यह लगभग हर सुबह की कहानी थी. पड़ोस के फतेहपुर के रहने वाले क्रिकेट प्रेमी सोनू भैया रोज अपने युवा शागिर्द को रबर की गीली गेंद से प्रैक्टिस कराते. यूं क्रिकेट के सामान्य नियम में पिच की लंबाई 22 गज होती है, लेकिन सोनू उस किशोर लड़के को सिर्फ 18 गज की दूरी से ही गीली गेंदें फेंकते. कम दूरी से ये प्रैक्टिस जानबूझकर करवाई जाती थी.
ऐसा करके सोनू ने अपने युवा शिष्य को उन टॉप क्लास के गेंदबाजों का सामना करने के लिए तैयार किया, जिनकी गति और सटीकता के चर्चे मौजूदा क्रिकेट जगत में हैं. जल्द ही इस युवा खब्बू बल्लेबाज की परीक्षा की बारी आई, और उसने निराश नहीं किया. आईपीएल के अपने तीसरे ही मैच में जबरदस्त शतक लगाकर उसने बता दिया कि वैभव सूर्यवंशी का आगमन हो चुका है.
गुजरात जायंट्स के खिलाफ मुकाबले में अपनी बैखौफ बल्लेबाजी का शानदार जौहर दिखाने वाले वैभव तो उस समय भी नहीं डरते थे, जब सोनू भैया की फेंकी गीली गेंदें उनके शरीर की तरफ तेजी से आतीं. उस समय भी वे बिना डरे अपने खास 'कट्स' और 'पुल्स' के साथ उन गीली गेंदों पर जबरदस्त प्रहार करते.
सोनू मुस्कराते हुए कहते हैं, "वह बस अपने बल्ले पर भरोसा करता है. उसके लिए डर जैसी कोई चीज नहीं है." और यह दिखा भी, जब गुजरात के खिलाफ मैच में वैभव ने उनके प्रमुख तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज की गेंद को सीमा रेखा के पार भेजा, पूरे छह रन के लिए.
वाकई, वैभव का आत्मविश्वास किसी कच्ची चीज से नहीं बना. इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) 2025 में, वे पुरुष टी-20 क्रिकेट में सबसे कम उम्र के शतकवीर बने. उन्होंने राजस्थान रॉयल्स के लिए गुजरात टाइटन्स के खिलाफ सिर्फ 35 गेंदों में नाबाद 101 रन बनाए. गौर कीजिए कि यह उनका मात्र तीसरा मैच था.
वैभव का शतक आईपीएल इतिहास का दूसरा सबसे तेज शतक था. पहले नंबर पर क्रिस गेल हैं जिन्होंने 2013 में पुणे वॉरियर्स इंडिया के खिलाफ महज 30 गेंदों में शतक ठोक डाला था. वैभव से पहले तक भारत के लिए सबसे तेज शतक का रिकॉर्ड यूसुफ पठान के नाम था, जब उन्होंने राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलते हुए मुंबई इंडियंस के खिलाफ 2010 में 37 गेंदों पर शतक जड़ा.
बिहार के समस्तीपुर जिले के ताजपुर ब्लॉक में स्थित मोतीपुर गांव के धूल भरे आंगनों में दो साधारण पिचें एक-दूसरे के पास थीं: एक फटी हुई कंक्रीट की स्लैब, दूसरी एक रगड़ा हुआ टर्फ स्ट्रिप, जिसे उनके पिता संजीव सूर्यवंशी ने बड़े जतन से बराबर किया था.
संजीव खुद भी क्रिकेट से गहरे जुड़े रहे हैं. समस्तीपुर में सहायक प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार उन्हें बाएं हाथ का एक बेहतरीन खिलाड़ी बताते हैं: "वह (संजीव) भी उतना ही अच्छा था, बाएं हाथ का खिलाड़ी, जिसके पास हर तरह के शॉट थे. उसे आउट करना मुश्किल था. उस समय कोई मौका नहीं था, इसलिए वह सिर्फ जिला स्तर पर ही चमक सका."
जब वैभव चार साल के थे, उसी पिता ने अपने बेटे में एक अलहदा स्पार्क देखी. अपने सामान्य जीवन की सुविधाओं को त्यागते हुए, जहां परिवार की एकमात्र संपत्ति एक छोटी सी दुकान थी, संजीव ने 2019 में अपनी एक जमीन का टुकड़ा बेचकर अपने बेटे को एक क्रिकेट अकादमी में भर्ती कराया. इस तरह वैभव के बनने की कहानी शुरू हुई. हर दूसरे दिन, संजीव ताजपुर से पटना के सम्पतचक तक 90 किमी गाड़ी चलाते, उनकी कार में 10 टिफिन बॉक्स लदे होते - एक वैभव के लिए और नौ उन गेंदबाजों के लिए जो नेट्स में साथ थे.
वैभव की मां द्वारा भोर से पहले तैयार किए गए वे भोजन महत्वाकांक्षा की वेदी पर मौन भेंट थे. जब कार खराब हो गई, तो संजीव ने काफी खर्च करके एक दूसरी गाड़ी किराए पर ली ताकि प्रैक्टिस में कोई रुकावट न आए.
12 साल की उम्र तक वैभव की प्रतिभा की गूंज सुनाई देने लगी थी. एक अंडर-19 मैच में चयनकर्ताओं ने उसकी कम उम्र पर आश्चर्य जताया; वैभव ने केवल मुस्कराकर जवाब दिया और 89 रन ठोक दिए. एक अन्य मैच में उसने हरियाणा के खिलाफ 148 रन बनाए. देखने वाले हैरान थे कि बिहार के ग्रामीण इलाके में कैसे ऐसी प्रतिभा पनप सकती है.
सितंबर 2023 में, अभी केवल 12 साल की उम्र में वैभव ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक जूनियर टेस्ट में 58 गेंदों पर शतक जड़ा - इस प्रारूप में किसी भारतीय द्वारा सबसे तेज. यह केवल बल्लेबाजी का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह बीसीसीआई के लिए एक साफ संदेश था, जो अक्सर ग्रामीण इलाकों को नजरअंदाज करता है.
उसके कारनामे 2024 में हुए अंडर-19 एशिया कप में भी जारी रहे: यूएई को ध्वस्त करने के लिए 46 गेंदों पर 76 रन, फिर श्रीलंका के खिलाफ उच्च दबाव वाले सेमीफाइनल में 36 गेंदों पर 67 रन. प्रत्येक पारी में उसकी निडरता की छाप थी, और पैसिव डिफेंस में पीछे हटने से इनकार था.
इतने सब के बाद, आईपीएल से बुलावा आना ही था. नवंबर 2024 में केवल 13 साल की उम्र में, वैभव सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने जिन्हें नीलामी में राजस्थान रॉयल्स ने 1.10 करोड़ रुपये में खरीदा. आलोचकों ने मजाक उड़ाया; लेकिन रॉयल्स ने एक पीढ़ी में एक बार आने वाले प्रतिभा को पहचाना. जयपुर स्टेडियम की रोशनी में, 14 साल के इस खिलाड़ी ने 35 गेंदों पर शतक बनाकर उनके इस विश्वास का बदला चुकाया. आईपीएल इतिहास में किसी भारतीय द्वारा सबसे तेज शतक, जिसमें सिराज, इशांत शर्मा और राशिद खान जैसे खिलाड़ियों के खिलाफ मास्टरक्लास पेश की.
उसे बल्लेबाजी करते देखना जैसे एक तेज बहाव में बह जाना है. उसका ऊंचा बैकलिफ्ट—उसके बचपन के आदर्श ब्रायन लारा से प्रेरित- और जिस सहजता से वह गेंद को मारता है, वह एक जन्मजात प्रतिभा को बताता है. फिर भी उसका मजबूत स्वभाव युवराज सिंह की याद दिलाता है, जिनके शालीनता और शक्ति के मिश्रण ने आधुनिक खेल को नया रूप दिया था.
अपनी जबरदस्त सफलता के बावजूद, वैभव जमीन से जुड़ा हुआ है. रॉयल्स के नेट्स में वह अनुभवी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ 150 किमी प्रति घंटे की थ्रो-डाउन का सामना करता है, प्रत्येक डिलीवरी एक रिमाइंडर है कि सच्ची महानता के लिए निरंतर सुधार की जरूरत होती है.
वैभव को अनोखा बनाने वाली चीज केवल उसके बनाए रन, तोड़े गए रिकॉर्ड या कमाए गए करोड़ रुपये नहीं हैं—यह है हर शॉट के पीछे की अडिग आत्मा. वह अपने साथ उस गांव की आकांक्षाओं को लेकर चलता है जहां बिजली भी सही से नहीं आती, और सपने मुरझा जाते हैं. और उन माता-पिता का अटूट विश्वास जो चुनौतियों के आगे संभावनाओं को बुझने नहीं देना चाहते थे.
जैसे-जैसे उसके सितारे परवान चढ़ रहे हैं, भारतीय टीम में पदार्पण की आवाज तेज होती जा रही है. कुछ लोगों का अनुमान है कि दो साल के भीतर वह भारतीय टीम की सफेद या नीली जर्सी पहन सकता है, जिसे उसने लंबे समय से चाहा है. अभी के लिए, वह अपने बल्ले को बोलने देता है, प्रत्येक बाउंड्री एक उभरती महाकाव्य की पंक्ति है.
वैभव सूर्यवंशी में हम एक असाधारण प्रतिभा से कहीं बढ़कर कुछ देखते हैं; हम मजबूत विश्वास की स्थायी शक्ति की झलक पाते हैं. बिहार में कंक्रीट की स्लैब और टर्फ स्ट्रिप से लेकर आईपीएल के भव्य मैदानों तक उनका सफर इस बात की पुष्टि करता है कि जब जुनून और दृढ़ता एक साथ मिल जाती है, तो सबसे कठिन सीमाओं को भी पार किया जा सकता है.