महाराष्ट्र में आजकल गड़े मुर्दे उखाड़ने का ट्रेंड चल रहा है. राज्य में पिछले कुछ सप्ताह से कुछ हिंदू दक्षिणपंथी समूह मुगल बादशाह औरंगजेब की विरासत और खुल्ताबाद में स्थित उसके मकबरे को गिराने की मांग कर रहे हैं. इससे उपजा सांप्रदायिक तनाव अभी पूरी तरह शांत नहीं हुआ है कि राज्य में एक और नया विवाद आकार लेने लगा है. यह विवाद छत्रपति शिवाजी महाराज के 'पालतू कुत्ते' को लेकर है.
दरअसल, हाल में कोल्हापुर के शाही परिवार और शिवाजी महाराज के वंशज युवराज संभाजीराजे छत्रपति ने एक मांग रखी. इसमें कहा गया है कि शिवाजी के पालतू कुत्ते 'वाघ्या' की मूर्ति को रायगढ़ किले में उनकी समाधि और स्मारक से हटा दिया जाए, क्योंकि इसके बारे में इतिहास में कोई जिक्र नहीं मिलता. किंवदंती के मुताबिक, वफादार वाघ्या ने 1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद खुद को उनकी चिता में झोंक दिया था.
'किंवदंती बनाम ऐतिहासिक सबूत' की इस लड़ाई में अब यहां जाति की भी भूमिका है. वाघ्या की मूर्ति हटाने की मांग से धनगर समुदाय नाराज है. लेकिन क्यों, इसके बारे में हम आगे विस्तार से समझेंगे. पहले यह समझते हैं कि शिवाजी महाराज के वंशज युवराज संभाजीराजे की क्या मांगें हैं.
बीते मार्च में राज्य सरकार के रायगढ़ विकास निगम के अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद संभाजीराजे ने केंद्र सरकार और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने मांग की कि रायगढ़ किले में शिवाजी की समाधि के पास मौजूद वाघ्या की मूर्ति को हटाया जाए. उनका तर्क था कि ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि इतिहास में कहीं भी वाघ्या के बारे में कोई जिक्र नहीं मिलता, और वो एक 'अनहिस्टोरिकल' किरदार है.
इंडिया टुडे से बातचीत में संभाजीराजे ने कहा, "यह प्रतिमा शिवाजी महाराज के स्मारक से भी ऊंची है. शिवाजी महाराज के पास पालतू कुत्ते रहे होंगे, लेकिन इस बात का कोई संदर्भ मौजूद नहीं है कि वाघ्या चिता में कूदा था. वामपंथी, दक्षिणपंथी या फिर मध्यमार्गी विचारों वाले किसी भी इतिहासकार ने इस बात का सबूत नहीं दिया है." उन्होंने कहा कि वाघ्या का किरदार मराठी नाटककार राम गणेश गडकरी ने 1919 में अपने नाटक 'राजसंन्यास' के लिए गढ़ा था.
पूर्व राज्यसभा सदस्य ने सरकार को मूर्ति हटाने के लिए 31 मई तक का समय दिया है. हालांकि कुछ ओबीसी संगठनों, खासकर धनगर समुदाय ने संभाजीराजे के रुख का विरोध किया है और दावा किया है कि घटना को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
इंडिया टुडे की अपनी एक रिपोर्ट में वरिष्ठ संवाददाता धवल एस. कुलकर्णी लिखते हैं कि 'राजसंन्यास' एक विवादित नाटक रहा है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज को नकारात्मक भूमिका में दिखाया गया है. यही वजह है कि 2017 में इस पर खासा बवाल मचा. तब संभाजी ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने पुणे के संभाजी पार्क के बीचोबीच लगी राम गणेश गडकरी की प्रतिमा तोड़ दी थी, और उसे पास की मुथा नदी में फेंक दिया था. यह घटना तब प्रकाश में आई जब सुबह की सैर करने वाले लोगों ने अधिकारियों को सूचना दी. बाद में प्रतिमा को मूल स्थान पर फिर से लगाया गया.
इसी तरह 2012 में भी संभाजी ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने रायगढ़ किले में मौजूद वाघ्या की कांस्य प्रतिमा को हटा दिया था. उस समय भी इस पर खासा बवाल हुआ, और इसके चलते धनगर समुदाय के साथ तनाव पैदा हो गया था. हालांकि, बाद में प्रतिमा को फिर स्थापित किया गया.
आइए अब समझते हैं कि वाघ्या का आखिर धनगरों के साथ ऐसा क्या रिश्ता है कि इसे हटाने की मांग या कोशिश पर वे जब तब नाराज होते रहते हैं?
वाघ्या का धनगरों से क्या है रिश्ता?
इन दोनों के बीच रिश्ते को समझने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि होलकर राजवंश की जड़ें असल में धनगर समुदाय से ही जुड़ी हुई हैं. धनगर एक पारंपरिक पशुपालक समुदाय है जो मुख्य रूप से भारत के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गोवा में पाए जाते हैं. यूपी में इन्हें गड़रिया कहा जाता है.
ब्रिटानिका के मुताबिक, होलकर राजवंश का शुरुआती परिवार यूपी के मथुरा इलाके से माइग्रेट होकर दक्कन के होल या हाल गांव में जाकर बस गया था. होल के कर (मतलब निवासी) होने की वजह से परिवार का उपनाम होलकर हो गया.
इस राजवंश के संस्थापक मल्हार राव होलकर थे, जो किसान मूल से अपनी योग्यता के बल पर आगे बढ़े. 1724 में मराठा राज्य के पेशवा (प्रधानमंत्री) बाजी राव प्रथम ने उन्हें 500 घोड़ों की कमान सौंपी. वे जल्द ही मालवा में पेशवा के मुख्य सेनापति बन गए, जिनका मुख्यालय महेश्वर और इंदौर में था. उनकी मृत्यु (1766) के समय वे मालवा के वास्तविक शासक थे. 1767 से 1794 तक उनके बेटे की विधवा, अहिल्या बाई ने बहुत ही कुशलता और समझदारी से राज्य पर शासन किया.
उस समय इंदौर हिंसा के सागर में शांति और समृद्धि का एक द्वीप था, और उनका शासन न्याय और बुद्धिमत्ता के लिए जाना जाता था. तुकोजी होलकर, एक दूर के रिश्तेदार जिन्हें अहिल्याबाई ने अपनी सेना का कमांडर नियुक्त किया था, दो साल बाद उनके उत्तराधिकारी बने. 1797 में तुकोजी की मृत्यु के बाद उनके नाजायज बेटे यशवंत राव ने सत्ता हथिया ली.
रायगढ़ किले में शिवाजी का जो स्मारक है, जहां वाघ्या की प्रतिमा बनी है, उसे 1936 में इंदौर के तब के महाराजा तुकोजीराव-III होल्कर द्वारा दान की गई राशि से बनाया गया था. ऊपर की कहानी से यह साफ है कि होलकर, धनगर समुदाय से ही निकले हैं. अब धनगरों में कुत्तों को लेकर बड़ा मोह इसलिए है क्योंकि इस समुदाय के लोग पशुपालन से जुड़े रहे हैं. यह मोह इस कदर है कि वे कुत्ते को भगवान के बाद दूसरा स्थान देते हैं.
संभाजीराजे की मांग पर धनगरों में जबरदस्त नाराजगी
वाघ्या की मूर्ति हटाने को लेकर संभाजीराजे की मांग पर धनगर समुदाय के नेताओं ने नाराजगी जताई. धनगर और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) ब्लॉक के नेता लक्ष्मण हेक इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने संभाजीराजे को रायगढ़ विकास निगम के अध्यक्ष पद से बर्खास्त किए जाने की मांग कर डाली.
हेक के अलावा, 60 से ज्यादा पुस्तकों के लेखक और कार्यकर्ता संजय सोनवानी ने भी संभाजीराजे की मांग पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि इस तरह की मांग महाराष्ट्र में नई तरह की सामाजिक गड़बड़ी फैलाने का प्रयास है. उन्होंने सवाल उठाया कि 1936 में जब रायगढ़ में वाघ्या की मूर्ति स्थापित की जा रही थी तब शिवाजी के वंशज और सतारा और कोल्हापुर राजघरानों में से किसी ने भी इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई.
सोनवानी ने वाघ्या के बारे में ऐतिहासिक सबूतों की ओर इशारा किया. इसमें 1930 में प्रकाशित एक जर्मन पुस्तक 'नेगोशिएशन्स: ऑथर्स एंड सब्जेक्ट्स ऑफ बुक्स IX (1834-1852)' और उस अवधि में ऐतिहासिक घटनाओं का रिकॉर्ड शामिल है. पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद वाघ्या नाम का एक कुत्ता छत्रपति की चिता में कूद गया था.
शिवाजी महाराज का कुत्तों को लेकर प्रेम!
साल 1905 में सीजी गोगटे की एक किताब 'महाराष्ट्रतिल किल्ले' (महाराष्ट्र के किले) में शिवाजी के कुत्तों को लेकर प्रेम की झलकी मिलती है. किताब के मुताबिक, 1678 में शिवाजी महाराज दक्षिण भारत में एक सैन्य अभियान पर गए थे. इस दौरान उनकी कर्नाटक के बेलवाड़ी के प्रमुख येसाजी प्रभु देसाई से झड़प हुई. देसाई की हत्या कर दी गई और उनकी पत्नी मल्लाबाई उर्फ मलम्मा, जिन्होंने मराठों के खिलाफ प्रतिरोध जारी रखा, को पकड़ लिया गया.
शिवाजी महाराज ने मलम्मा को संरक्षण दिया और अपनी बहन का दर्जा दिया. उन्होंने मलम्मा को उसकी जागीर लौटा दी और उसे 'सावित्रीबाई' की उपाधि से सम्मानित किया. कृतज्ञता में, उसने गांवों और मंदिरों के पास शिवाजी महाराज की कई पत्थर की मूर्तियां बनवाईं. इनमें घोड़े पर सवार शिवाजी महाराज की छवि है और उनके साथ एक कुत्ता चल रहा है. मलम्मा के समय में बनाई गईं ये मूर्तियां शिवाजी के जीवन में कुत्तों के महत्व को बताती है. इसी तरह, राम गणेश गडकरी ने भी अपना नाटक 'राजसंन्यास' वाघ्या को समर्पित किया था.
अपनी एक रिपोर्ट में धवल एस. कुलकर्णी लिखते हैं कि शिवाजी महाराज की मृत्यु रायगढ़ में हुई और उनका अंतिम संस्कार भी वहीं किया गया. बाद में उस स्थान पर समाधि बनाई गई. 1818 में रायगढ़ किले पर कब्जा करने के बाद अंग्रेजों ने रायगढ़ के बड़े हिस्से को नष्ट कर दिया था और बाद में किला और समाधि जीर्ण-शीर्ण हो गए.
1883 में ब्रिटिश लेखक जेम्स डगलस ने पहली बार समाधि की जीर्ण-शीर्ण स्थिति पर अपनी नाखुशी जाहिर की, और स्मारक को ठीक करने की मांग की. 1885 में समाज सुधारक एमजी रानाडे ने प्रस्तुति पर चर्चा करने के लिए सरदारों और दक्कन के प्रमुख लोगों की एक बैठक बुलाई. 1895 में बाल गंगाधर तिलक ने समाधि के रखरखाव के लिए धन इकट्ठा करने के लिए एक समिति बनाई. हालांकि, तिलक का 1 अगस्त, 1920 को निधन हो गया.
समाधि का जीर्णोद्धार 1925 में शुरू हुआ और पुरातत्व महानिदेशक द्वारा एक साल बाद पूरा किया गया. वाघ्या की मूर्ति एक दशक बाद 1936 में स्थापित की गई.
वाघ्या पर विवाद अनावश्यक : महाराष्ट्र सीएम
29 मार्च को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि संभाजीराजे छत्रपति द्वारा रायगढ़ किले से वाघ्या की मूर्ति हटाने की मांग और कुछ ओबीसी संगठनों द्वारा उनकी मांग का विरोध करने पर विवाद अनावश्यक है और इसे बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है.
मीडिया से बातचीत करते हुए फडणवीस ने कहा कि, "हर मुद्दे पर टकराव की जरूरत नहीं है. वास्तव में, सभी समुदाय एकजुट हैं और इस तरह के विवाद अनावश्यक हैं."