सरिस्का का संकट: लोग ईको जोन के खिलाफ, मवेशियों के शिकार पर निर्भर हैं बाघ-तेंदुए

सरिस्का टाइगर रिजर्व के आसपास के इलाकों में प्रस्तावित ईको सेंसटिव जोन (ईएसजेड) का विरोध शुरू हो गया है.

प्रतीकात्मक फोटो
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सरिस्का टाइगर रिजर्व के आसपास के इलाकों में प्रस्तावित ईको सेंसटिव जोन (ईएसजेड) का विरोध शुरू हो गया है. भारत सरकार के वन और पर्यावरण मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन इस महीने की शुरुआत में जारी किया है जिसमें ईएसजेड के भीतर या एक किलोमीटर के दायरे में किसी भी तरह के नए निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाई गई है. एक बार बाउंड्री तय हो जाने के बाद गांववाले अपनी जमीन बेच नहीं पाएंगे.

थानागाजी के स्थानीय विधायक कांति प्रसाद मीणा ने 23 मार्च को इसका विरोध किया और कहा कि राज्य के वन विभाग ने केंद्र सरकार को ड्राफ्ट नोटिफिकेशन भेजने से पहले जन प्रतिनिधियों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया. ईएसजेड की बाउंड्री खींचने से यहां के 116 गांवों में रहने वाले करीब 4 लाख लोगों पर असर पड़ेगा. इसके साथ ही कुछ निवेशकों ने यहां होटल और रिसॉर्ट बनाने के लिए इलाके में जमीन खरीद ली है वह भी ईएसजेड के दायरे में आ सकती है. इनमें से एक का कहना है कि उसने सरकार की सरिस्का की सीमा पर जमीन खरीदने की अनुमति के बाद यहां जमीन खरीदी और कुछ लोगों ने पिछले साल सरकार के अपना आदेश वापस लेने के पहले जमीन खरीदने की मंजूरी हासिल की थी. लेकिन वन विभाग कहता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद नोटिफिकेशन जरूरी हो गया था. ऐसा न करने पर ईएसजेड को 10 किलोमीटर के दायरे में घोषित कर दिया जाता. प्रस्तावित बाउंड्री के आलोचक कहते हैं कि इसमें खनन वाले कुछ इलाकों को छोड़ दिया गया है और गैर रुतबेदार लोगों की जमीनें शामिल कर ली गई हैं.   

कुछ लोग मानते हैं कि सरकार को सरिस्का के इर्द-गिर्द पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ने देना चाहिए ताकि स्थानीय लोगों की वन्यजीव संरक्षण में दिलचस्पी जगे. अभी बाघ और तेंदुओं के मुकाबले लोगों की दिलचस्पी यहां की घास और लकड़ी में ज्यादा है. 1,213 वर्ग किलोमीटर में फैले सरिस्का टाइगर रिजर्व से बाघ तो 2004 में ही खत्म हो गए थे. इन्हें रणथंबौर नेशनल पार्क से लाकर यहां फिर बसाया गया लेकिन मादाओं की संख्या ज्यादा होने के कारण स्थान बदलने यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया. बाघों का लिंगानुपात गड़बड़ाने की सबसे बड़ी वजह थी पांच बाघों का असमय मरना. कुछ लोग इनके मरने के लिए किसानों और शिकारियों को दोषी ठहराते हैं और इनमें जन्मदर कम होने की वजह तनाव का बढ़ा हुआ स्तर है. अब भी इस वन में 20 बाघों की मूल आबादी नहीं है और इसमें भी लिंगानुपात मादा बाघों की ओर झुकाव के साथ आठ के मुकाबले एक के आंकड़े से बिगड़ा हुआ है.  

मवेशियों का शिकार करते बाघ और चीते 

गांवों को रिजर्व के भीतर रखने में अधिकारियों के सामने एक और चुनौती आती है. रिजर्व में बाघ और तेंदुए हिरन के मुकाबले पांच साल पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा पालतू मवेशियों को मारकर खा रहे हैं. इससे इनके लुप्त होने का खतरा फिर बढ़ गया है. ताजा चिंता बाघ-तेंदुओं का शिकार के लिए मवेशियों पर बढ़ती निर्भरता है. फिलहाल वन्य क्षेत्र के भीतर के 26 गांवों में 10 हजार मवेशी और 1,700 इंसान रहते हैं जबकि बाहर के बाहरी इलाके के 146 गांवों में 20 हजार मवेशी और छह हजार इंसान रहते हैं और बाहरी इलाकों में भी बड़ी बिल्लियां घूमती रहती हैं. 2013 के बाद से जब राज्य सरकार ने गांवों को शिफ्ट करने का इरादा छोड़ दिया था तो गांववालों ने अपने मवेशियों की संख्या भी कई गुना बढ़ा ली और इनका शिकार भी कई गुना बढ़ा. आसान शिकार के कारण बाघ-तेंदुए भी आबादी की ओर मुड़ गए जिससे उनकी गतिविधियां सुस्त हो गईं. इससे उनके शरीर में चर्बी बढ़ गई जिससे उनकी इंसानों से मुठभेड़ होने और सेहत बिगड़ने का खतरा बढ़ गया. बड़ी बिल्लियों का निवाला बनने वाले ज्यादातर मवेशियों का टीकाकरण नहीं हुआ होता है. मवेशियों की बढ़ती संख्या से भूदृश्य बिगड़ रहा है और विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे बाघों के शिकार के आधार पर भी विपरीत असर पड़ रहा है.  

आंकड़े गवाह हैं 

-वन विभाग के साल 2020 के आंकड़े बताते हैं कि अभी सरिस्का में बाघों की संख्या 17 है, इन्होंने 2020 में 200 से ज्यादा मवेशी मारकर खाए हैं और इससे सरकार को 17 लाख रु. की चपत लगी है. साल 2011 में मारे गए मवेशियों की संख्या सिर्फ 19 थी.  

-वन विभाग के एडिशनल प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट गोबिंद सागर भारद्वाज कहते हैं कि बाघों के आहार में मवेशियों का औसत 10.4% (2010) से 19.4% (2012) होने के बाद अब तो 77% हो गया है. टाइगर मॉनिटरिंग पार्टियों और बीट इंचार्जों की ओर से चिन्हित 737 मवेशियों के शिकारों का विश्लेषण भारद्वाज के साथ पांच अन्य अफसरों ने किया और अपने रिसर्च पेपर में इसे खतरनाक बढ़ोतरी करार दिया. इनमें से 67.84% मवेशी बाघों ने मारे जबकि 30.80% मवेशी तेंदुओं ने मारा, अजगर ने एक शिकार किया और 9 का पता नहीं चला.   

-कुल मारे गए मवेशियों में पालतू जानवर 78.83 प्रतिशत थे. इनमें भैंसें 44.48%, गाय 22.12%, सांबर 11.53%, बकरी 10.99% थीं. 

अनुवादः मनीष दीक्षित

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