
एंड्रयू ब्रेविक. नॉर्वे का निवासी और हिटलर के नाज़ी सिद्धांतों को मानने वाला एक वैचारिक अपराधी, जिसने 2014 में 22 जुलाई के दिन 77 लोगों की हत्या कर दी. पहले तो उसने ओस्लो के मुख्य पुलिस थाने पर बम से हमला किया, जिसमें 8 सरकारी कर्मचारियों की जान चली गई. फिर नाव से यूटोया द्वीप पहुंचकर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें 69 लोगों की मौत हो गई.
2014 में हुए एक हमले की बात अभी क्यों? क्योंकि एंड्रयू ब्रेविक ने 10 जनवरी को नॉर्वे की सरकार पर केस किया है. ब्रेविक ने आरोप लगाया है कि जिस जेल में उसे रखा गया है वहां अकेलापन महसूस हो रहा है. इसकी वजह से उसे आत्महत्या का ख़्याल आने लगा है. ब्रेविक के वकील ने कोर्ट में कहा है कि यूरोप के इतिहास में इतना अकेलापन किसी कैदी ने नहीं झेला है.
यह ख़बर पढ़ते हुए एक बार को मन में आता है कि आख़िर एंड्रयू ब्रेविक के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा होगा? उसे कैसी जेल में रखा गया होगा? भारत में रहने वाला कोई शख्स इस अपराधी के लिए काला पानी से कम की सज़ा तो शायद ही सोच पाए. लेकिन नॉर्वे में सजा के क्या हाल है? दरअसल कोर्ट ने ब्रेविक को 21 साल की सज़ा सुनाई थी. शुरुआती कुछ वर्षों तक उसे इला जेल में रखा गया. एंड्रयू ने जब 2016 में ये आरोप लगाया कि जेल में उसके मानवाधिकार का हनन हो रहा है तब उसकी जेल बदल दी गई.

नॉर्वे सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया है कि दो साल पहले ही उसे रिंगेरिक जेल शिफ्ट कर दिया गया है. जहां दो मंजिला मकान में वो अकेला रहता है. इस मकान में उसके लिए किचन, डाइनिंग रूम, एलईडी टीवी, केबल कनेक्शन और जिमखाना है. दीवारों पर अच्छी पेंटिंग्स भी लगाई गई हैं. ऐसा नहीं है कि एंड्रयू ब्रेविक को ये स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, बल्कि नॉर्वे अपनी जेलों की सुंदरता के लिए दुनिया भर में जाना जाता है.
बिहार से आने वाले और नॉर्वे में रह रहे डॉ. प्रवीण झा मैंड्रेक प्रकाशन से आई अपनी किताब 'खुशहाली का पंचनामा' में लिखते हैं, "दरअसल नॉर्वे उसी घिसी-पिटी लोकोक्ति को मानता है 'पाप को मारो, पापी को नहीं.' नॉर्वे हृदय-परिवर्तन जैसी दकियानूसी अप्रायोगिक पद्धति पर विश्वास करता है. पर गौर करने की बात है, पद्धति सफल है."
दूसरे देशों के विरोध के बावजूद भी नॉर्वे कैदियों के साथ बर्ताव के अपने सिद्धांत को बदलता नहीं है. वो इस सिद्धांत पर कायम है कि जेल में कैदियों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाए कि वो दोबारा अपराध ना करें. इस आजमाइश को आंकड़ों से ताकत मिलती है. 2014 तक नॉर्वे में जेल जाने की दर 1 लाख पर 75 की थी. यानी 1 लाख लोगों में 75 लोग ही जेल गए थे. अमेरिका में यही संख्या 707 है, यानी नॉर्वे से 10 गुना ज्यादा. जेल से छूटने के बाद अमेरिका के 77 फीसदी लोग पांच साल बाद दोबारा जेल जाते हैं, जबकि नॉर्वे में 20 प्रतिशत.
जेल में कैदियों को टॉर्चर करने के बजाय नॉर्वे अपनी सारी क्षमता उन्हें सुधारने और बेहतर इंसान बनाने पर खर्च करता है. वहां काला पानी की सज़ा दे देने की अवधारणा काम नहीं करती. यही वजह है कि हर जेल उन सारी सुविधाओं से लैस है जो किसी पांच सितारा होटल में होती हैं. मसलन टीवी, डाइनिंग रूम से लेकर पार्क में साइकिल चलाने तक की व्यवस्था रहती है. हर कैदी का अपना अलग कमरा है, यानी सेल. जेल प्रशासन हर कैदी को उसके सेल की चाबी दे देता है.

चाबी इसलिए दी जाती है ताकि कैदी अपने सेल से बाहर निकलकर पार्क में टहल सकें या साइकिलिंग कर सकें. एक और बात जो हैरत से भर देती है, वो ये कि नॉर्वे के जेल परिसरों में कटीले तार से बाड़ेबंदी नहीं की गई है और ना ही ऊंची दीवारें बनाई गई हैं. बाउंड्री के नाम पर लकड़ी का फ्रेम सेट किया गया है जिसे कोई भी कैदी आसानी से लांघ सकता है. हालांकि कोई कैदी जेल से भाग गया हो ऐसे मामले नॉर्वे में सुनने को नहीं मिलते.
हालांकि अपराधियों को मानसिक तौर पर बेहतर इंसान बनाने की जो जुगत नॉर्वे करता है वो हर केस में सफल ही नहीं होती. इंडिया टुडे हिंदी से बातचीत में डॉ. प्रवीण झा कहते हैं, "एंड्रयू ब्रेविक की मनोवैज्ञानिक जांच हुई है, उसके विचारों में रत्ती भर भी सुधार नहीं हुआ है." ब्रेविक ने कोर्ट की सुनवाई के दौरान खुद को "एक खास समुदाय और मजहब के खिलाफ जंग लड़ने वाला" बताया था.
डॉ. झा मानते हैं, "भारत में देखें तो चंबल के डाकूओं का जेपी-विनोबा भावे ने आत्मसमर्पण कराया, बेहतर वातावरण दिया, उन्होंने डकैती त्याग दी. वे वैचारिक अपराधी नहीं थे, माहौल में डकैत बने थे. नक्सलवादियों या लिट्टे के उग्रवादियों को बदलने में दिक्कत आ सकती है क्योंकि उनके पास वैचारिक शक्ति (या लिटरेचर फीडिंग) है. वैचारिक अपराधी को बदलना मुश्किल है."
एकाध अपवादों को छोड़ दें तो नॉर्वे ने जेल की सज़ा और उस दौरान कैदियों के साथ बर्ताव को लेकर जो प्रणाली विकसित की है वो कारगर है. हालांकि एंड्रयू ब्रेविक जैसे अपराधियों पर इसका ख़ास असर नहीं दिखता.

