कनाडा और भारत, दोनों देशों ने 14 अक्टूबर को एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्काषित कर दिया. भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया तो वहीं कनाडाई पुलिस ने खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और भारत सरकार के कथित एजेंटों के बीच संबंधों का खुलासा किया है. 14 अक्टूबर को ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया.
दोनों ही देशों के रिश्ते पिछले कई दशकों में इतने ख़राब नहीं हुए थे. इस बीच पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कनाडा दौरा गौर करने लायक है जब उन्होंने कनाडा के साथ परमाणु संबंध स्थापित करने के अलावा खालिस्तान समर्थक तत्वों को भी कड़ा संदेश दिया था. साल 2010 में 26-27 जून को कनाडा के टोरंटो शहर में जी-20 की शिखर बैठक के लिए देश-विदेश के बड़े नेता जमा हुए थे.
इस बैठक को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की यात्रा पर इंडिया टुडे मैगजीन में सौरभ शुक्ल ने रिपोर्ट की थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "ताबड़तोड़ प्रभाव जमाने वाले इन 36 घंटों में मनमोहन सिंह जी-20 की शिखर बैठक में सम्मिलित हुए. उन्होंने एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की तो दूसरी तरफ वे ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून से भी मिले. यही नहीं, उन्होंने कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर के साथ एक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर भी किए. भारतीय समुदाय के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने 1985 में कनिष्क विमान में हुए बम विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजनों की तरफ हाथ बढ़ाया और राजनीतिक मरहम लगाते हुए कट्टरपंथी सिखों को हिंसा से दूर रहने को कहा."
यही वह मंच था जब ओबामा ने मनमोहन सिंह से कहा था, "जब आप आर्थिक विषयों पर बोलते हैं, तो दुनिया सुनती है."
कनाडा के टोरंटो शहर में कुछ खालिस्तानी समर्थकों ने मनमोहन सिंह की यात्रा का बहिष्कार करने का प्रयास किया था. उनकी यात्रा की तैयारी के दौरान कुछ स्थानीय सामुदायिक रेडियो स्टेशनों पर ऐसे भड़काऊ कार्यक्रम भी प्रसारित किए गए, जिनमें सिख समुदाय से मनमोहन सिंह की यात्रा का बहिष्कार करने की अपील की गई थी. लेकिन मनोहन सिंह पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उन्होंने कनाडा सरकार से इन लोगों की गतिविधियां रोकने के लिए और प्रयास करने का आह्वान किया और कहा, "जरूरत इस बात की है कि आप उन्हें अतिवाद फैलाने में धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल करने से रोकें."
हालांकि डॉ मनमोहन सिंह ने ना सिर्फ इस वैश्विक बैठक में भाग लेकर इन खालिस्तानी तत्वों को मुंहतोड़ जवाब दिया बल्कि पूरी दुनिया के सामने भारत देश का लोहा भी मनवाया था. लेकिन फिर भी भारी सुरक्षा के बावजूद कुछ लोग बैठक स्थल के पास एक छोटा सा प्रदर्शन आयोजित करने में कामयाब हो गए थे.
इंडिया टुडे मैगजीन की 2010 की रिपोर्ट में सौरभ शुक्ल ने लिखा, "वहां (कनाडा में) मंद पड़ गया खालिस्तान आंदोलन भारत के लिए एक समस्या रहा है. विशेष तौर पर ओंतारियो प्रांत में, जहां टोरंटो स्थित है और जो खालिस्तान आंदोलन का अड्डा बना हुआ है. खुफिया तंत्र अपेक्षाकृत कमजोर है. कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को कनाडा में उस समय खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, जब प्रदर्शनकारियों और खालिस्तानी कार्यकर्ताओं ने लगातार उनका पीछा किया था."
कमलनाथ पर 1984 दंगों में शामिल होने के आरोप लगे थे जिसकी वजह से कनाडा में खालिस्तानी ग्रुप ने उनका पीछा किया था. 2010 की जी-20 बैठक के दौरान मनमोहन सिंह ने दोहराया कि 1984 के दंगे भयावह थे. उन्होंने इसके लिए माफी मांगी और कहा कि उनकी सरकार पीड़ितों को राहत और मदद देने के लिए 'रचनात्मक' समाधान निकालने की कोशिश कर रही है. उनके कहने पर ही कनाडाई सांसदों के साथ उनकी मुलाकात के लिए दो कट्टरपंथी सिख सांसदों को बुलाने के लिए विदेश मंत्रालय से कहा गया.
सौरभ शुक्ल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मनमोहन सिंह की रणनीति उनके मरहम लगाने वाले तरीके से उपजती है, जिसमें उन लोगों को एक मौका और दिया जाता है, जो कट्टरपंथ का रास्ता छोड़ देते हैं. फिर वह कनाडा सरकार के भीतर दबाव के ऐसे बिंदु तैयार करने पर भी काम कर रहे थे, जिससे इन लोगों (खालिस्तानी समर्थक) के खिलाफ सरकारी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके. इनके प्रति राजनैतिक शरण के अपने कानूनों के कारण कनाडा सरकार भी अनिच्छुक ढंग से बर्ताव कर रही थी. इन्हीं खालिस्तानी समर्थकों पर पिछले कुछ समय में हुए हमलों के बाद से भारत-कनाडा रिश्ते में दरार आई है.
डॉ मनमोहन सिंह की इसी कनाडा यात्रा के दौरान भारत और कनाडा ने परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए और दशकों से चले आ रहे अविश्वास के दौर पर विराम लगा दिया था. दरअसल इंदिरा गांधी के शासनकाल में 1974 में भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था तब कनाडा ने इसके विरोध में भारत के साथ परमाणु समझौता ख़त्म कर लिया था. सिर्फ कनाडा ही नहीं बल्कि पश्चिम के लगभग सभी देश भारत के परमाणु परीक्षण करने के खिलाफ थे. इसके बाद जब 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था, तब भी परमाणु अप्रसार (नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी) के समर्थक कनाडा ने भारत से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और भारत की कड़ी आलोचना की थी.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2010 के परमाणु समझौते के दौरान भी कुछ नेताओं ने विरोध में कानाफूसी की थी, लेकिन कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर अपने इस फैसले पर दृढ़ थे कि भारत के साथ संबंध उनके लिए सबसे अहम हैं. उनका कहना था, "हम 1970 के दशक में नहीं रह रहे हैं. हमें आगे देखने की जरूरत है."
किसे पता था दो दशक भी पूरे न होने पाएंगे और इन संबंधों को किसी की नजर लग जाएगी. कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने हालिया बयान दिया है कि अगर पिछले साल कनाडा की धरती पर एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या के पीछे दिल्ली का हाथ है तो भारत ने एक ‘बहुत बड़ी गलती’ की है जिसे कनाडा नजरअंदाज नहीं कर सकता. भारत ने इन आरोपों को 'निराधार' बताते हुए खारिज कर दिया है और ट्रूडो पर राजनीतिक लाभ के लिए कनाडा के विशाल सिख समुदाय के तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया है.
भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव की शुरुआत कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा सितंबर 2023 में संसद में लगाए गए आरोपों से हुई थी. तब ट्रूडो ने दावा किया था कि उनकी सरकार हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय सरकार के एजेंटों के शामिल होने के आरोपों पर जांच कर रही है. भारत ने इन दावों को 'बेतुका' बताकर खारिज कर दिया था.
उस समय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि इन निराधार आरोपों का उद्देश्य खालिस्तानी आतंकवादियों और चरमपंथियों से ध्यान हटाना है जिन्हें कनाडा में शरण दी गई है.
भारत ने निज्जर की हत्या पर अपने दावे को पुष्ट करने के लिए बार-बार कनाडा सरकार से सबूत मांगे हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल कहा था कि भारत जांच से इनकार नहीं कर रहा, लेकिन उसने कनाडा से उस देश में खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या में भारतीय सरकार के एजेंटों की संलिप्तता के अपने आरोपों के समर्थन में सबूत देने को कहा है. हालांकि, कनाडा ने कहा है कि उसने भारत को सबूत मुहैया कराए हैं, जिसमें हत्या और हिंसक कृत्यों में भारत सरकार के एजेंटों की संलिप्तता साबित की गई है.
भारत की ओर से कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की बयानबाजी और कार्रवाई को 'वोट बैंक की राजनीति' बताना निराधार नहीं है. कनाडा में 2025 में चुनाव होने वाले हैं. चुनावों से पहले, खालिस्तान चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में पीएम ट्रूडो का इस तरह से बर्ताव करना उनकी तरफ से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को मजबूत करने का एक साधन प्रतीत होता है.
भारत के बाद कनाडा में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सिख आबादी है. वर्तमान में, कनाडा में सिखों की आबादी 770,000 से अधिक है, जो इसकी कुल आबादी का लगभग 2 प्रतिशत है. हालांकि कुछ ही दिनों पहले जस्टिन ट्रूडो को एक बड़ा राजनीतिक झटका लग चुका है जब कनाडाई संसद में जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता ने उनकी अल्पसंख्यक लिबरल सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. जगमीत सिंह को खालिस्तान समर्थक माना जाता है.