बलूचिस्तान की महिलाएं क्यों बनने लगी हैं सुसाइड बॉम्बर?

हालिया कुछ सालों में ये ट्रेंड देखने को मिला है कि बलोच महिलाएं भी अब अपने मकसद को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा रही हैं, यहां तक कि फिदायीन बनकर खुद को उड़ाने से भी नहीं हिचक रहीं

बनुक महिकन बलोच, जिसने दो मार्च को बलूच मुक्ति संग्राम के लिए खुद को बम से उड़ा लिया
बनुक महिकन बलोच, जिसने दो मार्च को बलूच मुक्ति संग्राम के लिए खुद को बम से उड़ा लिया

यह विरोधाभासों की इन्तेहा ही है कि एक ओर जहां अफ्रीका महाद्वीप बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों से पटा पड़ा है, वहीं सोमालिया और सूडान जैसे कुछ अफ्रीकी देश कंगाली की स्पष्ट इबारत लिखते नजर आते हैं. और ये विरोधाभास एशिया में भी कम नहीं हैं.

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत को ही लीजिए, जो पाक के करीब दो-तिहाई (40 फीसद) हिस्से पर फैला है. खनिज-संसाधनों और प्राकृतिक तेल-गैस से भरपूर यह इलाका कहने को पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन गरीबी और उपेक्षा जैसे इसकी नियति बन चुके हैं.

यही वजह है कि नाराज बलूच विद्रोही पाकिस्तान से मुक्ति चाहते हैं. उन्होंने इसके लिए पाकिस्तान पर एक के बाद एक भयानक हमले किए हैं. इसी 11 मार्च को बलूचों ने जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक कर लिया था, और इस खूनी संघर्ष में आधिकारिक तौर पर कुल 64 लोग मारे गए. इससे पहले 2 मार्च को भी कलात इलाके में पाकिस्तानी एफसी विंग कमांडर के काफिले पर हमला हुआ था, जिसमें विंग कमांडर सहित कुछ कर्मी मारे गए. लेकिन इस हमले को अंजाम एक बलूच महिला विद्रोही ने दिया था, जिसने खुद को बम से उड़ा लिया.

इस आत्मघाती बलूच महिला का नाम था - बनुक महिकन बलोच. साइंस से ग्रेजुएट बनुक बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की एक खास 'मजीद ब्रिगेड' (संगठन का आत्मघाती दस्ता) की सदस्य थी. हमले के बाद बीएलए ने उनका आखिरी ऑडियो संदेश भी साझा किया, जिसमें वो अपने मकसद के लिए आर-पार की लड़ाई का आह्वान करते सुनी जा सकती है. हालांकि, बनुक बलूचिस्तान की मुक्ति के लिए खुद को बम से उड़ाने वाली पहली महिला नहीं है.

साल 2022 के अप्रैल में यह पहली बार सामने आया जब किसी बलूच महिला ने खुद को बम से उड़ा लिया था. उसने यह आत्मघाती हमला पाकिस्तान के कराची विश्वविद्यालय में किया था. यूनिवर्सिटी के कन्फ्यूशियस संस्थान के बाहर हुए इस हमले में तब तीन चीनी और एक पाकिस्तानी नागरिक मारे गए थे, वहीं चार अन्य घायल हुए थे. 

30 साल की उस फिदायीन महिला का नाम शारी बलोच था, जिसके पास मास्टर्स की डिग्री थी. इसके अलावा वो दो बच्चों की मां भी थी. गौर करने की बात है कि शारी बलोच के साथ शुरू हुई इस आत्मघाती हमले की प्रवृत्ति में इजाफा हुआ है. ऐसे में कुछ सवाल हैं कि आखिर क्यों बलूच महिलाएं आत्मघाती हमलावर बनने को प्रेरित हो रही हैं? क्या बलूच प्रतिरोध अब दशकों से चले आ रहे पुरुषों की अगुआई वाला जनजातीय प्रतिरोध नहीं रह गया है? या बलूचों ने अब लड़ाई का तरीका बदल लिया है?

इन सवालों की तह में जाने से पहले आइए एक नजर वहां के मौजूदा हालातों पर डालते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि बलूचों के प्रतिरोध की आग की लपटें अब आसमान क्यों छूने लगी हैं?

बलूच प्रतिरोध का मूल कारण : मुक्ति आंदोलन

पाकिस्तान का सबसे बड़ा लेकिन सबसे गरीब प्रांत बलूचिस्तान तेल और खनिजों से भरा-पूरा है. हालांकि, लंबे समय से बलूचिस्तान के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है, उलटे इस्लामाबाद की संघीय सरकार ने इसका शोषण किया है. और शोषण की इस प्रक्रिया में पाकिस्तान ने अपने 'आयरन ब्रदर' चीन को भी शामिल किया है. इधर, आजादी के बाद से ही बलूच विद्रोही समूह बलूचिस्तान और कलात के पाकिस्तान में विलय को अवैध मानते आए हैं. 

जहां तक चीन के विरोध की बात है तो बलूच लोगों का मानना है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के तहत बीजिंग और इस्लामाबाद दोनों ने उनके संसाधनों का दोहन किया है, जबकि उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ. इसने पाकिस्तानी और चीनी हितों के प्रति विरोध को जन्म दिया है. बलूचों का यह विद्रोह संवाद और सशस्त्र आंदोलन, दोनों ही तरीकों से देखने को मिला है.

एक तरफ महरंग बलूच की बलूच यकजेहती समिति जैसे समूहों ने संवाद के जरिए अपना विरोध दर्ज किया है, वहीं बीएलए जैसे उग्रवादी संगठनों की अगुआई में हिंसात्मक तरीकों से प्रतिरोध जताया गया है.

हालांकि, बलूचों के इन विरोधों के प्रति पाकिस्तान की प्रतिक्रिया काफी कठोर रही है. पाक सरकार पर आरोप हैं कि उसने असहमति की आवाज को कुचलने के लिए कई बलूच कार्यकर्ताओं को जबरन गायब करवा दिया है. वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स का अनुमान है कि 2000 से अब तक 5,000 से ज्यादा लोग (ज्यादातर पुरुष) गायब हो चुके हैं, जिससे कई बलूच परिवार बिखर गए हैं.

पाक के खिलाफ बलूच महिलाओं ने बांधा सिर पर कफन

पाकिस्तान का जो ताना-बाना है, उसमें आम तौर पर सर्वहारा वर्ग की महिलाएं आंदोलन करते नजर नहीं आतीं. यह जरूर है कि कुछ अभिजात वर्ग की महिलाएं अपने हक और हुकूक के लिए आवाज उठाती रही हैं. लेकिन अब यह ट्रेंड बदल रहा है.

मुक्ति की आग सीने में दबाए और अपने पुरुषों के जेल में बंद होने के बाद बलूच महिलाएं प्रतिरोध की अग्रिम पंक्ति में उभरी हैं. ये शिक्षित और पेशेवर कामकाजी महिलाएं हैं, लेकिन निजी दुख और आघात ने उन्हें अहिंसक और हिंसक दोनों तरीकों का सहारा लेने के लिए मजबूर किया है.

पेशे से डॉक्टर महरंग बलूच और पत्रकार शम्मी दीन बलूच जैसी महिलाओं ने संवाद को बढ़ावा देने के लिए एक नागरिक समाज आंदोलन 'बलूच यकजेहती समिति' (बीवाईसी) का गठन किया. इसके नतीजे के रूप में बलूचिस्तान में सैकड़ों महिलाएं अब बीएलए में शामिल हो रही हैं और मुक्ति के लिए फिदायीन हमलावर बनने से भी नहीं हिचक रहीं.

महरंग बलूच, मुक्ति आंदोलन की अगुवाओं में एक

ये महिलाएं बीएलए के आत्मघाती दस्ते 'मजीद ब्रिगेड' में शामिल होने का विकल्प चुन रही हैं. जैसा कि ऊपर बताया गया है अप्रैल 2022 में शारी बलोच ने खुद को बम से उड़ा लिया था, और यह बीएलए का पहला फिदायीन हमला था जिसे किसी ने महिला ने अंजाम दिया था.

इसी तरह जून 2023 में भी सुमैया कलंदरानी बलूच ने बलूचिस्तान के तुर्बत में एक पाकिस्तानी सैन्य काफिले को निशाना बनाकर आत्मघाती हमला किया. इस हमले में एक पुलिस कांस्टेबल नियाज अहमद मारा गया और दो अन्य (एक महिला कांस्टेबल शामिल) घायल हो गए. सुमैया बीएलए के मीडिया विंग "हक्कल" के लिए पांच साल तक पत्रकार के रूप में काम कर चुकी थी, और वो रेहान बलूच की मंगेतर थी. 

रेहान बलूच का सबसे खास परिचय यह है कि वो बीएलए का पहला पुरुष आत्मघाती हमलावर था, और वो संगठन के लिए एक पत्रकार का काम करता था. 2018 में हुए एक आत्मघाती हमले में रेहान की मौत हो गई थी. इसी निजी क्षति और प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर सुमैया मजीद ब्रिगेड में शामिल हुई. और इस तरह शारी बलोच के बाद वो बीएलए की दूसरी महिला आत्मघाती हमलावर साबित हुई.

अब बनुक महिकन बलूच ने खुद को बम से उड़ाया

बीएलए की तरफ से ताजा आत्मघाती हमला इसी दो मार्च को हुआ, जिसे एक महिला ने अंजाम दिया. जाफर एक्सप्रेस के हाइजैक से करीब एक सप्ताह पहले हुई इस घटना में बनुक महिकन बलूच ने मुक्ति आंदोलन के लिए खुद को उड़ा लिया.

महिकन पाकिस्तान के ग्वादर इलाके की रहने वाली थी. उसने बलूचिस्तान के कलात में फ्रंटियर कोर के गश्ती वाहन को निशाना बनाया. इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और तीन सुरक्षाकर्मी घायल हो गए. साइंस से ग्रेजुएट महिकन चार साल पहले बीएलए की मजीद ब्रिगेड में शामिल हुई थी.

महिकन की 'शहादत' के बाद बीएलए ने एक वॉयस क्लिप जारी की, जिसे उसका अंतिम संदेश कहा जा रहा है. इसमें एक महिला कहते सुनी जा सकती है, "मेरा बलिदान हजारों बलूचों को प्रेरित करेगा. मैंने अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने और इसमें स्वतंत्रता और समृद्धि लाने के लिए अपना जीवन आहूत करने का फैसला लिया है." बलूच उग्रवादियों के मुख्य निशाने पर पाकिस्तानी और चीनी सिक्योरिटी और बुनियादी ढांचा प्रतिष्ठान और कर्मचारी रहे हैं.

फिदायीन के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल कर रहा बीएलए : पाकिस्तान

पाकिस्तानी अखबार डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक बलूचिस्तान विधानसभा में मुख्यमंत्री की सलाहकार मीना मजीद ने कहा कि हाल के महीनों में बलूच अलगाववादियों ने हमले करने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया है. मजीद ने खेद जाहिर करते हुए कहा, "आतंकवादी संगठन अपने दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए बलूच महिलाओं और निर्दोष छात्रों का शोषण कर रहे हैं. ये समूह महिलाओं को आत्मघाती हमलावरों के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे बलूच महिलाओं और उनके सामाजिक मूल्यों का शोषण और हनन हो रहा है.

डॉन के मुताबिक बलूच अलगाववादी समूहों, खासकर बीएलए और बलूच लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) ने 2024 में अपने विद्रोह को काफी हद तक बढ़ा दिया है, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों, बुनियादी ढांचे और चीनी निवेशों को निशाना बनाया जा रहा है. उग्रवादियों के अभियान तेज हो गए हैं, 2023 में जहां हमलों की संख्या 116 थी, वो अब बढ़कर 2024 में 504 हो गई. जबकि इन हमलों में होने वाली मौतों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है, ये 88 से बढ़कर 388 हो गई हैं. 

इस्लामाबाद स्थित रिसर्च कंसल्टेंसी जियोपॉलिटिकल इनसाइट्स की अगुआई करने वाले फहद नबील ने डॉन से कहा, "2018 से 2024 तक बीएलए ने 89 प्रचार वीडियो और कई प्रकाशन जारी किए हैं. इनमें से लगभग 41 फीसद प्रचार वीडियो युद्ध की कार्रवाइयों से संबंधित थे. इस तरह के वीडियो का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रेरित करने के लिए किया जाता है."

इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक, पाक इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज के निदेशक मुहम्मद आमिर राणा ने कहा कि बरखान, सिबी और हरनाई जैसे इलाकों में बीएलए के हमलों में हाल ही में हुई बढ़ोत्तरी से पता चलता है कि ये आतंकवादी संगठन अब अपनी विध्वंसक गतिविधियों के लिए मध्य और पूर्वी बलूचिस्तान पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

फिदायीन बनने स्वेच्छा से आगे आ रहीं बलूच महिलाएं : बीएलए

बीएलए का दावा है कि बड़ी संख्या में बलूच महिलाएं आत्मघाती अभियानों के लिए स्वेच्छा से आगे आई हैं.  जैसे-जैसे बलूच मुक्ति आंदोलन पिछले कुछ सालों में आगे बढ़ा है, यह जनजातीय सरदारों की अगुआई से हटकर शिक्षित मध्यम वर्ग के बीच गति पकड़ रहा है. यह बात इन महिला हमलावरों की अलग-अलग प्रोफेशनल बैकग्राउंड से और साफ हो जाती है.

मजीद ब्रिगेड के संस्थापक असलम बलूच की पत्नी यास्मीन ने 2019 में एक स्थानीय मीडिया आउटलेट को दिए इंटरव्यू में महिलाओं से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की थी. उनका मानना ​​था कि बलूचिस्तान के पितृसत्तात्मक समाज में सामाजिक बाधाओं को तोड़ने की जरूरत है और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं की भागीदारी के बिना आजादी हासिल नहीं की जा सकती. 

विदेशी मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी आत्मघाती हमलों में महिलाओं की भागीदारी को हालिया घटना मानते हैं. इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में चेलानी ने कहा कि यह बलूच लोगों की हताशा और कुंठा का स्पष्ट नतीजा है.

चेलानी ने कहा, "वैसे, पाकिस्तानी सुरक्षा बलों का ज्यादा फोकस युवा बलूच पुरुषों पर रहता है. ऐसे में महिला आत्मघाती हमलावरों की भूमिका अहम होती जा रही है, खासकर अधिकतम नुकसान पहुंचाने और बड़े पैमाने पर भय पैदा करने के लिए, क्योंकि महिला आत्मघाती हमलावरों को कंट्रोल करना बहुत मुश्किल है."

चेलानी ने आगे कहा, "यह एकमात्र तरीका है जिससे बलूच लिबरेशन आर्मी और अन्य उग्रवादी समर्थक समूह चीनी हितों को निशाना बनाने में सफल हुए हैं. ऐसा करने के लिए उन्हें तेजी से परिष्कृत तरीकों पर निर्भर रहना होगा."

चेलानी ने बताया कि चीनी प्रोजेक्ट और नागरिकों को कई स्तरों की सुरक्षा दी जाती है, कभी-कभी तो चार या पांच स्तरों की. इन सुरक्षा स्तरों को भेदने के लिए बलूच समूहों को इन नए तौर-तरीकों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है."

फिदायीन हमलों से अब तक कम से कम 350 लोगों की मौत

डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में बीएलए और इस जैसे संगठनों के हमलों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. 2023 के पहले 7 महीनों में पाकिस्तान में 18 आत्मघाती हमले हुए, जिनमें 200 लोगों की जान चली गई और 450 से अधिक लोग घायल हुए.

2011 से अब तक विभिन्न आत्मघाती बम विस्फोटों में पाकिस्तान में कम से कम 350 लोगों की जान जा चुकी है. पाकिस्तानी सेना पड़ोसी खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ लड़ाई सहित कई मोर्चों पर युद्ध में लगी हुई है, जिससे इसकी क्षमताएं काफी हद तक सीमित हो गई हैं.

बलोच उग्रवाद ने पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह प्रभावित किया है. इस्लामाबाद स्थित सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज ने बताया है कि अकेले 2024 में 685 पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं, जो पिछले एक दशक में सेना के लिए सबसे घातक वर्ष है.

बीएलए द्वारा चीनी हितों को निशाना बनाना (जिसमें मार्च 2024 में उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में पांच चीनी इंजीनियरों की हत्या करने वाला आत्मघाती हमला भी शामिल है) 6000 करोड़ रुपये की लागत वाले सीपीईसी को खतरे में डालता है, और बीजिंग के रणनीतिक निवेश को बाधित करता है.

पाकिस्तान सरकार एक के बाद एक बलोच धमाकों को झेल रही है, लेकिन उन्हें रोकने में उसे कोई खास सफलता नहीं मिल रही है. और इसी मोड़ पर बलोच महिलाएं अपनी "मातृभूमि" बलूचिस्तान को आजाद कराने के लिए आत्मघाती हमलावरों के रूप में शामिल हो रही हैं.

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