नीयत डोली तो लिपिस्टिक से चलेगी गोली !
अब मनचलों की खैर नहीं. छेड़ा तो चलेगी लिपस्टिक गन. इसमें लगे एक खास तरह के ट्रिगर को दबाते ही फायरिंग की आवाज के साथ ब्लूटूथ के माध्यम से पुलिस को फौरन पहुंचेगी सूचना.

मनचलों से परेशान महिलाओं को वाराणसी के युवा वैज्ञानिक श्याम चौरसिया की खोज संबल देने वाली है. श्याम ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक खास तरह का उपकरण "स्मार्ट एंटी टीजिंग लिपिस्टिक गन" तैयार किया है. यह उपकरण देखने में हूबहू लिपस्टिक जैसा है लेकिन इससे फायरिंग की आवाज इतनी तेज होती है कि इसे एक किलोमीटर तक सुना जा सकता है. श्याम बताते हैं "लिपस्टिक गन में एक खास तरह का ट्रिगर लगा है. जिसको दबाते ही फायरिंग की आवाज के साथ ब्लूटूथ के माध्यम से खुद-ब-खुद 112 नंबर पर पुलिस को सूचना पहुंच जाती है."
श्याम चौरसिया की यह अनोखी लिपस्टिक गन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की तरफ से वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला गोरखपुर में आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी में खासा आकर्षण का केंद्र रही. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने श्याम चौधरी को "लिपस्टिक गन" जैसे अनोखे उपकरण को तैयार करने के लिए 11 जनवरी को सम्मानित भी किया.
गोरखपुर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के क्षेत्रीय अधिकारी और वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला गोरखपुर के प्रभारी महादेव पांडे केंद्र और राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजकर युवा वैज्ञानिक श्याम चौरसिया के अभिनव प्रयोगों को पेटेंट के लिए मदद कराने की तैयारी कर रहे हैं. पांडेय बताते हैं "मेरी श्याम चौरसिया से पहली मुलाकात आज से करीब 20 वर्ष पहले हुई थी जब इन्होंने वाराणसी में आयोजित एक विज्ञान प्रदर्शनी में रिमोट से चलने वाली राइफल का प्रदर्शन किया था. इस विज्ञान प्रदर्शनी में श्याम को पहला स्थान भी मिला था".
अनोखी प्रतिभा के धनी श्याम चौरसिया का जन्म वाराणसी के औरंगाबाद इलाके में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था. इनके पिता देवी गीत लिखते थे वर्ष 2000 में इनके पिता के देहांत के बाद चार बहनों की जिम्मेदारी श्याम पर आ पड़ी थी.
इस वक्त तक श्याम केवल हाइस्कूल ही पास थे और इन्होंने पढ़ाई छोड़कर वाराणसी के सामने घाट पर मौजूद एक इलेक्ट्रिशियन की दुकान पर नौकरी शुरू की. यहीं से इनके जीवन में एक नया बदलाव भी आया. श्याम चौरसिया बताते हैं "बचपन से ही मुझे हथियारों और उनके प्रयोग को लेकर तरह तरह के ख्याल आते थे. इलेक्ट्रिकल की दुकान पर काम करने के दौरान ऐसे ही एक ख्याल को पूरा करने के लिए मैंने पैसे जमा करने शुरू किए.एक साल बाद जब मेरे पास करीब ₹2000 हो गए तब मैंने रिमोट से चलने वाली राइफल का निर्माण शुरू किया, यह एक ऐसी बंदूक थी जिसे काफी दूर से बैठकर भी चलाया जा सकता था."
वाराणसी के ओरिएंटल स्कूल में वर्ष 2002 में आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी में श्याम चौरसिया की बनाई राइफल ने काफी चर्चा बटोरी थी. श्याम यहीं नहीं रुके इन्होंने गाड़ियों के कबाड़ से एक ऐसी बंदूक बनाई है जिसे फेसबुक जीमेल और अन्य सोशल ऑनलाइन चैटिंग साइट के जरिए चलाया जा सकता है. इस बंदूक का नाम इन्होंने "फेसबुक गन" कर रखा है. श्याम बताते हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइट के किसी भी सिस्टम से यह गन ऑपरेट की जा सकती है. इसके लिए दो डेस्कटॉप या लैपटॉप की आवश्यकता होती है.
सिस्टम में गन के ऊपर लगे वेबकैम के जरिए जवान दूर बैठकर दुश्मनों पर नजर रख सकेंगे. जो जवान इसे ऑपरेट करेगा उसके पास फायरिंग के लिए गुप्त कोड होगा जिसकी जिसकी पहचान फिंगरप्रिंट से होगी. फिंगरप्रिंट मैच नहीं करने की स्थिति में बंदूक ऑपरेट नहीं होगी. जिस जवान का फिंगरप्रिंट कोड के साथ सेट होगा गन वही ऑपरेट कर सकेगा.
श्याम की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वाराणसी के अशोका इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग कॉलेज ने पांच साल पहले "रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल" के इंचार्ज के तौर पर हाई स्कूल पास श्याम चौरसिया को तैनात किया. बच्चों को नवीन तकनीकी में दक्ष बनाने के साथ ही श्याम ने हाई स्कूल इंटर की परीक्षा पास की और अब वे आगे की पढ़ाई में भी जुटे हुए हैं.
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