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1984 का लोकसभा चुनाव : जब दक्षिण भारत की एक नई-नवेली पार्टी देश की मुख्य विपक्षी पार्टी बनी

1984 के आम चुनाव के दौरान पूरे देश में कांग्रेस की जबर्दस्त लहर थी लेकिन यह आंध्र प्रदेश में काम नहीं कर पाई

एन. टी. रामाराव
एक रैली के दौरान एन. टी. रामाराव
अपडेटेड 1 जनवरी , 2024

साल 1984 में हुए आठवें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रिकॉर्डतोड़ बहुमत हासिल हुआ था. तब पार्टी ने 543 में से 414 सीटों पर जीत हासिल की थी. ये चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के दो माह बाद आयोजित हुए थे, और इससे देश में कांग्रेस के प्रति जबर्दस्त सहानुभूति देखने को मिल रही थी. अपना पहला चुनाव लड़ रही भारतीय जनता पार्टी को जहां दो सीटें नसीब हुई थीं, तो देश के अन्य हिस्सों में भी बाकी पार्टियों का कमोबेश यही हाल था.

लेकिन देश का एक राज्य ऐसा था, जहां कांग्रेस सहानुभूति की लहर के बाद भी बुरी तरह विफल रही. यह आंध्र प्रदेश था जो उस समय दक्षिण भारत का सबसे बड़ा राज्य हुआ करता था. कांग्रेस को पटखनी देने वाली पार्टी का नाम तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) था, जिसे बने हुए बमुश्किल तीन साल भी नहीं हुए थे. कांग्रेस की उस घनघोर लहर में टीडीपी एक क्षेत्रीय पार्टी होते हुए भी मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी.

यह पहली बार था, जब दक्षिण भारत की कोई पार्टी मुख्य विपक्षी की भूमिका में थी. आंध्र प्रदेश में टीडीपी 32 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिनमें से 28 पर उसे जीत मिली थी. उसने कुल 30 सीटें हासिल की थीं, और लोकसभा में कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी बन गई थी. यानी अब वो मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में आ गई थी. इस पर इंडिया टुडे मैगजीन के 15 जनवरी, 1985 के अंक में संवाददाता अमरनाथ के. मेनन ने एक विस्तृत स्टोरी की थी. उस रिपोर्ट के हवाले से आइए जानते हैं टीडीपी इस मुकाम पर कैसे पहुंची थी. 

कांग्रेस विरोध में हुआ था टीडीपी का गठन 

एक लोकप्रिय तेलुगु अभिनेता से नेता बने एन. टी. रामाराव ने कांग्रेस के विरोध में 29 मार्च, 1982 को तेलुगु देशम पार्टी बनाई थी. अगले साल हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत मिली, और रामाराव प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री बने. अमरनाथ मेनन लिखते हैं, "शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने 60 की उम्र में पार्टी बनाई हो, मुख्य किरदार में हो, और उसे यकायक इतनी बड़ी सफलता भी मिल गई हो. लेकिन रामाराव ने इसे सफलतापूर्वक कर दिखाया था. अप्रैल में तीन साल की होने वाली पार्टी ने पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को चित्त किया, और अब लोकसभा में 30 सीटें जीतकर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई थी."

एन. टी. रामाराव का करिश्मा

टीडीपी ने तब राज्य के हरेक कोने में जीत दर्ज की. इस जीत से पार्टी ने इस सिद्धांत को भी कमजोर किया था कि वह वन मैन, वन इलेक्शन पार्टी है जिसे केवल व्यापारी वर्ग का समर्थन प्राप्त था. पर वास्तव में लोगों में आकर्षण का केंद्र रामाराव ही थे. अमरनाथ लिखते हैं, "पार्टी की इस जीत को व्यापक रूप में देखें तो इसके पीछे रामाराव का ही वन मैन शो था, जिन्होंने चैतन्य रथम् पर सवार होकर दक्षिण भारत के इस सबसे बड़े राज्य में चुनाव अभियान छेड़ा था. वे खम्मम को छोड़कर सभी 42 चुनावी क्षेत्रों में गए. खम्मम इसलिए नहीं गए, क्योंकि वहां सीपीआई और सीपीएम अलग-अलग लड़ रही थीं, और इससे कांग्रेस के लिए जीतना आसान हो गया था."

कांग्रेस ने अनजाने में दिया मौका!

साल 1983 में रामाराव मुख्यमंत्री बने. लेकिन 19 माह बाद ही उन्हें अलोकतांत्रिक तरीके से पद से हटा कर भास्कर राव को मुख्यमंत्री बना दिया गया. उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी, और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रामलाल थे. अमरनाथ के मुताबिक, "कांग्रेस ने अनजाने में टीडीपी को सहायता पहुंचाई. उसने टीडीपी के भास्कर राव सहित 22 दलबदलुओं को अपनी पार्टी में शामिल किया. इससे लोगों में इस शंका को बल मिला कि रामाराव को मुख्यमंत्री पद से हटाने में उसकी मिलीभगत है." रामाराव ने अपने प्रचार अभियान में लोगों की इस भावना को और उभारा, और अपने लिए माहौल बनाने में सफल रहे, जो अंतिम में चुनाव परिणाम में नजर आया.

और भी फैक्टर रहे शामिल

एन.टी. रामाराव बतौर अभिनेता लोगों में बेहद लोकप्रिय थे. लोगों की उनसे डिमांड होती कि वे साल में कम से कम एक फिल्म जरूर करें. इसके अलावा चुनाव प्रचार के शुरुआती दिनों में उन्हें चोट लग गई थी, इससे भी लोगों की भावनाएं उनके साथ जुड़ी. रामाराव ने गरीबों और बेसहारों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की थीं, ये भी एक सकारात्मक पक्ष रहा था. जीतने के बाद उन्होंने सबसे पहले इंडिया टुडे के संवाददाता अमरनाथ को दिए इंटरव्यू में कहा था, "हमारी ये जीत तेलुगु देशम में लोगों के, खासकर गरीब लोगों के विश्वास को दिखाती है. उनका मुझ पर, मेरे पार्टी पर और मेरे उन तौर-तरीकों पर विश्वास है, जिसमें मैंने खुद को राज्य की भलाई के लिए समर्पित कर दिया है."

टीडीपी की अभी क्या है स्थिति?

वर्तमान में रामाराव के दामाद एन. चंद्रबाबू नायडू टीडीपी के सर्वेसर्वा हैं. 1995 में नायडू ने रामाराव को मुख्यमंत्री पद और पार्टी अध्यक्ष से बेदखल कर खुद कब्जा जमा लिया था. 2014 में तेलंगाना के अलग होने के बाद अब आंध्र प्रदेश में 25 लोक सभा सीटें और 175 विधानसभा सीटें हैं. 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में टीडीपी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा, और वह 23 सीटें ही जीत पाई. लोकसभा में तो प्रदर्शन और बुरा रहा, जहां उसे 25 में से केवल 3 सीटें ही नसीब हुईं. 2019 के विधानसभा चुनावों में टीडीपी को जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस ने हराया था. फिलहाल राज्य के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ही हैं. 

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