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पीटर हिग्स : 2013 में नोबल जीतने वाला वो साइंटिस्ट जिसने कभी मोबाइल फोन और इंटरनेट इस्तेमाल नहीं किया

पीटर हिग्स ने ही हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल थ्योरी को जन्म दिया था. बीते 9 अप्रैल को उनका निधन हो गया

प्रो. पीटर हिग्स, हिग्स बोसोन थ्योरी के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता (2013)
प्रो. पीटर हिग्स
अपडेटेड 15 अप्रैल , 2024

इस ब्रह्मांड में हम जो भी चीजें देखते हैं वो मूल कणों (फंडामेंटल पार्टिकल्स) से मिलकर बनी हैं. चाहे वो कोई ग्रह हो, तारा हो या कोई जीव-जन्तु. वैज्ञानिकों ने ये बात तो पहले ही साबित कर दी थी. लेकिन 1950-60 के दशक में जब भौतिक विज्ञान की दुनिया में एक स्टैंडर्ड मॉडल अभी भी विकसित हो रहा था, एक गणितीय समस्या सामने आई. 

वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि अगर इन मूल कणों में इनका खुद का द्रव्यमान (साधारण लहजे में कहें तो वजन) मौजूद रहते तो कई समीकरण काम ही नहीं कर पाते. तो फिर इन्हें द्रव्यमान कहां से हासिल होता है? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के क्रम में हिग्स बोसॉन थ्योरी सामने आई. थ्योरी देने वाले वैज्ञानिक का नाम पीटर हिग्स था, जिनका बीते 9 अप्रैल को निधन हो गया. 

हिग्स ने यह थ्योरी 1964 में दी थी जिसमें एक ऐसे मैग्नेटिक या इलेक्ट्रिक फील्ड की बात की गई थी जो पूरे ब्रह्मांड में मौजूद है. इस फील्ड को हिग्स फील्ड कहा जाता है. इसी फील्ड में आकर सभी कणों को द्रव्यमान हासिल होता है. हिग्स बोसॉन जो खुद इलेक्ट्रॉन, क्वार्क, फोटॉन या न्यूट्रिनो की तरह एक मूल कण है, इसी फील्ड में मौजूद रहता है और यहीं से द्रव्यमान हासिल करता है. हिग्स को इसके लिए 2013 में नोबेल पुरस्कार भी मिला. अब यहां पीटर हिग्स के बारे में आगे और बात करने से पहले हिग्स बोसॉन को थोड़ा और जान लेते हैं. 

हिग्स बोसॉन को 'गॉड पार्टिकल' भी कहा जाता है. यह एक ऐसा मूल कण है, जिसके पास ऊर्जा होती है. लेकिन इसकी सबसे खास बात यह है कि यह हर दूसरे कण को द्रव्यमान प्रदान करता है. यानी जितने भी फंडामेंटल कण (मूल कण) हैं, हिग्स फील्ड में आकर गॉड पार्टिकल से द्रव्यमान हासिल करते हैं. हिग्स बोसॉन के गॉड पार्टिकल नामकरण की कहानी भी दिलचस्प है. 

दरअसल, हिग्स बोसॉन एक ऐसा कण रहा है जिसे ढूंढ़ने में वैज्ञानिकों को खासी मशक्कत का सामना करना पड़ा है. इस टर्म का पहली बार प्रयोग फिजिसिस्ट लियोन लेडरमैन ने किया. उन्होंने 90 के दशक में हिग्स बोसॉन की लगातार खोज के बारे में 'गॉडडैम पार्टिकल' (Goddamn Particle) शीर्षक से एक किताब लिखी. उन्होंने 'गॉडडैम' शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि इस कण को ढूंढ़ना काफी मुश्किल साबित हो रहा था. 

बाद में किताब के प्रकाशकों ने इसका नाम 'गॉड पार्टिकल' कर दिया. और यही नाम आगे चलकर काफी लोकप्रिय हो गया. हालांकि कई वैज्ञानिकों ने इस बात पर नाक-भौं सिकोड़ी कि इस शब्द का संबंध ईश्वर से जुड़ा मालूम होता था. एक नास्तिक के रूप में जीवन गुजार देने वाले पीटर हिग्स ने भी खुद कभी इस नाम को पसंद नहीं किया. 

हिग्स बोसॉन को लेकर थ्योरी 1960 के दशक में ही सामने आ गई थी लेकिन इसे साबित होने में करीब 50 साल लग गए. जुलाई, 2012 में जब फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर स्थित लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन में इसको लेकर व्यापक प्रयोग हुए, तो इस थ्योरी पर मुहर लगी. लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के बारे में बात करें तो यह उस समय में दुनिया की सबसे बड़ी मशीन हुआ करती थी. 

हालांकि हिग्स सिर्फ अकेले नहीं थे जो इन प्रयोगों पर काम कर रहे थे. कई और लोगों ने इस थ्योरी को गढ़ने में योगदान दिया जिनमें से एक बेल्जियम के भौतिक विज्ञानी फ्रेंकोइस एंगलर्ट भी थे. हिग्स के साथ एंगलर्ट को भी 2013 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार हासिल हुआ था. 

कौन थे पीटर हिग्स? 

1929 में ब्रिटेन के न्यूकैसल अपॉन टाइन में जन्मे हिग्स ने लंदन के किंग्स कॉलेज में पढ़ाई की और आगे चलकर उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी. 

एक बेहद शर्मीले इंसान के तौर पर मशहूर रहे पीटर हिग्स को एकांत में काम करना ज्यादा पसंद था. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत मॉलेक्यूलर बायोलॉजिस्ट के रूप में की. देखा जाए तो उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक योगदान नहीं दिया. लेकिन हिग्स फील्ड और हिग्स बोसॉन थ्योरी की खोज उनके मुख्य काम रहे. अपने पूरे करियर में उन्होंने करीब एक दर्जन शोध पेपर लिखे जिनमें से एक में कोई सह-लेखक था. 

हिग्स ने मरते दम तक कभी भी मोबाइल फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया.  एडिनबर्ग स्थित उनके घर पर मौजूद लैंडलाइन ही एकमात्र उपाय रहा जब उनसे किसी को संपर्क करना होता था. जुलाई 2012 में जब हिग्स बोसॉन के आविष्कार की खबर ने मीडिया में तहलका मचाया तो हिग्स को महसूस हुआ कि अब मीडिया वाले उन्हें ढूंढ़ते हुए उनके घर तक पहुंच जाएंगे. 

मीडिया की लाइमलाइट और सुर्खियों से बचने के लिए तब 82 साल के हिग्स ने घर छोड़ दिया. इस दौरान वे एडिनबर्ग की सड़कों पर घूमते, अपने पसंदीदी रेस्तरां में खाना खाते और कला प्रदर्शनियों का दौरा करते. और तो और, जब नोबेल पुरस्कार समिति ने नोबेल प्राइज के लिए उनके नाम का एलान किया तो उनसे संपर्क ही नहीं हो पाया. दरअसल, नोबेल पुरस्कार समिति सार्वजनिक घोषणा से पहले पुरस्कार विजेताओं से संपर्क करती है, लेकिन जब हिग्स से संपर्क नहीं हुआ तो एलान करीब आधा घंटा आगे बढ़ाना पड़ा. 

वो तो एक पड़ोसी महिला ने जब हिग्स को सड़क पर टहलते हुए देखा तो उसने अपनी कार रोककर हिग्स को बताया कि उन्हें नोबेल पुरस्कार देने का एलान हुआ है. आगे की सबसे दिलचस्प बात यह कि जब उन्हें नोबेल जीतने के बारे में पता चला तो वे एक पब में चले गए. यहां तक कि जिस दिन उन्हें नोबेल मिलना था उस दिन वे समारोह से नदारद रहे.

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