
तारीख थी 21 मई, 1991. देश के प्रधानमंत्री रह चुके 46 वर्षीय राजीव गांधी की बम हमले में हत्या कर दी गई थी. देश को यकीन नहीं हो रहा था कि इतने बड़े नेता के साथ ऐसा हो सकता है! पीएम पद पर रह चुके नेता की हत्या देश के लिए नई नहीं थी क्योंकि ठीक 7 बरस पहले ही भारत इंदिरा गांधी की हत्या का गवाह बना था.
जिन लोगों के लिए यह दुर्घटना 'वर्तमान' थी, उन्होंने तो देखा ही मगर बाद की पीढ़ी की भी यह जानने की लालसा बनी रही कि राजीव गांधी की मौत के बाद उस दिन हुआ क्या. इंडिया टुडे मैगजीन ने इस घटना के बाद राजीव गांधी की हत्या पर कवर स्टोरी छापी थी, जिसमें उस दिन के विवरण के साथ ही देश के माहौल के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलता है.

1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार के बाद राजीव गांधी तब पूर्व प्रधानमंत्री बन चुके थे. मगर किस्मत ने उन्हें तुरंत ही अगला मौका दिया था और दो साल बाद 1991 में ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी और अगले लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया था. अपने दोस्तों के बीच अक्सर 'वी शैल रिटर्न...' कहने वाले राजीव देशभर में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार में लगे.
चुनाव प्रचार के ही सिलसिले में तमिलनाडु गए राजीव गांधी की 21 मई, 1991 की रात को श्रीपेरुमबुदुर में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LITTE) कार्यकर्ताओं ने बम विस्फोट कर हत्या कर दी थी. शेखर गुप्ता, कविता शेट्टी और आनंद विश्वनाथन अपनी इंडिया टुडे की रिपोर्ट में बताते हैं, "राजीव गांधी की जिंदगी का सौदा उसी क्षण तय हो गया था जब बेल्ट का आखिरी बक्क्ल भी कस लिया गया. छोटे, पर गठीले कद वाली गहरे सांवले रंग की वह चश्माधारी औरत 30 से 40 की आयु के दरम्यान की थी. तमिलनाडु की किसी भी चुनाव सभा की भीड़ में वह औरत आसानी से घुलमिल जाती. लेकिन एक फर्क था-उसने सलवार-कमीज पहन रखी थी." यह महिला थी LITTE की आतंकवादी धनु.

राजीव गांधी की चुनावी यात्रा में बतौर सुरक्षाकर्मी चल रहे दिल्ली पुलिस के सब-इंस्पेक्टर प्रदीप गुप्ता ने इस दुर्घटना के महज तीन हफ्ते पहले ही कलकत्ता में इंडिया टुडे से कहा था कि उन्हें राजीव पर मंडराते खतरे का बखूबी एहसास है. उन्होंने कहा, "हम सावधान हैं. फिर भी अगर राजीव के साथ कोई घटना घटती है तो वह मेरी लाश गिरने के बाद ही संभव है." 21 मई की रात हुए बम हमले में 16 और लोग मारे गए थे जिसमें कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अलावा कई सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे.
इंडिया टुडे की 1991 की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस नेता जयंती नटराजन और जी.के. मूपनार ने ही सबसे पहले राजीव के शरीर को पहचाना. फिर एक पुलिस अधिकारी और तब मूपनार ने झुककर यह पता करने की की कि क्या उनमें प्राण हैं. पर उनकी हालत देखकर वे सन्न रह गए. मूपनार ने बताया, "जहां भी छुआ, खून और मांस ही हाथ लगा." राजीव के शरीर को या जो कुछ बचा था, उसे पुलिस वैन में डालकर मद्रास (अब चेन्नई) ले जाया गया.
इधर दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के गेट पर स्थित ब्रासी एवेन्यू पर तैनात सेना के जवान भी विशिष्ट लोगों की गाड़ियों के काफिले को संभालने में बुरी तरह व्यस्त हो चले थे. पाकिंग स्थल जल्दी ही सफेद एंबेसेडर कारों से भर गया और देश के चोटी के अधिकारी कैबिनेट सचिवालय के उस कमरे की ओर बढ़ चले जहां संकट के समय अहम फैसले किए जाते हैं.
आधी रात के आसपास जब कैबिनेट सचिव को राष्ट्रपति भवन बुलाया गया तब तक सेना बुलाने का फैसला किया जा चुका था. गृह मंत्रालय का कंट्रोल रूम संभाल रहे संयुक्त सचिव को निर्देश दिया गया कि वे सभी राज्यों के मुख्य सचिवों से सुरक्षा बलों को 'रेड अलर्ट' के लिए कह दें. 1984 के खूनी दंगों का केंद्र रही दिल्ली में सेना की 20 टुकड़ियां तत्काल तैनात की गई और उनके साथ अर्द्धैनिक बलों की 25 और टुकड़ियां लगा दी गईं.
तब राजीव गांधी का आवास रहे 10 जनपथ पर अधिकारियों को बम विस्फोट की खबर हादसे के 45 मिनट बाद रात 10.30 बजे मिली, लेकिन मौत की खबर की पुष्टि नहीं हो पाई. राजीव के सचिव विन्सेंट जॉर्ज ने बम विस्फोट की खबर सोनिया गांधी को दी. राजीव की मौत की खबर सोनिया को सबसे आखिर में तकरीबन 11.35 पर प्रियंका गांधी से मिलती है. इसके बाद प्रियंका घर की जिम्मेदारी संभाल लेती हैं और किसी को सोनिया के कमरे में नहीं जाने देतीं. उसी सुबह सोनिया चुनाव प्रचार के बाद अमेठी से लौटी थीं. लौटकर उन्होंने फोन पर राजीव से बात की थी.

हरिंदर बावेजा और आनंद विश्वनाथन अपनी 1991 की रिपोर्ट में बताते हैं, "मद्रास में पोस्टमार्टम हो रहा था और सोनिया, प्रियंका और राजेंद्र कुमार धवन वायुसेना के हवाई जहाज में वहां के लिए रवाना हो रहे थे. 10 जनपथ के बाहर भीड़ जमा हो चुकी थी. गुस्साई भीड़ ने पहले अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए को कोसा, फिर चंद्रशेखर, वी.पी. सिह और लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ भद्दे नारे लगाए गए. फोटोग्राफरों को पीटा गया. राष्ट्रपति की कार पर पत्थर फेंके गए. भीड़ में कोई चिल्लाया, "भाजपा का दफ्तर जला दो." तकरीबन 200 लोगों की भीड़ अशोक रोड की तरफ चल पड़ी लेकिन रास्ते में रामविलास पासवान का घर देख उनके अतिथि गृह को आग लगा दी."
अगले दिन सारा देश शोक में डूब चुका था. जन-जीवन थम-सा गया. पान-बीड़ी, चाय तक की दुकानें बंद हो गईं. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों की याद अब भी राजधानी दिल्ली में ताजा थी. सिख घरों से बाहर नहीं निकले. बहुत से दूसरों ने भी यही किया. कोई नहीं जानता था कि क्या होगा. कर्फ्यू लगा दिया गया. राज्यों में पुलिस मुस्तैद हो गई. कानून और व्यवस्था पर काबू रखने के लिए हर राज्य में कड़े इंतजाम किए गए.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ हिस्सों में कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं में मुठभेड़ हुई. कांग्रेस के लोगों ने भाजपा के पोस्टर-बैनर फाड़ दिए. तमिलनाडु में हत्याकांड के अगले दिन उत्तेजित भीड़ सड़कों पर निकली और तोड़फोड़-आगजनी करने लगी.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, राजीव गांधी के पार्थिव शरीर को लाने वाला वायुसेना का विमान सुबह 8 बजकर 20 मिनट बजे दिल्ली पहुंचा. सिर्फ सोनिया ही नहीं रो रही थीं. ताबूत जब विमान से उतारा जा रहा था तो तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन और उनकी पत्नी की आंखों में भी आंसू आ गए थे. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने राजीव के शव पर फूल रखे.
इसके बाद सोनिया और प्रियंका एंबुलेंस में सवार हो गईं. शव सीधा एम्स ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने राजीव का चेहरा प्लास्टर ऑफ पेरिस से ठीक करने की भरपूर कोशिश की लेकिन नाकाम रहे क्योंकि चेहरे की जगह सिर्फ एक डरावना छेद दिख रहा था जिसमें उन्होंने रुई भर दी और पट्टियां बांध दीं.
पोस्टमॉर्टम के बाद प्रियंका गांधी अमिताभ बच्चन के साथ राहुल गांधी को लेने के लिए हवाई अड्डे गईं और इसके बाद अंत्येष्टि की तैयारी देखने शक्ति स्थल पहुंच गईं. राहुल सीधे हावर्ड से आए थे जहां वे उस वक्त इंटरनेशनल रिलेशन्स की पढ़ाई कर रहे थे. राहुल अपने पिता के पास काफी देर तक बैठे रहे और जब तीन मूर्ति भवन से शक्ति स्थल की अंतिम यात्रा शुरू हुई तो हर तरफ नारे लग रहे थे, "राहुल, प्रियंका तुम मत घबराना, तुम्हारे पीछे है सारा जमाना."

शवयात्रा शहर की उन सड़कों पर निकल पड़ी जिनकी दीवारों पर राजीव के मुस्कराते चेहरे वाले पोस्टर अभी भी लगे हुए थे. ऊपर से खुद को संयमित पेश करते हुए राहुल गांधी अपने पिता को मुखाग्नि देने के बाद पीछे हटकर मां के कंधे पर हाथ रखते हैं. "राजीव गाधी अमर रहें" के नारे वातावरण में गूंज उठते हैं.

विभिन्न देशों के राज्याध्यक्ष और विदेशी राजनीतिक हस्तियां जैसे नवाज शरीफ, प्रिस चार्ल्स, बेनजीर भुट्टो भी वहां मौजूद थे. ऊंची उठती लपटों के सामने थकी-हारी सोनिया बेटे के कंधे पर सिर टिका देती हैं.
2024 में राजीव गांधी की हत्या को 33 साल हो गए. पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या में दोषी नलिनी को 1998 में फांसी की सजा सुनाई गई थी. साल 2000 में सोनिया गांधी के दखल पर नलिनी की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने तीन अन्य दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया और 2018 में तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल से सिफारिश की कि दोषियों को रिहा किया जाए. 12 नवंबर, 2022 को नलिनी को जेल से रहा कर दिया गया.
इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में दोषी ठहराए गए तीन श्रीलंकाई नागरिकों - मुरुगन उर्फ श्रीहरन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार - को भी समय से पहले अप्रैल, 2024 में जेल से रिहा कर दिया गया और फिर उन्हें श्रीलंका भेज दिया गया.