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Rosa Parks : वह विद्रोही ब्लैक महिला जिसकी एक ‘न’ ने अमेरिकी गोरों को झुकने पर मजबूर कर दिया

रोजा पार्क्स को इस दिलेरी के लिए सजा तो भुगतनी ही थी. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन रोजा अपना काम कर चुकी थीं. उन्होंने वो चिंगारी पैदा कर दी थी जिसके लिए ब्लैक समुदाय कबसे इंतजार में था

रोजा पार्क्स                           फोटो : रोजा एंड रेमंड पार्क्स इंस्टीट्यूट वेबसाइट
रोजा पार्क्स (फोटो : रोजा एंड रेमंड पार्क्स इंस्टीट्यूट वेबसाइट)
अपडेटेड 1 दिसंबर , 2023

वह 7 जून 1893 का दिन था जब मोहनदास करमचंद गांधी को दक्षिण अफ्रीका में एक ट्रेन से जबर्दस्ती उतार दिया गया था. वजह थी, रंगभेद. यह काफी चर्चित मामला है जिससे मोहनदास के महात्मा बनने की यात्रा शुरू हुई. करीब 63 साल बाद एक ऐसी ही एक घटना अमेरिका में भी हुई थी. दिसंबर, 1955 का पहला दिन और जगह - अमेरिका का मोंटगोमरी शहर, अलाबामा की राजधानी.

एक महिला बस में सफर कर रही थी. बस काफी भरी हुई थी. तभी ड्राइवर ने उस महिला के साथ-साथ तीन और लोगों को सीट छोड़ने का फरमान दिया. क्यों – ताकि गोरे लोग उसपर बैठ सकें. वह महिला ब्लैक समुदाय से आती थी. उस समय अमेरिका में यह खूब चलता था कि ब्लैक लोग, गोरे लोगों से कमतर हैं और उन्हें गोरों के सम्मान में उनकी हर बात माननी चाहिए.

लेकिन उस महिला को यह गवारा नहीं था. उसने सीट छोड़ने से साफ इनकार कर दिया. उसकी इस एक 'न' ने लोगों पर काफी असर डाला और ‘मोंटगोमरी बस बॉयकॉट’ मुहिम की शुरुआत हुई.

रोजा पार्क्स
रोजा पार्क्स की बस में बैठी हुई तस्वीर फोटो : ब्रिटैनिका

रोजा पार्क्स की गिरफ्तारी और बदलाव के आंदोलन की शुरुआत

सीट छोड़ने से मना करने वाली इस महिला का नाम था- रोजा पार्क्स. इस दिलेरी के लिए अब उन्हें सजा भी भुगतनी थी. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन रोजा अपना काम कर चुकी थीं. उन्होंने वो चिंगारी पैदा कर दी थी जिसके लिए ब्लैक समुदाय कब से इंतजार में था. मोंटगोमरी बस बहिष्कार एक मुद्दा बन चुका था. इस मुहिम में मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे लोग अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे. लेकिन यह तो बस शुरुआत थी. उद्देश्य था कि कब अमेरिका में सबको बराबर हक मिले. किसी के साथ नस्लीय, जातिगत भेदभाव न हो. और सबसे ज्यादा जरूरी था उस अपमानजनक ‘जिम क्रो सेग्रिगेशन’ को खत्म करने की, जिसकी बदौलत ब्लैक समुदाय लगातार हेय बना हुआ था.

अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन के दौरान प्रदर्शन करते मार्टिन लूथर किंग जू. और अन्य लोग
अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन करते मार्टिन लूथर किंग जूनियर और अन्य लोग (फोटो : रोजा एंड रेमंड इंस्टीट्यूट वेबसाइट)

क्या था जिम क्रो सेग्रिगेशन कानून? 

जिम क्रो सेग्रिगेशन एक स्थानीय कानून था, जो नस्लीय आधार पर अलगाव को प्रेरित करता था. यह कानून दक्षिणी अमेरिकी राज्यों में 19वीं सदी के अंत में पेश किए गए थे. इस कानून के चलते उन दक्षिणी राज्यों में ज्यादातर काले बच्चों को गोरे बच्चों से अलग स्कूलों में जाने के लिए मजबूर किया जाता था. अफ्रीकी अमेरिकी लोग भी गोरे लोगों के माफिक रेस्तरां में खाना नहीं खा सकते थे. इन्हें सार्वजनिक बसों में पिछली सीटों पर बैठना पड़ता था. यह सिलसिला 1963 तक चलता रहा, जब रोजा पार्क्स और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे लोगों की कोशिशों की बदौलत अमेरिकी सरकार को आखिरकार इसे खत्म करना पड़ा.

एक स्थानीय नाई से शादी और साथ मिलकर अन्यायों के खिलाफ लड़ाई

रोजा जब 19 साल की थीं तो उन्होंने वहां के स्थानीय नाई (बार्बर) से शादी की. उस बार्बर का नाम था- रेमंड पार्क्स. इसके बाद दोनों ने साथ मिलकर कई सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद की. मोंटगोमरी बस बहिष्कार के समय रोजा की नौकरी चली गई थी. वे उस समय सिलाई का काम करती थीं. इसके बाद रोजा ने 1957 में परिवार सहित मिशिगन शहर का रुख किया. वहां भी उन्होंने लगातार बोलना जारी रखा. 1987 में रोजा ने ‘द रोजा एंड रेमंड पार्क्स इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की. इस संस्थान में ब्लैक समुदाय से आने वाले युवाओं को नौकरी के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था. 

अमेरिका के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से हुईं सम्मानित

रोजा को साल 1999 में ‘कांग्रेसनल गोल्ड मेडल ऑफ ऑनर’ सम्मान से नवाजा गया. इसे अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार कहा जाता है. वृद्धावस्था के दिनों में भी रोजा नागरिक अधिकारों के लिए हमेशा मुखर रहीं. साल 2005 में 92 साल की उम्र में रोजा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.  लेकिन ताउम्र इस नागरिक अधिकार आंदोलन की जननी ने निडर होकर सच्चाई के लिए बोलना जारी रखा. वे कहा करती थीं- 'अगर आप सही काम कर रहे हैं तो आपको कभी भी किसी बात से नहीं डरना चाहिए.'

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