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कोलकाता में देवी की शरण में आया AI, फिर रची गई नई दुनिया!

कोलकाता के बालीगंज के फाल्गुनी संघ में बने पारंपरिक दुर्गा पंडाल को इस बार AI के जरिए एक अनोखा रूप दिया गया है

बालीगंज के फाल्गुनी संघ में बने दुर्गा पंडाल की दीवारें
अपडेटेड 30 सितंबर , 2025

कोलकाता की दुर्गा पूजा अब यूनस्को की इंटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज यानी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में जगह बना चुकी है. वहीं इस साल यह एक अनोखा और चमकदार रंग लेकर आई है. बालीगंज के फाल्गुनी संघ में बने पारंपरिक पंडाल को इस बार यूरोपियन-स्टाइल आर्ट म्यूजियम में बदल दिया गया है. 

दीवारों पर बड़े और चमकदार कैनवास सजाए गए हैं, जिन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से तैयार किया गया है. यहां आने वाले लोग ऐसे स्पेस में कदम रखते हैं जहां देवी की मौजूदगी और टेक्नोलॉजी की नई दुनिया आपस में मिलकर एक ऐसा नजारा रचते हैं, जो समकालीन होते हुए चकित कर देने वाली है.

इस शानदार प्रदर्शन के पीछे रिटायर्ड आइएएस अफसर देबाशीष सेन का दिमाग है, जो इसे “हमारे समय का सांस्कृतिक संवाद” कहते हैं. पहले पश्चिम बंगाल में आइटी विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी रहे सेन ने इस पूजा से बहुत पहले ही डिजिटल टूल्स पर प्रयोग शुरू कर दिया था. वे बताते हैं, “जब 2023 में Chat-GPT जैसे ताकतवर लैंग्वेज मॉडल आए, तभी मुझे समझ आ गया था कि आर्ट में इसके जबरदस्त इस्तेमाल को खोजना होगा.” 

मशीन से बनी कला के प्रति उनका शौक तब शुरू हुआ जब वे एम्स्टर्डम के मोको म्यूजियम गए और वहां पहली बार AI-आधारित आर्टवर्क्स देखे. उसी से प्रेरित होकर उन्होंने महीनों तक मिडजर्नी, डल-ई और एडोबी फायरफ्लाइ जैसे प्लेटफॉर्म्स पर काम किया. वे घंटों-घंटों प्रॉम्प्ट्स को सुधारते और अपनी पेंशन का बड़ा हिस्सा पेड सॉफ्टवेयर में लगाते रहे. हर तस्वीर कई बार के ट्रायल के बाद बनती और फिर पांच फुटे ऊंचे और चार फुट चौड़े कैनवस पर प्रिंट होती. यह काम इतना मेहनतभरा था कि तैयार पेंटिंग्स को कोलकाता की गैलरी तक पहुंचाने के लिए उन्हें मिनी-ट्रक किराए पर लेना पड़ा.

सेन की पहली AI आर्ट एग्जिबिशन मई 2024 में एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स में हुई थी, जिसने खूब ध्यान खींचा. इसके बाद उन्होंने अलग-अलग जगहों पर शो किए. आइटीसी सोनार जैसे बड़े होटल से लेकर एक ऐसी दुकान में भी जहां एल्युमिनियम विंडो बेची जाती थीं. वे कहते हैं कि उनका मकसद हमेशा यही रहा है कि AI को “आम लोगों के लिए आसान और समझने लायक बनाया जाए”  खासकर उन लोगों के लिए जो आर्ट और ह्यूमैनिटीज से जुड़े हैं और शायद टेक्नोलॉजी के इस बड़े बदलाव को महसूस ही न कर पाएं. 

फाल्गुनी संघ के साथ उनका जुड़ाव इसी सोच से निकला. इस साल की शुरुआत में जब आयोजकों ने इंडियन म्यूजियम में उनका काम देखा तो उन्होंने सेन को अपने पूजा पंडाल के लिए आर्ट देने का न्योता दिया. वे चाहते थे कि त्योहार की थीम कुछ आधुनिक हो. इस आइडिया को असल रूप देने में उनके दो दोस्तों, बोधिसत्ता बनर्जी और शालिनी चक्रवर्ती ने बड़ी मदद की.

फाल्गुनी संघ ने पहली बार इतनी भव्य पूजा आयोजित की है. इस संघ की शुरुआत 1942 में हुई थी. इसकी सेक्रेटरी शालिनी बताती हैं कि इस बार प्लानिंग पहले ही शुरू कर दी गई थी. उन्हें भरोसा था कि सेन की AI आर्ट उनके पंडाल को एक असली यूरोपियन म्यूजियम जैसा लुक दे सकती है. उन्होंने जॉइंट सेक्रेटरी कुशल मजूमदार को यह आइडिया समझाया, और पेंटिंग्स देखकर मजूमदार तुरंत ही एक्साइटेड हो गए. इस विजन को पूरा करने के लिए बजट भी 15 लाख रुपए से बढ़ाकर 25 लाख रुपए कर दिया गया. और अब साफ दिख रहा है कि उनकी यह मेहनत रंग लाई है.
 
शालिनी कहती हैं, “हमारा पूजा पंडाल एकडालिया एवरग्रीन के ठीक बगल में है, जो कोलकाता के सबसे मशहूर पूजा पंडालों में से एक है. इसलिए यहां हमेशा अच्छी भीड़ आती है. लेकिन इस बार लोग और भी ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. लोग पेंटिंग्स के साथ सेल्फी लेने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमें नो-सेल्फी वाले पोस्टर लगाने पड़े.” बढ़ती भीड़ को देखते हुए सुरक्षा तीन गुना कर दी गई है. शालिनी इसका क्रेडिट लाइटिंग डिजाइनर को देती हैं, जिन्होंने कैनवस को असली जानदार लुक दिया. कई विजिटर तो पेंटिंग्स खरीदने में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. शालिनी हंसते हुए कहती हैं, “हमें लगता है कि हमने कुछ नया शुरू किया है. अब देखते हैं कि आगे इसे किस तरह बढ़ाया जा सकता है.”

करीने से डिजाइन की गई लाइटिंग के बीच सेन की चमकदार AI पेंटिंग्स उनकी कल्पना को एक नया रूप देती हैं. यहां ऐसा माहौल बनता है, जिसमें पारंपरिक पूजा और भविष्य की टेक्नोलॉजी साथ नजर आती है. कोलकाता के पूजा में घूमने वालों के लिए यह नजारा एक ऐसा उत्सव बन गया है, जो शहर की क्रिएटिव पहचान और टेक्नोलॉजी की तेज रफ्तार, दोनों को दिखाता है. देवी और एल्गोरिद्म का यह मिलन सच में यादगार बन गया है.

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