
सिनेमा का पर्दा हो या हक़ीक़त की ज़मीन, दोनों ही जगहों पर हथियारों के दलाल (वेपन या आर्म्स डीलर) चुपके-चुपके ही अपना काम करते नज़र आते रहे हैं. लेकिन अपने वक़्त में सबसे बड़ा आर्म्स डीलर रहे अदनान खाशोगी का दावा था कि वह चाहे तो फोन उठाकर सऊदी अरब के शाह फहद या मिस्र के होस्नी मुबारक से सीधे बात कर सकता था. यहां तक कि सद्दाम हुसैन और जॉर्ज बुश को भी फोन घुमा सकता था.
इंटरनेट पर अदनान खाशोगी लिखते ही आपको कई-कई तरह से उकसाने और उत्तेजित करने वाली टाइटल के साथ बहुतेरे आर्टिकल्स मिल सकते हैं. इन्हीं ख़बरों के ढेर में कहीं आप ज़िक्र पाएंगे कि खाशोगी की दोस्ती भारत के प्रधानमंत्री और मिस इंडिया तक से थी. लिखा तो ये तक मिलेगा कि मिस इंडिया खाशोगी की 'प्लेज़र वाइफ़' थीं.
'प्लेज़र वाइफ़' यानी वो महिला जो कानून के मुताबिक पत्नी नहीं है, लेकिन उसकी भूमिका वही होती है. यह काम महिला पैसा और दूसरी वजहों से चुनती है. खाशोगी के बारे में कहा जाता है कि उसकी दुनियाभर में कई 'प्लेज़र वाइफ़' थीं.
खैर उसकी भारत यात्रा पर लौटते हैं. साल था 1991 और फरवरी का दूसरा हफ़्ता था. प्राइवेट जेट से एक शख़्स दिल्ली उतरा. पांच फीट, चार इंच की कद-काठी लिए अदनान खाशोगी इस प्राइवेट जेट में था. इंडिया टुडे हिंदी मैगज़ीन में 28 फरवरी, 1991 के अंक में हरिंदर बावेजा की रिपोर्ट से पता चलता है कि अपने दोनों बेटों मुहम्मद और ओमर, निजी सचिव, असिस्टेंट हेयर ड्रेसर और सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ जब खाशोगी डीसी-10 जहाज से नीचे उतरा तो उसका जोरदार स्वागत हुआ.
स्वागत करने वाले लोग भी ऐसे-वैसे नहीं थे. चंद्रास्वामी के साथी कैलाशनाथ अग्रवाल, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निजी सचिव सी.बी. गौतम और बीजेपी सांसद डॉ. जे.के. जैन ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया. चंद्रास्वामी जो उस दौर में सत्ता के सबसे करीबी 'बाबा' थे, को खाशोगी अपना गुरू और दोस्त मानता था.

भारत में अदनान खाशोगी के आने का मौका भी चंद्रास्वामी ने ही तैयार किया था. तय तो वर्तमान और पूर्व प्रधानमंत्री से मुलाकात भी थी, जो कि हुआ भी. हरिंदर बावेजा अपनी रिपोर्ट में लिखती हैं, "एयरपोर्ट पर स्वागत के बाद कारवां भोंडसी के आश्रम की ओर चल पड़ा. प्रधानमंत्री के इस निजी फार्म हाउस पर वे चंद्रशेखर और अपने गुरु चंद्रास्वामी से मिले."
प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, चंद्रास्वामी और अदनान खाशोगी एक-दूसरे से मिलकर काफी खुश थे. एक सीनियर पुलिस अधिकारी के अनुसार, "सब काफी खुश नजर आ रहे थे. खाशोगी इस बात से कि चंद्रास्वामी की प्रधानमंत्री तक सीधी पहुंच है. चंद्रशेखर इस बात से कि खाशोगी चंद्रास्वामी के कितने करीब है और चंद्रास्वामी इस बात से कि उन्होंने सही जुगाड़ आखिर बिठा ही लिया." लेकिन सब कुछ इतना ही खुशनुमा नहीं था. भारतीय राजनीति में हर बात पर बावेला खड़ा हो जाने का रिवाज रहा है. यहां तो एक वेपन डीलर और विवादित किरदार देश के प्रधानमंत्री से ही मिल-बैठकर दावतें उड़ा रहा था!
प्रधानमंत्री और खाशोगी की मुलाकात पर कई सवाल खड़े हुए. खाशोगी के लिए बीजेपी के एक नेता जे.के. जैन ने डिनर पार्टी का आयोजन किया था. इस पार्टी में मौजूद एक वरिष्ठ मंत्री का बयान हरिंदर बावेजा की रिपोर्ट में छपा है, "अगर आप सिर्फ अपने स्वामी के दर्शन को आए हैं तो फिर चंद्रेशखर और राजीव गांधी से मिलने का क्या मतलब? जब आप पर सरकार चलाने की जिम्मेदारी हो, तो आपको कोई नैतिक आधार बनाना ही होगा कि आपक किसके साथ भोजन करेंगे और किसके साथ नहीं."
प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उस पार्टी में करीब एक घंटे तक मौजूद रहे. इस दौरान वो खाशोगी और चंद्रास्वामी समेत पार्टी में शिरकत कर रहे दूसरे लोगों से बातचीत करते रहे. बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी पार्टी का न्यौता मिला था पर उन्होंने जाने से इनकार कर दिया था. तर्क ये दिया था कि, "मुझे दावत से कुछ देर पहले ही निमंत्रण मिला. मैं खाशोगी को बिलकुल भी नहीं जानता पर मैं ऐसी छवि वाले आदमी से मिलना भी नहीं चाहूंगा."

कैसी छवि की बात कर रहे थे आडवाणी? क्या इस छवि में सिर्फ हथियारों का दलाल होने का रंग भर ही था या कुछ और भी था जो इस मेल-जोल के लिए नासूर बना? करीब तीन दशकों तक हथियारों की खरीद-फरोख्त की दुनिया में आलम ऐसा था कि अगर अरबों डॉलर का सौदा हो रहा है तो ये मान कर चला जाता था कि उसमें खाशोगी की भूमिका ज़रूर होगी. इंडिया टुडे की उसी रिपोर्ट में न्यूयॉर्क से रेखा अलु ने लिखा है, "1989 में अमेरिकी अधिकारियों के अनुरोध पर स्विट्जरलैंड में गिरफ्तार किए जाने तक खाशोगी को रोकने वाली कोई ताकत नहीं थी." खाशोगी के पास 12 इमारतें, 100 मर्सिडीज कारें थी. उसे हथियारों के सौदों से सालाना लगभग 10 करोड़ डॉलर कमीशन मिलते थे. सऊदी अरब को करीब 80 फीसदी हथियार वो ही बेचता था.
अदनान खाशोगी के बारे में ये चर्चा रहा करती थी कि उसने अपने क्लाइंट्स को लैविश पार्टी और प्रॉस्टीट्यूट्स की सप्लाई करके ही ज्यादातर डील फाइनल कराई हैं. उसकी बायोग्राफी लिखने वाले रोनाल्ड केसलर के बयान का ज़िक्र कई मीडिया रपटों में मिलता है कि वो अपने दोस्तों और व्यवसायिक संबंधियों के लिए हर दिन 10 लड़कियों का इंतज़ाम रखता था.
लालकृष्ण आडवाणी भले ऐसी छवि के इंसान से नहीं मिलना चाहते थे लेकिन फारूक अब्दुल्ला, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, ओम प्रकाश चौटाला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने अलंबरदार नानाजी देशमुख, उद्योगपति जयंत मल्होत्रा, विष्णु हरि डालमिया और चंद्रास्वामी के साथ छह साधु खाशोगी से ज़रूर मिले.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भी मुलाकात हुई. खाशोगी ने राजीव गांधी से कहा था कि अरब दुनिया में अपने संपर्कों का इस्तेमाल करके वह खाड़ी युद्ध से पैदा हुए संकट में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका दे सकता है. उसने एक ऐसी ही बाद चंद्रशेखर से भी कही थी, जिसे जानकर उसकी घातक चतुराई का अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल नहीं है. खाशोगी ने चंद्रशेखर को बताया कि जॉर्डन के जरिए राजीव गांधी को बोफोर्स का पैसा कैसे मिला, वह इसकी जानकारी मुहैया करा सकता है. उसे मालूम था कि कांग्रेस (इंदिरा) के समर्थन पर निर्भर चंद्रशेखर के लिए यह जानकारी फायदे की हो सकती है. दरअसल खाशोगी दोनों गुटों को साधकर अपने फायदे के लिए एक-दूसरे का इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का आदमी था.
एक प्रस्ताव उसने आरएसएस के नानाजी देशमुख को भी दिया था. इस बारे में देशमुख ने खुद बयान दिया, "उन्होंने (अदनान खाशोगी) बताया कि वे मुझे ग्रामीण विकास के लिए पैसा देना चाहते हैं. मैंने बड़ी विनम्रता से यही कहते हुए इनकार कर दिया कि हम विदेशी पैसा नहीं लेते. मुझे पता नहीं था कि खाशोगी वहां होंगे वरना मैं वहां नहीं जाता."
खाशोगी की चार दिन की भारत यात्रा ने कई सवाल खड़े किए. इन सवालों की ज़मीन थी उसकी भारत के प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात. दरअसल भारत में उसे ये पहुंच चंद्रास्वामी ने ही दिलाई थी. और ये पहुंच मिस इंडिया पामेला चौधरी सिंह, जो शादी के बाद पामेल बोर्डेस हो गई थीं, तक भी थी.