scorecardresearch

राम मंदिर: प्राण प्रतिष्ठा के लिए विधि-विधान शुरू, लेकिन इस विधि में आखिर होता क्या है?

राम मंदिर कमेटी प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन के लिए वाराणसी के दो पुजारियों - गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ और लक्ष्मीकांत दीक्षित को चुना है

राम मंदिर के लिए शुरू हुआ प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम
राम मंदिर के लिए शुरू हुआ प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम
अपडेटेड 17 जनवरी , 2024

अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत 16 जनवरी से हो चुकी है. इस दिन प्रायश्चित और कर्मकुटी पूजन कार्यक्रम हुए. 17 जनवरी को मंदिर में मूर्ति का प्रवेश होगा. 22 जनवरी को यानी पौष मास के शुक्ल पक्ष की कूर्म द्वादशी की तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा होगी. 

राम मंदिर कमेटी ने इस आयोजन के लिए वाराणसी के दो पुजारियों के नामों की घोषणा की है. इनका नाम गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ और लक्ष्मीकांत दीक्षित है. काशी के ये दो पुरोहित ही राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की अगुवाई करेंगे. पिछले कुछ दिनों से राम मंदिर के 'उद्घाटन' की खबरें सुर्खियों में हैं. पर यह उद्घाटन नहीं बल्कि प्राण प्रतिष्ठा है. लेकिन इस आयोजन का मंदिर के निर्माण में क्या महत्व है और यह जरूरी क्यों है? 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के पूर्व रिसर्च स्कॉलर और ज्योतिषाचार्य डॉ. बालमुकुंद द्विवेदी कहते हैं, "जब किसी मंदिर का निर्माण होता है तब प्राण प्रतिष्ठा के जरिए वहां पर स्थापित होने वाली मूर्ति में देवताओं का वास कराया जाता है. तभी उस मंदिर में स्थापित मूर्ति पूजा योग्य मानी जाती है. मूर्ति को स्थापित करने की विधि ही प्राण प्रतिष्ठा होती है." 

वे आगे यह भी बताते हैं, "प्राण प्रतिष्ठा में मंत्रों के जरिए किसी मूर्ति में जीव रूपी परमात्मा को बुलाया जाता है. इसके लिए ऐसे पुजारियों का ही चयन किया जाता है जो कर्मकांड के ज्ञाता हों और वेद पुराणों में बताई गई विधि को जानते हों." 

डॉ. बालमुकुंद के मुताबिक इसके दो प्रकार होते हैं एक होता है 'चर' और दूसरा 'स्थिर'. मंदिरों में 'स्थिर प्राण प्रतिष्ठा' होती है. इसमें कई सारी प्रक्रियाएं होती हैं. जिसके लिए कई सारे अनुष्ठान होते हें. डॉ बालमुकुंद कहते हैं, "सबसे पहले मुहूर्त का चयन होता है जो कि पंचांग के निर्देश के हिसाब से तय होता है. इसमें पांच दिन, सात दिन या 11 दिन पहले से अनुष्ठान होते हैं. इसमें यज्ञ जैसे कर्मकांड होते हैं. राम मंदिर में भी 16 जनवरी से यज्ञ का आयोजन शुरू हो गया है. प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में जल यात्रा निकाली जाती है. फिर पंचांग पूजन किया जाता है. इसके बाद यज्ञ मंडप में प्रवेश होता है. इस क्रम में जिस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है उसका 'कर्मकुटी संस्कार' होता है."

'कर्मकुटी संस्कार' में मूर्ति के सारे अंगों का पूजन होता है. इसके बाद 'अधिवास' की प्रक्रिया शुरू होती है. इसमें सबसे पहले 'जलाधिवास' किया जाता है. इसमें भूमि को खोद कर उसमें जल भरा जाता है. फिर उसमें मूर्ति को लेटा दिया जाता है. इसमें रात भर मूर्ति रहती है. अगर कम देर का अनुष्ठान है तो कुछ देर के लिए भी मूर्ति को रखा जा सकता है. इसके बाद 'अन्नाधिवास' की प्रक्रिया शुरू होती है. 

'अन्नाधिवास' में मूर्ति को अन्न से पूरी तरह से ढंक देते हैं. इसके बाद 'पुष्पाधिवास होता' है. जिसमें मूर्ति को अलग अलग तरह के फूलों से ढंकते हैं. इसके बाद 'फलाधिवास' होता है. इसमें मूर्ति को अलग-अलग तरह के फलों से ढंका जाता है. इन संस्कारों बाद मूर्ति को धोया जाता है और फिर उसका 'स्नपन' होता है. यानी कि मूर्ति को अलग अलग तरह की औषधियों से स्नान कराया जाता है. 

इस प्रक्रिया के बाद शिखर पूजन होता है जिसे कि 'देवस्नपन' कहते हैं. इसमें मंदिर के ऊपरी हिस्से की तरफ से मूर्ति को औषधियों से स्नान कराया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद मूर्ति को सजाधजा कर ढोल-बाजों के साथ नगर भ्रमण कराते हैं. फिर शाम के वक्त मूर्ति का 'शैय्याधिवास' होता है. इसमें मूर्ति को एक बिस्तर पर सुलाया जाता है.

रातभर मूर्ति शयन अवस्था में रहती है जिसे अगले दिन तय मुहूर्त में अचार्य और यजमान के द्वारा तय स्थान पर मंत्रों के द्वारा प्रतिष्ठित किया जाता है. यहां पर प्राण प्रतिष्ठा पूरी मानी जाती है. प्रतिष्ठित हो जाने के बाद मूर्ति का 'पंचोपचार' किया जाता है और आरती होती है. फिर प्रसाद का भोग लगा कर लोगों में बांट दिया जाता है.

प्राण प्रतिष्ठा विधि के बारे में वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्टी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के ज्योतिष डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी डॉ. चंद्रमौलि उपाध्याय कहते हैं, "कई सारे लोग जगहों का आतिक्रमण करने के लिए मंदिर स्थापित कर देते हैं पर वहां पर प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराई जाती है." उपाध्याय के मुताबिक ऐसे मंदिरों में पूजा करने का कोई महत्व नहीं है.

Advertisement
Advertisement