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नौ साहित्य अकादमी विजेता और 200 से ज्यादा किताबों की प्रकाशक मैथिली अकादमी बंद!

बिहार की राजधानी पटना में बनी मैथिली अकादमी से चार साल से कोई किताब नहीं छपी और यहां कोई स्टाफ भी नहीं है जो पुरानी बेस्ट सेलर किताबें बेच सके. इन हालात में मैथिली विषय पढ़ने वाले हजारों छात्र परेशान हैं

49 साल पुरानी मैथिली अकादमी में नहीं बचा एक भी स्टाफ
अपडेटेड 19 दिसंबर , 2025

विवेकानंद सुंदर पटना कॉलेज में मैथिली विषय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं. वे कहते हैं, “हमारे कोर्स में हर सेमेस्टर में हमें मैथिली की पांच-छह किताबें खरीदनी पड़ती हैं. पहले ये किताबें मैथिली अकादमी में आसानी से काफी कम कीमत में मिल जाती थी. अब जब से मैथिली अकादमी में किताबें बिकनी बंद हो गई हैं, हमें किताबों के लिए जहां-तहां भटकना पड़ता है. किसी के पास पुरानी किताब मिलती है, तो उसे फोटोकॉपी कराते हैं. जो किताबें मैथिली अकादमी में दो से ढाई सौ रुपए में मिल जाती थीं, उसे फोटोकॉपी कराने पर सात से आठ सौ रुपये का खर्चा आ रहा है. अब समझिए कि हमारा खर्चा कितना बढ़ गया है.”

विवेकानंद इस संकट से जूझने वाले अकेले छात्र नहीं हैं. बिहार-झारंखड और दिल्ली के कई विश्वविद्यालयों में ऐसे हजारों छात्र हैं जो मैथिली विषय की पढ़ाई कर रहे हैं. इनके अलावा ऐसे छात्रों की भी बड़ी संख्या है जिन्होंने वैकल्पिक भाषा के तौर पर मैथिली को एक विषय के रूप में चुना है. इन तमाम छात्रों के पाठ्यक्रम में जो किताबें शामिल हैं, उनमें से आधे से अधिक का प्रकाशन बिहार की राजधानी में पिछले 49 सालों से संचालित हो रही मैथिली अकादमी ने ही किया है और वही इन छात्रों को ये किताबें उपलब्ध कराती हैं. 

इनके अलावा मैथिली विषय से संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) और बिहार लोकसेवा आयोग (BPSC) की परीक्षाएं देने वाले छात्रों के लिए भी पाठ्यपुस्तकें हासिल करने की इकलौती जगह यही मैथिली अकादमी है. मगर पिछले तकरीबन छह महीने से यह अकादमी लगभग बंद पड़ी है. यहां किताबें हैं, मगर इन्हें बेचने वाला कोई स्टाफ नहीं है. इस अकादमी के इकलौते स्टाफ को शिक्षा विभाग ने सचिवालय में डेपुटेशन पर भेज दिया है और विभाग के इस फैसले से मैथिली भाषा की पढ़ाई करने वाले हजारों छात्र परेशान हैं.

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से मैथिली विषय में पीएचडी कर रही प्रियंका मिश्र कहती हैं, “मेरी तरह के जितने रिसर्च स्कॉलर हैं, सबको कठिनाई हो रही है. मुझे जब भी कुछ लिखना होता है, उसके लिए कई तरह की रेफरेंस बुक की जरूरत होती है. पहले मेरे लिए मैथिली अकादमी एक बड़ा सहारा था, अब ऐसी सरल और सहज कम जगहें ही बची हैं. इस अकादमी की शुरुआत मैथिली भाषा के संवर्धन के लिए की गई थी, पता नहीं अचानक सरकार ने इसे क्यों बंद कर दिया.”

राजधानी पटना के सैदपुर स्थित शिक्षा विभाग के एक परिसर में यह मैथिली अकादमी पिछले कुछ वर्षों से संचालित हो रही है. वहां जाने पर तीन अलग-अलग कमरों में बिहार की छह अलग-अलग भाषाई अकादमियां संचालित होती नजर आती हैं. इनमें भोजपुरी-मगही एक कमरे में, संस्कृत एक कमरे में और मैथिली-बांग्ला अकादमी एक कमरे में है. एक अन्य अंगिका अकादमी भी बिहार सरकार ने लगभग एक दशक पहले शुरू की थी, उसे आज तक कमरा अलॉट नहीं हुआ. 

यहां इन छह अकादमियों को संचालित कर रहे चार कर्मी नजर आते हैं. इनमें से दो संस्कृत में, एक भोजपुरी अकादमी और एक बांग्ला अकादमी में कार्यरत हैं. इनमें तीन चतुर्थ वर्गीय कर्मी हैं और एक लिपिक. मैथिली, मगही और अंगिका अकादमी में कोई स्टाफ नहीं है. 

ये सभी भाषाई अकादमियां दशकों से इसी तरह संचालित हो रही है. हालांकि मैथिली की स्थिति इनमें थोड़ी अलग है. क्योंकि जहां बाकी अकादमियों में बहुत कम किताबें छपी हैं और इनकी किताबों पर छात्रों की निर्भरता नहीं है, वहीं मैथिली अकादमी ने 49 साल के कार्यकाल में 213 किताबें प्रकाशित की हैं. इनमें तीन दर्जन से अधिक पाठ्यपुस्तकें हैं. इसलिए मैथिली अकादमी के बंद होने की स्थिति में आने से छात्र काफी परेशान हैं.

बंद पड़े किताबों के गट्ठरों को कोई बेचने वाला नहीं.

मैथिली अकादमी की एक और बड़ी उपलब्धि यह है कि यहां प्रकाशित नौ पुस्तकों को अब तक साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल चुका है. इसलिए छात्रों के साथ-साथ मैथिली के आम पाठकों के बीच भी यहां की किताबों की काफी मांग रहती है. 2023 में जब शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने इन सभी भाषा अकादमियों की बिक्री का ब्योरा मांगा था, तो मैथिली अकादमी ने तब बताया था कि उस साल उसने सात लाख रुपये की किताबें बेची हैं. जानकार बताते हैं कि अगर ठीक से योजना बने और यहां की किताबें पुस्तक मेले में और ऑनलाइन उपलब्ध हो तो बिक्री का आंकड़ा कई गुना अधिक हो सकता है, क्योंकि देश भर में फैले तीन करोड़ से अधिक मैथिली भाषी लोगों के बीच यह इकलौती सबसे बड़ी पुस्तक प्रकाशन संस्था है. हालांकि 2017 में बिहार सरकार ने मैथिली अकादमी की वेबसाइट भी लॉन्च की थी, मगर देखरेख और पैसे के अभाव में यह 2021 से बंद पड़ी है.

पिछले पांच साल से मैथिली अकादमी की किताबें बेचने वाले दरभंगा के पुस्तक विक्रेता आनंद मोहन झा बताते हैं, “हम खुद इस अकादमी की डेढ़ लाख रुपये की किताबें हर साल बेचते रहे हैं. यहां से प्रकाशित हुई गोविंददास भजनावली, मैथिली साहित्यक आलोचनामक इतिहास, एकांकी संग्रह, परिजात हरण. संस्कार गीत, मिथिलाक्षर शिक्षा, मिथिला के इतिहास, पृथ्वीपुत्र और सूर्यमुखी जैसी किताबों की लगातार मांग रही है. मगर हम सात जनवरी को यहां से जो आखिरी बार किताबें लेकर गये, उसके बाद से यहां किताबें नहीं मिलीं. अभी दो दिन पहले हम वहां गये तो कोई स्टाफ नहीं था.”

हम जब वहां पहुंचते हैं तो मैथिली अकादमी के कमरे का दरवाजा तो खुला मिलता है, मगर बांग्ला अकादमी के स्टाफ राजेश बैठे मिलते हैं. वे बताते हैं, “मैथिली अकादमी के जो तीन स्टाफ यहां कार्यरत थे, उनमें से दो की प्रतिनियुक्ति शिक्षा विभाग में कर दी गई है और एक की ललित नारायण मिश्रा शोध संस्थान में. पिछले जुलाई महीने से यहां कोई स्टाफ नहीं है.”

जब हम उनसे पूछते हैं कि अगर हमें इस अकादमी से प्रकाशित कोई पुस्तक खरीदनी है, तो हम क्या कर सकते हैं? इस सवाल पर वे हाथ खड़े कर देते हैं और कहते हैं, “मैथिली अकादमी का जिम्मा हम कैसे ले सकते हैं?” 

वहीं भोजपुरी अकादमी को संभाल रहे रात्रि पहरी हरेराम तिवारी इस संवाददाता को देखकर अपने वेतन का रोना रोने लगते हैं. वे कहते हैं, “आज भी हमें पांचवें वेतनमान का ही लाभ मिलता है. आपके जरिये हम सरकार से आग्रह करना चाहते हैं कि हमें कम से कम छठे वेतनमान का तो लाभ दिला दें.” वे बताते हैं, “कभी यहां हर अकादमी में 17-17 स्टाफ काम करते थे. आजकल सभी अकादमी को मिला दें तो केवल सुरक्षा प्रहरी और लिपिक वर्ग के चार लोग बचे हैं. पढ़ने-लिखने का काम करने वाला तो एक आदमी नहीं रहा.” भोजपुरी अकादमी में कुछ किताबें जरूर छपी थीं, मगर अभी वे उपलब्ध नहीं हैं. 

वर्तमान में इन सभी अकादमियों के निदेशक का जिम्मा उच्च शिक्षा विभाग के उप-निदेशक दीपक कुमार सिंह के पास है. अकादमियों की हालत पर उनका कहना है कि वे इस मसले पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने के लिए अधिकृत नहीं हैं. मगर उनसे अनौपचारिक बातचीत में यह जानकारी मिलती है कि 2022-23 से ही शिक्षा विभाग इन सभी अकादमियों को एक भवन में लाने की तैयारी कर रहा है. योजना यह है कि सभी भाषाई अकादमियों का एक ही निदेशक हो और अलग-अलग भाषाओं की अकादमी के लिए अलग-अलग उप-निदेशक हो. 

विभाग की योजना है कि इन अकादमियों के सभी स्टाफ धीरे-धीरे रिटायर हो जाएंगे, इसके बाद उनकी जगह पर अलग-अलग भाषाओं के विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएंगी. बताया जाता है कि चूंकि विभाग में लगातार सचिव बदलते रहे हैं और इस बीच चुनाव भी आ गया इसलिए इस योजना को ठीक से लागू नहीं कराया जा सका.  

हालांकि एक निदेशक के जरिये सभी भाषाई अकादमियों को संचालित करने की योजना से मैथिली के विद्वान सहमत नहीं नजर आते. मैथिली अकादमी के आखिरी गैर प्रशासनिक और लेखक अध्यक्ष कमलाकांत झा कहते हैं, “यह योजना किसी भी तरह से उचित नहीं है. जब तक किसी भी भाषा से स्नेह करने वाला व्यक्ति उसका अध्यक्ष न हो, वह उसे आगे बढ़ाने में बहुत रुचि नहीं लेगा. वैसे भी मैथिली की स्थिति दूसरी भाषाओं से अलग है, यह संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है.”
झा 2010 से 2013 तक तीन साल के लिए मैथिली अकादमी के अध्यक्ष थे. वे बताते हैं, “मैथिली अकादमी की स्थिति कभी बेहतर नहीं रही. जब मैं अध्यक्ष रहा, मुझे फंड भी लड़कर लाना पड़ता था. उस वक्त भी पांच या छह स्टाफ ही थे. मगर मैंने अपने स्तर पर जगह-जगह कई कार्यक्रम कराए, इसका विक्रय केंद्र भी खुलवाया. मगर दुर्भाग्यवश मैं इस अकादमी का आखिरी अध्यक्ष साबित हुआ. उसके बाद अफसर ही इसे चला रहे हैं.”

कमलाकांत झा की बातें काफी हद तक सही हैं. मैथिली अकादमी को लेकर लगातार ऐसी खबरें सामने आती रही हैं. एक बार जब यह अकादमी किसी किराए के भवन से संचालित हो रही थीं, तब वर्षों तक किराया न देने के कारण मकान मालिक ने इसकी किताबें जब्त कर ली थीं. 

फिर 2016 में एक बार यह खबर भी आई कि जगह के अभाव में अकादमी की किताबें शौचालय में रखी गई हैं. 2021 के बाद से अकादमी ने किसी नई या पुरानी किताब का प्रकाशन नहीं किया है. लगभग 26 किताबें ऐसी हैं, जिनकी काफी मांग है, मगर इनका स्टॉक खत्म हो चुका है. इनके पुनर्प्रकाशन के लिए आवेदन भेजा गया है, उसकी स्वीकृति नहीं मिली है. शिक्षा विभाग से जानकारी मिली है कि अब जल्द इसे स्वीकृत किया जा सकता है.

हालांकि मैथिली अकादमी का सवाल सिर्फ किताबें छापने बेचने तक सीमित नहीं है. सवाल यह भी है कि जिस बड़े मकसद से इस अकादमी की स्थापना की गई थी, क्या वह पूरा हुआ है? इस अकादमी से सदस्य के रूप में जुड़े रहे लेखक एवं रंगकर्मी कुणाल कहते हैं, “मुझे इस संस्था का बाइलॉज देखने का मौका मिला है. इसके चार उद्देश्य हैं, उत्तम साहित्य का प्रकाशन, प्राचीन पांडुलिपियों का संरक्षण, सामयिक साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों को लेकर व्याख्यानमालाएं आयोजित करना और सांस्कृतिक कलाओं का सर्वेक्षण और प्रदर्शन. इन चार में प्रकाशन करने का काम तो अकादमी ने ठीक से किया है, कुछ व्याख्यान भी कभी-कभी आयोजित हुए हैं. बाकी दो काम बिल्कुल नहीं हुए.”

पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय में मैथिली विभाग की अध्यक्ष रहीं डॉ. इंदिरा झा कहती हैं, “एक दिक्कत यह भी रही कि मैथिली अकादमी में हाल के वर्षों में कोई नई किताब नहीं छपी. ऐसे में हमलोगों को बार-बार सिलेबस में पुरानी किताबों को ही जगह देनी पड़ती थी. इसलिए जरूरी यह भी है कि अकादमी लगातार नई किताबें छापे, ताकि छात्रों का पाठ्यक्रम भी समय के साथ अपग्रेड होता रहे. उस वक्त तो खैर किताबें मिल भी जाती थीं, अब तो छात्र किताबों के लिए पूरे पटना में भटकते हैं और महंगे दाम चुकाने के लिए मजबूर हैं.” 

मगर अब जब अकादमी बिल्कुल बंदी की कगार पर पहुंच गई है तो मैथिली के साहित्यकारों, छात्रों और आमलोगों में इस बात को लेकर काफी रोष है. सोशल मीडिया पर इस विषय को लेकर लगातार पोस्ट लिखी जा रही हैं.

शोध छात्रा प्रियंका कहती हैं, “हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह न सिर्फ इस अकादमी को फिर से चालू हालत में लाये, बल्कि इसे वैसा स्वरूप प्रदान करे जैसे सोचा गया था. इसमें किताबें छपें, पत्रिकाएं छपे, यह कार्यक्रम आयोजित करे. अगर सरकार हमारी मांगों को नहीं सुनती तो मैथिली भाषा को लेकर काम करने वाली तमाम संस्थाएं एकजुट होकर अपनी मांग के समर्थन में आंदोलन करने पर मजबूर होगी.”

वहीं कुणाल कहते हैं, “यह स्थिति बिल्कुल अवसादपूर्ण है. हमें इस बात का कष्ट है. सभी भाषाओं की अकादमी होनी चाहिए, सरकार का यह काम है कि वे इनके लिए फंड जारी करें और इनके सुरुचिपूर्ण संचालन की स्थिति पैदा करे.”

हालांकि बिहार सरकार का उच्च शिक्षा विभाग इस मसले को लेकर बहुत चिंतित नजर नहीं आता. विभाग के सचिव राजीव रौशन कहते हैं, “भाषाई अकादमियों के संदर्भ में आपसे ही कुछ कमियां की जानकारी प्राप्त हुई है. इसके संदर्भ में विभाग के स्तर से समाधान की कार्रवाई की जाएगी ताकि इन भाषाई अकादमी का अधिक से अधिक लाभ छात्रों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों को मिल सके.” 

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