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"गौतम गंभीर एक डुअल पर्सनैलिटी वाले इंसान हैं" - मनोज तिवारी

क्रिकेटर से राजनेता बने मनोज तिवारी इन दिनों चर्चा में हैं. करीब दो सप्ताह पहले पश्चिम बंगाल के खेल मंत्री तिवारी ने टीम इंडिया के हेड कोच गौतम गंभीर को 'ढोंगी' कहा था. अब उन्होंने अपने ताजा इंटरव्यू में गंभीर को 'डुअल पर्सनैलिटी' वाला इंसान करार दिया

(बाएं) मनोज तिवारी और (दाएं) गौतम गंभीर (ग्राफिक्स - नीलिमा सचान)
(बाएं) मनोज तिवारी और (दाएं) गौतम गंभीर (ग्राफिक्स - नीलिमा सचान)
अपडेटेड 23 जनवरी , 2025

क्रिकेटर से राजनेता बने मनोज तिवारी ने करीब दो हफ्ते पहले एक इंटरव्यू में भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच गौतम गंभीर पर तीखी टिप्पणी करते हुए उन्हें हिप्पोक्रिट (ढोंगी) बताया था. तिवारी का कहना था, "गौतम गंभीर एक ढोंगी हैं. वे जो कहते हैं, वैसा नहीं करते." तिवारी का यह बयान काफी वायरल हुआ, जिसके बाद क्रिकेट जगत के और भी लोगों की प्रतिक्रिया आई.

हावड़ा के शिबपुर से टीएमसी विधायक और बंगाल के खेल मंत्री मनोज तिवारी ने एक बार फिर अपने ताजा इंटरव्यू में गौतम गंभीर पर निशाना साधा. इंडिया टुडे (हिंदी) डिजिटल के सब एडिटर सिकन्दर के साथ बातचीत में उन्होंने कहा है कि गंभीर एक 'डुअल पर्सनैलिटी' वाले इंसान हैं. इस दौरान उन्होंने भारतीय टीम के स्टार कल्चर, गौतम गंभीर से जुड़े विवाद और क्षेत्रवाद पर खुलकर सवालों के जवाब दिए. इस बातचीत के संपादित अंश :

1. गौतम गंभीर के साथ आपका 'याराना' पुराना लगता है?

शुरुआती दौर में मेरी उनके साथ बहुत अच्छी बॉन्डिंग थी. केकेआर में भी बहुत दिनों तक सब ठीक रहा. लेकिन एक समय आया जब हम दोनों के रिश्तों में दरार पैदा होनी शुरू हुई. दरअसल, उस समय टीम में लोकल खिलाड़ी एक मैं ही था जो अच्छा प्रदर्शन कर रहा था. इस वजह से स्थानीय मीडिया में मुझे काफी तवज्जो भी मिल रही थी, स्टोरी और फोटो छप रही थीं. 

लेकिन मुझे लगता है कि शायद गंभीर को तब ये सब बहुत अनकम्फर्टेबल कर रहा था. इसलिए, खासकर मुझे वे कई बार बेमतलब डांट भी देते थे. जब पहली बार डांटा तो लगा कि हो सकता है उनका मूड खराब हो, लेकिन जब ये बारंबार हुआ तो मैं सोचने लगा कि आखिर इसके पीछे क्या वजह हो सकती है! मुझे अचानक बैटिंग क्रम में भी ऊपर से नीचे की ओर धकेला गया. 2012 में जब केकेआर फाइनल जीती, उसमें भी मैं ऊपर बैटिंग के लिए जाने वाला था लेकिन मुझे 7वें नंबर पर भेजा गया.

2. कोई किस्सा जब गंभीर ने आपको डांट लगाई?

साल 2013 की बात है. उस समय मैं टीम इंडिया में शामिल होने के लिए दौड़ में था. ऑस्ट्रेलिया टीम भारत में एक सीरिज खेलने आई थी. इंडिया-ए और ऑस्ट्रेलियाई टीम के बीच एक प्रैक्टिस मैच हुआ. उसमें गंभीर कप्तान  थे. मैंने उस मैच में 129 रन बनाए थे, गंभीर ने भी 112 रन बनाए. 

फील्डिंग के लिए जाने से पहले जब मैं अपने चेहरे पर जिंक लगा रहा था, तब गंभीर ने मुझे अचानक से एक डांट लगा दी - "ओए, क्या कर रहा है तू अंदर? चल." उस समय उनके इस तरह के रवैये से मुझे अपने प्रति थोड़ा खुंदक का आभास हुआ.  

3. क्या गौतम गंभीर तुनकमिजाज (जल्दी गुस्सा आना) हैं?

इसमें कोई दोराय है भला? असल में गंभीर एक डुअल पर्सनैलिटी हैं. जैसे अभी वे किसी को हाय-हैल्लो करेंगे और फिर ऐसा होगा कि दस मिनट बाद वे उस आदमी को पहचानेंगे भी नहीं. देखिए न, एक समय में वीरू भाई (वीरेंद्र सहवाग) के साथ उनका जो रिश्ता था, आज वो नहीं है. रजत भाटिया के साथ उनकी इतनी नजदीकी थी, आज नहीं है.

4. गंभीर को हिप्पोक्रिट कहने के बाद फिर सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ी?

सफाई नहीं दी मैंने. घर पर बैठा हुआ मैं ट्विटर (अब एक्स) स्क्रॉल कर रहा था तो देखा कि आकाश चोपड़ा ने अपनी एक वीडियो में मेरा नाम लिया हुआ है. मुझे लगा कि इस पर जवाब तो देना चाहिए. नाम लेकर कोई ऊपर ही ऊपर कैसे निकल सकता है! क्योंकि इससे लोगों के पास गलत मैसेज जाता है.

आकाश ने कहा कि मैंने गंभीर की आलोचना में गावस्कर, संजय मांजरेकर की तरह बहती गंगा में हाथ धोया. भई, मेरे पास इतना टाइम थोड़े ही है कि कोई क्या बोल रहा है उस पर ध्यान लगाए रखूं! मुझे लगा कि बोलना चाहिए क्योंकि जिस चीज पर बात होनी थी, वो सामने नहीं आ रही थी.

5. क्या क्रिकेट में क्षेत्रवाद अपनी अहमियत रखता है? जैसे दिल्ली वालों का फेवर दिल्ली वाले और मुंबई वालों का फेवर मुंबई वाले करते हैं या इसी तरह और भी जगह?

है, ये तो साफ दिखता भी है. देखिए कि गंभीर के फेवर में आकाश आए न? फिर हर्षित राणा भी आए, नीतीश राणा भी आए. आप बताओ कि ये तनुष कोटियन (मुंबई के ऑफ स्पिनर) कैसे आया टीम में? जलज सक्सेना तो कब से खेल रहे हैं.

प्रथम श्रेणी मैचों में जलज के 450 से ज्यादा विकेट हैं, छह हजार से ज्यादा रन बनाए हैं. इसमें कोई शक नहीं कि तनुष अच्छे क्रिकेटर हैं, लेकिन वे टीम में इसलिए आए कि कप्तान मुंबई से हैं, असिस्टेंट कोच वहां से हैं और चीफ सिलेक्टर वहीं से हैं. हर्षित राणा को गंभीर ने ही पुश किया. लेकिन हमारे वहां ईस्ट में पुश नहीं होता, पुल (टांग खींचकर नीचे गिराना) होता है. 

6. टीम इंडिया में 'स्टार कल्चर' क्या पहले से रहा है, बीसीसीआई के नए नियमों से कुछ बदलेगा?

हां, ये तो पहले से ही रहा है. और स्टार तो मीडिया वाले ही बनाते हैं. खिलाड़ी का एक अच्छा प्रदर्शन हुआ नहीं कि सातवें आसमान पर पहुंचा देते हैं. और एक खराब प्रदर्शन ने जमीं पर ला देते हैं. स्टार कल्चर वहीं से पनपता है. अब प्लेयर को पता है कि भाई एक इनिंग से मैं ऐसा हो गया हूं, तो वह बिहैव भी वैसा ही करेगा न?

जब आपको खूब वाहवाही, नोटिस मिलने लगती है तो आप खुद को वैसा ही सोचने लगते हैं और वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं. लेकिन अनुशासन जरूरी है. जैसे खिलाड़ी टीम बस में एक साथ न जाकर अलग-अलग जाते हैं, ये नहीं होना चाहिए.

7. आपका निकनेम 'छोटा दादा' क्या इसलिए पड़ा कि रणजी में आपने सौरव गांगुली को रिप्लेस किया था?

रिप्लेस नहीं किया था. 2006-07 में हमलोग रणजी ट्रॉफी का फाइनल (बंगाल बनाम मुंबई) खेल रहे थे. तब मुंबई की टीम लगभग टीम इंडिया ही थी. सचिन से लेकर अजित अगरकर, जहीर खान, रमेश पोवार ये सभी खेल रहे थे. 

हालांकि वो मैच हमलोग हार गए थे लेकिन उसमें दादा (सौरव गांगुली) और मेरे बीच शतकीय साझेदारी हुई थी. उस मैच में मैंने दोनों पारियों में 42 और 94 रन बनाए थे. इसके बाद मीडिया वालों ने मुझे भी 'छोटा दादा' कहना शुरू कर दिया कि 'आया है कोई छोटा दादा'.

8. क्या दौरे पर परिवार वालों के जाने से खिलाड़ियों के खेल पर असर पड़ता है?

नहीं, मुझे नहीं लगता. बल्कि परिवार वालों को जाना चाहिए. हां टीम के साथ नहीं, उनलोगों के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए. क्योंकि इतने सारे मैच होने लगे हैं कि खिलाड़ियों को घर जाने का पर्याप्त टाइम नहीं मिलता. आप अपने माइंड को बेस्ट तभी रख सकते हैं जब आप अपने करीबी लोगों के साथ मौजूद रहें. 

9. राजनीति तो आप एन्जॉय कर रहे हैं, पर क्रिकेट में तकदीर को लेकर शिकायत रही है?

तकदीर का रोल तो है, लेकिन कभी शिकायत नहीं रही. लोगों ने मुझसे सहानुभूति जताई जब मैं नेशनल टीम में सिलेक्शन से पहले चोटिल हो गया था. शतक बनाने के बावजूद मुझे काफी लंबे गैप के बाद टीम में खिलाया गया.  

10. क्रिकेट और पॉलिटिक्स में क्या समानताएं और असमानताएं देखते हैं?

दोनों टीम गेम है. मेरे लिए थोड़ा सा फायदेमंद है क्योंकि बचपन से ही क्रिकेट फील्ड में कप्तानी किया हूं. हां, क्रिकेट में जहां 15 या 16 लोगों को देखना पड़ता था, अब विधायक बनने के बाद ढाई लाख लोगों के निर्वाचन क्षेत्र को देखना पड़ता है.

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