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डायबिटीज कंट्रोल के लिए ओजिंपिक के ‘प्राकृतिक’ विकल्प धड़ल्ले से बिक रहे; लेकिन ये हैं कितने काम के?

भारत में डायबिटीज के 7.4 करोड़ मरीज हैं और ऐसे में तरह-तरह के सप्लीमेंट जीएलपी-1 के प्राकृतिक विकल्प बताकर बेचे जा रहे हैं, लेकिन इन्हें लेने से पहले सावधानी और जागरूकता बेहद जरूरी

इस समय भारत में सात करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज के साथ जिंदगी जी रहे हैं
अपडेटेड 14 अगस्त , 2025

देर शाम का समय था. मीरा राव अपनी किचन टेबल पर बैठीं तो उनके इर्द-गिर्द चटख रंगों वाली बोतलें थीं. कुछ पर ‘सैफ्रन ब्लेंड’ चिप्पी लगी थी तो कुछ पर ‘ऑर्गेनिक जीएलपी1 सपोर्ट’. चमकीले आवरण पर जीएलपी1 (ग्लूकागोन-लाइक पेप्टाइड-1) के ओजेम्पिक सरीखी दवाइयों के सुरक्षित और प्राकृतिक विकल्प का वादा किया गया था, और इससे भूख पर कंट्रोल, ब्लडशुगर को संभालने और कोई भी साइड-इफेक्ट न होने की बड़ी-बड़ी बातें कही गई थीं.

लेकिन नोएडा की 45 वर्षीय गृहणी राव, जिन्हें हाल में अपने प्रीडायबिटिक यानी डायबिटीज के पहले की अवस्था में होने का पता चला, अकबका गईं. उन्हें समझ नहीं आया कि उन्हें डॉक्टर के पर्चे में लिखे जीएलपी1 रिसेप्टर एगोनिस्ट पर भरोसा करना चाहिए या किसी ‘प्राकृतिक’ खुराक यानी ‘ऑर्गेनिक जीएलपी1 सपोर्ट’ को आजमाना चाहिए.

जीएलपी1 आंत से निकलने वाला हार्मोन है जो इंसूलिन के स्राव को बढ़ाता है, भूख पर लगाम लगाता है और पाचन को धीमा करता है. सेमाग्लूटाइड (ओजेम्पिक, वेगोवी) या टिरजेपेटाइड सिंथेटिक जीएलपी1 रिसेप्टर एगोनिस्ट हैं और इनकी वजह से डायबिटीज और वजन कम करने के इलाज में क्रांति आ गई है.

ओजेम्पिक शरीर का वजन 15-20 फीसद कम कर सकता है, तो भारत में मौनजारो के लॉन्च होने के साथ ही बिक्री में भारी उछाला आया और यह अकेले जुलाई 2025 में 1,57,000 इकाइयों की बिक्री के साथ दोगुनी बढ़कर 470 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई.

फिर हैरानी क्या कि भारत में जीएलपी1 का बाजार, जो 2023 में करीब 10.60 करोड़ डॉलर का था, 2030 तक करीब छह गुना बढ़कर 57.9 करोड़ डॉलर का हो जाने का अनुमान है. यही नहीं, डायबिटीज की देखभाल की बहुतेरी दवाइयों का बाजार, जो 2024-25 तक 1.70 अरब डॉलर से 2.27 अरब डॉलर के बीच था, 2030 तक 2 अरब डॉलर से 3.7 अरब डॉलर के बीच पहुंच जाने की उम्मीद है. जहां 7.4 करोड़ से ज्यादा भारतीय डायबिटीज के साथ जिंदगी बसर कर रहे हों और आने वाले दशकों में इनके और भी तेजी से बढ़ने का अनुमान हो, तो मांग का बढ़ना तय ही है.

तिस पर भी जीएलपी1 इंजेक्शन की ऊंची कीमत और कम सुलभता की वजह से इसके समानांतर एक और चीज में उछाल आया है और वह है इनके बदले लिए जा सकने वाले ‘प्राकृतिक विकल्पों’ का उभार. प्रकृति से निकली चीजों से बनाए गए उत्पादों को अब जीएलपी1 और जीएलपी हार्मोन के ही दूसरे रास्तों की तरह बेचा जा रहा है. चिकने-चुपड़े लेबल, ‘प्राकृतिक’ होने की गारंटी, धन-वापसी के वादे और फाइव-स्टार रिव्यूज के बूते यह आशावादी उपभोक्ताओं को आरोग्य के नैरेटिव की तरफ लुभाता है. हल्के रंगों में लिपटे ब्रांड लेबल, ‘ऑर्गेनिक, प्लांटबेस्ड, जेंटल’ बुदबुदाते नारे, और योगा मैट व हर्बल टी की जीवनशैली छवियां, सब दवा-दारू कम और सर्वांगीण स्वास्थ्य ज्यादा महसूस करवाने के लिए गढ़े गए हैं.

गट-फर्स्ट सप्लीमेंटों का उछाल आ गया है जिसे जीएलपी1 के ऐसे प्राकृतिक विकल्पों के तौर पर बेचा जा रहा है जिनका लक्ष्य इस हार्मोन के भूख दबाने और ग्लूकोज को संभालने जैसे प्रभावों की नकल करना है. इन उत्पादों में अक्सर प्रीबायोटिक फाइबर (इंसूलिन, साइलियम), सेब का सिरका, दालचीनी, बेरबेरीन और प्रोबायोटिक्स का मेल होता है, जो तृप्ति की भावना को बढ़ावा देते, ब्लडशुगर को संतुलित करते और इंसूलिन की संवेदनशीलता को सहारा देते हैं.

इन मिश्रणों में मनोदशा और भूख को नियंत्रित करने के लिए प्रचारित केसर और पानी में घुलनशील फाइबर ग्लूकोमानन भी मिलाया जा रहा है जो आंत के प्राकृतिक हार्मोन की प्रतिक्रियाओं को बढ़ाने का वादा करता है. मेटाबोलिज्म को संभालने में आंतों की सेहत की भूमिका के पीछे का विज्ञान अभी विकसित हो रहा है, वहीं इनमें से ज्यादातर मिश्रणों के साथ वैसा कोई मजबूत क्लिनिकल डेटा नहीं है जैसा ओजेम्पिक सरीखी जीएलपी1 दवाओं के साथ है. यही वजह है कि ये वजन या डायबिटीज की साजसंभाल के लिए विकल्प की बजाय सहायक ज्यादा बन जाते हैं.

जीएलपी1 दवाइयों के प्राकृतिक पेप्टाइड-आधारित विकल्प बीआरपी सरीखे कुछ विकल्पों का कम साइड-इफेक्ट वाले विकल्पों के तौर पर अध्ययन किया जा रहा है. इस पेप्टाइड की पहचान स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं ने  एआइ से संचालित एक टूल के माध्यम से की जिसने हार्मोन के हजारों संभावित टुकड़ों को छांटकर अलग कर दिया. इस पेप्टाइड को प्राकृतिक प्रसंस्करण के माध्यम से बीआरआइएनपी2 प्रोटीन से निकाला गया और मानव सेरीब्रोस्पाइनल द्रव सहित जीववैज्ञानिक नमूनों में खोजा गया है.

चूहों और मिनी पिग पर किए गए प्रीक्लिनिकल अध्ययनों में बीआरपी ने भूख को काफी हद तक दबा दिया, जिससे खाने में एक घंटे के भीतर 50 फीसद तक कमी आई, और वजन कम करने की शुरुआत कर दी, वह भी मितली, पाचन की परेशानियों या मांसपेशियों के क्षय सरीखी जीएलपी1 दवाइयों के साथ जुड़े आम साइड-इफेक्ट के बिना ही. लेकिन इसका असर कितना है वह मानव क्लिनिकल अध्ययनों और नियामकीय मंजूरियों के बाद ही सामने आएगा.

मगर क्या ये दावों के अनुरूप काम करते हैं? सबूत कम ही हैं. विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि सप्लीमेंट ब्लडशुगर की सेहत को थोड़ा-बहुत सहारा भले देते हों, लेकिन जीएलपी1 दवाइयों के मजबूत क्लीनिकल नतीजों से उनकी कोई बराबरी नहीं. सप्लीमेंट से वजन आम तौर पर एक से चार पाउंड तक कम होता है, जबकि डॉक्टर के लिखे पर्चों से यह दहाई फीसद अंकों में होता है. 

यही नहीं, चूंकि आहार सप्लीमेंट नियम-कायदों के दायरे में कम आते हैं, इसलिए  गुणवत्ता और सुरक्षा के लिहाज से इनमें काफी फर्क होता है. कुछ सप्लीमेंट जीएलपी1 का इस्तेमाल करने वालों के संगी-साथी के तौर पर पेश किए जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि डॉक्टर की लिखी दवाइयों के साथ इन्हें लेने में कोई हर्ज नहीं है.

भारत में डायबिटीज के तेजी से बदलते हालात पर प्राकृतिक जीएलपी1 विकल्पों का प्रलोभन जबरदस्त है, लेकिन सावधानी और जागरूकता बहुत जरूरी है. चमकीले रंगों में लिपटे तमाम वादों के बावजूद केवल प्रयोग के जरिए सही साबित हुए उपचार ही उम्मीद से ज्यादा काम कर सकते हैं.

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