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‘द ज़ोन ऑफ इंटरेस्ट’: होलोकास्ट की भयावह आवाजें और गुलाब, सूरजमुखी, डेहलिया के रंग-बिरंगे फूल!

'द ज़ोन ऑफ इंटरेस्ट' जैसे कहती है कि उसके एक संस्करण को आप देखें; दूसरे को सुनें; और दोनों के बीच की चीज़ों को पढ़ते हुए चलें. फिल्म देखते हुए रूह कांपने लगती है

द ज़ोन ऑफ इंटरेस्ट
The zone of Interest
अपडेटेड 24 जुलाई , 2024

‘द ज़ोन ऑफ इंटरेस्ट’ एक कसाई कथा है. कसाई का हंसता-खेलता भरा-पूरा परिवार और उसकी दिनचर्या. और कसाई भी कोई भेड़-बकरी हलाल करके मांस बेचने वाला नहीं, पोलैंड में हिटलर के एक कसाईबाड़े यानी ऑश्वित्ज़ का कमांडर रुडोल्फ हॉस. फिल्म बहुत खूबसूरत है, बशर्ते इसे म्यूट करके देखें. ज़बान खींच लें इसकी.

पर ऐसा शायद ही कर पाएं आप. वैसे भी ज़बान जर्मन है इसकी. बल्कि जोनाथन ग्लेज़र की यह सिनेमाई रचना ऐसी है जो आपसे ही डिमांड करती है कि आप अपनी भाषा खुद अख्तियार करते हुए चलिए. फिल्म की बुनियाद मार्टिन एमिस का इसी नाम का नॉवेल है.

इसकी ज़मीन इतनी-सी है कि रुडोल्फ (क्रिश्चियन फ्रिडेल) बीवी हेडविग (सांड्रा हुलर) अपनी पांच औलादों के साथ एक आलीशान बंगले और उपवन में रहता है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं. ऑस्वित्ज़ उनकी रिहाइश से लगा ही हुआ है पर हम स्पष्ट-अस्पष्ट वहां की सिर्फ ध्वनियां सुनते हैं: यहूदी बच्चों, बूढ़ों, औरतों को लादकर लाती ट्रेनें; तड़तड़ाती बुलेट; और आह-पुकार. 

और इधर! कभी पास की नदी तो कभी आंगन की हौद में गोते लगाता, नहाता-खिलखिलाता परिवार, खानसामें और नौकरानियों को हिदायत देती हेडविग. और एक सुनहरे भविष्य का सपना बुनता हॉस दंपती. बगल में चल रहे नरसंहार से उपजती ध्वनियों पर परिवार के कुत्ते जरूर छटपटाकर भौंकते हुए दौड़ते हैं. लेकिन दीवार के इस ओर का जीवन बहती हवा-सा सामान्य. कहीं कोई हलचल तक नहीं. हेडविग तो मिलने आई अपनी मां को बगीचा घुमाते हुए कहती भी है: “रुडी तो मुझे क्वीन ऑफ ऑश्वित्ज़ कहते हैं.” इस पर दोनों ठठाकर हंसती हैं.

उधर जोरों से तड़पते प्राण त्यागते लोगों की कराह, इधर फ्रेम में गुलाब, सूरजमुखी, डेहलिया के रंग-बिरंगे फूल. जंगल में बेटे के साथ टहलता रुडोल्फ एक परिंदे को सुनते हुए कहता है: कितनी प्यारी आवाज़ है! लाखों मौतों का इंतज़ाम करने वाले कमांडर का परिवार कितने सुकून से जीवन जीते हुए भविष्य की योजना बनाए जा रहा है.

'द ज़ोन ऑफ इंटरेस्ट' जैसे कहती है कि उसके एक संस्करण को आप देखें; दूसरे को सुनें; और दोनों के बीच की चीज़ों को पढ़ते हुए चलें. फिल्म देखते हुए रूह कांपने लगती है. परदे पर इसका शीर्षक उभरने और डूबने से लेकर अंतिम ध्वनि तक से साफ हो जाता है कि इसमें स्टॉक सीन जैसा कुछ भी नहीं. डायरेक्टर ग्लेजर की एक खास युक्ति का इसमें अहम रोल रहा: कैमरे चारों ओर इस तरह छिपाकर रखे गए कि ऐक्टर्स को उनका पता ही न चला. ऐसे में उभरी उनकी सहजता आप दृश्यों में साफ देख सकते हैं. क्रू के लोग भी आसपास नहीं होते थे. गौरतलब है कि यह पोलैंड के ओस्वेसिम नाम के ऑस्वित्ज़ की सच्ची कहानी है. बताते हैं, वहां जाने वालों को वह घर और बगीचा अब भी दिखता है.

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