
साल 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों को भारतीय विद्रोह की तीव्रता की थाह लग चुकी थी. इधर भारतीयों को भी अहसास हुआ कि अगर अपनी आवाज ब्रितानी हुकूमत तक पहुंचानी है, तो एक साझा छतरी के नीचे आना होगा. इस क्रम में राजा राममोहन रॉय पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत में राजनैतिक सुधारों के लिए आंदोलन चलाया. 1836 के बाद देश के अलग-अलग भागों में अनेक सार्वजनिक समितियां स्थापित हुईं.
1866 में लंदन में दादाभाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की, तो 1870 में जस्टिस रानाडे और उनके साथियों ने पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की. इनमें सबसे महत्वपूर्ण कलकत्ता का इंडियन एसोसिएशन (1876) था, जिसकी स्थापना सुरेंद्रनाथ बनर्जी और आनंद मोहन बोस ने की थी. पर इनमें से कोई भी संगठन अखिल भारतीय स्तर पर सामने नहीं आ पा रहा था. ऐसे में इन सबको एक छतरी के नीचे लाने का काम किया आयरलैंड के एक रिटायर्ड सिविल सर्वेंट ने, जिनका नाम था- ए. ओ. ह्यूम.

कांग्रेस निर्माण में ए.ओ. ह्यूम की भूमिका और "सेफ्टी वॉल्व" सिद्धांत
वैसे तो एक अखिल भारतीय संगठन बनाने की योजनाएं लंबे समय से भारतीय करते आ रहे थे. लेकिन इस विचार को एक ठोस और अंतिम रूप देने का काम एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने किया. उन्होंने प्रमुख भारतीय नेताओं से संपर्क किया और उनके सहयोग से मुंबई (तब बंबई) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में साल 1885 में 28 दिसंबर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन हुआ.
उस समय कांग्रेस का उद्देश्य औपनिवेशिक शासन को समाप्त करना नहीं था, बल्कि भारतीयों के पक्ष में ब्रिटिश नीतियों को प्रभावित करना था. उस समय ये भी कहा गया कि ह्यूम ने जानबूझकर कांग्रेस का निर्माण एक "सेफ्टी वॉल्व" के रूप में किया, जिससे होकर भारतीयों का गुस्सा और निराशा बाहर निकल सकती थी और 1857 जैसी क्रांति को दोबारा होने से रोका जा सकता था.
हालांकि, "सेफ्टी वॉल्व" की यह अवधारणा पूरी तरह से सही मालूम नहीं पड़ती. उस समय भारतीयों को भी एक राष्ट्रीय पार्टी की जरूरत थी, और उन्होंने ह्यूम की सहायता जानबूझकर इसलिए ली कि वे राजनीतिक कार्यकलाप की शुरुआत में ही अपने प्रयासों के प्रति सरकार की शत्रुता मोल नहीं लेना चाहते थे. इतिहासकार विपिन चन्द्रा के मुताबिक, "अगर ह्यूम कांग्रेस का उपयोग एक "सेफ्टी वॉल्व" के रूप में करना चाहते थे तो कांग्रेस के आरंभिक नेताओं को आशा थी कि वे ह्यूम का उपयोग एक उत्प्रेरक के रूप में कर सकेंगे."
जनआंदोलन के रूप में कांग्रेस
अपनी स्थापना के अगले 20 सालों तक कांग्रेस का रवैया काफी ढुलमुल रहा. 1905 में बंगाल विभाजन के अगले दो साल बाद 1907 में कांग्रेस का भी विभाजन हो गया. गरम दल और नरम दल के दो फाड़ों में बंटी कांग्रेस अभी भी शिथिल नजर आ रही थी. दोनों धड़े एक-दूसरे की शिकायत में लगे हुए थे. अब दृश्य पटल पर महात्मा गांधी का आगमन होने वाला था. गांधी ने 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस के विभाजित दोनों धड़ों को आपस में मिला दिया.
अब तक कांग्रेस आम लोगों के बीच नहीं पहुंच पाई थी. गांधी ने कांग्रेस को खास लोगों के हाथों से लेकर इसे जन-जन तक पहुंचाने का काम किया. कांग्रेस अब आंदोलन का प्रतीक बनती जा रही थी, जिसके मुखिया महात्मा गांधी थे. असहयोग से शुरू हुआ सफर नमक सत्याग्रह तक पहुंचा और इस दौरान कांग्रेस घर-घर तक पहुंच चुकी थी.
आजादी से पहले कांग्रेस में नेहरू परिवार की भूमिका
साल 1919 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू अध्यक्ष बने. यह पहली बार था जब नेहरू परिवार का कोई सदस्य अध्यक्ष बना था. साल 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में एक बार फिर मोतीलाल अध्यक्ष बने. साल 1929 में उनके बेटे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की. यह वही अधिवेशन था, जिसमें पहली बार पूर्ण स्वराज की मांग की गई. 1929 और 1930 लगातार दो साल अध्यक्ष रहने के बाद पंडित नेहरू साल 1936 और 1937 में भी कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर रहे.
आजादी के बाद पार्टी के रूप में कांग्रेस
जब देश को आजादी मिली तो गांधी ने सुझाव दिया कि कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए. 1950 में गांधी की हत्या हो गई. साल 1951 में कांग्रेस की कमान एक बार फिर पंडित नेहरू के हाथों में पहुंची. कांग्रेस अब एक राजनीतिक पार्टी बन चुकी थी, और बन चुकी थी नेहरू खानदान की विरासत. हालांकि आजादी के बाद भी कांग्रेस को कई झटके खाने पड़े. आजादी से पहले दो बार टूट झेलने वाली पार्टी आजादी के बाद अब तक 62 बार टूट का सामना कर चुकी है.
साल 1969 में तो ऐसा हुआ कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी को ही पार्टी से बाहर कर दिया. तब इंदिरा ने नई पार्टी कांग्रेस (आर) बनाई थी. 1978 में इंदिरा ने कांग्रेस (आर) छोड़कर एक और पार्टी बनाई, नाम था- कांग्रेस (आई). 1998 में फिर से पार्टी में बड़ी टूट हुई, और शरद पवार और ममता बनर्जी ने पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई.
1885 में पहले अध्यक्ष रहे व्योमेश चंद्र बनर्जी से अब तक 57 लोग पार्टी के अध्यक्ष पद पर रह चुके है. सबसे नवीन नाम मल्लिकार्जुन खड़गे का है, जिन्होंने अक्टूबर, 2022 में अध्यक्षता संभाली. इन्हीं के नेतृत्व में पार्टी अपना 139वां स्थापना दिवस मना रही है. इस अवसर पर आज नागपुर में 'हैं तैयार हम' नारे के साथ महारैली का आयोजन किया गया. इस दौरान खड़गे ने कहा, "स्थापना दिवस पर हम सब मिलकर देश को एक संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी अपने विचारधारा से कभी भी नहीं झुकने वाली है." ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आगामी लोकसभा में पार्टी कितना खड़ा हो पाती है.

