
पटना में 'बिहार डेयरी एण्ड कैटल एक्सपो-2023' का आगाज हो चुका है. 3 दिनों तक चलने वाले इस एक्सपो का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया. यहां बिहार और अन्य राज्यों से दुधारू पशुओं की अलग-अलग नस्लों का प्रदर्शन किया जा रहा है.
इस प्रदर्शनी का मुखिया बना है एक भैंसा. हरियाणा के पानीपत जिले से आया यह भैंसा घोलू-2 अपनी कीमत की वजह से सुर्खियों में है. यहां घोलू-2 का नाम अपभ्रंश होकर गोलू-2 हो गया है. घोलू-2 भैंसे के दादा का नाम था घोलू, जिसके नाम पर इसका नाम पड़ा है.
घोलू-2 की मां का नाम राणी है जो दिनभर में 26 किलो दूध देती है. इस भैंसे की चर्चा इसलिए है क्योंकि इसकी कीमत 10 करोड़ रुपए तक लग चुकी है.
10 करोड़ रुपए कीमत में इसके रख-रखाव की सबसे बड़ी भूमिका है. 6 साल के घोलू-2 पर एक महीने में 50-60 हजार रुपए खर्च होते हैं. हर दिन इसे 10 लीटर दूध पिलाया जाता है. इसकी देखरेख करने वाले बताते हैं कि 15 दिन में 10 किलो तक सेब खा जाता है ये भैंसा. इसकी देखभाल के लिए कुल 5 लोगों की टीम लगी रहती है जो इसके खाने से लेकर रहने की जगह तक की साफ-सफाई का ख्याल रखती है.

सवाल है कि इतना खर्च है तो इसे रखने का फायदा क्या है? घोलू-2 से कमाई कैसे होती है? पटना वेटरनरी कॉलेज के पशु चिकित्सक डॉ. दुष्यंत कुमार 'किसान तक' से बातचीत में बताते हैं, "पहले मुर्रा नस्ल की भैंसें हरियाणा-पंजाब के इलाके में ज्यादा पाई जाती थीं लेकिन अब ये हर जगह अमूमन मिल जाती हैं. वहीं कुछ वर्ष पहले से इसकी डिमांड बढ़ने लगी है." यहीं से इसकी कमाई का सोर्स तैयार होता है.
मुर्रा का सीमेन यानी वीर्य आम भैंसा के मुकाबले महंगा बिकता है. घोलू-2 का सीमेन 500 रुपए प्रति डोज तक में बेचा जाता है. इससे महीने में 7-8 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है. घोलू-2 की देखभाल करने वाले लोग दावा करते हैं कि अब तक इसके सीमेन से 30 हजार पाड़े जन्म ले चुके हैं.
देखने में मुर्रा नस्ल की भैंस बहुत अलग नहीं होती. कुछ-कुछ बारीकियां हैं जिनसे इनकी पहचान होती है. इनके सींग आम भैंसों की तुलना में ज्यादा घुमावदार होते हैं जिसे डबल कर्ली (दोहरा घुंघरैला) कहते हैं. मुंह छोटा और माथा चौड़ा होता है. रंग काला ही होता है लेकिन अगर इसे विभाजित करें तो मुर्रा नस्ल के भैंस जेट ब्लैक रंग के होते हैं.
घोलू-2 के मालिक हैं नरेंद्र सिंह. जिन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों 2019 में पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया था. वजह? नरेंद्र सिंह लंबे समय से पशु पालन कर रहे हैं. पानीपत के डीडवाडी गांव के रहने वाले नरेंद्र सिंह लोगों को पशु पालन के लिए टिप्स देते हैं. उनकी बीमारियों को दूर करने के इलाज बताते हैं. इस क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान से सम्मानित किया था.