हर धर्म का सम्मान करना चाहिए: शरमन जोशी
फिल्म 'ग्राहम स्टेंस-एक अनकही सच्चाई' में शरमन जोशी ने एक खोजी पत्रकार की भूमिका निभाई है. इस फिल्म में शरमन ने किस तरह से सच्चाई को पेश किया है, उस बारे में उनसे बातचीत के मुख्य अंश.

दो दशक के बाद आस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेंस की निर्मम हत्या की कहानी एक बार फिर सिनेमा के परदे पर दिखने जा रही है. शुक्रवार यानी 28 अगस्त को ग्राहम स्टेंस-एक अनकही सच्चाई नामक यह फिल्म शेमारूमी बॉक्स आफिस पर रिलीज होगी. इसमें शरमन जोशी ने एक खोजी पत्रकार की भूमिका की है जो पूरी घटनाक्रम पर अपनी खोजी नजर डालते हैं. इस फिल्म में शरमन ने किस तरह से सच्चाई को पेश किया है, उस बारे में उनसे मुंबई में नवीन कुमार ने बातचीत की है. पेश है उसके खास अंश:
ग्राहम स्टेंस में अनकही सच्चाई क्या है?
अनकही सच्चाई कुछ नहीं है. जो घटना हुई थी उसे विस्तार से बताया गया है. यह फिल्म बनाने का मकसद यही है कि हर धर्म के लोग एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करें और इस तरह की निर्मम कार्रवाई न करें.
बतौर खोजी पत्रकार आपने क्या खोज की है?
जब मेरा किरदार फिल्म में एंट्री लेता है तो उस समय लोग ग्राहम स्टेंस और उनके काम को लेकर शंका जता रहे हैं. उन पर आरोप लगा रहे हैं कि वे लोगों को पैसे का लालच देकर ईसाई धर्म में परिवर्तन करा रहे हैं. इस बारे में सच्चाई जानने के लिए मैं उनसे मिलता हूं. फिल्म के अंत में कोई जजमेंट नहीं दिय़ा गया है. कुछ सवालों के साथ फिल्म का अंत होता है.
धर्म परिवर्तन को लेकर आपकी व्यक्तिगत राय क्या है?
यह गैरकानूनी है. ऐसा नहीं होना चाहिए. हां, कोई इंसान अपनी मर्जी से करता है तो उसे कोई रोक नहीं सकता. लेकिन उकसाकर या पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना गलत है.
जो हमारी व्यवस्था है, क्या उसका फायदा ऐसे काम में मिल रहा है?
उसी का तो फायदा उठा रहे हैं. फिल्म में हम इन सारी चीजों पर बात करते हैं.
बीस साल बाद उस घटना को फिल्म के जरिए दिखाने की वजह क्या है?
उस घटना की हिंसा. वो मायने रखता है.
थ्री इडिएट्स आपके करियर की बेस्ट फिल्मों में से है?
ऐसी फिल्म दो दशकों में एक बार मुश्किल से बनती है. इसकी राइटिंग मजेदार थी. मैं खुशनसीब रहा हूं जो इस फिल्म का हिस्सा बना.
आप अपनी फिल्मी जर्नी को किस तरह से देखते हैं?
काफी मजेदार है. मैं थिएटर से आया हूं. 300 रूपए प्रति शो करता था. महीने में 20-20 शो करता था. फिल्मों में आने का सपना थिएटर की बदौलत ही पूरा हुआ. पहले सोचता था कि एक फिल्म मिल जाए, बस. लेकिन मैंने लंबी पारी खेली है. थ्री इडिएट्स और रंग दे बसंती जैसी फिल्में मेरी झोली में आई.
अब तो थिएटर ऐक्टर्स के पास बहुत काम हैं?
ओटीटी प्लेटफार्म ने सिनेमा का दृश्य ही बदल दिया है. जिस किस्म के कंटेंट पर काम हो रहा है उसमें ज्यादातर ऐक्टिंग के क्राफ्ट पर ध्यान दिया जा रहा है. यह सच है कि ओटीटी प्लेटफार्म के आने से थिएटर एक्टरों की डिमांड बढ़ गई है और उनके कमाल के काम भी देखने को मिल रहे हैं.
ओटीटी प्लेटफार्म पर फिलहाल आप क्या कर रहे हैं?
अब्बास मस्तान के निर्देशन में पेंट हाउस कर रहा हूं. यह थ्रिलर है. इसमें बॉबी देओल और अर्जुन रामपाल भी हैं. इसके अलावा उमेश शुक्ला की कॉमेडी फिल्म आंखमिचौली है. यह उमेश शुक्ला के एक गुजराती नाटक पर आधारित है.
लॉकडाउन में क्या कुछ सीखने को मिला?
परिवार के साथ समय बिताने का आनंद. रिटायरमेंट का इंतजार नहीं कर सकते. जिंदगी जीने का मजा ले रहे हैं. जिन चीजों से प्यार कर रहे हैं उनको अहमियत देना है. आगे भी इसे कायम रखना है और इसे भूलना नहीं है.
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