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इंसुलिन थेरेपी मतलब डायबिटीज की आखिरी स्टेज! क्या हैं इस बीमारी से जुड़ी पांच गलतफहमियां?

डायबिटीज को लेकर जागरूकता काफी बढ़ने के बावजूद कुछ गलतफहमियां अब भी कायम हैं और ये इलाज पर भी उल्टा असर डालती हैं

Insulin
इंसुलिन शुरू करना बीमारी के गंभीर होने या बिगड़ने का संकेत नहीं है
अपडेटेड 2 दिसंबर , 2025

इस वर्ष वर्ल्ड डायबिटीज डे की थीम ‘Diabetes and Wellbeing’ इस पर जोर देती है कि डायबिटीज पर नियंत्रण के लिए सिर्फ ब्लड शुगर लेवल को मॉनिटर करना ही काफी नहीं है. बल्कि हमें एक स्वस्थ और ज्यादा संतुलित जीवनशैली अपनाने पर ध्यान देना चाहिए. 

जागरूकता बढ़ने के बावजूद डायबिटीज के बारे में कुछ भ्रांतियों ने इस कदर हमारे दिमाग में जगह बना रखी है कि अक्सर कन्फ्यूजन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और यह इलाज में देरी का कारण भी बनती है. 

इस बारे में हमने उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित सर्वोदय अस्पताल में कंसल्टेंट-एंड्रॉकिनोलॉजी डॉ. हिमांशु शर्मा से बात की. यहां वे ऐसे ही पांच मिथकों को दूर कर डायबिटीज से सही तरीके से निपटने के तरीके बता रहे हैं :

मिथक-1: चीनी से डायबिटीज होती है

हमेशा से यही माना जाता रहा है कि चीनी खाना डायबिटीज का एक स्पष्ट कारण है. असल में डायबिटीज—खासकर टाइप 2—जेनेटिक्स, इंसुलिन रेजिस्टेंस, शरीर के ज्यादा वजन और शारीरिक गतिविधियों में कमी सबके मिले-जुले जटिल समीकरण का नतीजा होती है. खाने की मीठी चीजें सीधे तौर पर इस बीमारी का कारण नहीं होती हैं लेकिन ज्यादा चीनी वाली डाइट परोक्ष रूप से खतरे को बढ़ा सकती है.

दरअसल, इन चीजों में काफी ज्यादा कैलोरी होती है जो वजन बढ़ा सकती है, खासकर उन लोगों में जो पहले से ही इंसुलिन रेजिस्टेंस के शिकार हैं. समय के साथ इन सारी वजहों से शरीर की ग्लूकोज नियंत्रित करने की क्षमता पर दबाव बढ़ता है. डॉ. शर्मा इस पर ज़ोर देते हैं कि नियंत्रण जरूरी है: लेकिन कभी-कभी मीठा खाने से डायबिटीज नहीं होती. लेकिन कुल मिलाकर ये बात मायने रखती है कि हमारा डाइट पैटर्न क्या है और हमारी जीवनशैली कितनी संतुलित है.

मिथक-2: ‘शुगर-फ्री’ प्रोडक्ट सुरक्षित होते हैं

‘शुगर-फ्री’ लेबल वाले प्रोडक्ट अक्सर सुरक्षित होने का झूठा एहसास दिलाते हैं. दरअसल, बाजार में उपलब्ध ऐसे कई प्रोसेस्ड स्नैक्स बेहद महीने आटे, ज्यादा स्टार्च, सोडियम और असुरक्षित ट्रांस फैट से भरपूर होते हैं. ये ब्लड शुगर में उतार-चढ़ाव का कारण बन सकते हैं. इनमें कैलोरी भी काफी ज्यादा हो सकती है, जो बार-बार खाने पर वजन बढ़ने की वजह बन सकती है. चीनी की जगह इस्तेमाल किए जाने वाले विकल्प अमूमन इन उत्पादों को बार-बार खाने की इच्छा बढ़ा देते हैं। स्वस्थ विकल्प मानकर हम बार-बार इन्हें खाने से खुद को रोक नहीं पाते जो डाइटरी हैबिट को बिगाड़ देता है. डॉ. शर्मा मरीजों को सलाह देते हैं कि वे न्यूट्रिशन लेबल ध्यान से पढ़ें, और पैकेज्ड “डाइट” प्रोडक्ट्स पर निर्भरता के बजाय प्रोटीन, फाइबर और हेल्दी फैट वाले संतुलिन खाने को प्राथमिकता दें.

मिथक-3: इंसुलिन लेने का मतलब है कि मेरी डायबिटीज गंभीर है

इंसुलिन थेरेपी को लेकर एक तरह की धारणा बनी हुई है कि ये डायबिटीज के “आखिरी स्टेज” का संकेत है. डॉ. शर्मा स्पष्ट करते हैं कि इंसुलिन बस एक नेचुरल हार्मोन है जो शरीर में ग्लूकोज को नियंत्रित करने के लिए जरूरी होता है. इंसुलिन शुरू करना बीमारी के गंभीर होने या बिगड़ने का संकेत नहीं है. कुछ लोगों को सिर्फ इंफेक्शन, सर्जरी, गर्भावस्था या बहुत ज्यादा स्ट्रेस की स्थिति में इंसुलिन की जरूरत पड़ सकती है जबकि कुछ को पैंक्रियाज को और ज्यादा स्ट्रेस से बचाने के लिए सामान्य तौर पर भी इसकी जरूरत पड़ सकती है. सही समय पर इंसुलिन शुरू करने से स्वास्थ्य संबंधी तमाम जटिलताओं से बचा जा सकता है और लंबे समय तक हमारे अंगों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है. इस तरह से यह एक सुरक्षा उपाय है, इसे नकारात्मक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए.

मिथक-4 : डायबिटीज के मरीज फल नहीं खा सकते

फलों को अक्सर “बहुत मीठा” मानकर डायबिटीज के मरीजों के लिए नुकसानदेह समझा जाता है. लेकिन सच यही है कि फल पोषक तत्वों का भंडार होते हैं- विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट, मिनरल और फाइबर से भरपूर. ये सभी पूरी सेहत के लिए अच्छे हैं. लेकिन बेहतर तरीका यही है कि इसे सही मात्रा में चुने और जूस के बजाय साबुत फल खाएं. कम से मध्यम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले फल- जैसे सेब, बेरी, अमरूद और संतरे आदि- को संतुलित आहार का हिस्सा बनाया जा सकता है. अपने ब्लड शुगर स्तर पर नजर रखना आपकी पसंद को और बेहतर बना सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो पाएगा कि आप बिना किसी नुकसान के रोज फल खाने का लुत्फ उठा पाएं.

मिथक-5: डायबिटीज सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों को होती है

हालांकि, टाइप-2 डायबिटीज को पहले बड़ी उम्र में होने वाली बीमारी माना जाता था लेकिन अब डेमोग्राफिक्स तेजी से बदल रहे हैं. बचपन में बढ़ता मोटापा, ज्यादा स्क्रीन-टाइम, शारीरिक गतिविधियों की कमी, तनाव और प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता इस्तेमाल किशोरों और युवाओं में भी इस बीमारी का खतरा बढ़ा रहा. डॉ. शर्मा का कहना है कि रोकथाम के उपाय जल्द शुरू होने चाहिए, जिसमें परिवार कम उम्र से ही स्वस्थ खाने की आदत डाल सके. इसके अलावा एक्टिव लाइफस्टाइल और नियमित स्क्रीनिंग को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए. अगर सही समय पर इलाज शुरू हो जाए तो दीर्घकालिक खतरा काफी कम हो सकता है और जिंदगी भर सेहतमंद रहा जा सकता है.

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