अपने मनोवैज्ञानिक की सलाह पर 32 वर्षीय श्रेया टोडोरिया ने दो महीने के एक बीगल पपी को गोद ले लिया, जिसने उन्हें एक साल पहले एक कार हादसे में अपनी मां को खोने के दुख से उबरने में उनकी काफी मदद की. टोडोरिया पहले भी दोस्तों और परिवार के साथ मिलकर पपी पाल चुकी थीं और उनके साथ सहज थीं. इस फैसले ने उनकी ज़िंदगी बदल दी.
श्रेया बताती है कि कैसी उनकी मां की मौत ने उन्हें एकदम तोड़ दिया था. वे कहती हैं, “मैं इतनी अस्थिर हो गई थी कि बाहर जाने, लोगों से बात करने की एकदम इच्छा ही नहीं रह गई थी; न तो काम में ही मन लगता था और न ही ठीक से सो पाती थी. सारा दिन बस रोती रहती थी.”
लेकिन पपी को गोद लेना उनकी ताकत का स्रोत बन गया; उसकी देखभाल की वजह से उन्हें सैर पर जाना, लोगों से मिलना-जुलना अच्छा लगने लगा. पपी को पालने के लिए आर्थिक जरूरतों ने उन्हें अपने करियर में लौटने के लिए प्रेरित किया. वे आगे कहती हैं, “उसने मुझे जीने की एक वजह दे दी.”
टोडोरिया कोई अकेली ऐसी इंसान नहीं हैं, जो पालतू जानवर की सोहबत में अकेलेपन से उबरने में सफल रहीं. पालतू जानवरों के लिए स्नैक और भोजन उपलब्ध कराने वाली ग्लोबल पेट केयर कंपनी मार्स ने हाल में एक प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य कंपनी कैल्म के साथ साझेदारी की है. इसके तहत, अब तक का सबसे बड़ा वैश्विक सर्वेक्षण किया गया, जो सेहत के लिहाज से मानव-पशु संपर्क की ताकत को दिखाता है. यूगॉव की तरफ से किए गए इस शोध में भारत सहित 20 देशों के 30,000 से ज्यादा पेट पैरेंट की राय जानी गई.
अध्ययन में पाया गया कि 79 फीसद भारतीय पेट पैरेंट का मानना है कि उनके पालतू जानवर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं. और, इसके लाभ सिर्फ मूड ठीक करने तक ही सीमित नहीं हैं. 92 फीसद उत्तरदाताओं ने बताया कि पालतू जानवरों की वजह से उन्हें स्क्रीन से दूरी बनाए रखने में मदद मिलती है. 79 फीसद ने कहा कि पालतू जानवरों के कारण नींद में सुधार हुआ और 88 फीसद भारतीयों का कहना है कि पालतू जानवर चिंता या ओवरथिंकिंग घटाने में मददगार होते हैं. लगभग 10 में से सात उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि पालतू जानवरों की वजह से ही उनका सामाजिक जीवन बेहतर हुआ है.
हालांकि, सबका अनुभव एक जैसा नहीं हो सकता. दिल्ली के पालतू जानवर व्यवहार विशेषज्ञ अमित कुमार कहते हैं, "लोगों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि पालतू जानवर रखने के लिए वित्तीय, लॉजिस्टिक और व्यावहारिक जरूरतें क्या हैं. हर जानवर का व्यवहार एक जैसा नहीं होता, और हो सकता है कि वो उस तरह के ना हो जैसी छवि आपने सोशल मीडिया देखकर बनाई हो.”
पालतू जानवरों को प्रशिक्षित करने के अपने 15 साल के करियर में करीब 500 पेट पैरेंट के साथ काम कर चुके कुमार कहते हैं कि यह एक बेहद दुखद पहलू है कि कई पेट पैरेंट अपने पालतू जानवरों का व्यवहार उम्मीद के मुताबिक न होने पर उन्हें छोड़ देते हैं या उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं. कुमार बताते हैं, “एक जानवर की देखभाल करना बहुत धैर्य का काम है और इसके लिए बाकायदा प्रशिक्षण की जरूरत होती है, खासकर शुरुआती वर्षों में. बाद में तो पालतू जानवर के साथ एक अच्छा रिश्ता बन जाने पर सब ठीक हो जाता है. लेकिन आपको उसके साथ एक बॉन्डिंग का प्रयास करने के लिए तैयार रहना होगा. यह एक नया दोस्त बनाने जैसा है जो रातो-रात संभव नहीं होता.”
वन्यजीव और पशु कल्याण से जुड़े कई एनजीओ को अक्सर शुद्ध नस्ल के पालतू जानवर अपने कार्यालयों के बाहर ऐसे ही या पट्टा लगाकर छोड़े गए मिलते हैं. कई लोग तो पालतू जानवरों को गोद लेने के बाद उन्हीं जगहों पर वापस छोड़ आते हैं जहां से उन्हें लाए होते हैं. इसे देखते हुए कई आश्रय स्थलों ने गोद लेने पर सहमति देने से पहले पेट पैरेंट की सोच-समझ और स्थिति का मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि किसी जानवर को गोद लेने से कई बातों पर गहराई से विचार जाना चाहिए: जैसे जगह कैसी है, वित्तीय स्थिति क्या है, पेट पैरेंट उसे कितना समय दे सकते हैं और घर के अन्य सदस्य पालतू जानवरों के साथ सहज हैं या नहीं. वन्यजीव विशेषज्ञ और गैर-लाभकारी संस्था वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक कार्तिक सत्यनारायण कहते हैं, “धैर्य के साथ प्रशिक्षण लेना बहुत जरूरी है.”
मथुरा स्थित वाइल्डलाइफ एसओएस के हाथी बचाव केंद्र में संरक्षणवादियों की टीम ने अपने बचाए जानवरों को किसी तरह के बल प्रयोग बिना अपने पैरों और कानों का उपचार कराने में प्रशिक्षित कर दिया है. कुमार आगे कहते हैं, “अगर आपको अपने जानवर के साथ बॉन्डिंग स्थापित करने कठिनाई हो रही है तो मैं इंटरनेट पर सुझाए उपायों को आजमाने के बजाय प्रशिक्षित व्यवहार विशेषज्ञों या अन्य पेट पैरेंट से परामर्श लेने की ही सलाह दूंगा.”
विशेषज्ञ मानते हैं कि एआई अच्छी तस्वीरें जेनरेट करने और टेक्स्ट को सुधारकर बेहतर बनाने का एक बेहतरीन माध्यम तो हो सकता है लेकिन यह पालतू जानवर गोद लेने और उनकी देखभाल के तरीके तय करने संबंधी निर्णय लेने में सबसे अच्छा मार्गदर्शक नहीं हो सकता.
हकीकत यही है कि यदि कोई पेट पैरेंट ठीक से प्रशिक्षित नहीं है तो उसका अपना पालतू जानवर के साथ तनाव का कारण भी बन सकता है. बेंगलुरु के रहने वाले एक इंजीनियर विशाल प्रसाद बताते हैं, “मैंने तो प्यार से पुचकारने और गोद में खिलाने के बारे में सोचकर ही एक बिल्ली को गोद लिया था लेकिन वह लगातार काटती और खरोंचती रहती थी. वह रात में तो और भी ज्यादा परेशान करती थी, और इससे मेरी नींद खराब होने लगी तो आखिरकार मुझे उसे एक दोस्त को देना पड़ा. यह काफी पीड़ादायक भी था. काश, मैंने पहले ही इस बारे में सोच लिया होता.”
बहरहाल, जो लोग जानवरों को अपने घरों में पालने की गहरी इच्छा रखते हैं, उनके लिए भी यह जानना जरूरी है कि तमाम अध्ययनों ने यह साबित किया है कि जानवरों के लिए सबसे मुफीद जगह उनके रहने लायक प्राकृतिक वातावरण ही होता है. वन्यजीव अभयारण्य, फॉरेस्ट रिजर्व या आसपास के पार्क में जाकर आप पक्षियों का चहचहाना सुनें, यह सब भी उतना ही सुकून देता है जो घर में पालतू जानवरों के रहने से मिलता है. लेकिन इसमें किसी तरह के तनाव की गुंजाइश नहीं रहती और साथ ही स्वस्थ आदतों को बढ़ावा भी मिलता है. अगर कुछ और नहीं करते तो विभिन्न आश्रयों में स्वयंसेवा का विकल्प हमेशा मौजूद रहता है, जहां आप बिना किसी तरह की प्रतिबद्धता के जानवरों के साथ समय बिताने का आनंद ले सकते हैं.