देवभूमि से अवैध कब्जा हटाने के लिए सीएम धामी का अभियान
उत्तराखंड की जमीनों पर से अवैध कब्जा हटाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त रुख अपना लिया है

पिछले कुछ महीनों से उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार के बुल्डोजर, सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से काबिज लोगों को हटाने के काम पर लगे हुए हैं. यह वो अतिक्रमण है जो बीते सालों में हुआ और जिसने देवभूमि का सनातन स्वरूप बिगाड़ दिया. इस हवाले से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं, “हम देवभूमि उत्तराखंड का सनातन स्वरूप बिगड़ने नही देंगे. हमारे तीर्थ हमारी नदियां पावन हैं और पूजनीय हैं जिनका संरक्षण करना, जिनकी सेवा करना हमारा पहला कर्तव्य है. हम नदियों को, जंगल को, कब्जा मुक्त कराने का अभियान छेड़ चुके हैं. ये हिमालय की चोटियां, शिवालिक की चोटियां हमारे आराध्य देवी-देवताओं के वास हैं.”
सीएम धामी अवैध कब्जा करने वालों को हिदायत देते हुए यह भी कहते हैं कि अवैध कब्जेदार खुद ही कब्जा छोड़ दें तो बेहतर होगा. सीएम धामी ने सभी जिलाधिकारियों को स्पष्ट कह दिया है कि बिना किसी राजनीतिक, सामाजिक दबाव के अवैध रूप से बसे लोगों को हटाया जाए.
उत्तराखंड सरकार ने अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाने का एक प्रस्ताव भी कैबिनेट में पास कर दिया है. यह आगामी विधानसभा सत्र में रखा जाने वाला है. इससे अतिक्रमण करने पर भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के तहत मुकदमा दर्ज कर दस साल तक की सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान है.
कहां-कहां पाया गया अतिक्रमण
उत्तराखंड राज्य में भौगोलिक दृष्टि से 71 फीसद क्षेत्र में वन भूमि है, जहां सबसे ज्यादा अवैध रूप से अतिक्रमणकारी बसे हुए हैं. सरकार द्वारा एक सर्वे करवाया गया है जिसमें बताया गया है कि 11,814 हेक्टेयर वन भूमि पर बाहर से आए लोगों ने कब्जा किया हुआ है . सर्वे से यह भी पता चला है कि जिन 23 नदियों में खनन होता है, वहां नदी श्रेणी की वन भूमि पर कब्जे किए गए हैं, दरअसल यहां 2005 तक खनन के लिए श्रमिक बाहरी प्रदेशों से जब आते थे और बरसात में खनन बंद होने के बाद वापस चले जाते थे. किंतु पिछली सरकारों में ये लोग यहां स्थाई रूप से कच्चे-पक्के मकान बनाकर बस गए और अब इस कब्जे वाली जगह के सौदे होने लग गए. इस सौदेबाजी को राजनीतिक संरक्षण मिला और अब यहां अवैध बस्तियां जनसंख्या असंतुलन और धार्मिक तुष्टिकरण का कारण बन गई हैं.
गंगा तीर्थ नगरी में कुम्भ क्षेत्र को छोड़ दिया जाते तो पूरा जिले में हरी चादर फैल गई है.
हरिद्वार जिले में गंगा, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिले में गौला, कोसी नदी, देहरादून जिले में टोंस, यमुना, कालसी, रिस्पना, नौरा, अमलावा आदि नदियों के किनारे हजारों की संख्या में अवैध रूप से बाहर से लोग आकर बस गए हैं. पुलिस इन दिनों इनका सत्यापन करवा रही है.
मुस्लिम गुर्जरों के कब्जे
उत्तराखंड में कॉर्बेट और राजा जी दो टाइगर रिजर्व है, जहां से मुस्लिम गुर्जरों को सरकार ने बाहर निकाल कर, प्रत्येक परिवार को एक-एक हैक्टेयर जमीन दी थी. लेकिन इन लोगों ने हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश से अपने रिश्तेदार बुलाकर बड़े पैमाने पर सैकड़ो हैक्टेयर जमीन कब्जा ली और उस पर खेती करने लगे. अब जब सर्वे में इस प्रकरण का खुलासा हुआ तो मालूम हुआ कि तराई पश्चिम पूर्वी वन प्रभाग, देहरादून और हरिद्वार वन प्रभाग में हजारों एकड़ जमीन इन लोगों ने कब्जा ली और फिर खरीद फरोख्त का कारोबार भी करने लगे.
इसमें राजनीतिक रूप से प्रभावशाली और वन विभाग के कई अधिकारियों की मिली-भगत की बात भी सामने आई, लेकिन सीएम धामी ने स्पष्ट कर दिया कि कोई दबाव नहीं है और उन्हे जंगल बिल्कुल अतिक्रमण मुक्त चाहिए. उन्होंने कहा कि पुराने चले आ रहे गोट खत्ते आबादी को छोड़कर एक-एक इंच सरकारी जमीन खाली करवाई जाएगी.
वन विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए अभी तक 1250 हैक्टेयर जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त करवा लिया है. शेष पर कारवाई चल रही है. वन विभाग ने कालागढ़ में रामगंगा जल विद्युत परियोजना और ऋषिकेश में आइडीपीएल को लीज पर दी अपनी जमीन को भी वापस लिए जाने का काम भी शुरू किया है.
रेलवे, राजस्व, पीडब्ल्यूडी और जलविद्युत सिंचाई की बेशकीमती जमीनों पर कब्जे
अवैध रूप से कब्जे करने वालों ने एक षड्यंत्र के तहत हल्द्वानी, रामनगर की रेलवे की जमीनों पर कब्जे किए जिन्हें केंद्र और राज्य सरकार मिलकर खाली करवा रही हैं, इस मामले में सरकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपने कब्जे की लड़ाई लड़ रही है.
देहरादून जिले में हिमाचल, यूपी से लगे विकासनगर क्षेत्र में ढकरानी आसन बैराज क्षेत्र में जलविद्युत विभाग और सिंचाई विभाग की नहरों के किनारे जमीनों पर हुए अवैध कब्जों को धामी सरकार ने बुल्डोजर चलाकर खाली करवा लिया है. यहां बिना अनुमति बनी मस्जिदों और मदरसों को प्रशासन ने खुद हटाने का नोटिस भी दिया है. धर्मपुर, सहसपुर, क्षेत्र में भी अवैध कब्जे चिह्नित हुए हैं जिन्हें प्रशासन हटाने की तैयारी कर चुका है.
उत्तराखंड में बड़ी संख्या में जलविद्युत परियोजनाओं पर काम हुआ. यहां काम करने आए श्रमिक और अन्य लोग यहां की जमीनों पर अवैध रूप से बस गए. पिछले दिनों टिहरी डैम के पास मस्जिद बनाने का प्रकरण चर्चा में आया जिस पर बवाल हुआ, इसी तरह से सीमावर्ती धारचूला क्षेत्र में भी अवैध कब्जे हुए.
उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड और अन्य सड़क प्रोजेक्ट चल रहे हैं जिसकी आड़ लेकर यहां लोग पहाड़ों की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसने लगे जिन्हें अब धामी सरकार बुल्डोजर से ध्वस्त कर रही है. इसी तरह राजस्व, पीडब्ल्यूडी, विभाग की जमीनों पर भी अवैध कब्जे होते चले गए, जिन्हें अब प्रशासन हटा रहा है.
धार्मिक चिह्नों की आड़ लेकर हुए कब्जे
वन, पीडब्ल्यूडी, रेलवे, सिंचाई भूमि पर धार्मिक चिह्नों की आड़ लेकर कब्जे करने की नियत से मजारें, मस्जिद-मदरसे, बना दिए गए जिन्हें धामी सरकार ने सख्ती से हटाना शुरू कर दिया है. कॉर्बेट और राजा जी टाइगर रिजर्व, जहां इंसान के पैदल चलने की अनुमति नहीं है, वहां मजारें बना दी गईं जिन्हें अब धामी सरकार ने हटवा दिया है. रिजर्व फॉरेस्ट के अलावा सरकारी अस्पताल परिसर, कैंट एरिया, सड़कों के किनारे भी अवैध मजारें ,कहीं-कहीं मंदिर, गुरुद्वारे भी कब्जे की नियत से बनाए गए. ऐसे 512 अवैध कब्जों को भी हटाया गया है.
शत्रु संपत्ति पर भी कब्जा
उत्तराखंड में नैनीताल में होटल मेट्रो पॉल शत्रु संपत्ति परिसर में सैकड़ों लोगों ने कब्जा किया हुआ था. करीब तीन सौ करोड़ रुपए की गृह मंत्रालय की इस संपत्ति को धामी सरकार के बुलडोजरों ने खाली करवा लिया है. ये कब्जेदार, रामपुर मुरादाबाद जिले से यहां अवैध रूप से बसे हुए थे. नैनीताल की घोड़ा बस्ती भी ध्वस्त कर दी गई है जो कि आयरपाटा के जंगल में अवैध रूप से बना दी गई थी. अभी किच्छा देहरादून हरिद्वार में भी शत्रु संपत्ति को खाली करवाने के लिए नोटिस दिए गए हैं. शत्रु संपत्ति उसे कहते है जो कि आजादी के दौरान इसके स्वामी भारत में छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे. ये संपत्ति गृह मंत्रालय के स्वामित्व में आती है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के पालन
सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक ढांचों के मामले में पहले 2009 और 2019 में पुनः निर्देशित किया है कि कोई भी नया धार्मिक स्थल बिना जिलाधिकारी की अनुमति के, निजी भूमि पर भी नहीं बनाया जा सकता, सरकारी भूमि पर ये अतिक्रमण की श्रेणी में रखा गया है. यदि कोई पूर्व में बना है और उसकी मरम्मत भी होनी है तो उसके लिए भी डीएम की अनुमति जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे अतिक्रमण प्रकरण की निगरानी के लिए उच्च न्यायालय को नियुक्त किया हुआ है. जिला प्रशासन को इस बारे में हाई कोर्ट को रिपोर्ट देनी है. धामी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत ही धार्मिक ढांचों को हटाया है.
नैनीताल हाई कोर्ट ने सड़कों के किनारे और वन भूमि को कब्जा मुक्त करने के कड़े निर्देश जारी किए है और कार्रवाई के फोटो ग्राफ भी प्रशासन को हाई कोर्ट में जमा करने को कहा है.
अतिक्रमण करने वालों को दस साल की सजा
उत्तराखंड की धामी कैबिनेट ने एक अध्यादेश लाने का प्रस्ताव पास किया है. जिसमें सरकारी और निजी भूमि पर अतिक्रमण करने वाले के खिलाफ आईपीसी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने और उसे दस साल तक कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है, ये विषय अगले विधानसभा सत्र में रखा जाएगा. धामी सरकार ने अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ गैंगस्टर और रासुका जैसे कठोर कानून लगाने के लिए पुलिस प्रशासन को स्वतंत्रता दी है जिस पर कारवाई शुरू हो गई है.