'तुम्हारी लंगी': स्त्रियों की जीवटता की कहानियां
सामाजिक हकीकत है कि हमारे समाज में स्त्री के लिए हर कदम पर संघर्ष है. उसे समाज से लड़ना भी है और अपने वजूद को बना कर रखना भी. कुल मिलाकर इसी संघर्ष और अस्तित्व की रक्षा की दास्तान बयान करता संग्रह है 'तुम्हारी लंगी.'

छोटे शहर और मध्मवर्ग में लड़की होकर जन्मना और कामयाब होना वाकई में कठिन है. और फिर लड़की की किस्मत में विकलांगता का बोझ भी हो, तब तो उसका जीना भी हराम हो जाता है. जीवन में झेले विकलांगता के इसी दंश को कहानियों के रूप में उतारने की कोशिश है 'तुम्हारी लंगी'. और यह कोशिश की है कंचन सिंह चौहान ने. कंचन उभरती कहानीकार हैं. हाल ही में उनका यह कहानी संग्रह राजपाल प्रकाशन से आया है.
हालांकि, यह संग्रह विविध विषयों पर आधारित कहानियों से परिपूर्ण है. मगर शीर्षक कहानी 'तुम्हारी लंगी' खासा प्रभावित करती है. कहानी की नायिका पैरों से विकलांग है. उसके शरीर की इस कमी को भगवान ने मन की मजबूती प्रदान कर पूरा किया. बेहद सुगठित तरीके से रची हुई है यह कहानी. साथ ही कहानी के संवाद प्रभावशाली हैं.
" ...तुम्हारे तलवों की सरसराहट, तुम्हारी हथेलियों की गर्मी और तुम्हारे होठों का दबाव वे तीन स्पर्श थे, जिन्होंने मेरे आत्मविश्वास में लगी ग्रंथियों को ढीला कर दिया. जिस स्पर्श ने मुझे बताया कि मैं भी प्रेम योग्य हूं, कि मैं सदैव की तिरस्कृता नहीं, उपेक्षिता नहीं. जैसे-जैसे मैं हीनता के विकार से ऊपर उठने लगी मेरे आत्मविश्वास से मेरे शरीर की वक्रता खुद-ब-खुद कम होने लगी. समानंगी तो मैं इस तरह भी हो गई कि मैं खुद को सबके सामने ही महसूस करने लगी हूं."
उतार-चढ़ाव भरे मोड़ों से गुजरती कहानी 'तुम्हारी लंगी' पाठकों को हर मोड़ पर बांधे रखती है.
संग्रह की अधिकतर कहानियां स्त्री की इस जिजीविषा को दर्शाती हैं. किताब के फ्लैप पर बिल्कुल ठीक ही लिखा है, " इन कहानियों की नायिकाएं परिस्थितियों से जूझती, गिरती, संभलती और हताशा के चरम पर भी हौसले का परचम लहराती फिरती हैं."
कुछ ऐसी ही एक दूसरी कहानी है 'सिम्मल के फूल.' यह एसिड अटैक सरवाइवर की कहानी है. यह एसिड अटैक की त्रासदी को बयान करती है.
कहानी 'मुक्ति' की नायिका अपने देवर की वहशियत और वासना की शिकार है. फिर भी उसके भीतर एक मजबूत माँ जिंदा है. एक ऐसी माँ जिसके जीवन का उद्देश्य अपनी बेटी की जिंदगी है.
इसी तरह 'वर्तुल धारा' की कुसुमी परिस्थितियों से लड़ते हुए अपने जीवन की नैया को एक दिशा देने में कामयाब होती है. दो कहानियों का विषय वैवाहिक दुराचार पर आधारित है. दोनों ही मजबूत कहानियां हैं.
सामाजिक हकीकत है कि हमारे समाज में स्त्री के लिए हर कदम पर संघर्ष है. उसे समाज से लड़ना भी है और अपने वजूद को बना कर रखना भी. कुल मिलाकर इसी संघर्ष और अस्तित्व की रक्षा की दास्तान बयान करता संग्रह है 'तुम्हारी लंगी.' इन कहानियों को रचने में कहीं-कहीं लेखिका परिपक्व साहित्यकार सी प्रतीत होती हैं और कहीं साधारण नजर आती हैं. भाषा शैली और कथ्य में सुधार की गुंजाइश है.
किताब- तुम्हारी लंगी
लेखिका- कंचन सिंह चौहान
प्रकाशक- राजपाल एंड संस
कीमत-225 रूपये
समीक्षा- सरस्वती रमेश