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भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध छिड़ा तो तबाही का मंजर क्या होगा?

भारतीय संसद पर 2001 के हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था और दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध की आशंका पैदा हो गई थी

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
अपडेटेड 7 मई , 2025

पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ चुका है. 22 अप्रैल के बाद से ही चारों तरफ से दोनों मुल्कों के बीच जंग की आशंका तेज हो गई थी. और अब भारतीय सेना ने 7 मई की रात को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और बहावलपुर में कुल मिलाकर नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइलें दागी हैं.

हालांकि इस हमले को लेकर भारत ने कहा है कि सेना की तरफ से सिर्फ आतंकवादियों के ठिकानों को निशाना बनाया गया है और उसके हमले पाकिस्तानी सेना के ढांचे पर नहीं किए गए. फिर भी ऐसी आशंका है कि पड़ोसी देश की सेना भारतीय कार्रवाई का जवाब देने की कोशिश करेगी.

ऐसे में दक्षिण एशिया के इन दोनों परमाणु हथियारों से संपन्न देशों के बीच एक पूरा युद्ध छिड़ने की आशंका है. पाकिस्तान के रूस में एंबेसडर मोहम्मद खालिद जमाली ने कहा भी है कि अगर भारत की तरफ से सैन्य हमला होता है या पाकिस्तान के पानी की सप्लाई रोकी जाती है कि उनका देश हर दर्जे की ताकत इस्तेमाल करेगा 'परंपरागत हथियार से लेकर परमाणु हथियार तक.' चूंकि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्तियां हैं, तो जंग की आशंका के बीच परमाणु हमले को लेकर डर कायम होना जायज़ है.

ऐसा ही डर 2002 में फैला जब भारत-पाकिस्तान दोनों ने 2001 के संसद हमले के बाद सीमा पर अपनी सैन्य गतिविधियां तेज कर दी थीं और बैलिस्टिक मिसाइलों को सीमा के पास तैनात कर दिया था. इंडिया टुडे मैगजीन के 10 जून, 2002 अंक में इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा ने अपनी रिपोर्ट बताया था कि परमाणु युद्ध छिड़ता है तो न सिर्फ भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया पर इसका क्या असर होगा.

इंडिया टुडे मैगजीन के 10 जून, 2002 अंक का कवर
इंडिया टुडे मैगजीन के 10 जून, 2002 अंक का कवर

राज अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, "3,500 साल पहले महाभारत में वर्णित हजार सूर्यों जैसी चमक के साथ परमाणु विस्फोट की शुरुआत होगी. दिल्ली के रायसीना हिल जैसे क्षेत्र में, जहां राष्ट्रपति भवन और साउथ-नॉर्थ ब्लॉक हैं, 50 किमी के दायरे में रहने वाले लोग अंधे हो जाएंगे. पहले सेकंड में तापमान सूर्य के समान दस लाख डिग्री तक पहुंचेगा, जिससे लोग भस्म हो जाएंगे."

राज बताते हैं कि विस्फोट के बाद, तूफानी हवाओं से भी तेज लहर 10 किमी के दायरे में इमारतें, पेड़ और जीवन नष्ट कर देगी. आग का तूफान फैलेगा, स्टील पिघल जाएगा, और रेत गर्म होकर फटेगी. बाहरी क्षेत्रों में लोग गंभीर जलन का शिकार होंगे. हवा के वापस लौटने से विशाल मशरूम बादल बनेगा, जिसमें रेडियोएक्टिव कण 100 किमी तक फैलकर घातक विकिरण फैलाएंगे. पहले घंटे में लगभग 2 लाख लोग मर सकते हैं, और महीनों बाद 1 लाख लोग कैंसर से पीड़ित होंगे. दिल्ली एक विशाल कब्रिस्तान बन जाएगी.

इंडिया टुडे मैगजीन - 10 जून, 2002
इंडिया टुडे मैगजीन - 10 जून, 2002

2002 में इस्लामाबाद के अभ्यास के बाद भारत ने भी चेतावनी दी थी कि वह इस तरह के हमले का “विशाल परमाणु जवाब” देगा, जिससे “पाकिस्तान का वर्तमान स्वरूप खत्म हो जाएगा.” अमेरिकी रक्षा विभाग के 2002 के अनुमान के अनुसार, दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध में 1.2 करोड़ लोग मर सकते हैं, और इतने ही गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं. यह संख्या भारत-पाकिस्तान के चार युद्धों में हुई 12,000 मौतों से कहीं अधिक है.

पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों, जैसे 1,500 किमी रेंज वाली ग़ौरी, का परीक्षण करवाया, जो भारत के प्रमुख शहरों को निशाना बना सकती हैं. मुशर्रफ ने अपने भाषण में भारत पर हमले की स्थिति में “आग का तूफान” छेड़ने की भी धमकी दी थी. भारत के विशेषज्ञों ने इसे घरेलू समर्थन और अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचने की रणनीति बताया. तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने इसे “खतरनाक और निराशाजनक” करार दिया था.

विशेषज्ञों का मानना था कि मुशर्रफ भारत को सीमित हमले से रोकने के लिए परमाणु दांव खेल रहे हैं. पाकिस्तानी सरकार अंतरराष्ट्रीय दखल की उम्मीद भी कर रही थी. राज चेंगप्पा अपनी 2002 की रिपोर्ट में लिखते हैं कि परमाणु हथियार का उपयोग तब होता है, जब राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में हो या “अस्वीकार्य क्षति” का डर हो. मुशर्रफ के मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जावेद अशरफ काजी ने कहा था, "अगर पाकिस्तान का विनाश होने की नौबत आई, तो परमाणु विकल्प का उपयोग भारत के खिलाफ करेंगे."

हालांकि, मुशर्रफ की मंशा अस्पष्ट थी. भारत अगर कश्मीर में सीमित युद्ध की बात करता तो मुशर्रफ मैदानी क्षेत्रों में अन्य मोर्चे खोल सकते थे, जिससे युद्ध पूर्ण-स्तरीय हो जाता. वाशिंगटन के विशेषज्ञ एंथनी एच. कॉर्ड्समैन ने तब चेतावनी दी थी कि भारतीय उपमहाद्वीप में युद्ध की स्थिति में परमाणु हमलों-जवाबी हमलों को काबू कर पाना मुश्किल है.

पाकिस्तान की ग़ौरी मिसाइल को दिल्ली या मुंबई तक पहुंचने में 15 मिनट लगेंगे, और इसे रोका नहीं जा सकता. भारत की अग्नि मिसाइल भी इतने ही समय में पाकिस्तान के किसी भी लक्ष्य को भेद सकती है. दोनों देशों के पास परमाणु हथियारों को नियंत्रित करने के लिए उन्नत सिस्टम नहीं हैं. पाकिस्तान के जाने-माने विचारक और वैज्ञानित परवेज हुदभॉय ने तब कहा था कि दोनों देशों की पहली पीढ़ी के हथियारों में पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं. पाकिस्तान में कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम केवल सैन्य नियंत्रण में है, और मुशर्रफ अंतिम निर्णय लेने वाले हैं. उस समय पाकिस्तान के पास 25-50 परमाणु बम थे.

भारत में परमाणु हथियार नागरिक नियंत्रण में हैं, जहां प्रधानमंत्री इसका उपयोग नियंत्रित करते हैं. परमाणु कोर, युद्धक हथियार और मिसाइल लॉन्चिंग की जिम्मेदारी अलग-अलग एजेंसियों के पास है, ताकि इनका गलती से उपयोग न हो जाए. 2002 में भारत का सिस्टम 'सुरक्षित और साधारण' होते हुए तीन घंटे में लॉन्च के लिए तैयार किया जा सकता था. इस रिपोर्ट में विशेषज्ञ के. संथानम कहते हैं, “भारत हमले के लिए तैयार है और कड़ा जवाब देगा. पाकिस्तान को परमाणु युद्ध शुरू करने से पहले 22 बार सोचना चाहिए.”

हालांकि यह 2002 की बात थी और अब हालात कुछ और हैं. 2025 तक, भारत और पाकिस्तान ने अपनी परमाणु तकनीक को काफी उन्नत कर लिया है, जिससे उपमहाद्वीप में तनाव और खतरे बढ़ गए हैं. भारत के पास अनुमानित 160-170 परमाणु हथियार हैं, जो अग्नि-5 (MIRV-सक्षम, 5000 किमी रेंज), पृथ्वी, और INS अरिहंत जैसे पनडुब्बी-आधारित मिसाइलों के जरिए तैनात हैं. भारत की 'नो फर्स्ट यूज' नीति और विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक रणनीति नागरिक नियंत्रण में है.

दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास 165-200 हथियार हैं, जिनमें शाहीन-3 (2750 किमी), बाबर क्रूज मिसाइल, और नसर जैसे सामरिक हथियार शामिल हैं. पाकिस्तान ने बिना 'नो फर्स्ट यूज' नीति के 'फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस' नीति अपनाई है, जिसका मतलब है कि हर तरह के खतरे के लिए अलग-अलग हथियार और कई बार परमाणु हथियार भी इस्तेमाल किया जा सकता है. दोनों देश नए डिलीवरी सिस्टम विकसित कर रहे हैं, जिसमें भारत की अग्नि-6 और पाकिस्तान की समुद्र-आधारित मिसाइलें शामिल हैं.

कुछ विशेषज्ञों मान रहे थे कि पाकिस्तान अखनूर सेक्टर में सामरिक परमाणु हमला कर सकता है, ताकि भारतीय सैनिकों को चौंकाकर कश्मीर को अलग कर दे. लेकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमिताभ मट्टू के मुताबिक, भारत सीमित जवाब नहीं देगा, बल्कि बड़े पैमाने पर जवाबी हमला करेगा.

पाकिस्तान दिल्ली (राजनीतिक केंद्र) और मुंबई (वाणिज्यिक केंद्र) पर एक साथ हमला कर सकता है, जिसमें 20 लाख भारतीय मर सकते हैं. पाकिस्तान को उम्मीद होगी कि भारत सदमे में आ जाएगा और जवाबी हमला नहीं कर पाएगा. भारत, जिसके पास तब 75-100 परमाणु हथियार थे, कराची, लाहौर, इस्लामाबाद जैसे शहरों को निशाना बना सकता है. प्रिंसटन विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार, दोनों देशों में 30 लाख लोग मर सकते हैं, और 15 लाख गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं. अमेरिकी रक्षा विभाग का अनुमान 1.2 करोड़ मौतों का है.

हिरोशिमा (15 किलोटन) और नागासाकी (21 किलोटन) पर 1945 के हमलों में 3 लाख लोग मरे थे. भारत और पाकिस्तान की नागरिक सुरक्षा व्यवस्था ऐसी तबाही से निपटने में सक्षम नहीं है. 2002 में महाराष्ट्र सरकार ने आपातकालीन बैठक बुलाकर स्वयंसेवकों को पंजीकृत करने और आश्रय स्थल तैयार करने का फैसला किया था. दिल्ली में 2,500 अतिरिक्त बेड, मोबाइल एक्स-रे और दवाओं का भंडार तैयार किया गया था. लेकिन प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के फिजिसिस्ट एम.वी. रमण चेताते हैं कि हमले में अस्पताल और डॉक्टर भी नष्ट हो जाएंगे. पाकिस्तान की नागरिक सुरक्षा व्यवस्था भी कमजोर है, और युद्ध झेलने की हालत में बिल्कुल नहीं है.

राज चेंगप्पा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि महाभारत में “मृत्यु के विशाल दूत” का जिक्र है, जो पूरी मानव जाति को भस्म कर देता है. 2002 से पहले भारतीय उपमहाद्वीप के लोग ऐसी विनाशकारी स्थिति के इतने करीब कभी नहीं थे.

अगर आज की बात करें भारत-पाकिस्तान युद्ध की आशंका बढ़ते तनाव के साथ ही बढ़ रही है. पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर कड़ा जवाब दिया. उधर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की भारत-विरोधी और जिहादी रुख वाली छवि ने आशंकाएं बढ़ा दी हैं. इससे सर्जिकल स्ट्राइक या हवाई हमले जैसे सीमित सैन्य टकराव का खतरा बढ़ गया है.

दोनों देशों की राजनीतिक स्थिति भी तनाव को हवा दे रही है. भारत में मोदी सरकार ने बालाकोट (2019) जैसे निर्णायक कदम उठाए हैं, और जनता के दबाव में और सख्ती कर सकती है. पाकिस्तान में सेना, विशेषकर मुनीर के नेतृत्व में, सत्ता पर हावी है, जबकि नागरिक सरकार कमजोर है. हालांकि, दोनों देशों के पास परमाणु हथियार होने के कारण पूर्ण-स्तरीय युद्ध की आशंका कम है, क्योंकि 'परस्पर विनाश' का डर और अंतरराष्ट्रीय दबाव, खासकर अमेरिका, चीन और सऊदी अरब से, इसे रोकता है. आर्थिक रूप से भी दोनों देश युद्ध नहीं चाहते—भारत की आर्थिक प्रगति और पाकिस्तान की आर्थिक तंगी इसे और मुश्किल बनाती है.

सीधे कहें तो पूर्ण युद्ध की आशंका न के बराबर है, लेकिन आतंकी हमलों के जवाब में भारत की ओर से सर्जिकल स्ट्राइक या हवाई हमले संभव हैं. साइबर युद्ध, ड्रोन हमले या गुप्त अभियान जैसे गैर-पारंपरिक तरीके अधिक संभावित हैं. स्थिति पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन, भारत की जवाबी कार्रवाई और कूटनीति की सफलता पर निर्भर करेगी.

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