scorecardresearch

आप वो हैं जो सोचते हैं, तो फिर कैसे दिमाग को रिसेट कर भविष्य संवारा जा सकता है?

मस्तिष्क में गहरी जड़ें जमाए, दबी-छिपी धारणाओं से बाहर निकालकर जीवन को बदल देने वाले व्यक्तित्व विकास को अपनाने के पांच कारगर तरीके

3D illustration of pink color human brain lifting heavy barbell. Training mind and mental health concept. Train your brain.
अभ्यास मन बदलने का सबसे कारगर तरीका है
अपडेटेड 22 जुलाई , 2025

हमारा जीवन काफी हद तक इस पर निर्भर करता है कि आखिर हम सोचते क्या हैं. कई बार हमारे अनुभव, हमारी प्रतिक्रियाएं और हमारा चयन इससे तय नहीं होता कि आसपास क्या हो रहा है, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि हम खुद से क्या कहते हैं. लेकिन, एक अच्छी बात ये है कि मस्तिष्क की न्यूरोप्लास्टिसिटी यानी नए कोशिका संपर्क के जरिये खुद को पुनर्गठित करने की दिमाग की क्षमता हमें पूरे नजारे को बदलकर रख देने में सक्षम बनाती है. होलिस्टिक वेलनेस कोच और अनुराग वेलनेस मूवमेंट के संस्थापक अनुराग ऋषि सोच को नया और सकारात्मक रूप देने और व्यक्तित्व विकास को प्रोत्साहित करने के पांच तरीके बता रहे हैं :

सीमित धारणाओं से बाहर निकलें :  हममें से ज्यादातर लोगों के मन में कुछ धारणाओं ने गहरी जड़ें जमा रखी होती हैं, जो हमारी सोच-समझ के दायरे को सीमित कर देती हैं. बतौर उदाहरण- 'मैं बहुत अच्छा/अच्छी नहीं हूं’ या ‘कुछ भी कर लूं असफल ही हाथ लगेगी’ या ‘मुझे तो सफलता मिलना ही मुश्किल है’ आदि. एक बार जब हम इस संकुचित सोच के बारे में जान लेते हैं तो अगला कदम उन्हें चुनौती देना होता है. हमें सवाल उठाना होता है कि आखिर यही बात दिमाग में क्यों बैठी है. फिर, उन्हें कुछ सशक्त विकल्पों से बदलकर अपने मनोभाव बदलना शुरू कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, अगर हम “मैं चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता” की जगह यह सोचें कि “मैं चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना सीख रहा हूं” तो निश्चित तौर पर एक बदलाव नजर आने लगेगा.

सचेतन जागरूकता का प्रयास करें : सचेतनता हमें अपने विचारों किसी को पूर्वाग्रह के बिना देखने की अनुमति देती है. अगर हमने सचेतनता को अपने अंतर्मन में अपना लिया तो सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया ही बदल जाएगी. बदली सोच के साथ हम पुरानी/अनुपयोगी प्रतिक्रियाएं मन से निकाल सकेंगे. मेडिटेशन, डायरी लिखने या दिनभर की बातों पर चिंतन करने से सचेतनता एक ऐसा सरल अभ्यास बन जाती है जो नकारात्मक चक्र से बाहर निकालकर हमें सोच-समझकर ही कोई निर्णय लेने में सक्षम बना सकती है.

कुछ कर दिखाने की मानसिकता अपनाएं : अमेरिकी मनोवैज्ञानिक कैरल ड्वेक ने एक शब्द गढ़ा था-ग्रोथ माइंडसेट. ये बताता है कि अगर ठान लें तो कड़ी मेहनत और शिक्षा के जरिये कुछ भी हासिल किया जा सकता है. जैसे ही हम कुछ कर दिखाने वाली मानसिकता अपनाते हैं, विकास की प्रक्रिया खुद-ब-खुद शुरू हो जाती है. उदाहरण के तौर पर, अपनी सोच में “मुझसे यह नहीं होगा” की जगह “यह अभी नहीं हो पाएगा” का बदलाव ही बड़ी सफलता की राह खोल सकता है. यह बदलाव जिज्ञासा, दृढ़ता और आत्म-सुधार की इच्छा को प्रोत्साहित करेगा.

सकारात्मकता की कल्पना करें : दिवास्वप्न और कल्पना, दो अलग-अलग बाते हैं. दिवास्वप्न खोखले हो सकते हैं लेकिन कल्पना मस्तिष्क को सफल होना सिखाने का एक प्रमुख तरीका है. जब हम लगातार किसी कठिन कार्य को पूरा करने, तनाव से अच्छी तरह निपटने या अपने सपनों के साकार होने की सकारात्मक कल्पना करते हैं तो हम मस्तिष्क को नए अवसर तलाशने और उन पर अमल करने के लिए तैयार करते हैं.

सकारात्मक माहौल में रहें : हमारे आसपास का वातावरण हमारी सोच पर गहरा प्रभाव डालता है. प्रेरक, चुनौतियों से लड़ने वाले और मददगार लोगों के साथ समय बिताकर सकारात्मक सोच को मजबूत किया जा सकता है. किताबें, पॉडकास्ट और विकास पर केंद्रित बातचीत हमें लगातार वो मानसिकता अपनाने की याद दिलाती रहती है, जिसे हम विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं.

हालांकि, अपने विचारों और सोचने-समझने के तरीके को पूरी तरह बदल देना आसान नहीं होता और यह चुटकियों में भी नहीं हो जाता. लेकिन निरंतर अभ्यास इसे हमारे जीवन का हिस्सा बना सकता है. व्यक्तिगत विकास अलग तरह से सोचने का निर्णय लेने के साथ ही शुरू होता है और इस दिशा में कदम बढ़ाना हमारे और सिर्फ हमारे हाथ या यूं कहें कि हमारे दिमाग के ही वश में होता है.

Advertisement
Advertisement