आजकल लोगों में फिटनेस के प्रति जागरूकता बड़े पैमाने पर देखी जा सकती है. यहां तक कि महिलाएं भी जिम जाने के मामले में पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रही हैं. हालांकि भारत जैसे रूढ़ीवादी देश में महिलाओं के लिए जिम या कसरत के लिए अलग से समय देना थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में एक स्टडी उनके लिए राहत लेकर आई है.
इस स्टडी के मुताबिक अगर महिलाएं पुरुषों की तुलना में महज आधी ही कसरत करें तो भी उन्हें पुरुषों जितना ही फायदा मिल सकता है. स्टडी यह भी बताती है कि महिलाओं द्वारा व्यायाम के लिए सप्ताह में लिया गया एक ट्रेनिंग सत्र पुरुषों के ऐसे तीन ट्रेनिंग सत्रों के बराबर होता है. यह स्टडी अमेरिकी कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के एक जर्नल में प्रकाशित हुई है.
यह स्टडी उन चार लाख से भी अधिक अमेरिकी व्यस्कों के एक्सरसाइज बिहेवियर के विश्लेषण पर आधारित है जिन्होंने 1997 से लेकर 2017 तक यानी 20 सालों तक नेशनल हेल्थ इंटरव्यू सर्वे में भाग लिया था और अपने इस बिहेवियर को खुद से दर्ज कराया था. एक्सरसाइज बिहेवियर से आशय ऐसी शारीरिक गतिविधि से है जो तयशुदा तरीके से बार-बार की जाती है और जिससे फिटनेस को बनाए रखने में मदद मिलती है.
यह स्टडी बताती है कि जो पुरुष हर हफ्ते करीब 300 मिनट एरोबिक एक्सरसाइज (शरीर को ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेने में समर्थ बनाने वाले व्यायाम) करते हैं, उनमें कसरत न करने वाले पुरुषों की तुलना में मृत्यु दर का जोखिम 18% कम हो जाता है. वहीं, दूसरी ओर महिलाएं सिर्फ 140 मिनट के साप्ताहिक व्यायाम से समान लाभ हासिल कर सकती हैं. यानी आधे से भी कम कसरत करके महिलाओं को पुरुषों जितना फायदा हो सकता है.
यहां अब सवाल उठ सकता है कि महिलाओं को ये विशेषाधिकार क्यों? इसके जवाब में डॉ. गुलाटी समझाते हुए कहती हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आमतौर पर कम भार वाली मांसपेशियां होती हैं. और इस वजह से छोटी अवधि की कसरत से भी वे अधिक लाभ प्राप्त कर सकती हैं. इसके अलावा पुरुषों और महिलाओं के बीच शारीरिक अंतर, जैसे फेफड़े और कार्डियोपल्मोनरी फंक्शन में भिन्नता भी इसकी एक वजह हो सकती है. डॉ. गुलाटी भी इस स्टडी से जुड़ी रही हैं.
हालांकि, इस स्टडी में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने यह भी स्वीकार किया है कि इस अध्ययन की सीमाएं हैं. इसमें जो सेल्फ-रिपोर्टेड एक्सरसाइज डेटा है, वो हमेशा सटीक नहीं हो सकता. इसके अलावा इस अध्ययन में विशेष रूप से उन कसरतों के बारे में जानकारी ली गई थी, जो ऑफिस या घर पर रहकर की जाती हैं. इन सभी चुनौतियों को देखते हुए डॉ. गुलाटी का मानना है कि स्टडी के परिणामों को पुख्ता करने के लिए अभी और शोध करने की जरूरत है.
हालांकि इस स्टडी में जो बातें सामने आई हैं उनसे कई विशेषज्ञ असहमति जता रहे हैं. उनके मुताबिक, इस तथ्य का कोई खास मतलब नहीं है कि पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग समय तक वर्कआउट करने की जरूरत होती है. इस सिलसिले में दिल्ली के फिटनेस कोच जितेंद्र आडवाणी इंडिया टुडे से कहते हैं, "मैं इस स्टडी से सहमत नहीं हूं. क्योंकि वर्कआउट सबके हिसाब से अलग-अलग होता है. मुझे लगता है कि महिलाएं भी औरों की तरह व्यायाम से समान रूप से फायदा उठा सकती हैं."
नोएडा में सेलिब्रिटी फिटनेस कोच और मी स्टूडियो की संस्थापक मीनल पाठक भी स्टडी के परिणामों से अलग राय जाहिर करती हैं. वे बताती हैं कि चूंकि महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन के कारण बीमारियों का खतरा अधिक होता है, इसलिए उन्हें अधिक व्यायाम करना चाहिए. मांसपेशियों के निर्माण और हड्डियों को बेहतर बनाने के लिए उन्हें स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करना चाहिए. वे कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि ऐसे दावे कहां से आ रहे हैं."
वे आगे बताती हैं कि महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन की कमी के कारण उनकी मांसपेशियों की ताकत कम हो जाती है. इसलिए बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए उन्हें अधिक वर्कआउट की जरूरत होती है. मीनल समझाते हुए कहती हैं, "अगर मैं और मेरे पति दोनों एक ही व्यायाम कर रहे हैं, तो मेरे पति को उनके टेस्टोस्टेरोन के स्तर के कारण मुझसे बेहतर परिणाम मिल सकता है."
बहरहाल, अमेरिकी हार्ट एसोसिएशन यानी एएचए अमेरिका का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन है. एएचए को हृदय रोग और स्ट्रोक पर जानकारी का सबसे भरोसेमंद स्रोत माना जाता है. इसके मुताबिक, व्यस्क पुरुष हो या महिला, दोनों को हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट की मध्यम-तीव्रता वाली या 75 मिनट की जोरदार-तीव्रता वाली एरोबिक एक्सरसाइज करना चाहिए. एएचए के मुताबिक, किसी व्यक्ति की अधिकतम हार्ट-रेट के 70 से 85 फीसद की गति पर किया जा रहा व्यायाम जोरदार-तीव्रता वाला व्यायाम होता है.