शेख हसीना प्रधानमंत्री पद के साथ बांग्लादेश भी छोड़ चुकी हैं. उनके बेटे सजीब वाजिद जॉय ने बीबीसी से बात करते हुए कहा है कि उनकी मां की उम्र 70 साल से ऊपर है और अब वे फिर सक्रिय राजनीति में नहीं आ पाएंगी.
अपना पद छोड़ने के बाद 5 अगस्त की शाम हसीना भारत के हिंडन एयरबेस में उतरीं और फिलहाल यहीं हैं. बांग्लादेश के छात्र संगठनों ने आरक्षण विरोधी अपने आंदोलन के दौरान 3 अगस्त को ही पीएम से इस्तीफे की मांग कर दी थी और आख़िरकार उनकी मुहिम कामयाब रही.
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब शेख हसीना को सत्ता से हटाने की कोशिश हुई हो. 2011 के दिसंबर में भारत से भेजी गई एक चिट्ठी ने शेख हसीना को उनके खिलाफ चल रही साजिशों के बारे में आगाह कर दिया था. उसके बाद शुरू हुई तख्तापलट को विफल करने की कवायद. इसके पीछे हसीना और उनकी पार्टी तो थी ही, भारत का एक ख़ुफ़िया संगठन भी था.
बांग्लादेश का इतिहास अगर देखें तो तख्तापलट के मामले में यह पाकिस्तान से कम नहीं. इस मामले में बांग्लादेश के लिए 1975 सबसे हलचल वाला साल था जब चार महीने में तीन बार देश में तख्तापलट हुआ. सबसे पहले 15 अगस्त को बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति मुजीबुर्रहमान की मेजर फारुक रहमान और मेजर राशिद ने हत्या कर दी और देश की सत्ता संभाली. इसके तीन महीने बाद ही रहमान और राशिद की सरकार को ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ ने उखाड़ फेंका. फिर नवंबर में, सैनिक विद्रोह में खालिद मुशर्रफ की हत्या कर दी गई और जनरल जियाउर्रहमान के हाथ में सत्ता की चाबी गई.
जियाउर्रहमान का दौर 6 साल तक चला मगर मई 1981 में कुछ सैन्य अफसरों ने उनकी भी हत्या कर दी. उन्हीं की पत्नी खालिदा जिया आगे चलकर बांग्लादेश की पीएम भी बनीं और फिलहाल विपक्ष का प्रमुख चेहरा हैं. इसके बाद भी दो बार, 1982 और 2006 में, दो बार सेना ने सत्ता संभाली.
2011-12 में शेख हसीना की सरकार की तख्तापलट की कोशिशों के पीछे कुछ सैन्य अफसर ही थे. इस मामले पर ढाका से सलीम समद ने इंडिया टुडे मैगजीन के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट की थी जिसमें उन्होंने पूरी साजिश की टाइमलाइन बताई. अपनी 2012 की रिपोर्ट में सलीम लिखते हैं, "पिछले साल (2011) दिसंबर के आखिर में नई दिल्ली से ढाका एक खुफिया चिट्ठी भेजी गई. यह चिट्ठी सीधे बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को पहुंचाई गई जिसमें चेतावनी दी गई थी कि बांग्लादेश की सेना में शामिल इस्लामी कट्टरपंथी तख्तापलट की योजना बना रहे हैं."
चिट्ठी मिलते ही बांग्लादेश का पीएम कार्यालय हाई एलर्ट के मोड में आ गया. हालांकि यह बात मीडिया में लीक भी नहीं हुई और इस तख्तपलट को विफल करने के लिए रणनीतियां भी तैयार हो गईं. इधर भारत में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के दो एयरबेस से भारतीय हेलीकॉप्टर हथियारों के साथ ढाका के लिए किसी भी पल उड़ान भरने को तैयार कर लिए गए थे. यहां तक सोच लिया गया था कि अगर शेख हसीना और अवामी लीग के नेताओं को देश छोड़ना पड़ा तो उन्हें निकालने और हवाई कवर भारतीय हेलीकॉप्टर देंगे.
2011 के दिसंबर के दौरान बांग्लादेश की खुफिया एजेंसी, डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फोर्सेज इंटेलिजेंस (DGFI), जो सीधे हसीना को रिपोर्ट करती थी, चुपचाप काम पर लग गई. इसका नेतृत्व मेजर जनरल शेख मामून खालिद कर रहे थे, जिन्हें पीएम ने खुद चुना था. उन्होंने साजिश में संदिग्धों के फोन, मैसेज और ईमेल टैप किए. सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नज़र रखी गई. इसके अलावा दिसंबर और जनवरी में कई गिरफ्तारियां भी की गईं.
इसी बीच बीएनपी की विपक्षी नेता खालिदा जिया ने चटगांव में एक सार्वजनिक रैली में आरोप भी लगाया कि सेना के अधिकारी "अचानक गायब होने" लगे हैं. खालिदा जिया को सलीम समद अपनी रिपोर्ट में "भारत विरोधी और हसीना से बेहद नफरत करनेवाली" कहते हैं. बांग्लादेशी सेना की मीडिया शाखा, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस डायरेक्टोरेट (आईएसपीआर) ने खालिदा को कोई भी बयान देने से परहेज करने की चेतावनी दी. सेना को चिंता थी कि लोगों के बीच तख्तापलट की खबर ना फ़ैल जाए.
सलीम समद बताते हैं कि फेसबुक ग्रुप 'सोल्जर्स फोरम' पर पोस्ट करके सैनिकों को सरकार के खिलाफ काम करने के लिए उकसाया गया था. सैन्य अकादमी से ग्रेजुएट मेजर सैयद मोहम्मद जियाउल हक, जो ढाका के मिलिट्री इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रशिक्षण ले रहा था, को मास्टरमाइंड के रूप में पहचाना गया. उसने अपने प्लान को 11 अन्य सैन्य अधिकारियों के साथ साझा करने के लिए यूके के नंबर वाले मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया था. अपने फेसबुक अकाउंट पर उसने दावा किया था कि "बांग्लादेश सेना के मध्यम स्तर के अधिकारी जल्द ही बदलाव लाएंगे". 8 जनवरी को प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन हिज्ब उत-तहरीर (पार्टी ऑफ लिबरेशन) ने उसकी पोस्ट के आधार पर भड़काऊ पर्चे बांट दिए.
इधर मेजर जियाउल हक नियमित रूप से अपने फेसबुक अकाउंट पर "आतंकवाद विरोधी एजेंटों" की तरफ से (बांग्लादेशी) सेना के अधिकारियों की गिरफ्तारी की खबर पोस्ट करते थे. इन आतंकवाद विरोधी एजेंटों में भारत की एजेंसी रॉ के एजेंट भी शामिल थे. मेजर जिया की ये ख़बरें ब्लॉग्स तक फैल गईं और यहां तक कि बीएनपी समर्थक अखबार 'अमार देश' ने भी उन्हें उठाया. DGFI और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने संदिग्ध साजिशकर्ताओं पर निगरानी रखी और उन्हें पता चला कि तख्तापलट की संभावित तारीख 10 या 11 जनवरी थी.
एक-एक करके साजिशकर्ताओं को पकड़ लिया गया और उन्हें ढाका स्थित सैन्य मुख्यालय में हिरासत में रखा गया. 19 जनवरी, 2012 को सेना ने इस साजिश का खुलासा किया. ढाका में आर्मी ऑफिसर्स क्लब में आयोजित अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में, ISPR के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल मुहम्मद मसूद रज्जाक ने दावा किया कि सरकार को गिराने और इस्लामी शासन स्थापित करने की साजिश के पीछे मध्यम स्तर के कट्टरपंथी मुस्लिम अधिकारी थे. दो सेवानिवृत्त अधिकारियों, लेफ्टिनेंट कर्नल एहसान यूसुफ और मेजर जाकिर को सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया और उन्होंने "साजिश में अपनी भूमिका स्वीकार की".
बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल मोहम्मद मैनुल इस्लाम ने तब बताया था कि मेजर जनरल और कुछ धार्मिक कट्टरपंथियों ने धार्मिक अधिकारियों को धर्म के प्रति जागरूक करने की योजना बनाई थी. जनरल का कहना था कि उन धार्मिक अधिकारियों फुसलाया गया, जिनके बारे में विद्रोहियों को लगा कि वे धार्मिक होने की वजह उनके झांसे में आ सकते हैं, ताकि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंकने की अपनी साजिश को अंजाम दिया जा सके."
21 जनवरी, 2012 को शेख हसीना ने कहा, "मैं बांग्लादेश की सेना को धन्यवाद देना चाहती हूं. अगर उन्होंने समय रहते साजिश का पर्दाफाश नहीं किया होता, तो बहुत बड़ी आपदा हो सकती थी. सेना ने लोकतांत्रिक सरकार को गिराने की साजिश को नाकाम करके देशभक्त ताकतों और देश को बचाया." उन्होंने अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी खालिदा पर उनकी सरकार को गिराने की साजिश रचने का आरोप भी लगाया था. बीएनपी ने इसे और साथ ही उन आरोपों को खारिज कर दिया कि खालिदा के बेटे और बीएनपी नेता तारिक रहमान असफल तख्तापलट के प्रयास में शामिल थे.
भारत ने तब भी बांग्लादेश की मदद की थी. शेख हसीना के कार्यालय से सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया था कि जैसे ही विद्रोह शुरू हुआ, भारत ने आपातकालीन स्थिति में ढाका में उड़ान भरने के लिए अपने विशेष बल 50 पैराशूट इंडिपेंडेंट ब्रिगेड को तैयार रखा. हसीना के लिए नई दिल्ली का समर्थन स्पष्ट था. यहां तक दिसंबर 2011 में शेख हसीना के लिए चिट्ठी भी डायरेक्टरेट ऑफ मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई), नई दिल्ली ने ही भेजी थी.