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संसद पर आतंकी हमला 2001 : इंडिया टुडे के पत्रकारों की आंखों-देखी

जब यह हमला हुआ उस समय इंडिया टुडे के संपादक प्रभु चावला खुद संसद के सेंट्रल हॉल में मौजूद थे

हमले के बाद संसद भवन में आडवाणी/इंडिया टुडे मैगजीन
हमले के बाद संसद भवन में आडवाणी/इंडिया टुडे मैगजीन
अपडेटेड 13 दिसंबर , 2024

तारीख थी 13 दिसंबर, 2001. भारत के सबसे ज्यादा सुरक्षित माने वाली जगहों में से एक—संसद भवन—इसी दिन आतंकी हमले का गवाह बना. यह देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान के अलावा एक कलंक भी था. जाहिर है कि इस हमले का उद्देश्य देश की राजनीतिक व्यवस्था को अस्थिर करना था.

आतंकवादियों की योजना थी कि वे संसद भवन पर हमला करें, अफरा-तफरी फैलाएं, और लोगों को बंधक भी बनाएं. भले ही वे अपनी योजना में असफल रहे, लेकिन 'क्या हो सकता था' यह सोचकर आज भी देश शर्मिंदा होता है. इंडिया टुडे मैगजीन ने 26 दिसंबर, 2001 के अंक में इस घटना पर कवर स्टोरी छापी थी.

सायंतन चक्रवर्ती, शरद गुप्ता, लक्ष्मी अय्यर और अंशुल अविजित की 2001 की रिपोर्ट से इस घटना की जमीनी हकीकत पता चलती है. इस रिपोर्ट के अलावा इंडिया टुडे मैगजीन के तत्कालीन संपादक प्रभु चावला 13 दिसंबर, 2001 को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में खुद मौजूद थे, जिन्होंने इस रिपोर्ट के इतर अंदर के दृश्य को बयां किया.

इंडिया टुडे मैगजीन का 26 दिसंबर, 2001 का अंक
इंडिया टुडे मैगजीन का 26 दिसंबर, 2001 का अंक

हमला कैसे हुआ

राज्यसभा सदस्य आर.के. आनंद उस दिन काम पर जा रहे थे, जब वे इस हमले के अनचाहे गवाह बने. जैसे ही वे संसद के प्रवेश द्वार के पास पहुंचे, अचानक एक धमाका हुआ और गोलियां चलने लगीं. चारों तरफ धुंआ भर गया और स्थिति अफरा-तफरी में बदल गई. आनंद ने अपने ड्राइवर को घटनास्थल से तेज़ी से दूर जाने का आदेश दिया. केवल 40 मिनट बाद, संसद परिसर खून और आतंक से भरा हुआ था.

ग्रेनेड और क्लाश्निकोव राइफलों से लैस पांच दुर्दांत आतंकवादी इस आत्मघाती मिशन को अंजाम देने आए थे. उनका उद्देश्य स्पष्ट था: ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना, घबराहट फैलाना, और भारत सरकार को इस हमले के जरिए एक संदेश देना. हमले ने देश को झकझोर दिया, लेकिन सुरक्षा बलों की त्वरित कार्रवाई के कारण स्थिति नियंत्रण में आ गई.

आतंकवादियों की योजना

पाकिस्तान से चलने वाले आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकवादी संसद परिसर में एक स्पष्ट योजना के साथ घुसे थे. उनका पहला कदम था सुरक्षा के सबसे बाहरी घेरे को तोड़ना. आतंकवादियों की कार, जो संसद का स्टिकर लगाए हुए थी, बिना किसी संदेह के प्रवेश द्वार से गुजर गई. जैसे ही वे मुख्य भवन के पास पहुंचे, कार ने तेज़ मोड़ लिया लेकिन उपराष्ट्रपति के काफिले की गाड़ियों से टकरा गई, जिससे उनका रास्ता रुक गया. इस टक्कर ने सुरक्षा अधिकारियों को सतर्क कर दिया.

संसद भवन पर हमले के दौरान सुरक्षाकर्मी/इंडिया टुडे मैगजीन
संसद भवन पर हमले के दौरान सुरक्षाकर्मी/इंडिया टुडे मैगजीन

आतंकवादी फिर अपनी कार छोड़कर मुख्य संसद भवन की ओर दौड़े. वे हथियारों से लैस होकर अफरा-तफरी मचाने के लिए तैयार थे. लेकिन सुरक्षा कर्मियों की तत्परता ने उनकी योजना को नाकाम कर दिया. सुरक्षा अधिकारी जे.पी. यादव ने वॉकी-टॉकी के जरिए सबसे पहले चेतावनी अलार्म बजाया था. सबसे पहले वे गोलीबारी का शिकार बने, हालांकि उनकी चेतावनी ने संसद कर्मचारियों को जल्दी से कार्रवाई करने का मौका दिया.

संसद के चारों ओर सुरक्षा व्यवस्था व्यापक थी, और कई लेवल की सुरक्षा थी. नतीजतन, संसद भवन के सभी प्रवेश द्वार जल्दी से बंद कर दिए गए, जिससे आतंकवादियों को घुसने से रोका गया. इस बीच आतंकवादी अपनी योजना को अंजाम देने में जुटे थे.

संसद के लिए संघर्ष

आतंकवादियों का हमला बहुत तेजी से हुआ. चार आतंकवादियों ने गेट नं 11 के पास एक दीवार पर चढ़कर छुपने की कोशिश की और गेट नं 5 की ओर बढ़ने का प्रयास किया, जहां से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आम तौर पर प्रवेश करते थे. लेकिन पहले से सतर्क सुरक्षा कर्मियों ने आतंकवादियों पर गोलियां चलाईं, जिससे तीन आतंकवादी गेट नं 8 और 9 के पास मारे गए. चौथा आतंकवादी संसद की पहली मंजिल पर चढ़ने के लिए दूरदर्शन के केबल का इस्तेमाल कर रहा था. इससे पहले कि वह कोई नुकसान कर पाता, वह भी मारा गया.  

पांचवां आतंकवादी, जो बाकी साथियों से अलग था, गेट 1 की ओर बढ़ा. वह गोलियां चला रहा था और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहा था. वह संसद की सीढ़ियों तक पहुंचा और खुद को बम से उड़ा लिया. उसने अपनी जान तो गंवाई ही, परिसर का भी नुकसान हुआ.

इस बीच संसद भवन के भीतर क्या चल रहा था, इसकी जानकारी प्रभु चावला ने अपनी रिपोर्ट में दी. वे लिखते हैं, "मैं सूचना और प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज और कांग्रेस सांसद श्यामा सिन्हा से बतिया रहा था कि एकाएक गोलियां चलने से हम चौंक उठे. इस समय केंद्रीय हॉल अमूमन खचाखच भरा रहता है और उस दिन वहां 250 से अधिक सांसद और कुछ मंत्री मौजूद थे. लेकिन किसी को भनक नहीं थी कि क्या हो रहा है. बाहर गोलियां चल रही थीं, पर हमें स्थिति की गंभीरता का एहसास तभी हुआ जब हमने एक स्ट्रेचर अंदर लाते देखा."

संसद भवन पर हमले के दौरान सुरक्षाकर्मी/इंडिया टुडे मैगजीन
संसद भवन पर हमले के दौरान सुरक्षाकर्मी/इंडिया टुडे मैगजीन

आजतक चैनल लगातार इस घटना की कवरेज दर्शकों तक पहुंचा रहा था. टीवी चैनल ने अचानक एक फ़्लैश चलाया कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पता नहीं चल पा रहा है, जबकि वे वास्तव में रेसकोर्स रोड पर थे.

प्रभु ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि केंद्रीय हॉल में टीवी सेटों से चिपके सांसद बाहर महज 50 गज की दूरी पर हो रही घटनाएं देख रहे थे. तभी गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अरुण जेटली और एम. वेंकैया नायडू के साथ प्रवेश किया. उनके साथ कांग्रेस के मनमोहन सिंह भी थे (जो बिना कुछ बोले पूरे समय आडवाणी के साथ रहे). तब तक गोलीबारी शांत हो चुकी थी, लेकिन जब आडवाणी ने परिसर का दौरा करने की इच्छा व्यक्त की तो सुरक्षाकर्मियों ने ना-नुकुर की. आडवाणी ने उनकी आपत्तियां दरकिनार कर दीं और गेट नं 5 की ओर बढ़ लिए जहां एक आतंकवादी की लाश पड़ी थी. आडवाणी परिसर का एक चक्कर लगाने के बाद ही संसद से गए.

पहली गोली चलने के 24 घंटे से भी कम समंय के भीतर, 14 दिसंबर शुक्रवार को सुबह 11 बजे संसद की बैठक चिंताजनक और शोकपूर्ण मुद्रा में हुई, और सामान्य कामकाज चल पड़ा.

हमले के बाद

आतंकी हमला नाकामयाब हो चुका था लेकिन इसके बाद का दृश्य हमले की भयावहता की गवाही दे रहा था. बम से छितराए शरीर के टुकड़े आसपास देखे जा सकते थे, वहीं जहां-तहां खून फैला हुआ था. टीवी क्रू, जो महात्मा गांधी की मूर्ति के पीछे शरण लिए हुए था, इस त्रासदी को फिल्मा रहा था जबकि सुरक्षा बल स्थिति को नियंत्रित करने के लिए काम कर रहे थे. मृतकों की संख्या गंभीर थी: छह सुरक्षा कर्मी और एक माली मारे गए, और कम से कम 18 लोग घायल हो गए, जिनमें 12 सुरक्षा कर्मचारी और एक कैमरामैन भी शामिल थे.

आतंकवादियों की योजना थी कि वे संसद के मुख्य भवन में घुसें, लोगों को बंधक बनाएं और पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करें. हालांकि, उनकी योजना कई कारणों से विफल हो गई. पहले तो संसद भवन के प्रवेश द्वारों को तुरंत बंद कर दिया गया, जिससे उनके प्रयासों को नाकाम किया गया. दूसरा, गेट 10 और 11 के बीच दीवार का निर्माण एक अप्रत्याशित अवरोध बनकर सामने आया. वहीं आतंकवादियों की कार चूंकि उपराष्ट्रपति की कारों के काफिले से टकराई थी, जिससे उसमें रखे विस्फोटकों के तार कट गए और वे निष्क्रिय हो गए.

खुफिया एजेंसियों ने बाद में खुलासा किया कि आतंकवादियों की ओर से इस्तेमाल की गई कार हमले से कुछ दिन पहले ही खरीदी गई थी. पड़ताल में यह भी पता चला कि आतंकवादियों के बैग में सूखे मेवे और अन्य खाने-पीने के सामान थे, यानी वे संसद में लंबी घेराबंदी की तैयारी करके आए थे.
हमले के 24 घंटे के भीतर दिल्ली में दो पाकिस्तानी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया, जो आतंकवादियों के साथ सेल फोन के जरिए संपर्क में थे. इससे यह पुष्टि हुई कि हमले की योजना लश्कर-ए-तैयबा के पाकिस्तान में बैठे आकाओं ने तैयार की थी.

सरकार की प्रतिक्रिया

हमले ने भारत की आतंकवाद के खिलाफ नीति पर गहरा प्रभाव डाला. सरकार ने जल्दी ही पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी समूहों के खिलाफ सख्त और आक्रामक कार्रवाई करने का संकल्प लिया. उस समय के गृह मंत्री एल.के. आडवाणी ने यह स्पष्ट किया कि सरकार आतंकवाद और इसके प्रायोजकों को समाप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाएगी, और कहा कि "आतंकवाद के खिलाफ युद्ध अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है."

इस हमले ने राजनीतिक तनाव भी पैदा किया. कुछ विपक्षी पार्टियों, विशेष रूप से कांग्रेस, ने सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रबंधन, जिसमें विवादास्पद आतंकवाद विरोधी कानून POTA का कार्यान्वयन भी शामिल था, की आलोचना की. कांग्रेस के प्रवक्ता रहे जयपाल रेड्डी ने यह कहते हुए POTA के असर पर सवाल उठाया कि यह कानून ऐसे हमले को रोकने में विफल रहा.

एक दिन का शोक और आत्ममंथन

हमले के अगले दिन, संसद ने अपनी सामान्य गतिविधियों को फिर से शुरू किया. सांसदों और सुरक्षा कर्मियों ने उन लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने उनकी रक्षा करते हुए अपनी जान गंवाई. टूटे हुए कांच और खून के धब्बे साफ किए गए, और संसद का कामकाज धीरे-धीरे सामान्य हो गया, हालांकि उस दिन के घाव कभी नहीं भरे जाएंगे.

शहीद सुरक्षाकर्मी को सम्मानित करते वाजपेयी/इंडिया टुडे मैगजीन
शहीद सुरक्षाकर्मी को सम्मानित करते वाजपेयी/इंडिया टुडे मैगजीन

उन सुरक्षा कर्मियों के परिवारों को जो ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवा बैठे थे मुआवजा दिया गया और उनके साहस को सराहा गया. हमले की याद लोगों के जेहन में गहरी धंस गई. यह भारत की संस्थाओं की कमजोरी और उन्हें बचाने वालों की बहादुरी का प्रतीक बन गई.

भारत के लिए, 13 दिसंबर 2001 आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया. यह हमला भले ही अपने उद्देश्यों में विफल रहा, मगर इसने दुनिया को यह दिखा दिया कि भारत जवाब देने के लिए तैयार है. यह हिंसा और अतिवाद के खिलाफ एकता का पल था, जिसमें देश की राजनीतिक नेतृत्व और नागरिक आतंकवाद के सामने दृढ़ खड़े थे. संसद हमले को अक्सर भारत का "ग्राउंड ज़ीरो" कहा जाता है, जब देश अपना राजनीतिक दिल खो देने के करीब था.

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