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प्रोबा-3 मिशन: अब ऑन डिमांड हो सकेगा सूर्यग्रहण! इसमें इसरो की भी है अहम भूमिका

प्रोबा-3 यूरोपीयन स्पेस एजेंसी का एक महत्वाकांक्षी मिशन है

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 11 अप्रैल , 2024

अप्रैल की आठ तारीख को एक अंग्रेजी शब्द दुनिया भर में छाया रहा - टोटल सोलर एक्लिप्स. हिन्दी में कहें तो पूर्ण सूर्य ग्रहण. अब दुनिया एक ऐसे मिशन की तैयारी कर रही है जो ऑन डिमांड ग्रहण की स्थिति क्रिएट कर सकता है. इस मिशन में भारत की भी अहम भूमिका रहने वाली है. 

हम जानते हैं कि सूर्य और पृथ्वी के बीच जब चंद्रमा आ जाता है और चंद्रमा की परछाई धरती पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण की स्थिति बनती है. लेकिन यूरोपियन स्पेस एजेंसी यानी ईएसए एक मिशन के तहत इस खगोलीय घटना को आर्टिफिशियल ढंग से स्पेस में क्रिएट करना चाहती है. इस मिशन का नाम प्रोबा-3 रखा गया है. 

प्रोबा-3 पहला ऐसा मिशन है जिसके जरिए स्पेस में 'फॉर्मेशन फ्लाइंग' को अंजाम दिया जाएगा. फॉर्मेशन फ्लाइंग का मतलब एक ऐसी तकनीक से है जिसमें कई विमान एक खास फॉर्मेशन पैटर्न को बनाए रखते हुए एक-दूसरे के करीब उड़ान भरते हैं. प्रोबा-3 मिशन के तहत दो सैटेलाइट एक साथ न सिर्फ उड़ान भरेंगे बल्कि एक 144 मीटर लंबे सोलर कोरोनाग्राफ की भी रचना करेंगे. यह कोरोनाग्राफ सूर्य के रिम के करीब मौजूद सौर कोरोना का अध्ययन करेगा. इन सैटेलाइटों में एक का नाम ऑकुल्टर है और दूसरे का नाम है कोरोनाग्राफ. 

अब यहां सवाल उठता है कि सौर कोरोना क्या है? और इस मिशन में भारत की क्या भूमिका रहने वाली है? दरअसल, सौर कोरोना सूर्य के वातावरण की सबसे बाहरी परत है जो सूर्य ग्रहण के समय ही नजर आती है. सामान्य दिनों में यह इसलिए नजर नहीं आती क्योंकि सूर्य की चमक बहुत अधिक रहती है जिस वजह से इसको देख पाना मुमकिन नहीं है. और ऐसे में सिर्फ कोरोनाग्राफ के जरिए ही इसे देखा जा सकता है. 

यूरोपीयन स्पेस एजेंसी की मानें तो सौर कोरोना, खुद सूर्य से भी ज्यादा गर्म होता है. यही वो जगह है जहां से स्पेस का मौसम निर्धारित होता है. एजेंसी के मुताबिक, "हमारे पास पहले से ही ऐसी ही डिवाइस हैं जो सूर्य, लो कोरोना और हाई कोरोना की स्टडी कर सकती हैं. कई सोलर मिशन ने अलग-अलग तापमान और ऊंचाई पर कोरोना की जांच की है. लेकिन लो कोरोना और हाई कोरोना के बीच जो गैप वाला क्षेत्र है वहां अवलोकन करना मुश्किल रहा है."

प्रोबा-3 मिशन की सफलता उन दोनों सैटेलाइट की सटीक पोजिशनिंग और कॉर्डिनेशन पर निर्भर करती है. इसके लिए ईएसए ने अत्याधुनिक तकनीक विकसित की है जिसमें कोल्ड गैस थ्रस्टर्स और विजन बेस्ड डिटेक्शन सिस्टम जैसे उपकरण शामिल हैं. ये सभी उपाय पिन-प्वाइंट सटीकता के साथ उपग्रहों को अपनी सापेक्ष स्थिति बनाए रखने में मदद करेंगे. अब उस सवाल पर आते हैं कि इस मिशन में भारत की क्या भूमिका है? 

दरअसल, ईएसए ने भारत को ही प्रोबा-3 की लांचिंग की जिम्मेदारी सौंपी है. इन दोनों सैटेलाइट को आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया जाएगा. इन्हें पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) से लांच किया जाएगा, हालांकि अभी तक इनके लांच की तारीख सामने नहीं आई है. 

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