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जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने और परिवार के तेवर सातवें आसमान पर जा पहुंचे...

आज जब प्रज्ज्वल रेवन्ना पर कई महिलाओं के साथ कथित यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं ऐसे में उस समय के देवेगौड़ा परिवार के सत्ता के दंभ पर नजर डाली जा सकती है जब एच.डी. देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा (सफेद कुर्ते में) और ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉन मेजर (1996-97)
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा (सफेद कुर्ते में) और ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉन मेजर (1996-97)
अपडेटेड 8 मई , 2024

अंग्रेजी इतिहासकार लॉर्ड एक्टन का एक मशहूर कथन है, "सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता तो बिलकुल भ्रष्ट करती है." यहां पूर्ण सत्ता से मतलब एक ऐसी स्थिति से है जहां लोगों को असीमित शक्ति का एहसास होता है, उन्हें लगता है अब कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है. कर्नाटक के हासन से जनता दल (सेक्युलर) के सांसद प्रज्ज्वल रेवन्ना पर लगे कई महिलाओं के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों को देखकर सत्ता के इसी हनक और सनक का आभास होता है. 

लेकिन गौड़ा परिवार का सत्ता के विशेषाधिकारों से चौंधियाना कोई नई बात नहीं है. जब प्रज्ज्वल के दादा एच.डी. देवेगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने तो उस समय भी परिवार के सदस्यों का बड़बोलापन हावी था. मनमर्जियां थीं. परिवार के विदेश यात्रा के शौक के चलते उस समय यह परिवार देश में उपहास का पात्र भी बना. इन खबरों ने तब खूब सुर्खियां बटोरीं. उस समय इंडिया टुडे की संवाददाता हरिंदर बवेजा ने इन सब बातों पर बेंगलोर से एक विस्तृत रिपोर्ट की थी.

उस रिपोर्ट के जरिए गौड़ा परिवार को न सिर्फ करीब से समझा जा सकता है बल्कि उनकी सत्ता की हनक को एक हद तक महसूस भी किया जा सकता है. 

इंडिया टुडे के 21 जनवरी-5 फरवरी, 1997 के छपे अंक में बवेजा अपनी रिपोर्ट की शुरुआत तीन सामान्य नियमों के जिक्र के साथ करती हैं जो किसी भी देश के प्रथम परिवार पर लागू होता है. यहां प्रथम परिवार से मतलब उस खास परिवार से है जो किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का होता है. जैसे अमेरिका में राष्ट्रपति का परिवार प्रथम परिवार कहा जाता है. इन तीन नियमों में पहला यह कि प्रथम परिवार के हर सदस्य को यह जान लेना चाहिए कि उसकी चाल-ढाल, रहन-सहन, बातचीत से लेकर पहनावे तक पर रोजाना लोगों की कड़ी नजर रहेगी. और इसलिए उसे अपनी आलोचना सहने की आदत होनी चाहिए. 

पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा का पूरा कुनबा
पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा का पूरा कुनबा

दूसरा, प्रथम परिवार को अपना मुंह बंद रखना, होठों को सिलकर रखना और लोगों की जिज्ञासा और ईर्ष्या बर्दाश्त करना आना चाहिए. नाराजगी जाहिर करने से बेहतर है कि वह अपने व्यक्तित्व से देश की जनता का मन मोहने का विकल्प अपनाए. तीसरा और आखिरी नियम जो एकदम सीधा-सादा है, वो ये कि प्रथम परिवार को आदर्श माना जाता है. अगर उसे जरा भी अधिक विशेषाधिकार प्राप्त या थोड़ा सा भी भ्रष्ट समझ लिया गया तो उसकी सारी इज्जत धूल में मिल जाती है. 

बवेजा कटाक्ष करते हुए लिखती हैं, "लेकिन भारत सरकार के प्रोटोकॉल विभाग के पास शायद ऐसे नियमों की कोई पुस्तिका नहीं है क्योंकि एच.डी. देवेगौड़ा का परिवार इन सबसे मुक्त दिखता है." वे ऐसा इसलिए लिखती हैं क्योंकि प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के बड़े बेटे बालकृष्ण गौड़ा (तब 41 साल) जब भी पत्रकारों से मिलते हैं तो बहुत तैश में मिलते हैं. वे उनसे कहते हैं, "आप तो वेश्याओं से भी गिरे हुए हैं जिन्हें सिर्फ एक बोतल शराब से खरीदा जा सकता है. है ना?" 

एक छोटे से किसान परिवार से निकल कर पहले मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री बनने तक का सफर देवेगौड़ा के लिए आसान नहीं रहा. बवेजा लिखती हैं,"देवेगौड़ा के परिजनों समेत किसी ने नहीं सोचा था कि वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे." वे लिखती हैं कि नियति भी अजब खेल दिखाती है. नरसिंह राव (देवेगौड़ा से पहले प्रधानमंत्री) ने अपना राजनैतिक जीवन समाप्त जानकर किताबों की 70 पेटियां बेटे राजेश्वर राव के घर पार्सल कर दी थीं, तभी उन्हें प्रधानमंत्री बनने का बुलावा मिला. उसी तरह देवेगौड़ा भी कर्नाटक भवन में आराम फरमा रहे थे कि उन्हें देश की बागडोर सौंप दी गई. 

लेकिन देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके परिवार के लिए मीडिया की नजरों से बचना आसान नहीं था क्योंकि उनका परिवार इस पद से जुड़े रुतबे का खूब लुत्फ उठा रहा था. परिवार के विदेश यात्रा के शौक के चलते उसका पूरे देश में मजाक बन रहा था. उस साल जिंबाब्वे की राजधानी हरारे में जी-15 की बैठक हुई थी. देवेगौड़ा की पत्नी चनम्मा ने दूसरी प्रथम महिलाओं के साथ समय गुजारते हुए उन्होंने जिंबाब्वे की प्रथम महिला लेडी ग्रेस मुगाबे की लगाई मूर्तिकला प्रदर्शनी में जाने की जिद्द पकड़ ली जबकि उन्हें उनके पोते-पोतियों के पास दक्षिण अफ्रीका ले जाने वाला विमान कुछ ही मिनटों में उड़ने वाला था. 

बवेजा लिखती हैं कि हरारे में छुट्टियां बिताने को लेकर उठे विवाद पर यह परिवार अब भी लाल-पीला हो जाता है. बालकृष्ण कहते हैं, "आप लोग यह चाहते हैं कि हम भिखारियों की तरह रहें. हम सब कमाते हैं. क्या हम अपने बच्चों के लिए खर्च नहीं कर सकते? क्या तीन लाख रुपये इतनी बड़ी रकम होती है?" हालांकि देवेगौड़ा परिवार में बालकृष्ण के ये तीखे तेवर केवल उन तक ही सीमित नजर नहीं आते. 

एच. डी. रेवन्ना, जो देवेगौड़ा के दूसरे बेटे और प्रज्ज्वल रेवन्ना के पिता हैं, के बारे में बवेजा लिखती हैं, "देवेगौड़ा के दूसरे बेटे और होलेनरसीपुर के विधायक एच. डी. रेवन्ना भावी मुख्यमंत्री जैसा बर्ताव करते हैं जबकि उन्हें राज्य का आवास और स्लम मंत्री बने मात्र छह महीने हुए हैं." वे आगे लिखती हैं कि रेवन्ना 1987 से 1992 तक मंडल पंचायत या जिला परिषद् के सामान्य सदस्य थे. बाद में वे हासन दुग्ध संघ के निदेशक और अध्यक्ष बने. 1994 में विधायक बनने के बाद पिता के राज्य से केंद्र में जाने पर वे मंत्री बने, और उन्होंने अपना विभाग भी खुद चुना.

देवेगौड़ा की तरह ही रेवन्ना नियतिवादी हैं और वे अक्सर भविष्यवक्ताओं की शरण में रहते हैं. प्रधानमंत्री पुत्र होने की अहमियत से वाकिफ रेवन्ना ने 'अनुग्रह' (मुख्यमंत्री रहते समय देवेगौड़ा का निवास) को अपने नाम आवंटित करा लिया है. उनका यह जलवा है कि कर्नाटक आने वाले केंद्रीय मंत्री भी उनके दरबार में जाना नहीं भूलते. देवेगौड़ा के तीसरे बेटे एच. डी. कुमारस्वामी (जो बाद में राज्य के मुख्यमंत्री भी बने) के बारे में बवेजा की रिपोर्ट बालकृष्ण और रेवन्ना के मुकाबले थोड़ी नरमी दिखाती है.

देवेगौड़ा परिवार का वंशवृक्ष
देवेगौड़ा परिवार का वंशवृक्ष

कुमारस्वामी के बारे में बवेजा लिखती हैं, "देवेगौड़ा के तीसरे बेटे और कनकपुरा से सांसद एच. डी. कुमारस्वामी अपने भाइयों बालकृष्ण और रेवन्ना के मुकाबले विवादों से परे दिखते हैं. वे बेझिझक कहते हैं कि वे किसान नहीं हैं. वे एक फिल्म वितरण कंपनी और तीनों भाइयों के साझा मालिकाने वाला एक सिनेमा हॉल चला रहे हैं. वे देवेगौड़ा परिवार की छवि धूमिल होने को लेकर सचेत दिखते हैं." हालांकि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि जब कुमारस्वामी को सफदरजंग लेन में मंत्रियों वाला बंगला आवंटित हुआ तो उन पर पक्षपात के आरोप लगाए गए. 

इन आरोपों पर कुमारस्वामी का कहना था कि ये एसपीजी सुरक्षा के इंतजाम का हिस्सा था. इसके अलावा केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक उनकी पत्नी अनिता को जब पूर्व पेट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा (वरिष्ठ कांग्रेस नेता) ने अपने कोटे से पेट्रोल पंप आवंटित किया तो एक नया विवाद खड़ा हुआ. सवाल पूछे जाने पर बालकृष्ण ने उखड़ते हुए जवाब दिया था, "यह आवंटन उस समय हुआ जब हमने कर्नाटक में कांग्रेस का बिस्तर गोल कर दिया था. किसने उन्हें इस आवंटन के लिए कहा था?" बवेजा लिखती हैं कि यह तर्क अजीब लग सकता है पर यह देवेगौड़ा परिवार की मन:स्थिति का संकेत है. अतिरिक्त जानकारी ये कि कुमारस्वामी ने बाद में पहली पत्नी अनिता को छोड़ दिया और साउथ की एक्ट्रेस राधिका से शादी कर ली. राधिका कुमारस्वामी से करीब 28 साल छोटी हैं. 

देवेगौड़ा परिवार के तीखे तेवर और इस तल्खी के पीछे वजह बताते हुए बवेजा लिखती हैं,"इस तरह सुविधा बटोरने की बातों से पर्दा उठने के कारण ही ये लोग खफा हैं. वे ये मान कर चल रहे हैं कि राज्य को उनकी धुन पर नाचना ही चाहिए." उनके कहने पर बेंगलोर पुलिस ने आनन-फानन में प्रो. वेंकटगिरि गौड़ा के खिलाफ मुकदमा दायर कर लिया. वेंकटगिरि ने एक किताब में प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के बारे में लिखा था कि वे "भ्रष्टाचार के सरगना" हैं. यही नहीं, जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने तो उसके फौरन बाद राज्य मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर हासन में हवाई अड्डा बनाने के रेवन्ना के प्रस्ताव को पास कर दिया गया. 

देवेगौड़ा की दो बेटियों में से एक अनुसूया के बारे में बवेजा अपनी रिपोर्ट में लिखती हैं कि श्रीजयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी में हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. सी. एन. मंजुनाथ की पत्नी अनुसूया का परिवार भी विवादों में रहा है. "प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए दिल्ली जाने से पहले देवेगौड़ा ने मुख्यमंत्री के रूप में जो फैसले लिए उनमें से एक उस संस्थान में तीसरी और चौथी श्रेणी के करीब 100 कर्मचारियों की नियुक्तियों को नियमित करना था. बताया जाता है कि यह फैसला उन्होंने दामाद का मन रखने के लिए किया था."

अपनी स्टोरी को समेटते हुए बवेजा अंत में लिखती हैं, "देवेगौड़ा ने साधारण किसान की अपनी जो छवि बनाने का प्रयास किया है (इसी रिपोर्ट में उन्होंने एक जगह लिखा कि छवि चमकाने के लिए धोती-कुर्ता और चप्पल पहनना राजनीति के देवेगौड़ा के खेल का हिस्सा है) उनका परिवार इस खांचे में फिट नहीं बैठता. यह एक ऐसा परिवार है, जो अपने बारे में कोई टिप्पणी पसंद नहीं करता." अनुसूया कहती हैं, "देवेगौड़ा ही नहीं, हर कोई प्रेस से नफरत करता है." बवेजा अपनी अंतिम टिप्पणी के साथ रिपोर्ट खत्म करती हैं कि देश का प्रथम परिवार होने के फायदे तो हैं लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके साथ जवाबदेही भी जुड़ी होती है.

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