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कौन थे पीएम मोदी के ‘गुरु’ लक्ष्मणराव इनामदार?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे लक्ष्मणराव इनामदार एक दौर में नरेंद्र मोदी के पिता सरीखी भूमिका में थे और उन्होंने ही मोदी को ग्रेजुएशन-पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया था

अस्सी के दशक में निधन से कुछ वक्त पहले नरेंद्र मोदी के साथ लक्षमणराव इनामदार/इंडिया टुडे मैगजीन
अस्सी के दशक में निधन से कुछ वक्त पहले नरेंद्र मोदी के साथ लक्ष्मणराव इनामदार/इंडिया टुडे मैगजीन
अपडेटेड 11 जून , 2024

अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय, हेडगेवार भवन की निचली मंजिल पर स्थित कमरा नंबर 3 कभी नरेंद्र मोदी का हुआ करता था, जब वे संघ के प्रचारक थे. वहीं इसके ठीक सामने कमरा नंबर 1 अपनी बनावट में उतना ही सामान्य था, जितना बाकी कमरे. लेकिन इसमें रहने वाले व्यक्ति ऐसे थे, जो जब तक जीवित रहे, नरेंद्र मोदी हमेशा उनके सामने नतमस्तक रहे.

नाम था लक्ष्मणराव इनामदार. गुजरात के संघ में अव्वल हस्ती रखने वाले स्वयंसेवक. जब आप इनामदार या 'वकील साहब' के बारे में पढ़ेंगे तो अपने-आप ही समझ जाएंगे कि हाईस्कूल पास कर घर छोड़ने वाले नरेंद्र मोदी की चाय दुकान में नौकरी से लेकर देश के शीर्ष नेता बनने की कहानी क्या है. आखिर कौन थे इनामदार?

यह कहानी तब की है जब नरेंद्र मोदी को मीडिया पीएम मोदी कहकर संबोधित नहीं करती थी. इंडिया टुडे मैगजीन के 19 मई, 2014 के अंक में संदीप उन्नीथन ने लक्ष्मणराव इनामदार के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट की थी. संदीप लिखते हैं, "इनामदार का जन्म 1917 में पुणे से 130 किलोमीटर दक्षिण में खाटव गांव में हुआ था. एक सरकारी राजस्व अधिकारी की दस संतानों में से एक इनामदार ने 1943 में पुणे यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री लेते ही संघ का दामन थाम लिया था. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया और हैदराबाद में निजाम के शासन के खिलाफ मोर्चे निकाले. वे गुजरात में आरएसएस के प्रचारक के नाते आजीवन अविवाहित और सादे जीवन के नियम का पालन करते रहे."

2013 में आई मोदी की जीवनी 'द मैन, द टाइम्स' के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय इनामदार के प्रति मोदी की श्रद्धा के बारे में बताते हुए कहते हैं, "मैंने मोदी के मन में किसी और जीवित या मृत व्यक्ति के प्रति ऐसी श्रृद्धा नहीं देखी." वहीं बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य रहे शेषाद्रि चारी ने 2014 में इंडिया टुडे से कहा था, "नरेंद्र मोदी ने अपने शुरुआती साल संघ में गुजारे और उन पर सबसे ज्यादा असर वकील साहब का रहा."

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इनामदार से मोदी 1960 के शुरू में लड़कपन में पहली बार मिले थे. 1943 से गुजरात में नियुक्त इनामदार संघ के प्रांत प्रचारक थे जो नगर-नगर घूमकर लड़कों को शाखाओं में आने के लिए प्रोत्साहित करते थे. उन्होंने धाराप्रवाह गुजराती में जब वडनगर में सभाओं को संबोधित किया तो मोदी अपने भावी गुरू की वाक्पटुता पर मुग्ध हो गए.

1969 में नरेंद्र मोदी वडनगर स्थित अपना घर छोड़ चुके थे और रामकृष्ण आश्रम, बेलूर मठ में समय बिताते हुए अहमदाबाद जा पहुंचे. संदीप उन्नीथन की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक, वे वहां अपने चाचा की चाय की दुकान में काम करने लगे. कुछ समय बाद यहीं पर उनका एक बार फिर वकील साहब से संपर्क हुआ जो शहर में संघ के मुख्यालय हेडगेवार भवन में रहते थे.

नीलांजन मुखोपाध्याय बताते हैं, "इनामदार मोदी के जीवन में दोबारा तब आए जब वे उलझन में थे. मोदी 1968 में अपनी शादी से बचने के लिए घर से निकल आए थे. वापस लौटने पर जब उन्होंने देखा कि बीवी इंतजार कर रही थी तो वे अहमदाबाद चले गए." एक बार हेडगेवार भवन में अपने गुरु के संरक्षण में आने के बाद मोदी ने मुड़कर नहीं देखा.

इनामदार ने संघ के हजारों युवा कार्यकर्ताओं के साथ काम किया. वे अकसर रात के खाने पर उनके परिवारों से मिला करते थे. मोदी अपने गुरु के कक्ष के सामने कमरा नंबर 3 में रहते थे. हेडगेवार भवन में उनकी शुरुआत सबसे निचले स्तर से हुई. वे पौ फटते ही बिस्तर छोड़ देते, प्रचारकों के लिए चाय बनाते, पूरे कॉम्प्लेक्स (तब एक मंजिला इमारत हुआ  करती थी) की सफाई करते और गुरु के कपड़े धोते थे. यह सिलसिला एक साल तक चला.

मोदी ने बड़े करीब से देखा कि वकील साहब किस तरह राज्यभर में संघ का प्रचार करते थे. दरम्यानी कद-काठी वाले इनामदार हमेशा सफेद धोती-कुर्ता पहना करते थे. बहुत पढ़ते थे और अपने साथ एक ट्रांजिस्टर रेडियो रखते थे जिस पर बीबीसी वर्ल्ड सर्विस नियमित रूप से सुनते थे. जवानी में कबड्डी और खो-खो खेलने का शौक था लेकिन बाद में प्राणायाम से खुद को स्वस्थ रखते थे. इनामदार का स्वभाव दोस्ताना और बहुत ही सहज था, जब थोड़ा-बहुत खीझ जाते थे तो 'भले मानस' कहा करते थे.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक,  इस सादे चेहरे के पीछे एक कठोर संगठन निर्माता था. 1972 में उन्होंने औपचारिक रूप से नरेंद्र मोदी को संघ का प्रचारक बना दिया. पिता जैसे बन चुके इनामदार ने ही मोदी को बीए की डिग्री लेने के लिए राजी किया. उन्होंने कहा, "नरेंद्र भाई, ईश्वर ने तुम्हें कई गुण उपहार में दिए हैं, तुम आगे क्यों नहीं पढ़ते?" वकील साहब ने अपने शिष्य को दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोर्स की सामग्री लाकर दी. 1973 में मोदी ने राजनीति विज्ञान में बीए की डिग्री हासिल कर ली.

किताब ‘नरेंद्र मोदीः ए पॉलिटिकल बायोग्राफी’ के लेखक एंडी मरीनो ने इंडिया टुडे को बताया, "वकील साहब असल में गुजरात में संघ के जनक थे. मोदी के घर छोड़ने और अहमदाबाद आने के बाद से उन्होंने उनके पिता की जगह भी ले ली थी."

संदीप अपनी 2014 की रिपोर्ट में लिखते हैं, "लक्ष्मणराव के एकमात्र जीवित 85 वर्षीय सहोदर गजानन इनामदार अहमदाबाद इलेक्ट्रिक कंपनी से रिटायर हुए हैं. उन्होंने याद करते हुए बताया कि घनी काली दाढ़ी वाला मजबूत कद-काठी का नौजवान 1970 के दशक के शुरू में अपने क्रीम कलर के बजाज स्कूटर पर उनके भाई को छोड़ने आया करता था और दस साल के उनके बेटे दीपक को स्कूटर चलाना सिखाता था." ये नरेंद्र मोदी थे.

गुजरात में सोमनाथ मंदिर में संघ प्रचारकों के साथ नरेंद्र मोदी (दाएं)/इंडिया टुडे मैगजीन
गुजरात में सोमनाथ मंदिर में संघ प्रचारकों के साथ नरेंद्र मोदी (दाएं)/इंडिया टुडे मैगजीन

1975 में देश में इमरजेंसी की घोषणा के साथ ही आरएसएस पर भी बैन लग गया. जगह-जगह संघ कार्यकर्ता दबोचे जाने लगे थे. ऐसे में नरेंद्र मोदी और उनके गुरु इनामदार ने अंडरग्राउंड होना ही मुनासिब समझा. उन्होंने अगले कुछ महीने भेस बदलकर बिताए. इनामदार ने धोती-कुर्ते की जगह कुर्ता-पायजामा पहनना शुरू कर दिया. वहीं मोदी ने दो भेस धारण किए, एक सिख का और एक संन्यासी का, ताकि पुलिस को चकमा दे सकें. संघ के दूसरे कार्यकर्ताओं की तरह वे संघ के शुभचिंतकों के घरों में रहते थे जिससे पुलिस के लिए उन्हें पकड़ पाना मुश्किल था.  

आपातकाल के दौरान भी संघ को जिंदा रखने की मोदी की कोशिशों ने ही उन्हें संघ की सीढ़ियां चढ़वाई. पहले उन्हें वडोदरा जिले का विभाग प्रचारक बनाकर वडोदरा भेजा गया और 1979 तक वे नादियाड़, डांग और पंचमहल जिलों के संभाग प्रचारक हो गए. एक बार फिर अपने गुरु इनामदार के कहने पर मोदी ने 1982 में गुजरात यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए किया.

1980 के दशक की शुरुआत में ही संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इनामदार को कैंसर होने का पता चला. 1984 में उनका निधन हुआ मगर वे अंत तक संघ का काम करते रहे. नरेंद्र मोदी ने उनके निधन के बाद अपने गुरु की डायरियां संभाल कर रख ली थीं. इनामदार की मौत ने मोदी के जीवन में खालीपन भर दिया. यह खालीपन कितना गहरा था, उन्होंने मरीनो को बताया. मोदी ने कहा, "उन दिनों मुझे जब भी कोई समस्या आती थी तो मैं उनसे बात करता था. अब अपनी सोच की प्रक्रिया में मैं ऑटोपायलट हूं."

शायद जानकर हैरत हो मगर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री आवास में पहली बार 2014 में नहीं बल्कि 2001 में ही कदम रखे थे. तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री हुआ करते थे और वे दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव थे. प्रधानमंत्री आवास उस वक्त 7 रेसकोर्स रोड कहलाता था. 18 अगस्त, 2001 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपने प्रेरणास्रोत और गुरु रहे लक्ष्मणराव इनामदार के बारे में लिखी किताब का विमोचन कराने मोदी प्रधानमंत्री आवास गए थे. उन्होंने तब शायद सोचा भी नहीं होगा कि 13 साल बाद वही मकान उनके आवास में तब्दील हो जाएगा.

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