक समूह है ‘एक टाइप’ टाइप डिजाइनरों का एक ऐसा समूह जो समकालीन भारतीय टाइपफेस डिजाइन करने पर केंद्रित है. एक टाइप ने मुक्ता, बलू, जैनी, जैनी पूर्वा, गोटू, मोदक सरीखे फ़ॉन्ट्स की एक पूरी श्रृंखला विकसित की है. उनके ज्यादातर फ़ॉन्ट्स एक से ज्यादा भाषाओं को सपोर्ट करते हैं और वे इसे लगातार विकसित कर रहे हैं. मुक्ता और बलू तो काफी लोकप्रिय फ़ॉन्ट् हैं – जो एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और हॉस्पिटल के साईनएज से लेकर न्यूज़ चैनल्स और वेबसाइट्स तक खूब इस्तेमाल हो रहे हैं. 

एक टाइप से जुड़ी टाइप डिज़ाइनर पूर्वी कोठारी ‘प्रवाह’ फॉण्ट विकसित करने वाली टीम का हिस्सा रहीं हैं. देवनागरी लिपि की यूनिकोड बेस्ड फॉण्ट प्रणाली पर विकसित फॉण्ट प्रवाह हिंदी के साथ-साथ संस्कृत भाषा को भी सपोर्ट करता है. पूर्वी बताती हैं, “प्रवाह की खासियत है उसका विस्तृत करैक्टर बेस. इस फॉण्ट के लिए 1750 संयुक्ताक्षरों को मिलाकर कुल 3152 करैक्टरों को डिजाईन किया गया है. यह देवनागरी लिपि के अब तक के डिजाइन किए हुए टाइप फेस में सबसे बृहद है.” 

एक टाइप की को-फाउंडर नूपुर दात्ये समूह द्वारा विकसित किए जा रहे नए टाइप फेस ‘अनेक’ के बारे में बताती हैं, “हमारी टीम ‘अनेक’ को भारत की सभी प्रमुख भाषाओं और उनकी लिपियों के लिए विकसित करने के लिए काम कर रही है. अभी हमारी टीम 12 भाषाओं/लिपियों के 12 डिज़ाइनर्स की टीम के साथ काम कर रही है. एक टाइप ने गूगल के ‘नोटो’ टाइप फेस के लिए भारत की कई क्षेत्रीय भाषाओं और लिपियों के लिए फॉण्ट विकसित करने का काम भी किया है जैसे – गोंडी, डोगरी और नंदीनागरी आदि.” 

सामान्य फॉण्ट और टाइप फेस से इतर कुछ कलात्मक काम भी टाइपोग्राफी के क्षेत्र में हो रहे हैं. देहरादून की यूपीईएस यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर ईशान खोसला रामायण के चरित्रों को लेकर एक फॉण्ट विकसित कर रहे हैं ‘रामायण’. ‘रामायण’ फॉण्ट अंग्रेजी भाषा, लैटिन स्क्रिप्ट को सपोर्ट करता है, इसकी खासियत है एक ही वर्ण/अक्षर के लिए इसके कई करैक्टर ऑप्शन जैसे ‘A’ के लिए उस वर्ण से जुड़े करैक्टर के रूप में – अहिल्या और अंगद, ‘R’ के लिए राम और रावण दोनों में किसी का भी चयन यूजर अपनी जरुरत के अनुसार कर सकता है. 

ईशान फ़ॉन्ट्स डिजाइन करते वक़्त लोककलाओं को भी प्रमोट करते हैं. उन्होंने पहले भी मध्य प्रदेश की बैगा, गुजरात की राबड़ी, पाको और बांधनी, राजस्थान के कटवर्क, कताब और कर्नाटक चितारा शैली का प्रयोग फॉण्ट निर्माण के लिए किया है. रामायण फॉण्ट को उन्होंने मधुबनी चित्रकला के जरिये विकसित किया है जिसमें उनका सहयोग किया है मधुबनी चित्रकार प्रद्युमन कुमार और पुष्पा कुमारी ने.

टाइपोडे-23 के मंच पर तीन टाइपोग्राफर्स और कैलीग्राफर्स को लाईफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया -  पूसपति परमेश्वर राजू, अच्युत पल्लव और मुथु नेदुमारण. इसके अलावा बीएचयू के दृश्य कला संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. हीरालाल प्रजापति को कला शिक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए विशिष्ट अलंकरण से सम्मानित किया गया.

पूसपति परमेश्वर राजू ने अपनी सुलेखन कला के जरिये हिंदू, बौद्ध, सिख, यहूदी, इस्लाम, पारसी, ईसाई आदि धर्मों से जुड़े आख्यानों को चित्रित किया है. राजू ने सिर्फ कैलीग्राफी स्ट्रोक्स के जरिये पूरी रामायण का चित्रण किया है. अच्युत पल्लव देश के सुप्रसिद्ध कैलीग्राफर हैं अपने ‘स्कूल ऑफ़ कैलीग्राफी’ के जरिये उन्होंने ना सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देशभर में वर्कशॉप्स के जरिये कैलीग्राफ़र्स की एक बड़ी खेप तैयार की है. 

अस्सी के दशक में अपना कैरियर शुरू करने वाले मुथु नेदुमारण ने संचार क्रांति के प्रारम्भिक दौर में डॉट-मैट्रिक्स प्रिंटर के ज़माने में बिटमैप फ़ॉन्ट्स डिजाईन करने से लेकर वर्तमान समय की नवीनतम तकनीक तक सक्रिय हैं. मुथु ने दो दर्जन से ज्यादा तमिल फॉण्ट डिजाइन किए हैं. उनके द्वारा विकसित मुरासु अंजल तो तमिल डेस्कटॉप पब्लिशिंग की दुनिया में क्रन्तिकारी काम था, उसके पहले तमिल प्रिंटिंग के मेटल टाइप प्रिंटिंग तकनीक ही उपलब्ध थी. मुथु ने एप्पल-एंड्राइड-गूगल जैसे दिग्गज टेक कंपनी और प्लेटफॉर्म्स के लिए भी काम किया है.  वे आज भी अपनी कंपनी के जरिये ऐसे प्लेटफॉर्म और सॉफ्टवेयर विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं जिससे आने वाले समय में दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया की भाषाओं पर काम कर रहे टाइपोग्राफर्स का काम आसान हो सके. 

टाइपोडे-23 के एग्जीबिशन में 500 से ज्यादा कलाकृतियों (पोस्टर्स) को प्रस्तुत किया गया. इस तीन दिवसीय आयोजन में 11 सामानांतर कार्यशालाओं के अलावा 3 विशिष्ट व्याख्यान, 8 व्याख्यान सत्रों एवं घाट और विश्वविद्यालय स्थित विश्वनाथ मंदिर में दो लाइव प्रदर्शन सत्रों का आयोजन हुआ. इन सत्रों में नवीन तकनीक से लेकर ब्राह्मी, अवेस्ता जैसी प्राचीन लिपियों और भाषाओं तक विविध विषयों पर कार्यशाला एवं व्याख्यान हुए.

टाइपोडे-23 आयोजन के संयोजक बीएचयू के दृश्य कला संकाय में व्यवहारिक कला के प्राध्यापक  डॉ. मनीष अरोड़ा ने बताया कि पहली बार यह आयोजन देश के दक्षिण-पश्चिम भाग से निकल कर उत्तर भारत में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आयोजित हो रहा है. इस आयोजन की इस वर्ष की थीम थी “पवित्रता और सुलेख”. कोविड-19 के बाद यह वर्चुअल वर्ल्ड के बाहर टाइपोडे का पहला आयोजन था. डॉ. अरोड़ा के कहते हैं, “भारत में सुलेखन की एक समृद्ध परंपरा रही है, निरंतर होते तकनीकी नवाचार के युग में जिस तरह इंटरनेट माध्यमों पर भारतीय भाषाओँ से जुड़ा कंटेंट बढ़ा है ऐसे में फॉण्ट डिजाईन के लिए भारत में टाइपोग्राफी के क्षेत्र में आपार मौके और संभावनाएं हैं. जरुरत है ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने की जरुरत है.”

इस आयोजन को इसी लक्ष्य के साथ आयोजित किया गया था कि उत्तर-पूरब के युवा भी टाइपोग्राफी, कैलिग्राफी जैसे विषयों में वैसे ही रूचि लें जैसे महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों में लोग रूचि लेते हैं.

- हर्षित श्याम स्वतंत्र पत्रकार हैं

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