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देश का सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल इलाज के लिए ले रहा एआई की मदद, जानिए कितना कारगर

टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल ने एआई जैसे फ्यूचरिस्टिक टूल को अपनाकर बाकी बीमारियों के लिए भी इसके दरवाजे खोल दिए हैं

टाटा मेमोरियल अस्पताल ने एआई जैसे फ्यूचरिस्टिक टूल को अपनाकर बाकी बीमारियों के लिए भी इसके दरवाजे खोल दिए हैं/इल्लस्ट्रेशन - नीलांजन दास
इलस्ट्रेशन - नीलांजन दास
अपडेटेड 11 जनवरी , 2024

2010 में रजनीकांत की एक फिल्म आई थी - रोबोट. रजनीकांत के अलावा इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन लीड रोल में हैं और मेडिकल की पढ़ाई करती हैं. इस फिल्म में एक सीन है जब रोबोट बने रजनीकांत ऐश्वर्या की मेडिकल की किताबों को 1 मिनट में स्कैन कर अंदर की सारी बातें पता कर लेते हैं.

उस वक्त ये फिल्म देखते हुए लगा कि कितना अच्छा होता अगर सच में ऐसा होता, डॉक्टर्स का काम भी आसान हो जाता और इलाज के दौरान 'ह्यूमन एरर' की संभावना भी काफी कम हो जाती. कैसा हो अगर आज 2024 में हम आपको बताएं कि अब ऐसा हो सकता है? 

हाल ही में मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल ने कैंसर के जांच और इलाज में एआई की मदद लेने का फैसला किया है. इसमें आप एआई को 'रोबोट' का रजनीकांत मान सकते हैं. कैंसर के ट्रीटमेंट के लिए देश के सबसे बड़े अस्पतालों में गिने जाने वाले टाटा मेमोरियल में कैंसर के 60,000 पेशेंट्स के डेटा को इकठ्ठा कर एक बायो-इमेजिंग बैंक तैयार किया गया है. ये एक तरह का सूचनाओं का भंडार है जिसमें रेडियोलोजी और पैथोलॉजी की तस्वीरें, क्लीनिकल इनफॉर्मेशन और बीमारी से जुड़ी अन्य जानकारियां मौजूद होंगी.

एआई 'रेडियोमिक्स' की मदद से इस बायो-इमेजिंग बैंक से इस डाटा को नए कैंसर के मरीजों की जांच, कीमोथेरेपी का पड़ने वाला प्रभाव और किस तरह की ट्रीटमेंट की मरीज को जरूरत है, ये सभी चीजें डॉक्टर्स को बताएगा. रेडियोमिक्स दरअसल मेडिकल स्कैन्स से जरूरी जानकारी निकालने की एक तकनीक है. इसमें वो सूचनाएं भी आसानी से हासिल हो जाती हैं जिन्हें ढूंढने के लिए डॉक्टर्स को कई-कई बार रिपोर्ट्स देखनी पड़ती हैं. 

शुरुआती दौर में इस अस्पताल में सिर्फ सिर और गर्दन के कैंसर और लंग कैंसर के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाएगा और धीरे-धीरे इसके इस्तेमाल का फैलाव दूसरी तरह के कैंसर के इलाज में भी होगा. डॉक्टर्स का कहना है कि इसकी मदद से कैंसर के शुरुआती चरण में ही बीमारी का पता लगाने में आसानी होगी. 

दरअसल पिछले साल 2023 में एआई का जबरदस्त बज क्रिएट हुआ. इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से लेकर तमाम फील्ड्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की बात की गई. अब 2024 में इस खबर के बाद हेल्थ सेक्टर में भी एआई के भविष्य को साफ देखा जा सकता है. इस क्षेत्र में एआई के आने के बाद से ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या यहां एआई की जरूरत है? और अगर हां तो क्यों?

इसका जवाब है कि बिलकुल, हेल्थ सेक्टर में एआई की जरूरत है और इसके कई कारण हैं. सबसे पहला और बड़ा कारण है डॉक्टर्स की कमी. जनवरी 2024 के इंडिया टुडे मैगजीन के अंक में मेदांता - द मेडिसिटी के सीएमडी नरेश त्रेहन लिखते हैं, "डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 1991 में भारत में प्रति 1,000 मरीजों पर डॉक्टरों की संख्या 1.2 थी. लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण यह संख्या और गिरकर 2020 में करीब 0.7 पर पहुंच गई. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञों का अभाव गंभीर समस्या है. करीब 70 फीसद स्वास्थ्य देखभाल खर्च निजी तौर पर वित्त पोषित होता है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है. नतीजा: हर साल करीब 6.3 करोड़ लोग इलाज पर भारी खर्च के कारण गरीबी के गर्त में चले जाते हैं."

डॉ नरेश त्रेहन आगे बताते हैं कि एआई दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को किफायती और सुलभ बनाने में बड़ा कारगर हो सकता है. देशभर में अभी करीब 20 लाख आइसीयू बेड उपलब्ध हैं लेकिन नियमित निगरानी इसमें केवल 1,00,000 तक ही सीमित है. एआई की मदद से आइसीयू बेड की निगरानी पर होने वाले खर्च के दसवें हिस्से जितनी लागत में हर किसी बेड के बारे में पता रखना संभव हो सकता है. एआई संचालित मॉडल को आइपी सेटिंग्स के साथ जोड़ दिया जाए तो पूर्व चेतावनी सिस्टम की तर्ज पर डॉक्टरों के लिए ज्यादा गंभीर मरीजों पर ध्यान देना आसान हो सकता है.

सिर्फ यही नहीं, एआई का इस्तेमाल ट्रीटमेंट में तो है ही, इसके अलावा एआई की मदद हॉस्पिटल के एडमिनिस्ट्रेटिव कामों में भी ली जा सकती है. पेशेंट्स से लगातार कनेक्टेड रहकर उनकी बेहतर केयर की जा सकती है और साथ ही कम गंभीर मसलों में बिना डॉक्टर के भी काम चलाया जा सकेगा. 

जहां तक कैंसर की बात है तो रोजाना बढ़ते आंकड़ों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि आने वाले दशक में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाएगी. ऐसे में टाटा मेमोरियल अस्पताल ने एआई जैसे फ्यूचरिस्टिक टूल को अपनाकर बाकी बीमारियों के लिए भी इसके दरवाजे खोल दिए हैं. 

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