'हैली कॉमेट' की वापसी की यात्रा शुरू हो गई है. बीते 9 दिसंबर को यह धूमकेतु सूर्य से उस अधिकतम दूरी पर पहुंच गया, जहां से अब उसे लौटना है. साल 1986 में हैली कॉमेट आखिरी बार देखा गया था और तभी से इसके इंतजार में लोगों ने कैलेंडर पलटना चालू कर दिया था कि अब कितने वक्त बाद ये दोबारा दिखाई देगा. 9 दिसंबर की खबर के बाद से अब ये निश्चित हो गया है कि हैली कॉमेट धरती की दिशा में ही बढ़ रहा है. ये कॉमेट क्या है और क्या है इससे जुड़ा विज्ञान, आइए समझते हैं.
क्या है हैली कॉमेट?
कॉमेट या धूमकेतु बर्फ और धूल के भीमकाय गोले होते हैं जो सूर्य का चक्कर लगाते हैं. इसके केंद्र में एक जमा हुआ सॉलिड कोर होता है जो लगभग किसी छोटे शहर जितना विशाल होता है. जब ये जमा हुआ कोर सूर्य के संपर्क में आता है तब ये गरम होने लगता है और धीरे-धीरे गैस और धूल में बदलने लगता है. इसी गैस और धूल का गुबार सॉलिड कोर के चारों तरफ एक बादल में बदल जाता है जिसे कॉमा कहते हैं. जैसे ही धूल और गैस नाभिक से दूर बहती हैं, सूरज की रोशनी और सूर्य से आने वाले कण उन्हें एक चमकदार पूंछ में धकेल देते हैं जो धूमकेतु के पीछे लाखों मील तक फैली होती है. इसी पूंछ की वजह से कॉमेट्स को पुच्छल तारा भी कहा जाता है.
हैली कॉमेट वो पहला धूमकेतु है जिसके लौटने की संभावना निश्चितता में बदली थी. 1705 में ब्रिटिश एस्ट्रोनॉमर एडमंड हैली ने 24 कॉमेट्स की लिस्ट जारी की थी जिनमें उनके ऑर्बिट यानी कक्षा का जिक्र था. इस लिस्ट के आधार पर उन्होंने बताया वो कॉमेट्स जो 1531, 1607 और 1682 में धरती के ऊपर से गुजरे थे, उनकी ऑर्बिट्स काफी हद तक एक जैसी थी. इसी के आधार पर एडमंड हैली ने कहा कि संभवतः ये कोई एक ही कॉमेट है जो लगभग हर 76 साल में यहां से गुजरता है. साथ ही उन्होंने ये भी अनुमान लगाया कि अब ये कॉमेट एक बार फिर से 1758 में दिखाई दे सकता है.
समय बीता और एडमंड हैली अपनी भविष्यवाणी को देखने के लिए जीवित नहीं रहे. 1742 में उनकी मृत्यु हो गई. साल 1758 आया और चला गया, कोई कॉमेट आसमान में नहीं दिखा. मगर अगले ही साल, मार्च 1759 में वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि आसमान में एक पुच्छल तारा नजर आ रहा है. समझ में आया कि एडमंड हैली की गणना में कुछ साल ऊपर-नीचे होने की गुंजाईश तो है, मगर उनकी कॉमेट के लौटकर आने वाली बात सही थी. इसके बाद ही इस कॉमेट का नाम एडमंड हैली के नाम पर हैली कॉमेट पड़ा.
आखिरी बार कब आया था हैली?
साल 1986 में आखिरी बार हैली कॉमेट देखा गया था. इस कॉमेट को आधिकारिक रूप से 1पी/हैली कहा गया. इसे इतिहास का सबसे मशहूर कॉमेट भी कहा जाता है क्योंकि यह पहली बार था जब इसके बारे में पता लगाने के लिए पृथ्वी से स्पेसक्रॉफ्ट्स भेजे गए. स्पेसक्रॉफ्ट्स की इस फ्लीट ने पहली बार कॉमेट के कोर, कॉमा और इसकी चमकदार पूंछ की नजदीक से तस्वीरें ली. इस इवेंट को प्रेस में भी जमकर जगह दी गई और इसपर कई किताबें, डॉक्यूमेंटरीज और प्रोजेक्ट्स बने.
1986 में हैली कॉमेट पृथ्वी को बीच में रखते हुए सूर्य की उलटी दिशा में था. वहीं अगली बार यानी कि 2061 में आने वाला हैली कॉमेट सूर्य की ही दिशा में होगा जिसकी वजह से ये और भी ज्यादा चमकदार दिखेगा.
ये कहां से आता है और कहां चला जाता है?
हम सब के घर में कमरे के सबसे ऊपर वाले छज्जे पर हम वो खाली कार्टन्स, डब्बे और बेकार की चीजें रखते हैं जिनकी हमें रोजमर्रा की जिंदगी में जरूरत नहीं पड़ती. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एकाध डब्बे लुढ़ककर नीचे आ जाते हैं और फिर हम उन्हें सहेजकर ऊपर रख देते हैं. बिल्कुल यही हिसाब हैली कॉमेट का भी है. नेप्च्यून और प्लूटो की ऑर्बिट से बाहर सोलर सिस्टम एक ऐसा ही 'छज्जा' है जिसका नाम है - काइपर बेल्ट. ये ऐसी चीजों का समूह है जो सौर मंडल की उत्पत्ति के वक्त बची रह गईं. इसकी लोकेशन ऐसी है कि लगभग हर कुछ बर्फ सा जमा होता है. यहां से हैली कॉमेट अंडाकार ऑर्बिट में सूर्य का चक्कर लगाता है. इसी क्रम में इसे लगभग 76 साल लगते हैं. इसी चक्कर लगाने के दौरान जब ये पृथ्वी के नजदीक से गुजरता है तो लोग नंगी आंखों से हैली कॉमेट को देख पाते हैं.
9 दिसंबर की घटना के बाद अब लगभग 38 साल और लगेंगे हैली कॉमेट को दोबारा दिखाई देने में. उम्मीद है कि 2061 की जुलाई के अंत में लोगों को ये दिखेगा. सूर्य की दिशा में ही होने की वजह से अगली बार ये और भी चमकदार होगा मगर इसकी विजिबिलिटी में पृथ्वी पर मौजूद लाइट पॉल्यूशन भी अपनी अहम भूमिका निभाएगा.