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जब पेशवा नाना साहब की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजों ने हजारों किलो चांदी का इनाम रखा!

पेशवा नाना साहब पर इनाम की घोषणा करने वाला ‘विज्ञापन’ और ऐसी कई अन्य अमूल्य वस्तुएं ‘1857 के युद्ध’ पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में राजकीय अभिलेखागार निदेशालय में एक अनोखी प्रदर्शनी के जरिए दिखाई जा रही हैं

Peshwa Nana Saheb
पेशवा नाना साहब पर इनाम की घोषणा वाला इश्तेहार
अपडेटेड 4 मई , 2025

1857 के युद्ध के दौरान तत्कालीन कानपुर में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारतीय सेना का नेतृत्व कर रहे नाना साहब पेशवा ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. नाना साहेब ने ब्रिटिश सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया और कुछ समय के लिए कानपुर की बागडोर संभाली थी. 

अंग्रेजी सेना नाना साहब की तलाश में जी-जान से जुटी थी. अंग्रेजों के लिए नाना साहब कितने ‘वॉन्टेड’ थे इसकी स्पष्ट जानकारी लखनऊ के महानगर में स्थ‍ित राजकीय अभि‍लेखागार के शहीद स्मृति भवन में चल रही प्रदर्शनी में मिलती है. यहां एक कोने पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 28 फरवरी 1858 के एक इश्ति‍हार का प्रदर्शन किया गया है जिसमें उनकी गिरफ्तारी के लिए इनाम घोषित किया गया था. 

ईस्ट इंडिया कंपनी के इस विज्ञापन में नाना साहब पेशवा को गिरफ्तार करने में मदद करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए 1 लाख रुपये के भारी इनाम की घोषणा की गई थी. एक लाख रुपए आज भी कम नहीं होते और उस दौर का तो क्या ही कहना! हालांकि इनाम की घोषणा अंग्रेजों के काम नहीं आई क्योंकि पेशवा को अंग्रेज कभी पकड़ नहीं पाए. लेकिन उस वक्त एक लाख रुपए के इनाम की घोषणा यह बताती है कि नाना साहब पेशवा को अंग्रेजों ने कैसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. 

लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील कुमार पांडेय के मुताबिक 1857 के स्वतंत्रता संगाम के दौरान प्रचलित एक रुपये का सिक्का 11.66 ग्राम शुद्ध चांदी से बना होता था. इसका मतलब है कि उस समय एक लाख रुपये की कीमत करीब 11,600 किलोग्राम चांदी के बराबर थी. पांडेय के मुताबिक वर्तमान में लखनऊ में चांदी की कीमत 98,500 रुपए प्रति किलो है, ऐसे में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान का एक लाख रुपए आज के करीब 114.26 करोड़ रुपये के बराबर हैं. यह इनामी राशि स्वयं अंग्रेजों के बीच नाना साहब की अहमियत को दिखाती है. 

नाना साहब की गिरफ्तारी का ‘विज्ञापन’ और ऐसी कई अन्य अमूल्य वस्तुएं ‘1857 के युद्ध’ पर यूपी के लखनऊ स्थ‍ित राजकीय अभिलेखागार निदेशालय में अनोखी प्रदर्शनी के जरिए प्रदर्श‍ित की गई हैं. यूपी राज्य अभिलेखागार की 76वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित इस प्रदर्शनी में कुल 60 प्रकार के वे प्रदर्श रखे गए हैं जिनका मूल रिकार्ड भी अभिलेखागार के पास मौजूद है. 

उत्तर प्रदेश के राजकीय अभिलेखागार में लगी प्रदर्शनी
उत्तर प्रदेश के राजकीय अभिलेखागार में लगी प्रदर्शनी

प्रदर्शनी में एक अन्य डिस्प्ले में 25 फरवरी, 1858 को भारत के तत्कालीन  गवर्नर जनरल को कमांडर इन चीफ का एक टेलीग्राफिक संदेश, अवध की बेगम हजरत महल की बहादुरी का प्रमाण है, जिन्होंने लखनऊ में जेम्स आउट्रम की कमान वाली ब्रिटिश सेना के खिलाफ हाथी पर हमला किया था. मूल टेलीग्राफिक संदेश के डिस्प्ले में लि‍खा है “दुश्मन ने आज सुबह भी उसी तरह हमला किया जैसा कि रविवार को किया था. उनकी टुकड़ियां हमारे दाहिने पीछे की ओर बहुत ताकत के साथ थीं. घुड़सवार सेना, तोपखाना और पैदल सेना ने अवरोध पैदा करने के लिए आगे बढ़े,  दो तोपें लीं और बहुत से लोगों को काट डाला. बेगम और उनके कुछ प्रमुख अधिकारी हाथियों पर सवार होकर मैदान में मौजूद थे. जहां तक अभी तक ज्ञात है, हमारे दो सैनिक मारे गए और छह या आठ घायल हुए. इनमें कर्नल बर्कले और कैप्टन मूरसन मामूली रूप से घायल हुए." 

अवध की बेगम हजरत महल के अंग्रेजों पर हमले का टेलीग्राफिक संदेश
अवध की बेगम हजरत महल के अंग्रेजों पर हमले का टेलीग्राफिक संदेश
तात्या टोपे की गिरफ्तारी का तार
तात्या टोपे की गिरफ्तारी का तार

यूपी राज्य अभि‍लेखागार के आर्किविस्ट अमिताभ पांडेय बताते हैं, “प्रदर्शनी में उन्हीं डिस्प्ले को रखा गया है जिनके मूल रिकार्ड अभिलेखागार के पास हैं.” ऐतिहासिक अभिलेखों को एक स्थान पर केन्द्रित करने और उनके संरक्षण के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश आधिकारिक अभिलेख की स्थापना 02 मई, 1949 को इलाहाबाद के सेंट्रल रिकार्ड्स डोमिनिक के रूप में हुई थी. जुलाई, 1973 में यह आर्काइव, लखनऊ में अपने फ़्लॉपी भवन में स्थानान्तरित किया गया.

फिलहाल उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेख, संस्कृति विभाग के अधीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नियंत्रित राजकीय संस्था है. यहां पर निजी सोर्स से प्राप्त 1540 ईस्वी से जारी फरमान संरक्ष‍ित है जबकि वर्ष 1803 से सभी रिकार्ड संरक्ष‍ित हैं जिनमें म्युटिनी टेलीग्राम (रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु से संबंधित टेलीग्राम अत्यंत महत्वपूर्ण है), अवध के विभिन्न जिलों के अभिलेख, अवध के जमींदारों एवं गोदामों की जब्ती की खोई हुई भूमि संबंधी अभिलेख, अवध के सेटलमेंट से संबंधित अभिलेख, बिरजिस कद्र द्वारा चलाए गए सिक्कों से संबंधित अभिलेख, बेगम हजरत महल की माफी जायदाद से संबंधित अभिलेख, लखनऊ के ऐतिहासिक स्थापत्य से संबंधित अभिलेख समेत कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज संरक्ष‍ित हैं. 

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