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"बचाओ मेरे देश को कट्टरवाद के भूत से..." देसी रैप में राजनीतिक तेवर की कहानी

हिंदी फिल्मों में रैप का अमूमन बिगड़ा हुआ रूप ही देखने-सुनने को मिलता रहा है लेकिन बीते 3-4 सालों में ईपीआर और सौरभ अभ्यंकर (100RBH) के जरिए इसका विद्रोही स्वर बखूबी उभरकर सामने आया है

परफॉर्म करते 100RBH (बाएं) और ईपीआर (दाएं)
परफॉर्म करते 100RBH (बाएं) और ईपीआर (दाएं)
अपडेटेड 4 मार्च , 2024

यही कोई चार बरस पहले की बात है, देशभर से किसानों का जत्था राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचा था. ट्रैक्टर, टेंट और महीनों की रसद-पानी लिए सीमाओं पर डेरा डाले ये किसान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे.

ज़माना डिजिटल हो चला है, तो हर ‘लड़ाई’ असल और वर्चुअल ज़मीन पर लड़ी जाती है. कहना बस इतना है कि सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन के समर्थन में पोस्ट किए जा रहे थे, कविताएं पढ़ी जा रही थीं. इन्हीं सब के बीच एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक लड़का सुरताल के साथ कविता कह रहा था.

“किसान चक्रव्यूह में अभिमन्यू, आंकड़ा उपलब्ध नहीं बंधु
आत्महत्या रिपोर्ट प्रकाशित, 2016 से गायब
दुर्दशा, कसूर किसका, मजबूरन आंदोलन का रस्ता …”

वीडियो वायरल हुआ तो दावा किया गया कि एक रैप आर्टिस्ट ने यह गाना किसान आंदोलन के समर्थन में गाया है. जब दावा हुआ तो उसकी पड़ताल भी हुई और मालूम चला कि क़रीब एक साल पहले ईपीआर नाम के एक लड़के ने यह गाना एमटीवी पर प्रसारित हसल सीज़न-1 में गाया था. कुल जमा बात ये है कि गाने में किसानों की स्थिति ज़रूर दिख रही थी, लेकिन किसान आंदोलन से इसका कोई लेना-देना नहीं था.

किसानों बदहाली पर ईपीआर ने रैप सॉन्ग लिखा था
किसानों बदहाली पर ईपीआर ने रैप सॉन्ग लिखा था

बात आई-गई हो चली. लेकिन इसी बहाने लोग ईपीआर के ‘रैप वर्ल्ड’ में दाखिल हुए. किसी रेसलर की तरह कमर मोड़कर पंच मारने की मुद्रा में पांच फीट आठ इंच का ये लड़का स्टेज पर माइक लिए खड़ा है. उसके पीछे स्टेज पर ऊपर की ओर छोटी-छोटी बत्तियों से तीन अक्षर में उसका नाम लिखा है- EPR.

एमटीवी पर प्रसारित हसल सीज़न-1 का ये मंज़र था जब कोलकाता के ईपीआर यहां बतौर कंटेस्टेंट आए थे. ये बात किसान आंदोलन से एक साल पहले की है. तब टीवी पर और बाद में यूट्यूब पर लोगों ने ईपीआर को ये गाते हुए सुना था. लेकिन किसान आंदोलन के वक़्त ये सुरीली क्रांति ताज़ा घास की तरह उग आई.

इस घास को नए सिरे से खाद-पानी मिला 2023 के आख़िरी हिस्से में. हसल का तीसरा सीज़न आया. ईपीआर अब कंटेस्टेंट से मेंटॉर बन चुके थे. लेकिन जिस खाद-पानी की बात हम कर रहे हैं वो महाराष्ट्र के अमरावती से आने वाले सौरभ अभ्यंकर हैं. रैप सॉन्ग देखने-सुनने वाले लोग उन्हें 100RBH के नाम से जानते हैं.

इस शो में आने से पहले 100RBH ने ‘चढ़ता सूरज’ नाम से रैप किया. इसमें वो कहते हैं- 

चढ़ता सूरज गाने की म्यूज़िक पर 100RBH ने रैप लिखा था
चढ़ता सूरज गाने की म्यूज़िक पर 100RBH ने रैप लिखा था

किसान से लेकर बजरंग दल तक की राजनीति पर रैप करते ये लड़के इस कला के विद्रोही तेवर, जो इसकी असली पहचान है, को धार देने में जुटे हैं.

ईपीआर (एमसी पोएट रैपर) का असल नाम संथानम श्रीनिवासन है. ज़्यादातर रैपर्स की तरह उन्होंने भी अपनी पसंदगी के मुताबिक़ अपने साथ एक स्टेज नेम जोड़ लिया. 2005 में अपना पहला बैंड बनाने वाले ईपीआर ने जर्नलिज्म से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. पिता मृदंगम बजाते थे, गाते भी थे तो संगीत में दिलचस्पी बढ़ी.

लिंकिन पार्क्स के गानों से उन्हें लिखने और गाने की प्रेरणा मिली. कैलिफोर्निया के लिंकिन पार्क 1996 से गाने बना रहे हैं. लिंकिन पार्क अगौरा हिल्स नाम से उनका बैंड है. इस बैंड ने अपने पहले एल्बम - हाइब्रिड थ्योरी - से ही मशहूरियत हासिल कर ली थी. ईपीआर कहते हैं, “कोलकाता में पले-बढ़े होने की वजह से मैं राजनीति को समझ पाया. हम पढ़ाई के दिनों में चाय की दुकानों पर अड्डेबाज़ी करते थे और राजनीतिक मुद्दों पर बातें करते थे.” बौद्धिक रूप से बेहद उपजाऊ माने जाने वाले कोलकाता ने उनमें राजनीति के बीज बोए.

कोलकाता की अड्डेबाज़ी ने ईपीआर में जो राजनीति रोपी उसका रंग 2022 के एक रैप सॉन्ग में दिखता है. ये बात राजस्थान के उदयपुर में हुए कन्हैयालाल हत्याकांड से जुड़ी है. कन्हैयालाल एक दर्जी थे, जिनकी दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई थी. ईपीआर ने इस पर रैप लिखा और गाया, “बचाओ मेरे देश को कट्टरवाद के भूत से.”

गानों में जो पॉलिटिक्स दिखती है उस पर ईपीआर कहते हैं, “मैं मार्क्स और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के बारे में और उनका लिखा पढ़ता हूं. एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर मैं चाहता हूं कि मेरा देश बेहतर करे.” ईपीआर को इस काम के लिए किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाने से भी गुरेज नहीं है लेकिन फिलहाल वो खुद को “गरज रहे प्रश्नों के बादल” के तौर पर ही रखना चाहते हैं. जैसा कि वे  ‘इंसाफ का कातिल’ गाने में करते हैं.

पॉलिटिकल सिस्टम में भ्रष्टाचार पर रैप सॉन्ग के जरिए ईपीआर सवाल उठाते हैं
पॉलिटिकल सिस्टम में भ्रष्टाचार पर रैप सॉन्ग के जरिए ईपीआर सवाल उठाते हैं

ये एक दशक पहले की ही कहानी है जब हिंदी फिल्मों में रैप सॉन्ग्स ने अपने हिस्से की ज़मीन तलाशनी शुरू की. इस तलाश में पहला मजबूत नाम हनी सिंह का लिया जाता है. उनके अलावा बादशाह और रफ्तार जैसे कलाकार भी आए जिन्होंने हिंदी गानों की दुनिया में रैप को स्थापित किया. 2011 में हनी सिंह ने ‘इंटरनेशनल विलेजर’ एलबम रिलीज किया. ये एलबम चल पड़ा और फिर हिंदी फिल्मों में रैप सॉन्ग्स के लिए हनी सिंह सरीखे रैपर्स की मांग बढ़ने लगी. हालांकि इसका कलेवर दारू-लड़की और ड्रग्स के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा.

“चार बोतल वोदका…”, “रानी मेरे साथ माल फूंक-फूंक ले, थामूं तेरी कमर, धुएं के फिर घूंट ले…” जैसे गानों के जरिए भारत में रैप सॉन्ग पॉपुलर कल्चर में आया. इस आर्ट फॉर्म का रंग कुछ यूं चढ़ा कि फिल्म निर्देशक जोया अख़्तर ने ‘गली बॉय’ नाम से फिल्म ही बना दी, जो कि डिवाइन और नेजी नाम के दो रैपर्स की कहानी दिखाती है. इस फिल्म की एक खास बात यही थी कि इसमें रैप विद्रोही तेवर से सजे थे.

‘वोदका’ और ‘माल’ की भाषा से इतर इसी आर्ट फॉर्म को 100RBH अलग और असल तरह से बरतते हैं. उनके रैप ‘चे गेवारा का जुनून’ लाने की बात करते हैं. ये रैप सुनते हुए मन में सवाल आएगा कि मंच पर उछल-कूदकर रैप कर रहा कलाकार चे गेवारा की पॉलिटिक्स समझता भी है? कहीं इस रैपर ने शौकिया तौर पर तो इस तरह का पॉलिटिकल गाना नहीं लिख दिया है?

सौरभ अपने रैप वाली शैली में कहते हैं, “2006 की बात है, मैं चौथी क्लास में था तब खैरालांजी हत्याकांड के विरोध में प्रदर्शन करने पहली बार गया था. अभी भी विरोध-प्रदर्शनों में जाता हूं. यही हिप-हॉप है.” उनके लिए चे गेवारा सिर्फ टोपी-टीशर्ट पर रुआब के साथ सिगरेट का कश लेते एक वर्दीधारी की तस्वीर भर नहीं है.

रैप अपने शुरुआती दिनों में अमेरिकी ब्लैक लोगों द्वारा गाया जाने वाला प्रतिरोध का गीत-संगीत था. भारत में ये कला अपने सबसे खराब रूप में पहुंची. इसे इसके मूल स्वभाव के साथ बरतने वाले लोगों को ‘अंडरग्राउंड’ यानी जो मुख्य धारा से दूर हों- कहकर दरकिनार किया गया.

अब जबकि रैप गाने अमूमन हिंदी फिल्मों में सुनने को मिलते हैं तब इसका बिगड़ा रूप ही दिखता है, 'गली बॉय' इसका अपवाद कही जा सकती है. लेकिन बीते 3-4 सालों में इसका विद्रोही स्वर सुनाई दे रहा है. 2019 में एमटीवी हसल के पहले सीजन में जब ईपीआर ने सभी एपिसोड्स में रैप के जरिए पॉलिटिकल कमेंट्री ही की तो बड़े स्तर पर लोगों ने इसे नए सिरे से जानना शुरू किया.

जब हर तरफ रैप का ‘बिगड़ा रूप’ ही छाया है तो सौरभ अभ्यंकर का झुकाव इसके असल रूप की तरफ कैसे हुआ? वे बताते हैं, “मैंने एक मराठी रैपर प्रदीप काशिकर को सुना जिसके बाद मैंने खुद को रैप करने के लिए तैयार कर लिया.” अमरावती की खासियत पर उन्होंने रैप बनाया और गाया. इसकी खूब चर्चा हुई इसने उन्हें हिप-हॉप की दुनिया में खींच लिया. 2016 में सौरभ मुंबई पहुंच गए जहां हिप-हॉप के लिहाज से उनके लिए “ज्यादा गुंजाइश थी.”

इंडिया टुडे से बातचीत में सौरभ कहते हैं, “जब घर पर बताया कि रैप करना है तो किसी को कुछ मालूम ही नहीं था. दरअसल उस वक्त हिप-हॉप यहां के लिए एलियन जैसी बात थी.” हालांकि गानों के पैसे मिले तो घर वालों ने पूछना बंद कर दिया. मुंबई में रहते हुए और करियर के लिहाज से रैप सीखते-करते हुए भी सौरभ उस खांचे में नहीं फंसे जिसमें रैप का एक बड़ा हिस्सा धंस चुका है- बड़ी गाड़ियां, बंदूकें, मॉडल और शराब की बात करते रैप.

एमटीवी हसल में आने से पहले ही सौरभ ने ‘बेड़ा पार’ गाना गाया, जिसमें वो “फिर से हक दिलाओ अंबेडकर बाबा” की बात रैप के जरिए कहते हैं. ‘चढ़ता सूरज’ गाने में “बॉलीवुड के गंदे फन और बजरंग दल के आने” का ज़िक्र होता है.

बॉलीवुड का गंदा फन या बजरंग दल, 100RBH की पॉलिटिक्स किसके खिलाफ है? वो खुद जवाब देते हैं, “मेरी पॉलिटिक्स खिलाफ वाली नहीं है. मैं तो सवाल पूछ रहा हूं. बॉलीवुड की फिल्में देखो, उनको फॉलो करो, फिर आप प्रेम करने लगते हैं. एक पार्क में लड़का-लड़की साथ बैठते हैं और तब बजरंग दल आता है जो सबको भगाता है, मारपीट भी करता है.”

ईपीआर और 100RBH रैप को उसके विशुद्ध रूप में बरत रहे हैं. फिर भी यूट्यूब पर इनके वीडियोज़ के व्यूज़ उतने नहीं हैं जितने इसी लीक के दूसरे कलाकारों के गानों को मिलते हैं. 100RBH का मानना है, “लोग ऐसी बातें नहीं सुनना चाहते. वो दिनभर नौकरी-चाकरी करके आते हैं, रात को घर पर उन्हें शांति चाहिए ना कि इस तरह की बहस. इसलिए वो मॉडलिंग और शराब से लदे हुए रैप सुनते हैं.”

ईपीआर कहते हैं, “कलाकार समाज से ही निकलता है. बहुत सारे आर्टिस्ट्स ने कायदे से हिप-हॉप और रैप किया लेकिन जब लोगों ने नहीं सुना, उसके बरक्स दूसरे तरह के रैप पसंद किए गए तो उन्होंने उसे ही जारी रखा. आख़िर हमें अपना घर भी तो चलाना है.”

ईपीआर और सौरभ अभ्यंकर को भी अपना घर चलाना है. और बकौल ईपीआर पॉलिटिकल कमेंट्री वाले रैप से वो मुमकिन नहीं है. तो ये कलाकार घुमावदार रास्ता आजमाते हैं. ईपीआर अपने इन गानों से एक छवि गढ़ते हैं, जो उन्हें लाखों प्रशंसक देता है. इसके बूते उन्हें अलग-अलग ब्रांड्स से थीम सॉन्ग, विज्ञापन के लिए म्यूजिक बनाने का काम मिलता. ब्रॉन्ड थीम सॉन्ग, ऐड सॉन्ग, जिंगल से जो पैसे मिलते हैं उससे ईपीआर अपने रैप में पॉलिटिकल कमेंट्री कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि यूट्यूब पर उनके गानों को देखा जा रहा है या नहीं.

जब सब कुछ अच्छा-अच्छा और ओरिजिनल है तो बड़ी म्यूज़िक कंपनियां पॉलिटिकल रैप (जिसे ईपीआर ‘प्रोटेस्ट पोएट्री’ कहते हैं) वाले गाने क्यों नहीं बनातीं? दोनों ही रैपर्स इस बात पर एकमत हैं कि म्यूजिक लेबल के लिए आर्ट से पहले बिजनेस है. ऐसे रैप से बिजनेस नहीं हो पाता. साथ ही इस तरह के गानों को कोई अपना मंच देकर विवादों में उलझना नहीं चाहता.

यूट्यूब पर वीडियो आना, स्ट्रीमिंग माध्यमों पर रिलीज करने से फिर प्रोटेस्ट पोएट्री का भविष्य कितना चमकदार और धारदार बना रहेगा? 100RBH के चेहरे का भाव थोड़ा गुमान में डूबता है और वे कहते हैं, “फ्यूचर तो अपन ही है. अभी देखो कैसे-कैसे गाने आएंगे.”

ईपीआर इसी बात को सलीके से कहते हैं, “हसल के पहले सीजन में मेरे आने से पहले से ये हो रहा है लेकिन एक बड़ा मंच मिला तो दर्शकों तक ये आर्ट पहुंचा. अब सौरभ आया, उसके जैसे बहुत से कलाकार आएंगे. प्रोटेस्ट पोएट्री का भविष्य मुझे बहुत ब्राइट दिख रहा है.”

रैप का मॉडलिंग महल जो भारत में खड़ा हुआ था उसमें इसके असल कलाकार मौजूद नहीं थे. मौके की तलाश में ये दरवाज़े पर खड़े थे. अब ये कलाकार मंच मिलते ही अपने जोरदार पंच से गेट तोड़कर अंदर घुस गए हैं. और ये आ गए हैं तो इनकी बातों और कारनामों से लगता है कि अब इस ज़मीन को छोड़ने वाले नहीं हैं.

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