किसी उपन्यास को समीक्षा की कसौटी पर कसने के लिए जितने यत्न होते हैं, उनमें भाषा, शिल्प, कथ्य, बिंब, नयापन आदि प्रमुख हैं. जब उसी उपन्यास को साहित्य की कसौटी पर रखा जाता है तो उसमें कुछ और नए आयाम भी जुड़ जाते हैं.
'आरोही' उपन्यास का कथानक अपने मुख्य किरदार मिहिर और उसके दो अन्य दोस्तो के इर्द-गिर्द घूमता है, जो सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने का संकल्प लेकर एक साथ निकले हैं.
इसमें 90 के दशक के कॉलेज लाइफ का वर्णन है, प्रेम और वासना का जिक्र है तो साथ में करिअर की फिक्र की भी. सिविल सर्विस की महत्वाकांक्षा के बीच मां-बाप की उम्मीदों का बोझ उठाते ये किरदार इस उपन्यास के लेखक को कहने के लिए एक पूरा पैकेज प्रदान करते हैं.
दोस्ती एक और पहलू है जो इस उपन्यास को एक बहुपरती आयाम प्रदान करता है. कहने का मतलब ये कि इस उपन्यास में एक पाठक को बांधे रखने के लिए तमाम चीजें मौजूद हैं.
कथानक कहने के लिए लेखक ने पूर्वदीप्ति शैली का इस्तेमाल किया है जो किसी संस्मरणात्मक कहानी कहने का एक तरीका है. हालांकि लेखक ने ये स्पष्ट नहीं किया है कि यह उपन्यास एक विशुद्ध उपन्यास ही है या एक संस्मरण. लेकिन लेखन की चाहे कोई विधा हो, उसमें पाठक को बांधे रखने की काबिलियत होनी ही चाहिए.
'आरोही' के दूसरे हिस्से, जहां से तीनों दोस्त सिविल सर्विस की तैयारी करना शुरू करते हैं, यहां से मुकुल अपने लेखन के रंग में आते दिखते हैं. यहां से उपन्यास थोड़ी गति हासिल करता है. फिर चाहे वो मिहिर और ज्योति की प्रेम कहानी हो, या इसके दूसरे किरदार हों, इसे जानने में पाठक की रुचि जगती है.
आज भी मुखर्जी नगर और इसके आसपास का इलाका सिविल सर्विस के अभ्यर्थियों के लिए हलचल का केंद्र बना हुआ है. यहां से कई सपने साकार होते हैं तो कई टूटते भी हैं. इलाके का बत्रा सिनेमा हालांकि बहुत पहले बंद हो चुका है. लेकिन उपन्यास पाठकों को वह मौका प्रदान करता है जब वे 90 के दशक में इसके झरोखों से होते हुए बत्रा सिनेमा और उस समय के हालातों का जायजा ले सकते हैं. तब कैसे 'बच्चन' की फिल्मों को लेकर उस समय के युवाओं में क्रेज हुआ करता था.
मुकुल ने एक लेखक के रूप में इस उपन्यास में बिंब को साधने में सफलता पाई है. उन्होंने 'मोनालिसा' तसवीर का एक ऐसा खाका खींचा है जो पाठकों के साथ जीवन भर के लिए नत्थी हो जाएगा, ऐसा लगता है. लेखक ने मोनालिसा बिंब के जरिए एक ऐसे भाव या हालात का वर्णन किया है, जिसमें इंसान सुख और दुख दोनों समान रूप से महसूस करता है.
उपन्यास के मुताबिक, जिस तरह मोनालिसा की मुस्कान आज भी रहस्य है कि वह प्रसन्न है या उदास, उसी तरह जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं, जब आप यही कह सकते हैं कि आप भी अपने भीतर एक मोनालिसा महसूस कर रहे हैं.
मुखर्जी नगर का वर्णन करते हुए लेखक कहता है, "यह उन तीर्थयात्रियों के सहयोग से चलने वाली छोटी-सी अर्थव्यवस्था है, जो अपने-अपने भगवानों की तलाश में दूसरे राज्यों या देशों से आए हैं." एक और नमूना देखिए मसलन, "सर्दियों की मौत पर बसंत किसी शोकगीत की तरह होता है."
उपन्यास की शुरुआत में एक नौकरशाह के रूप में मिहिर का किरदार अपनी पत्नी से लगातार कहता है कि उसे नौकरी में मजा नहीं आ रहा. वह अपने लिखने के पैशन को पूरा करना चाहता है. वास्तव में, एक स्वच्छंद और मौलिक विचार वाला आदमी हमेशा नौकरी से दूर भागने की कोशिश करता है. लेकिन कुछ जिम्मेदारियां भी होती हैं जिनके तले ही उसे अपनी जिंदगी गुजारनी होती है.
मिहिर का किरदार इस तरह के सोच वाले लोगों को एक दिशा दिखाता है कि कैसे नौकरी और अपने पैशन के बीच एक सामंजस्य बिठाया जा सकता है. लेकिन वही मिहिर जब लिखना शुरू करता है तो उपन्यास के आधे हिस्से तक एक पाठक के बतौर फैज अहमद फैज साहब की दो पंक्तियां दिमाग में आने लगती है कि "और भी दुख है जमाने में मोहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा". मतलब ये कि मिहिर की लेखनी में जोश ज्यादा दिखता है, लेखन कौशल कम.
उपन्यास में अपने एमए के दौरान ये किरदार इतिहास के विद्यार्थी बने हैं. ऐसे में इन तीन दोस्तो की इतिहास के भिन्न आयामों को खोलती आपसी बातचीत पढ़ने लायक है, जिससे पाठक को एक नया नजरिया हासिल होता है. उपन्यास में जगह-जगह दर्शन का भी सहारा लिया गया है.
हालांकि इसमें स्त्री चित्रण में थोड़ी अतिरिक्त संवेदनशीलता का परिचय दिया जा सकता था. खासकर तब जब तीनों मुख्य किरदार यूपीएससी एस्पिरेंट हों.
लेखक ने मिहिर और ज्योति के प्रेम संबंधों को साधने में एक हद तक सफलता पाई है, लेकिन उपन्यास खत्म होते-होते पता नहीं चलता कि ज्योति के किरदार का क्या हुआ?
कुल मिलाकर 'आरोही' संवाद की संभावनाओं को खंगालता है. हालांकि इसमें एकालाप कम होता तो इसकी धार बढ़ जाती.
नोट - आरोही के लेखक मुकुल कुमार वर्तमान में रेलवे बोर्ड, रेल मंत्रालय में कार्यरत हैं. वे भारतीय रेलवे यातायात सेवा के 1997 बैच के सिविल सेवक रहे हैं. वे एक नौकरशाह के अलावा उपन्यासकार और कवि भी हैं.