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शादी के ठीक बाद मुलायम ने कहा- 'तैयारी करो' और अखिलेश पहली बार बने कन्नौज से सांसद

साल 1999 के आम चुनाव में मुलायम सिंह यादव को कन्नौज और संभल सीट पर जीती मिली थी. उन्होंने कन्नौज सीट छोड़ी दी तो उपचुनाव का ऐलान हुआ. मुलायम ने तब बमुश्किल 26 साल के अखिलेश की राजनीति में एंट्री कराई

अखिलेश यादव और डिंपल यादव के साथ मुलायम सिंह यादव, बोनी कपूर, अनिल कपूर (बाईं ओर) और श्रीदेवी (दाएं)
अखिलेश यादव और डिंपल यादव के साथ मुलायम सिंह यादव, बोनी कपूर, अनिल कपूर (बाईं ओर) और श्रीदेवी (दाएं)
अपडेटेड 19 जून , 2024

“मैं उसे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के लिए नामांकित तो नहीं कर रहा. मैं तो उसे लड़ाई में झोंक रहा हूं, अब संघर्ष करेगा, जेल जाएगा, लाठी खाएगा और सेवा करेगा.” समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने ये बात तब कही थी जब उनके अभी-अभी ब्याहे गए बेटे को कन्नौज से साल 2000 में लोकसभा उप-चुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित किया गया.

कांग्रेस के परिवारवाद को तब निशाने पर रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब तय किया कि अब विदेश से पढ़कर लौटा उनका बेटा नेतागिरी करेगा तो उनके परिवारवाद पर सवाल तो उठने ही थे. साल 1999 के नवंबर के आख़िरी हफ्ते की बात है. दिल्ली में सर्दी अपने चरम पर थी और कृष्ण मेनन मार्ग पर स्थित मुलायम सिंह यादव के सरकारी आवास पर रात धुंधलके में होने के बजाए चमक बिखेर रही थी.

एक जुटान जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रपति के. आर. नारायणन से लेकर अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी तक शामिल थे. मौका था मुलायम के बेटे अखिलेश यादव की शादी का. 1999 के आख़िरी वक्फ़े में 26 साल के युवा अखिलेश डिंपल के साथ सात फेरे ले रहे थे. तो वहीं नई सदी की शुरुआत में ही उनके पिता ने उन्हें चुनावी पैंतरों के फेर में डाल दिया.

इंडिया टुडे हिंदी मैगज़ीन के 9 फरवरी, 2000 के अंक में जावेद एम. अंसारी अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, “अभी वे अपनी शादी की खुमारी से पूरी तरह उबर भी न पाए कि उन्हें चुनावी रणनीति की बीहड़ जमीन पर लाकर खड़ा कर दिया गया. समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव के 26 वर्षीय सुपुत्र अखिलेश यादव को भी अंदाजा न था कि पिता ने कन्नौज की जो लोकसभा सीट खाली की थी उसके लिए होने वाले उप-चुनाव में उन्हें खड़ा कर दिया जाएगा.”

दरअसल 1999 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज और संभल की सीट से चुनाव लड़ा था. दोनों ही सीटों पर उनकी जीत हुई. जीत के बाद उन्होंने संभल सीट से सांसद रहने का फैसला किया और कन्नौज की सीट छोड़ दी. इसकी वजह से इस सीट पर उपचुनाव का ऐलान हुआ.

हरियाणा के धौलपुर के सैनिक स्कूल से पढ़ाई करने के बाद अखिलेश यादव ने मैसूर से बीएससी की डिग्री हासिल की. इसके बाद वो ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी से सिविल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगे. डिग्री लेकर भारत लौटे तो अखिलेश पर्यावरण के ही क्षेत्र में काम करना चाहते थे. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में अखिलेश का बयान मिलता है कि, "मैंने सोचा भी नहीं था कि यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा. मैं शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह से राजनीति से कटा हुआ था."

मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के साथ अखिलेश यादव
मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के साथ अखिलेश यादव

कहा जाता है कि वो समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र थे जिन्होंने मुलायम सिंह यादव को अखिलेश पर दांव खेलने का सुझाव दिया था. लेकिन इस युवा नेता का नाम सामने आने पर सपा समर्थकों का एक वर्ग रूठा भी. क्योंकि कन्नौज से दूसरे मजबूत दावेदार थे. एक नाम तो उन प्रदीप यादव का ही था जिन्होंने पहली बार 1998 के चुनाव में कन्नौज सीट पर सपा की जीत का परचम लहराया था. बाद में 1999 के आम चुनाव में प्रदीप यादव ने अपनी पार्टी के मुखिया के लिए ये सीट छोड़ दी थी.

तिस पर सिर दर्द ये था कि अखिलेश यादव के लिए ये चुनाव आसान नहीं होने वाला था. क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने यहां से अकबर अहमद डंपी को उम्मीदवार घोषित किया था. डंपी इस चुनाव से पहले एक बार बसपा की टिकट पर आजमगढ़ से सांसद बन चुके थे. उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी के साथ की थी. संजय गांधी के साथ डंपी के करीबी रिश्ते थे. हालांकि बाद में वो पार्टी से अलग हुए और बसपा के खेमे में आ गए.

डंपी के सामने अखिलेश यादव की कन्नौज में परीक्षा होनी तय थी. परीक्षा हुई भी. मुलायम सिंह यादव से लेकर जनेश्वर मिश्र तक अखिलेश के प्रचार में लगे रहे. आख़िरकार नतीजे अखिलेश के ही पक्ष में रहे. अखिलेश करीब 58 हज़ार वोटों के अंतर से डंपी को चुनाव हराकर पहली बार संसद पहुंचे.

इसके बाद लगातार दो बार यानी 2004 और 2009 में अखिलेश इसी कन्नौज से जीतकर संसद पहुंचते रहे. 2012 में उन्होंने ये सीट छोड़ी और अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया. डिंपल निर्विरोध सांसद बन गईं. 2014 में भी डिंपल को इस सीट पर जीत मिली. लेकिन 2019 में सपा को तब धक्का लगा जब बीजेपी के सुब्रत पाठक ने इस समाजवादी दुर्ग को भेद दिया. और इस हार का नतीजा ये हुआ कि 2024 में पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव 12 साल बाद फिर से कन्नौज लौटे और चुनाव लड़ा. इस बार उनके सामने बीजेपी के सुब्रत पाठक ही दम भर रहे थे. लेकिन नतीजे अखिलेश के पक्ष में रहे.

एक संकोच भरे युवा नेता से पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा अखिलेश यादव तय कर चुके हैं. उनकी अब तक की सियासी यात्रा के पहले और अभी के सिरे पर उन्हें पहली बार संसद का गलियारा दिखाने वाला कन्नौज ही है.

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