समय-पूर्व तरुणाई का मतलब है लड़कियों में आठ वर्ष की उम्र से पहले और लड़कों में नौ वर्ष की उम्र से पहले यौवनावस्था में कदम रखना और युवावस्था जैसे यौन लक्षणों का विकास शुरू होना. भारत में पहली माहवारी की औसत आयु पहले लगभग 14-16 वर्ष हुआ करती थी, जो घटकर अब लगभग 12 वर्ष रह गई है. और कुछ मामलों में तो सात वर्ष की उम्र में ही लड़कियों में यौवनावस्था के लक्षण दिखने लगते हैं. मुंबई स्थित सैफी अस्पताल के नवजात एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अतीक अहमद ऐसे मामलों के बढ़ने के कारण बता रहे हैं :
एक बढ़ती चिंता: समय से पहले युवावस्था में कदम रखते बच्चे शारीरिक के साथ-साथ भावनात्मक स्तर पर भी बदलाव झेलते हैं. एक छोटी-सी अवधि में वे अपने साथियों की तुलना में लंबे हो सकते हैं. लेकिन इतना तेज विकास आगे चलकर उनकी वृद्धि रोक सकता है. और, नतीजतन उनका कद छोटा रह सकता है. मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी उतनी ही गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर सकते हैं.
अपनी जैसी ही आयु के बच्चों से ज्यादा तेजी से बड़े होने वाले बच्चे शर्मिंदगी, चिंता और अवसाद के शिकार बन सकते हैं. सामाजिक-भावनात्मक और शारीरिक विकास में असंतुलन व्यवहार संबंधी दिक्कतें उत्पन्न कर सकता है, जिससे उनके ड्रग्स की तरफ बढ़ने या व्यवहार संबंधी समस्याएं सामने आने का खतरा रहता है.
क्या इसकी वजह अलगाव और बढ़ता स्क्रीन-टाइम है? : समय-पूर्व यौवन (सीपीपी) मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, खासकर कोविड-19 महामारी आने के बाद से. इस महामारी के दौरान देशभर में स्कूल बंद रहे और 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लंबे समय तक घर में कैद होकर रहना पड़ा. लंबे समय तक अलग-थलग रहने की इस अवधि के दौरान ही ऐसे मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.
हालांकि, इस वृद्धि का कोई खास कारण सामने नहीं आया लेकिन कई पहलुओं से पड़ताल जारी है. एक प्रमुख सिद्धांत बताता है कि डिजिटल स्क्रीन पर बढ़ता समय एक कारण हो सकता है. शोध में पाया गया कि महामारी के दौरान बच्चों का स्क्रीन-टाइम लगभग 2.5 गुना बढ़ गया था. माना जा रहा है कि टेलीविजन से लेकर टैबलेट तक तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ लंबे समय तक संपर्क में रहना सीपीपी की बढ़ती घटनाओं में एक कारक हो सकता है.
पोषण की कमी: बहुत संभव है कि कोविड लॉकडाउन के दौरान हमारी जीवनशैली में आए अन्य बदलाव भी इस वृद्धि की एक वजह हों. क्योंकि उस दौरान बच्चों की शारीरिक गतिविधियां काफी हद तक घट गई थीं और उनका ज्यादातर समय घर के भीतर ही बीतता था, जिससे विटामिन डी मिलने में व्यापक कमी आई.
इस दौरान खानपान की आदतें भी काफी बदलीं और खाना एक मनोरंजन का साधन बन गया. कई शोधकर्ता इस पर जोर देते हैं कि मीठे स्नैक्स, उच्च कैलोरी वाले प्रसंस्कृत उत्पादों और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों का सेवन लगातार बढ़ा. इससे बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ी, और इसका नतीजा खासकर लड़कियों में यौवन की जल्द शुरुआत के तौर पर सामने आया.
नींद में कमी: लॉकडाउन के दौरान नींद के चक्र में भी खासे बदलाव देखे गए, जैसे बच्चों का सोने का समय घटा और अच्छी नींद आना भी कम हो गया. एक क्लीनिकल ओपिनियन की मानें तो मनोवैज्ञानिक बदलाव, तकनीकी प्रभाव या इन सबका मिलाजुला असर जल्द तरुणाई के लक्षणों के तौर पर सामने आया. हालांकि, किसी निश्चित नतीजे पर पहुंचने के लिए हमें ठोस साक्ष्य सामने आने का इंतजार करना होगा.
कोविड-19 के जैविक प्रभाव: कुछ शोधकर्ता इसका पता लगाने में जुटे हैं कि क्या सार्स-कोव-2 वायरस ने सूंघने की क्षमता घटाकर, मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित करके साइटोकाइन स्टॉर्म जैसी व्यापक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से यौवन से जुड़े तंत्रिका तंत्र को सीधे प्रभावित किया. हालांकि, इसकी पुष्टि के लिए अभी शोध जारी है.
समय-पूर्व यौवन से कैसे निपटें: हालांकि, शुरुआती मामलों को रोका तो नहीं जा सकता. फिर भी, माता-पिता अपने बच्चों को समय से पहले युवा होने के खतरों से बचाने के लिए व्यावहारिक रणनीतियां अपना सकते हैं. बच्चों में स्वस्थ आदतों को बढ़ावा देना सबसे ज्यादा जरूरी है.
मसलन, पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना; नियमित व उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी; स्क्रीन-टाइम घटाना; और भरपूर नींद लेने की आदत डालना, हार्मोन पर प्रतिकूल असर डालने वाले रसायनों के संपर्क को सीमित करना आदि. बच्चों को खुलकर बातचीत करने वाला माहौल देना भी उन्हें बदलावों से निपटने में सक्षम बनाने में मददगार हो सकता है.