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सरोजा वैद्यनाथन: जिनके अभिनय, मुद्रा और भाव से भरतनाट्यम दुनिया भर में जाना गया

सरोजा वैद्यनाथन ने 1972 में दिल्‍ली में गणेश नाट्यालय स्‍थापित किया और आज 15 देशों में उनके स्कूल हैं जहां उनके शिष्य अब गुरु बनकर स्कूल चला रहे हैं

भरतनाट्यम की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम थीं सरोजा वैद्यनाथन
भरतनाट्यम की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम थीं सरोजा वैद्यनाथन
अपडेटेड 27 सितंबर , 2023

- राजेंद्र शर्मा

भरतनाट्यम को समर्पित नृत्यांगना, कोरियोग्राफर और न जाने कितने ही शिष्‍यों की गुरु सरोजा वैद्यनाथन जीवन के 86 बंसत देख चुकी थीं. यह भी संयोग की ही बात है कि जिस दिन उन्होंने आखिरी सांस ली, उसके ठीक तीन दिन पहले उनका जन्मदिन था. सरोजा का जन्म 19 सितंबर, 1937 को हुआ था. वे दिल्ली सरकार के साहित्य कला परिषद सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्‍कार, 2002 में पद्म श्री और 2013 में पद्मभूषण से नवाजी जा चुकी थीं. लगभग 50 साल पहले उन्होंने 1972 में दिल्‍ली में गणेश नाट्यालय स्‍थापित किया. जहां नृत्य के अलावा छात्रों को तमिल, हिंदी और कर्नाटक संगीत भी सिखाया जाता है, ताकि वे भरतनाट्यम को समग्रता से समझ सकें. अपनी इच्‍छा शक्ति के बल पर इसे सरोजा वैद्यनाथन ने सफलता के शीर्ष पर स्‍थापित किया. आज 15 देशों में उनके स्कूल हैं. उनके शिष्य भी अब गुरु बनकर स्कूल चला रहे हैं.

सरोजा वैद्यनाथन ने चार किताबें भी लिखीं. दो खुद के नृत्य के सफर के बारे में, तीसरी किताब भारत के पारंपरिक नृत्य और चौथी किताब संगीत के बारे में है. एक स्‍त्री के तौर पर हरा-भरा प्रतिष्ठित परिवार, उनकी विरासत को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध बहू और लोकप्रिय नृत्‍यागंना रमा वैद्यनाथन और पोती दक्षिणा वैद्यनाथन. इससे ज्यादा एक स्‍त्री और एक कलाकार को च‍ाहिए भी क्‍या? सरोजा 86 की उम्र में भी नियमित तौर पर रियाज करती रहीं.

21 सितंबर की तड़के सुबह नियति ने उनके रियाज पर हमेशा के लिए रोक लगा दी. वे इस फानी दुनिया को अलविदा कह गईं. सरोजा को उनके माता-पिता डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते थे लेकिन वे तो भरतनाट्यम के लिए ही बनी थीं. परिवार के लोग समझाते रहे कि जीवन बर्बाद मत करो लेकिन सरोजा अपने इरादों पर अडिग थीं. सात साल की उम्र में चेन्नई में घर के बरामदे में अपनी मां के सामने लोट-लोट कर नृत्य सीखने की जिद को देखकर नाना ने मां को सलाह दी कि दो-चार वर्ष सीखने दो फिर समझदार हो जाएगी.

नाना की सलाह पर सरोजा का चेन्नई स्थित सरस्वती गान निलयम में नामांकन कराया गया लेकिन नाना की यह सोच कि दो-चार साल में समझदार हो जाएगी, कारगर साबित नहीं हुई. सरस्वती गान निलयम में उनकी गुरु ललिता ने उन्हें नृत्य सिखाना शुरू कर दिया. बाद में तंजापुर के गुरु कट्टुमन्‍नार मुथुकमारन पिल्‍लई के सान्निध्य में अध्‍ययन किया. सरोजा ने मद्रास विश्‍वविधालय में प्रोफेसर संबामूर्ति के निर्देशन में कर्नाटक संगीत में शोध किया और इंदिरा गांधी कला संगीत विश्‍वविद्यालय खैरागढ़ से नृत्‍य में डी-लिट की उपाधि प्राप्‍त की. नृत्य के प्रति सरोजा की जिद ने उन्‍हें शिखर तक पहुंचा दिया.

कम उम्र में ही सरोजा का विवाह बिहार काडर के आईएएस अधिकारी वैद्यनाथन से हो जाने पर भी पति ने उनका पूरा सहयोग किया. हालांकि विवाह के बाद कार्यक्रमों में उनके प्रदर्शन पर प्रतिकूल और रूढ़िवादी प्रतिक्रियाओं के बाद नृत्य छोड़ दिया. सरोजा बच्चों को घर पर नृत्य सिखाने लग गईं. 1972 में अपने पति के दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद सरोजा ने अपने आप को पूर्ण रुप से नृत्‍य को समर्थित कर दिया.

गुरु सरोजा वैद्यनाथन का जाना भरतनाट्यम नृत्य के एक स्वर्णिम युग का अवसान है. एक अच्छी नृत्यांगना, अच्छी नृत्य संरचनाकार और अच्छी गुरु के रूप में उन्होने स्वयं को स्थापित किया था. मेरा जन्म ही भरतनाट्यम के लिए हुआ है कहने वाली सरोजा वैद्यनाथन ने अपने कहे को सौ फीसदी साबित कर दिखाया. उनके अवसान पर प्रतिष्ठित नृत्‍यागंना सोनल मान सिंह का यह कहना महत्‍वपूर्ण है कि नृत्य की दुनिया में उनका योगदान अपार रहा है, नृत्य बंधुत्व के बीच उनकी हानि गहरी महसूस होगी. कलाविद राजेश गनोतवाले कहते हैं कि सरोजा वैद्यनाथन के अभिनय, मुद्रा और भाव से भरतनाट्यम दुनिया भर में जाना गया.

- राजेंद्र शर्मा उत्तर प्रदेश में जीएसटी डिपार्टमेंट के राज्य कर अधिकारी हैं.

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