स्मृतिशेषः प्रेम मंत्र लिखने वाले गीतकार राजन का महाप्रयाण

प्रेमगीतों के अप्रतिम गीतकार पंडित राजेन्द्र राजन 15 अप्रैल की तड़के महाप्रयाण कर गए और छोड़ गए लाखों लोगों के अधरों पर तैरते वे गीत, जिन्हें सुनकर लोग ताज़ा होते हैं, जीवन की लय पाते हैं.

स्मृतिशेषः गीतकार राजन का महाप्रयाण
स्मृतिशेषः गीतकार राजन का महाप्रयाण

वीरेन्द्र आज़म

प्रेमगीतों के अप्रतिम गीतकार पंडित राजेन्द्र राजन 15 अप्रैल की तड़के महाप्रयाण कर गए और छोड़ गए लाखों लोगों के अधरों पर तैरते वे गीत, जिन्हें सुनकर लोग ताज़ा होते हैं, जीवन की लय पाते हैं. वह गीत क्या लिखते थे, बस यूं कहिए कि जिंदगी लिखते थे और जादू करते थे. उनके गीतों में सिंधु-सी गहराई और हिमालय-सी ऊँचाई है.

सहारनपुर ही नहीं देश और देश से बाहर भी एक बड़ी संख्या उनके गीत मुरीदों की है. हो भी क्यों न उनके प्रेम गीतों में ज़िन्दगी की मिठास है. मनभावों की मीठी-मीठी आँच पर संवेदनाओं की चाशनी में पागकर जब वह शब्दों को प्रेम-सौंदर्य और श्रृंगार की तश्तरी में गीत रुप में परोसते थे तो श्रोता सुध-बुध भी खो बैठता था. बीसवीं शताब्दी के वे आखिरी दो दशकों में गीत अनुरागी ही नहीं कालेजों में असंख्य छात्र-छात्राएं भी यह गीत अक्सर गुनगुनाते थे-

‘मैं रात-रात भर जगा तुम्हें भुलाने के लिए

मैं पात-पात झर गया बसंत लाने के लिए.’

यही वह गीत था जिसने राजेन्द्र शर्मा को गीतकार राजेंद्र राजन की पहचान दी.

राजन मूल रूप से एलम ( मुजफ्फरनगर) के रहनेवाले थे. उनका जन्म पिता बीएस शर्मा के घर 9 अगस्त, 1952 को हुआ था. सहारनपुर के महाराज सिंह कालेज से उन्होंने बीएससी किया. स्टार पेपर मिल में कई दशक तक वह वेलफेयर ऑफिसर रहे. सेवानिवृत्ति के बाद से उनका पूरा जीवन साहित्य को ही समर्पित हो गया था.

21 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया गया. राजन अपनी प्रेम की चादर अभी बुन ही रहे थे कि निष्ठुर काल ने उनके जीवन में तूफान ला दिया. उनकी हमसफर अपनी अनंत यात्रा पर चली गयी. राजन भीतर से काफी टूट गए. उनके भीतर, व्यवस्था के प्रति आक्रोश, पारिवारिक व सामाजिक विद्रूपताओं से उपजी वितृष्णा और स्वयं के अस्तित्व को मिली प्रतिकूलताओं से जन्मी अभिव्यक्तियां जो प्रायः शुरू में गद्य रुप में बाहर आ रही थी, वह काव्य का आकार लेने लगी. तब उनकी क़लम ने लिखा-

‘चूम लूँ तुझको, लगे आराधना कुछ भी नहीं

तू रहे तो जग रहे, तेरे बिना कुछ भी नहीं.

यही पंक्तियाँ परिमार्जित रुप में गीत बनकर बाद में इस तरह आयी-

केवल दो गीत लिखे मैंने,

एक गीत तुम्हारे मिलने का 

एक गीत तुम्हारे खोने का.

और देखते ही देखते यह गीत भी लोगों के अधरों की बालकनी पर चहलकदमी करने लगा. राजन ने प्रेम और श्रंगार को संकुचित अर्थ में नहीं लिखा. उनके गीतों में प्रेम की पवित्रता है. उनके इस गीत से प्रेम और जीवन का अर्थ स्पष्ट हो जाता है-

कदम कदम पहचान ना पाये कौन बुरा है कौन भला,

प्यार को जब तक कुछ-कुछ समझे, तब तक जीवन छूट गया.

राजेन्द्र राजन कहा करते थे कि कविता का झरना पीड़ा के पर्वत से फूटता है. उन्हीं के शब्दों में-‘गीत, पीड़ा के पर्वत से निःसृत झरना ही तो है, लेकिन सभी गीतों के मूल में पीड़ा नहीं है कुछ सुखद अहसासों की अभिव्यक्ति भी है.’ राजन उन गीतकारों की अग्रणी पंक्ति में है जिन्होंने काव्य मंचों पर गीत को प्रतिस्थापित किया और उसे गरिमा दी.

वे काव्य मंचों के लोकप्रिय गीतकार रहे लेकिन मंच पर जमे रहने या लोकरंजन के लिए उन्होंने सस्ते मुहावरों या चुटकलों का सहारा नहीं लिया. वह गीतों के एक ऐसे जादूगर थे जिन्होंने शब्दों को पवित्रता दी और गीत रुप में आकार दिया. उनके गीतों पर सैकड़ों कवि सम्मेलनों में तालियों का पहाड़ खडे़ होते देखा गया. उनका ये प्रेम गीत भी काव्य प्रेमियों और युवा धड़कनों को खूब धड़काता रहा है-

मैं लिपटकर तुम्हें, स्वप्न के गाँव की

इक नदी में नहाता रहा रात भर,

कोई था भी नही जिं़दगी की जिसे

मैं कहानी सुनाता रहा रात भरा.

उनके ये प्रेम गीत इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने गीतों को आत्मा से जिया. उन्होंने प्रेम गीत नहीं बल्कि प्रेम मंत्र लिखे हैं. तभी तो भोपाल की सुविख्यात कवियित्री अनु सपन ने उन्हें ‘कोमल भावनाओं का कुशल चितेरा’, डॉ शिव ओम अम्बर ने ‘गीतों के ऋक् मंत्रों का उद्गाता’ और हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा ने ‘गीतों का अलंबरदार’ कहा है.

राजेंद्र राजन अपने राजनीतिक परिवेश से भी बेखबर नहीं रहे. उन्होंने राजनेताओं पर भी जबरदस्त प्रहार किया. उनका ये गीत कुमार विश्वास के स्टूडियो से लेकर टीवी चैनलों की स्क्रीन तक खूब गूंजा है-

आने वाले हैं शिकारी मेरे गांव में                                                                                  

जनता है चिन्ता की मारी मेरे गांव में.

प्रेमसिक्त राजन को प्रेम और श्रृंगार का कवि माना जाता है लेकिन उन्होंने सामाजिक सरोकारों को भी कभी अनदेखा नहीं किया. समय और समाज की नब्ज पर उनकी खूब पकड़ थी. गीतों के अलावा ग़ज़लों की दुनिया में भी उनकी दमदार दस्तक रही. आज की सामाजिक विद्रूपता पर उनकी ग़ज़ल की ये बानगी देखिये-

हक़ीक़त देखकर दुनिया की मुँह पर पड़ गया ताला                                                                    

बहुत ख़ामोश बैठा है बहुत कुछ बोलने वाला,                                                                                                

पिता को मैं निभा लूँगा, तू माँ को पास रख लेना लेना,                           

विधाता जो न कर पाया उसे बेटों ने कर डाला.

राजन की मंचीय गीत यात्रा 1976 में सहारनपुर के मेला गुघाल कवि सम्मेलन से शुरु हुई. साढे़ चार दशक की इस गीत यात्रा में राजन ने लालकिला, गीत चांदनी जयपुर और राष्ट्रपति भवन सहित कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के सभी बड़े मंचों पर असंख्य कवि सम्मेलनों में अपने गीत पढ़े. कवि सम्मेलनों के अलावा मुशायरों में भी उन्हें खूब वाह-वाही मिली. देश के सभी वरिष्ठ और बडे़ साहित्य मनीषियों व गीत ऋषियों का सानिध्य और स्नेह उन्हें मिलता रहा.

2009 में अमेरिका के 16 शहरों में राजन ने अपनी गीत यात्रा की और वहाँ भी गीत प्रेमियों को अपने गीतों से मंत्रमुग्ध कर दिया था.

वाणी में सरसता, व्यवहार में सहजता, चिंतन में परिपक्वता, आचरण में निश्छलता, भावों में कोमलता, और दृष्टि में गहनता उनके आभूषण रहे. छोटो को स्नेह, बराबर वालों को सम्मान,बड़ों से आशीर्वाद पाना उनके गुण आभूषणों में था, वे जितने व्यवहार में शिष्ट रहे गीत संवेदना में उससे कहीं अधिक विशिष्ट. दूसरों को अपना बनाने का जादू उनकी मीठी सी झंकार भरी सुरीली आवाज़ में था तो दूसरों का हो जाने की विशेषता भी उनके व्यवहार में थी. इसी कारण वे गीतकारों के भी लाड़ले रहे और श्रोताओं के भी.

देशभर में युवा गीतकारों की एक लंबी फौज ऐसी है जो ये कहती नहीं थकती कि उन्होंने राजन जी के गीत सुनकर ही गीत लिखना शुरु किया. इसीलिए कवि रासबिहारी गौड़ ने उन्हें ‘गीतों का गुरुकुल’ कहा है.

वर्ष 1983 में उनका पहला काव्य संकलन ‘पतझर-पतझर सावन-सावन’ प्रकाशित हुआ. वर्ष 2003 में गीत संग्रह ‘केवल दो गीत लिखे मैंने’ और वर्ष 2015 में दूसरा गीत संग्रह ‘खुश्बू प्यार करती है’ तथा 2017 में ग़ज़ल संग्रह ‘मुझे आसमान देकर’ प्रकशित हुआ. वर्ष 2019 में प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘शीतलवाणी’ का उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक विशेषांक भी प्रकाशित हुआ था. इन दिनों राजन अपने एक नये गीत संकलन और एक कहानी संकलन के प्रकाशन की तैयारी में लगे थे. वर्ष 2015 में उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने उन्हें उनके साहित्यिक अवदान पर ‘साहित्य भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था. अपने पीछे राजन अपनी पत्नी श्रीमती विभा, अपने दो बेटो मनोज व प्रशांत का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं.

गीतवंत राजन का जाना, सहारनपुर की धरती से गीत का रुठ कर चले जाना है.

(लेखक डॉ. वीरेन्‍द्र आजम सा‍हित्यिक पत्रिका शीतलवाणी के संपादक हैं.)

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