
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी 2025 की रात हुई भगदड़ की घटना में 18 लोगों की मौत हो गई. हालांकि भारतीय रेलवे से जुड़ी यह कोई पहली दुर्घटना नहीं है जिसमें एक दर्जन से ज्यादा मौते हुई हैं. इससे पहले 22 जनवरी को महाराष्ट्र के जलगांव में लखनऊ-मुंबई पुष्पक एक्सप्रेस के कुछ यात्री चेन पुलिंग की घटना के बाद नीचे उतरे और बगल से जा रही कर्नाटक एक्सप्रेस ट्रेन की चपेट में आ गए. इस हादसे में भी करीब 12 लोगों की मौत हुई थी.
इससे पहले लुधियाना में शान-ए-पंजाब ट्रेन में आग लगने की घटना हो, सूरत में सौराष्ट्र एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना हो, जून 2024 में बिहार के कटिहार में कंचनजंगा एक्सप्रेस से मालगाड़ी के टकराने की घटना हो (जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी), या 2023 का ओडिशा रेल हादसा हो जिसमें 296 लोगों ने जान गंवाई थी, भारतीय रेलवे से जुड़ी दुर्घटनाओं के उदाहरण आपको गूगल की एक क्लिक पर मिल जाएंगे. इन सभी घटनाओं में रेल मंत्री के इस्तीफे की बात जोर पकड़ लेती है.
लापरवाही के इतने उदाहरणों के बावजूद भारतीय इतिहास में केवल तीन रेल मंत्री ऐसे हुए हैं जिन्होंने किसी रेल दुर्घटना के बाद इस्तीफ़ा दिया और दो का इस्तीफ़ा मंजूर हुआ. इनमें से एक तो हैं पूर्व रेलमंत्री और बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिनकी वीडियो लगभग हर रेल दुर्घटना के बाद वायरल होती है. और इस फेहरिस्त में दूसरे राजनेता का नाम है लाल बहादुर शास्त्री.
क्या था गाइसाल रेल हादसा जिसके बाद नीतीश कुमार ने कहा - "जिम्मेदारी मेरी है?"
इंडिया टुडे मैगजीन के 18 अगस्त, 1999 के अंक में इस रेल हादसे पर अविरूक सेन की रिपोर्ट छपी थी. साल था 1999 और 1-2 अगस्त की रात 4055 डाउन ब्रह्मपुत्र मेल दिल्ली जा रही थी और पश्चिम बंगाल का गाइसाल स्टेशन आने वाला था. वहां से पश्चिम में करीब 30 किमी दूर 5610 अप अवध-असम एक्सप्रेस करीब डेढ़ बजे रात में बिहार के किशनगंज स्टेशन पर पहुंची तो उसके चालक आर. राय को मालूम हो गया होगा कि वे 'खतरनाक" इलाके में पहुंच गए हैं.
एक दिन पहले ही बोडो उग्रवादियों ने बारपेटा और सरुपेटा के बीच कुछ जगहों पर रेल पटरियां उड़ा दी थीं. इन दोनों रेलगाड़ियों के बीच गाइसाल स्टेशन के पश्चिम केबिन में केबिनमैन वाई. मरांडी अंधेरे में बैठे थे. बिजली गुल थी. उनके पास ट्रेनों को सिगनल देने के लिए 48 लीवर, एक पुराना टेलीफोन, जिससे वे सहायक स्टेशन मास्टर से बात करते थे, और एक लालटेन थी जिसे वे आ रही अवध-असम एक्सप्रेस को नहीं दिखा पाए. इससे पहले कि उन्हें कुछ मालूम हो, दुर्घटना घट गई. 1-2 अगस्त को रात 1 बजकर 45 मिनट पर अवध असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल की जोरदार भिड़ंत हुई जिसमें करीब 300 से अधिक लोग मारे गए.

अविरूक ने इंडिया टुडे मैगजीन की अपनी रिपोर्ट में लिखा, "देश में अब तक की भीषण ट्रेन दुर्घटनाओं में से एक गाइसाल दुर्घटना के बाद 3 डिब्बे क्षतविक्षत पड़े थे. कुछ डिब्बों की सख्त धातु की दीवार फटकर दूसरे डिब्बों पर ऐसे लिपटी थी मानो वह कपड़े की हो. 300 से अधिक लोगों की जान गई और 600 से अधिक जख्मी हो गए. बाकी लोग जैसे संज्ञाशून्य हो गए."
तब रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार दिन में 3 बजे दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए लेकिन क्रेन रात में पहुंची. उन्हें गाइसाल में भीड़ के गुस्से का सामना करना पड़ा. एक घंटे में ही वे इतने परेशान हो गए कि दिल्ली लौटते समय उन्होंने कहा कि "नैतिक जिम्मेदारी" लेते हुए वे इस्तीफा दे देंगे. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू में उन्हें समझाने का प्रयास किया, पर बाद में इस्तीफा स्वीकार कर लिया.
बाद में मीडिया से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, "मुझे लगता है कि यह रेलवे की पूर्ण विफलता है इसीलिए मैंने इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की है. हम केवल इसे चूक नहीं कहेंगे, यह आपराधिक लापरवाही है. इसलिए हम इस जिम्मेदारी को अपनाते हुए इस्तीफ़ा दे रहे हैं." उन्होंने यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता बताते हुए व्यवस्था में सुधार की बात की.
नीतीश कुमार ने रेल दुर्घटनाओं का कारण बताते हुए कहा था कि रेलवे पर भार बढ़ता जा रहा है और इसमें तकनीकी सुधार की बहुत जरूरत है
एक था रेल मंत्री...जो सिस्टम की गलती को अपने ज़िम्मे लेकर मंत्री पद छोड़ दिया था!#NitishKumar pic.twitter.com/XbEzrNYEYS
— SOURAV RAJ (@souravreporter2) February 16, 2025
साल 2000 में रेल मंत्री रहीं ममता बनर्जी ने भी उसी साल दो रेल दुर्घटनाओं के बाद इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने इसे अस्वीकार कर दिया था.
मार्च 2001 में, वाजपेयी ने नीतीश को वापस रेल मंत्री के रूप में बहाल कर लिया. रेल मंत्री के रूप में नीतीश का यह कार्यकाल तीन सालों तक चला, जिसमें उन्होंने रेलवे सुरक्षा और सिग्नलिंग प्रणाली पर खूब जोर दिया. इससे आने वाले वर्षों में दुर्घटनाओं को कम करने में मदद मिली.
दुर्घटना के बाद अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस्तीफा देने वाले नीतीश कुमार पहले राजनेता नहीं थे. उनसे पहले लाल बहादुर शास्त्री भी ऐसा कर चुके थे.
क्या था 1956 का अरियालुर रेल हादसा जिसके बाद शास्त्री ने दिया था इस्तीफ़ा?
साल 1956 में तमिलनाडु (तब मद्रास) में मूसलाधार बारिश के कारण मरुथैयार नदी का जलस्तर इतना बढ़ गया था कि पानी अरियालुर और कल्लगाम स्टेशनों के बीच पुल की पटरियों को छूने लगा, जिससे तटबंध लगभग 20 फीट तक टूट गया और अचानक बाढ़ आ गई.
23 नवंबर 1956 की सुबह करीब साढ़े 5 बजे थूथुकुड़ी (तूतीकोरिन) एक्सप्रेस ट्रेन अरियालुर स्टेशन से निकलने के करीब 3 किलोमीटर बाद पटरी से उतर गई. इसका भाप इंजन और पार्सल वैन सहित लकड़ी से बनी सात बोगियां नदी में गिर गईं. आठवां डिब्बा पटरी से उतर गया और पीछे की चार बोगियां सुरक्षित रहीं. इस दुर्घटना में करीब 142 यात्रियों की मौत हो गई और 110 घायल हो गए थे.
इस दुर्घटना के दौरान लालबहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे. उनके कार्यकाल के दौरान यह पहली रेल दुर्घटना नहीं थी जिसमें सैंकड़ों यात्रियों ने जान गंवाई हो. अरियालुर दुर्घटना से ढाई महीने पहले ही सिकंदराबाद से चलने वाली एक यात्री ट्रेन 1 और 2 सितंबर, 1956 की रात को महबूबनगर (अब तेलंगाना में) के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें 121 लोगों की मौत हो गई थी.
अरियालुर दुर्घटना के तीन दिन बाद लालबहादुर शास्त्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अपना इस्तीफा सौंप दिया, जिन्होंने लोकसभा को इस्तीफा स्वीकार करने के अपने फैसले के बारे में सूचित किया. अपने फैसले के पीछे के तर्क को समझाते हुए, नेहरू ने सदन को बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को शास्त्री के इस्तीफे की सिफारिश करने का मन बना लिया था.
नेहरू ने कहा, "ऐसा इसलिए नहीं कि मैं उन्हें इस आपदा के लिए जिम्मेदार मानता हूं बल्कि संवैधानिक औचित्य के दृष्टिकोण से कि हमें इस मामले में एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए. किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो जाए, हम इससे प्रभावित हुए बिना उसी तरह आगे बढ़ सकते हैं."
क्यों होती हैं रेल दुर्घटनाएं?
सुरक्षा रेलवे के लिए अब भी एक बड़ा सिरदर्द बना हुआ है. पीआईबी की एक रिपोर्ट में भारतीय रेलवे ने बताया है कि लगभग 75% रेल दुर्घटनाएं 'रेलवे स्टाफ की विफलता' के कारण होती हैं, तथा अन्य 10% दुर्घटनाएं 'उपकरण विफलता' के कारण होती हैं. इंजनों, रोलिंग स्टॉक, ट्रैक, सिग्नल आदि का अपर्याप्त रखरखाव की वजह से ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाएं होती हैं. इसके अलावा सिग्नल विफलता, यात्रियों द्वारा ले जाए जाने वाले ज्वलनशील पदार्थ, शॉर्ट सर्किट, पेंट्री कार स्टाफ, लीज ठेकेदार की लापरवाही आदि जैसी चीजों की वजह से कोचों में आग लगने की दुर्घटनाएं होती हैं.
रेलवे में कर्मचारियों की कमी भी रेल दुर्घटनाओं की बड़ी वजह है. भारतीय रेलवे के 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय रेलवे में सुरक्षा-महत्वपूर्ण श्रेणी के कार्यबल में लगभग 20,000 पद खाली हैं. सुरक्षा-महत्वपूर्ण श्रेणियों में लोको क्रू, ट्रेन मैनेजर, स्टेशन मास्टर जैसे पद शामिल हैं.
भारतीय रेलवे ने साल 2024 की शुरुआत में केवल 5,658 प्रमुखों की भर्ती के लिए एक नोटिस जारी किया. हालांकि जून 2024 में कंचनजंगा एक्सप्रेस की दुर्घटना के बाद इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया गया, तो इसे संशोधित कर 18,799 कर दिया गया.
दुर्घटनाओं से निपटने के लिए भारतीय रेलवे क्या कर रही है?
भारतीय रेलवे ने पिछले कुछ सालों में सुरक्षा के कई उपाय किए हैं, जिससे ट्रेन संचालन की सुरक्षा में सुधार हुआ है. पीआईबी में छपी एक रिपोर्ट में रेलवे ने दुर्घटनाओं का ट्रेंड एक ग्राफ की मदद से बताते हुए समझाया कि कैसे रेल दुर्घटनाओं में कमी आई है.

भारतीय रेलवे का कहना है कि साल 2004 से 2014 की अवधि के दौरान रेल दुर्घटनाओं की औसत संख्या 171 प्रति वर्ष थी, जबकि वर्ष 2014 से 2023 की अवधि के दौरान रेल दुर्घटनाओं की औसत संख्या घटकर 71 प्रति वर्ष रह गई है. साल 2014-15 से 2022-23 की अवधि के दौरान रेल दुर्घटनाएं वर्ष 2014-15 में 135 से घटकर 2022-23 में 48 हो गई हैं.
रेलवे सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों में कवच प्रणाली, राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष बुनियादी ढांचे का विकास और नई टेक्नोलॉजी का उपयोग प्रमुख हैं.