भजन आमतौर पर बुजुर्गों और जिंदगी की शाम में पनाह लिए लोगों की भक्ति और उनके सुकून का जरिया समझे जाते हैं. लेकिन अनूप जलोटा, भजन गायकी की दुनिया में एक ऐसे नाम रहे हैं जिन्होंने अपनी सिंगिंग से न सिर्फ इस खांचे को तोड़ा, बल्कि भक्ति संगीत का हर उम्र के लोगों तक विस्तार किया है. उनका गाया भजन "ऐसी लागी लगन" सुनकर भला कौन नहीं झूमने लग जाता.
अनूप जलोटा के गायन के प्रति लोगों की यह दीवानगी सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. पिछले पांच दशकों से वे देश-विदेश में कई लाइव प्रस्तुति देते आ रहे हैं. भजन के अलावा उन्होंने गजल और कई मशहूर फिल्मी गीतों को भी अपनी आवाज दी है. उनके अब तक 1200 से अधिक भजन और 150 से अधिक गजल एलबम रिलीज हो चुके हैं.
लेकिन इनमें सबसे ज्यादा ख्याति उन्हें अपनी भजन गायकी से मिली है. दुनिया उन्हें 'भजन सम्राट' कहती है. अनूप जलोटा के पिता स्वर्गीय पुरुषोत्तम दास जलोटा खुद भी भजन गायकी के सबसे बड़े नामों में से एक रहे हैं. हाल में अनूप जलोटा ने इंडिया टुडे हिंदी (डिजिटल) के सब-एडिटर सिकन्दर के साथ अपनी सिंगिंग और निजी जीवन को लेकर दिलचस्प बातचीत की. इसके संपादित अंश:
● आपका गायन के क्षेत्र में कैसे आना हुआ, और अब भजन सम्राट कहलाने पर कैसा महसूस होता है?
हमारे परिवार में ही संगीत है. मेरे पिताजी (पुरुषोत्तम दास जलोटा) बहुत निपुण शास्त्रीय और भजन गायक रहे हैं. उनसे ही हम सीखते थे. उनको उनके शास्त्रीय गायन के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री दिया. फिर मुझे भी मिला. इस तरह हम दोनों पिता-पुत्र पद्मश्री हो गए. जब परिवार में संगीत हो, तो संगीत क्षेत्र में अपना स्थान बनाना थोड़ा आसान हो जाता है.
● आपने भजन के अलावा फिल्मी गीत भी गाए. सबसे चैलेंजिंग क्या है - भजन या फिर फिल्मी गीत गाना?
फिल्मी गीत गाना ज्यादा मुश्किल काम है. क्योंकि हम लोग जो कार्यक्रम करते हैं पूरे दो तीन घंटे का, और उससे जो असर पैदा होता है. वैसा असर लता जी (स्वर्गीय लता मंगेशकर) और आशा जी (भोंसले) जैसी सिंगर तीन मिनट में पैदा कर देती हैं. उनके गाने में जो परफेक्शन होता है, वो पहले सेकंड और पहले सुर से सामने आ जाता है. हम लोग जरा मूड बनाते हैं, थोड़ा आलाप लेते हैं. जो लोग ये समझते हैं कि प्लेबैक सिंगिंग आसान काम है तो मैं कहना चाहूंगा कि असल में ऐसा है नहीं.
● आपका गाया "ऐसी लागी लगन" एक तरह से भजन की दुनिया में एंथम सॉन्ग बन चुका है. आपका पसंदीदा भजन कौन सा है?
यही है, जिसका आपने जिक्र किया. यही सबसे ज्यादा पॉपुलर हुआ, और इसी से मैं जाना जाता हूं. (भजन गुनगुनाते लगते हैं)
● एक सवाल मौजूदा सरकार को लेकर है जिसके सपोर्ट में आप काफी मुखर नजर आते हैं. सबसे अच्छी बात क्या लगती है मोदी सरकार की?
जैसे हर किसी के खून में एक तत्त्व होता है, हमारे खून में संघ है, संघ परिवार है. जनसंघ, जो अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हो गया. जैसे हनुमान जी ने जब सीना चीर कर दिखाया तो अंदर भगवान राम और सीता जी बैठे थे, हमारे खून को भी टेस्ट करेंगे तो उसमें जनसंघ की खुशबू आ जाएगी.
● ईश्वर की नेमत से आपके पास पैसा और शोहरत दोनों है, फिर भी आप किराए के घर में रहते हैं. इसके पीछे क्या सोच है?
मुझे लगता है कि जियो तो ऐसे जियो कि सब कुछ तुम्हारा है, और मरो तो ऐसे कि जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं. ये प्रॉपर्टी वगैरह व्यापारी लोगों के लिए ठीक है. उन्हें रखनी चाहिए क्योंकि उनका व्यापार आगे चलना है. मेरा बेटा अमेरिका के न्यूयॉर्क में रहता है. एक बैंक में उसकी बहुत अच्छी जॉब है. वह मुझसे कहता है कि मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए. मैं उससे कहता हूं कि मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए. दोनों अपने में प्रसन्न हैं.
मैं यहां अगर कोई प्रॉपर्टी बनाता हूं, और जब मैं नहीं रहूंगा संसार में, तो उसको (बेटे को) आकर दो-चार या छह महीने खराब करने पड़ेंगे वो सब प्रॉपर्टी को बेचने में. जब कुछ होगा ही नहीं, तो उसे ये परेशानी उठानी नहीं पड़ेगी. मुझे कोई भी प्रॉपर्टी नहीं चाहिए, और आगे भी ऐसे ही चलेगा.
● उम्र के इस पड़ाव में, जब आप 71 साल के हैं, बिना परिवार और दोस्त के आपके लिए अकेले रहना काफी मुश्किल होता होगा?
अकेले मैं रहता ही नहीं. मेरे घर में लंच पर 20-25 लोग होते हैं, डिनर पर भी इतने रहते हैं. घर में मेरी खूब पार्टियां चलती रहती हैं, जिनमें 50-60 लोग आते हैं. मेरे स्टूडेंट्स सुबह से शाम तक गाना गाते रहते हैं, रियाज करते हैं. जब मैं मुंबई में होता हूं तब भी वे रहते हैं, और जब नहीं हूं तब भी वे आते रहते हैं. मैं समय ढूंढ़ता रहता हूं कि मुझे अकेले रहने के लिए कुछ वक्त तो मिले! मेरा जीवन बहुत ही व्यस्त और लोगों में घिरा रहता है.
● अपने यहां कहा जाता है कि "भूखे पेट भजन न होय गोपाला", भजन और भोजन में आप सबसे ज्यादा जरूरी किसे मानते हैं?
इंसान की सबसे पहली जरूरत भोजन है. चाहे वो कोई पत्रकार हो, मेरी तरह गायक हो या फिर कोई राजनेता हो, उसको सबसे पहले चाहिए खाना. भोजन के बाद चाहिए कपड़ा और फिर मकान. ये तो हो नहीं सकता कि किसी को खाना न मिल रहा हो, और उसे मंत्री बनना हो. या किसी को बहुत बड़ा सिंगर बनना हो, और उसे खाना न मिल रहा हो.
मैं खाने का बहुत शौकीन हूं. मैं हर तरह का खाना खाता हूं, तरह-तरह के रेस्टोरेंट में जाता हूं और सिर्फ देश में नहीं, विदेश में भी. मैं तलाश करता हूं कि जैपनीज का सबसे अच्छा रेस्टोरेंट कौन है, चाइनीज का कौन है और थाई का कौन? सबसे अच्छा कोरियन रेस्टोरेंट कौन है, इंडियन कौन-सा है? ढूंढ़-ढांढ़ कर मैं वहां पहुंच जाता हूं. मैं और मेरा बेटा खाने के बहुत शौकीन हैं. हम जो कमा रहे हैं, वो खाने के लिए ही कमा रहे हैं.