दो ट्राली पराली दो, एक ट्राली खाद लो
पराली की समस्या से निजात दिलाने के लिए उन्नाव जिला प्रशासन ने किसानों से एक-दो ट्रैक्टर ट्राली पराली के एवज में एक ट्रैक्टर ट्राली खाद देने की योजना शुरू की है.

आम के आम, गुठलियों के भी दाम ! यह कहावत उन्नाव के किसानों पर आजकल शायद कुछ सही बैठ रही है. पराली की समस्या से निजात दिलाने के लिए उन्नाव जिला प्रशासन ने किसानों से एक-दो ट्रैक्टर ट्राली पराली के एवज में एक ट्रैक्टर ट्राली खाद देने की योजना शुरू की है. योजना के आर्किटेक्ट उन्नाव के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार बताते हैं कि वैसे तो जिले में कुल 125 गोशालाएं हैं लेकिन इनमें से 28 गोशालाएं काफी बड़ी हैं. इन बड़ी गोशालाओं में काफी गोबर की खाद जमा हो गई थी. इसी खाद की निकासी और पराली की बढ़ती समस्या का एक साथ समाधान करने के लिए उन्नाव जिला प्रशासन ने पराली के एवज में खाद देने की योजना शुरू की है. योजना शुरू होने के तीन दिन के भीतर प्रशासन के पास 100 से अधिक किसान अपने खेत की पराली लेकर बदले में खाद लेकर जा चुके हैं. रवींद्र कुमार बताते हैं, “किसानों से ली गई पराली को भूसे में तब्दील करके गोशालाओं में गायों के भोजन के रूप में उपयोग किया जा रहा है. इस तरह से गोशालाओं को भूसा नहीं खरीदना पड़ेगा और किसानों को खाद मिल जाएगी. दोनों ही लोग फायदे में रहेंगे.”
मौजूदा समय में किसानों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत पराली को लेकर ही है. किसान कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा कटाई कराकर खेत में फसल की पराली या अवशेष को जला देते हैं, इससे मिट्टी का तापक्रम अधिक होने से लाभदायक जीवाणु मर जाते हैं. मिट्टी की संरचना जर्जर हो जाती है, साथ ही साथ विषैली गैस जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड एवं कार्बन डाइऑक्साइड फैलने से वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है, जो लोगों के लिए घातक है. पराली जलाने से मिट्टी तत्व विहीन हो रही है, जिस कारण से फसल उत्पादन दिनों दिन कम हो रहा है. इन समस्याओं से उबरने के लिए केंद्र सरकार पिछले 3 वर्षों से फसल अवशेष प्रबंधन योजना चला रही है, लेकिन इसके अभी तक बहुत उल्लेखनीय परिणाम सामने नहीं आए हैं. सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल) ने पराली जलाने को दंडनीय अपराध घोषित किया है. ऐसा करने वाले किसानों पर मुकदमा दर्ज किया जा रहा है. किसान ऐसा न करें, इसके लिए सरकार की ओर से भी जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसानों को लेकर बेहद संवेदनशील हैं और किसानों की समस्याओं का निराकरण उनकी प्राथमिकता में है. ऐसे में पर्यावरण में फैल रहे वायु प्रदूषण को कम से कम करने के लिए सरकार की ओर से कई प्रयास किए जा रहे हैं. पराली को लेकर ऐसे कृषि यंत्रों को, जिनसे पराली को आसानी से निस्तारित किया जा सकता है, उन पर सरकार की ओर से 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दिया जा रहा है.
पराली जलाने से पर्यावरण को हो रहे नुकसान से निजात दिलाने के लिए तकनीकी संस्थाएं भी अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं. अयोध्या के आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय वैज्ञानिकों की ओर से इजाद की गई आधुनिक रिवर्सिबल मोल्ड बोर्ड प्लाऊ, कटर कम स्प्रेड, चापर कम मल्चर, हैपी सीडर, सुपर सीडर आदि जैसी मशीनों का उपयोग किसानों के बीच बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. इन मशीनों से किसानों को खेत में ही पराली काटने फैलाने एवं बिना जुताई के लाइनों में उर्वरक की बुवाई हेतु सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. इनके उपयोग से पराली को जलाना नहीं पड़ता है और वातावरण सुरक्षित रहता है. इस तकनीक के प्रयोग से वह खेत में ही गल कर जैविक खाद बन जाती है, जो मल्च का काम करता है. नमी खेतों में सुरक्षित होने से सिंचाई जल में 40 फीसद से 50 फीसद की बचत होती है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में इजाफा होता है.
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